महिलाओं के अधिकार

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महिलाओं के वोट के लिए अभियान कर रही कुछ महिला

महिलाओं के अधिकार, वह अधिकार है जो प्रत्येक महिला या बालिका का विश्वव्यापी समाजों में पहचाना हुआ जन्मसिद्ध अधिकार या अधिकार हैं। १९वीं सदी में महिला अधिकार संग्राम और २०वीं सदी में फेमिनिस्ट आंदोलन का यह आधार रहा है। कई देशों में यह हक कानूनी तौर पर, अंदरूनी समाज द्वारा या लोगों के व्यवहार में लागू होता है तो कई देशों में यह प्रचलित नहीं है। कई देशों में व्यापक तौर पर मानवाधिकार का दावा निहित इतिहासिक और परम्परागत झुकाव के नाम पर महिलाओं और बालिकाओ का हक पुरुषों और बालकों के पक्ष में दे दिया जाता है। महिलाओं के अधिकार के विषय मे कुछ हक अखंडता और स्वायत्तता शारीरिक करने की आजादी, यौन हिंसा से मुक्ति; मत देने की आजादी; सार्वजनिक पद धारण करने की आजादी; कानूनी कारोबार में प्रवेश करने की आजादी;पारिवारिक कानून में बराबर हक; काम करने की आजादी और समान वेतन की प्राप्ति; प्रजनन अधिकारों की स्वतंत्रता; शिक्षा प्राप्ति का अधिकार।

इतिहास[संपादित करें]

प्राचीन काल में महिलाओं की स्थिति व्यवहारिक जीवन में पुरुषों की तुलना में श्रॅष्ठ रही ही हैं शास्त्रों में उनका दर्जा भी उच्च रहा। सन् 700 के बाद भारत मे महिलाओं की स्थिति मुस्लिम आततायियो के कारण दिन प्रतिदिन दयनीय होती गई। नाइजेरिया अका संस्कृति में महिला अपने बल पर शिकार करती थी। ईजिप्त मे क्लियोपेतरा जैसी प्रसिद्ध महिला शासक एक और उदाहरण के रूप में प्रस्तुत की जाती हैं।

चीन:[संपादित करें]

शाही चीन में, "तीन ओबिदियेन्शेस्" के अनुसार बेटियों को अपने बाप-दादा की आज्ञा का पाल, पत्नियों को अपने पति और विधवाओं को अपने बेटों की आज्ञा का पालन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था। फूट बाईंदिंग रिवाज के कराण चीन मे महिलाओं की स्थिति दयनीय रही। १९१२ में चीनी सरकार ने इस रिवाज की समाप्ति की। १९५० में नई विवाह के कानून की मदद से विवाह की कानूनी उम्र पुरुषों के लिए 20 और महिलाओं के लिए 18 घोषित की गई।

यूनान[संपादित करें]

राजनीतिक और समान अधिकार में कमी होने के बावजूद यूनानी महिलाओं को काफी आजादी प्राप्त थी। आरकाइक एज के पश्चात महिलाओं की स्थिति बद से बदतर होती चली गई। लिंग अलगाव जैसे कानून को उत्पन्न किया गया। अरिस्तोतल जैसे दार्शनिक ने दास के साथ महिलाओं की तुलना की निंदा की परंतु वह पत्नियों को बाजार से खरीदकर लाने की वस्तु समझता था। यौन समतावाद को मजबूत दार्शनिक आधार पर प्राचीन ग्रीस में जगह दी गई थी।

सन्दर्भ[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]