कृपालु महाराज

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जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
जन्म राम कृपालु त्रिपाठी
5 अक्टूबर 1922
मनगढ़, प्रतापगढ़
मृत्यु 15 नवम्बर 2013(2013-11-15) (उम्र 91)
गुड़गाँव, भारत
खिताब/सम्मान जगद्गुरु
धर्म हिन्दू
राष्ट्रीयता भारतीय

जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज (जन्म: 5 अक्टूबर 1922, मृत्यु: 15 नवम्बर 2013) एक सुप्रसिद्ध हिन्दू आध्यात्मिक गुरु एवं वेदों के प्रकांड विद्वान थे। मूलत: इलाहाबाद के निकट मनगढ़ नामक ग्राम (जिला प्रतापगढ़) में जन्मे जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज का पूरा नाम रामकृपालु त्रिपाठी था। श्री कृपालु जी महाराज का अवतार राधा-कृष्ण मिलित विग्रह का स्वरूप है, क्योंकि श्री चैतन्य महाप्रभु ही ५०० वर्ष के पश्चात् इस रूप में अवतीर्ण हुए थे । [1][2][3]

उन्होंने जगद्गुरु कृपालु परिषद् के नाम से विख्यात एक वैश्विक हिन्दू संगठन का गठन किया था। जिसके इस समय 5 मुख्य आश्रम पूरे विश्व में स्थापित हैं। विदेशों में इनका मुख्य आध्यात्मिक केन्द्र (द हार्वर्ड प्लूरिश प्रोजेक्ट) यूएसए में है।[4] इनमें से चार भारत में तथा एक (द हार्वर्ड प्लूरिश प्रोजेक्ट) अमरीका में है।[5] जेकेपी राधा माधव धाम तो सम्पूर्ण पश्चिमी गोलार्द्ध, विशेषकर उत्तरी अमेरिका में सबसे विशाल हिन्दू मन्दिर है।[6][7][8][9]

14 जनवरी 1957 को मकर संक्रांति के दिन महज़ 34 वर्ष की आयु में उन्हें काशी विद्वत् परिषद् की ओर से जगद्गुरु की उपाधि से विभूषित किया गया था।[1][10] वे अपने प्रवचनों में समस्त वेदों, उपनिषदों, पुराणों, गीता, वेदांत सूत्रों आदि के खंड, अध्याय, आदि सहित संस्कृत मन्त्रों की संख्या क्रम तक बतलाते थे जो न केवल उनकी विलक्षण स्मरणशक्ति का द्योतक था, वरन् उनके द्वारा कण्ठस्थ सारे वेद, वेदांगों, ब्राह्मणों, आरण्यकों, श्रुतियों, स्मृतियों, विभिन्न ऋषियों और शंकराचार्य प्रभृति जद्गुरुओं द्वारा विरचित टीकाओं आदि पर उनके अधिकार और अद्भुत ज्ञान को भी दर्शाता था।[उद्धरण चाहिए]

जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज का 15 नवम्बर 2013 (शुक्रवार) सुबह 7 बजकर 5 मिनट पर गुड़गाँव के फोर्टिस अस्पताल में निधन हो गया।[3]

प्रारंभिक जीवन[संपादित करें]

संक्षिप्त परिचय[संपादित करें]

अपनी ननिहाल मनगढ़ में जन्मे राम कृपालु त्रिपाठी ने गाँव के ही मिडिल स्कूल से 7वीं कक्षा तक की शिक्षा प्राप्त की और उसके बाद आगे की पढ़ाई के लिये महू मध्य प्रदेश चले गये। कालान्तर में आपने साहित्याचार्य, आयुर्वेदाचार्य एवं व्याकरणाचार्य की उपाधियाँ आश्चर्यजनक रूप से अल्पकाल में ही प्राप्त कर लीं। अपने ननिहाल में ही पत्नी पद्मा के साथ गृहस्थ जीवन की शुरुआत की और राधा कृष्ण की भक्ति में तल्लीन हो गये। भक्ति-योग पर आधारित उनके प्रवचन सुनने भारी संख्या में श्रद्धालु पहुँचने लगे। फिर तो उनकी ख्याति देश के अलावा विदेश तक जा पहुँची। उनकी तीन बेटियाँ हैं - विशाखा, श्यामा व कृष्णा त्रिपाठी। तीनों बेटियों ने अपने पिता की राधा कृष्ण भक्ति को देखते हुए विवाह करने से मना कर दिया और कृपालु महाराज की सेवा में जुट गयीं।[11]


जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के प्रमुख कार्य[संपादित करें]

1- जगतगुरु की उपाधि से सम्मानित होने के पश्चात कृपालु जी की ख्याति दूर दूर तक फैलने लगी थी। कृपालु जी महाराज के द्वारा गठित वैश्विक कृपालु परिषद के गठन के पश्चचात विभिन्न देशो के लोगो के द्वारा सहोयोग करने की भावना उत्पन्न होने लगी जिसके फलस्वरूप जगतगुरु श्री कृपालु जी महाराज जी द्वारा मणगढ़ मे हि भक्ति मंदिर का निर्माण अत्यंत हि सुंदर स्वरुप के करवाया गया। 2- कृपालु जी महाराज द्वारा निर्धानों हेतु भक्ति मंदिर के पास हि मणगढ़ मे हि एक विशाल अस्पताल का निर्माण करवाया गया जहाँ आज विभिन्न प्रकार के रोगो की दवा मुफ्त मे होती है। जिसका सारा खर्चा कृपालु परिषद समिति के द्वारा वहन किया जाता है।

आश्रम एवं मंदिर[संपादित करें]

भक्ति मंदिर, मनगढ[संपादित करें]

भक्ति मंदिर, जिसका अर्थ है "भक्ति का निवास", जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा मनगढ़, कुंडा, भारत के गांव में स्थापित एक दिव्य मंदिर है । 108 फीट लंबे और गुलाबी बलुआ पत्थर, सफेद संगमरमर और काले ग्रेनाइट से निर्मित भक्ति मंदिर की आधारशिला 26 अक्टूबर 1996 को रखी गई थी और नवंबर 2005 में इसका उद्घाटन किया गया था।

प्रेम मन्दिर, वृन्दावन[संपादित करें]

कृपालुजी की जीवन्त कल्पना: प्रेम मन्दिर

भगवान कृष्ण और राधा के मन्दिर के रूप में बनवाया गया प्रेम मन्दिर कृपालु महाराज की ही अवधारणा का परिणाम है। भारत में मथुरा के समीप वृंदावन में स्थित[12][13] इस मन्दिर के निर्माण में 11 वर्ष का समय और लगभग सौ करोड़ रुपए खर्च हुए थे। इटैलियन संगमरमर का प्रयोग करते हुए इसे राजस्थान और उत्तर प्रदेश के एक हजार शिल्पकारों ने तैयार किया। इस मन्दिर का शिलान्यास स्वयं कृपालुजी ने ही किया था।[14] यह मन्दिर प्राचीन भारतीय शिल्पकला का एक उत्कृष्ट नमूना है।

मन्दिर वास्तुकला के माध्यम से दिव्य प्रेम को साकार करता है। सभी वर्ण, जाति तथा देश के लोगों के लिये हमेशा खुले रहने वाले इसके दरवाज़े सभी दिशाओं में खुलते है। मुख्य प्रवेश द्वार पर आठ मयूरों के नक्काशीदार तोरण हैं एवं सम्पूर्ण मन्दिर की बाहरी दीवारों को राधा-कृष्ण की लीलाओं से सजाया गया है। मन्दिर में कुल 94 स्तम्भ हैं जो राधा-कृष्ण की विभिन्न लीलाओं से सजाये गये हैं। अधिकांश स्तम्भों पर गोपियों की मूर्तियाँ अंकित हैं।

कीर्ति मंदिर, बरसाना[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Singh, K. 28 जनवरी 2007. Varanasi seer’s memory is phenomena. Tribune India.
  2. Ex-Nepalese King Gyanendra meets Indian Spiritual guru Archived 3 दिसम्बर 2013 at the वेबैक मशीन. 02/10/2008. Asian News International.
  3. "Maharaj Ji Kripalu". मूल से 2 जनवरी 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 नवम्बर 2013. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> अमान्य टैग है; "Maharajji Kripalu" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है
  4. Walker, J.K. 2007. The Concise Guide to Today's Religions and Spirituality. Harvest House Publishers.
  5. Radha Madhav Dham Archived 4 मार्च 2016 at the वेबैक मशीनThe Harvard Plurism Project.
  6. Vedic Foundation Inaugurated at Barsana Dham, Austin Archived 18 अगस्त 2011 at the वेबैक मशीन. Retrieved 15 Dec 2011.
  7. Ciment, J. 2001. Encyclopedia of American Immigration. Michigan: M.E. Sharpe
  8. Hylton, H. & Rosie, C. 2006. Insiders' Guide to Austin. Globe Pequot Press.
  9. Mugno, M. & Rafferty, R.R. 1998. Texas Monthly Guidebook to Texas. Gulf Pub. Co.
  10. काशी में 1957 में जगद्गुरु Archived 11 फ़रवरी 2018 at the वेबैक मशीन की उपाधि मिली थी।
  11. "दोस्तों के दोस्त थे जगत कृपालु जी महाराज". मूल से 18 April 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 नवम्बर 2013. नामालूम प्राचल |publishers= की उपेक्षा की गयी (|publisher= सुझावित है) (मदद)
  12. "1000 कारीगरों ने 11 साल में बनाया 'प्रेम मंदिर'!". मूल से 25 July 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 नवम्बर 2013. नामालूम प्राचल |publishers= की उपेक्षा की गयी (|publisher= सुझावित है) (मदद)
  13. प्रेममंदिर में जगद्गुरुत्तम उत्सव में उमड़े अनुयायी
  14. "राधाकृष्ण के प्रेम मन्दिर का लोकार्पण!". अभिगमन तिथि 16 नवम्बर 2013. नामालूम प्राचल |publishers= की उपेक्षा की गयी (|publisher= सुझावित है) (मदद)[मृत कड़ियाँ]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]