युगाण्डा से भारतीयों का निष्कासन

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युगाण्डा पूर्वी अफ़्रीका में स्थित एक देश है जहाँ 1970 के दशक के शुरुआती वर्षों से पहले भारतीय मूल की अच्छी-ख़ासी आबादी रहती थी। ये भारतीय ब्रिटिश नागरिकता के साथ युगाण्डा में रहते थे और तब के राष्ट्रपति ईदी अमीन के 4 अगस्त 1972 को दिए आदेश पर मजबूरन युगाण्डा छोड़ना पड़ा था। चूँकि इन भारतीयों के पूर्वज विभाजन से पहले वहाँ बसे थे इसलिए इनमें पाकिस्तानी और बांग्लादेशी भी शामिल थे। अमीन के निष्कासन आदेश के बाद लगभग आधे भारतीयों ने ब्रिटेन में शरण ली और बाक़ी अमेरिका, कनाडा और भारत चले गए।

इतिहास[संपादित करें]

भारतीयों ने पूर्वी अफ़्रीका में प्रव्रजन 1896 से 1901 के बीच युगाण्डा रेलवे के निर्माण के साथ आरम्भ किया, जब लगभग 32,000 गिरमिटिया मजदूरों को ब्रिटिश भारत से इस परियोजना के लिए विशेष रूप से पूर्वी अफ़्रीका लाया गया था। यह रेलवे अभियांत्रिकी की उल्लेखनीय उपलब्धि साबित हुई, परन्तु इसकी वजह से 2,500 या हर एक मील ट्रैक बिछाने में चार मजदूरों की मृत्यु हुई।[1]

रेलवे के निर्माण के पश्चात इनमें से कई मजदूरों ने यहीं बसने का निर्णय लिया और अपने परिवारों को भारत से तब के पूर्वी अफ़्रीकी संरक्षित राज्य में ले आए। ये शुरुआती आबादकार मुख्य रूप से भारत के गुजरात और पंजाब राज्यों के मूल निवासी थे।[2]

पूर्वी अफ़्रीका और युगाण्डा में मुख्यतः भारतीय वस्त्र निर्माण और बैंकिंग व्यवसाय में संलग्न थे। इन क्षेत्रों में उन्हें अंग्रेज़ों ने कार्यरत किया था। इन व्यवसायों में भारतीयों की इतनी बड़ी संख्या थी कि देश के दूसरे नागरिकों ने भारतीयों के प्रति दर्जी या बैंकर की रूढ़िबद्ध धारणा बना ली थी। देश की केवल एक प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करने के बावजूद भारतीयों का अर्थव्यवस्था में अहम योगदान और महत्वपूर्ण प्रभाव था। राष्ट्रीय आय का पाँचवाँ हिस्सा भारतीय प्राप्त करते थे। युगाण्डा में प्रशुल्क प्रणाली को ऐतिहासिक रूप से भारतीय व्यापारियों के आर्थिक हितों की ओर उन्मुख किया गया था।[3]

निष्कासन[संपादित करें]

युगाण्डा के जनरल ईदी अमीन ने 7 अगस्त 1972 को आदेश दिया कि जिन भारतीयों के पास युगाण्डा की नागरिकता नहीं है उन्हें देश 90 दिन के अंदर छोड़ना पड़ेगा। मूलतः दो दिन पहले अमीन ने कहा था कि युगाण्डा के सभी एशियाई मूल लोगों को देश छोड़ना पड़ेगा परन्तु इस निर्देश में उसने संशोधन कर दिया था जिसके परिणामस्वरूप उस समय की 80,000 एशियाई आबादी में से लगभग 60,000 इस मापदण्ड के अन्तर्गत आ गई। अमीन के आदेश के अनुसार ऐसे लोग अपने साथ केवल दो सूटकेस और 55 पाउंड ही ले जा सकते थे। लगभग 50,000 लोगों के पास ब्रिटिश पासपोर्ट थे जिसके आधार पर लगभग 30,000 ब्रिटेन चले गए और उनमें से 10,000 लेस्टर शहर गए जहाँ पहले से ही बड़ी संख्या में भारतीय रहते थे। बाक़ी ने अमरीका, कनाडा और भारत में शरण ली। मगर उस समय लेस्टर में परिस्थितियाँ अनुकूल नहीं थीं। शहर के बहुसंख्यक गोरे लोगों में से एक तबका युगाण्डा से भारतीयों के शहर में आने का विरोध कर रहा था और इसे लेकर जुलूस-प्रदर्शन हुए। स्थानीय नगरपालिका के साथ-साथ कंज़रवेटिव पार्टी भी भारतीयों के ब्रिटेन में आने के विरुद्ध थी उस समय के सांसद रोनल्ड बॅल ने कहा था कि "युगाण्डा की एशियाई आबादी का ब्रिटेन से वास्तविक सम्पर्क नहीं है [तथा] उनका रक्त या निवास के आधार पर ब्रिटेन के साथ कोई संबंध नहीं है"।[4][5]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "Kenya's Asian heritage on display" (अंग्रेज़ी में). बीबीसी न्यूज़. 24 मई 2000. मूल से 28 सितंबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 14 सितम्बर 2013.
  2. हेक, एंड्रयू (1977). African Metropolis: Nairobi's Self-Help City. ससेक्स यूनिवर्सिटी प्रेस. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-85621-066-2. अभिगमन तिथि 5 सितम्बर 2013.
  3. टवॉडल, माईकल. "Expulsion of a Minority: essays on Ugandan Asians". जर्नल ऑफ़ मॉडर्न अफ्रीकन स्टडीज़ (अंग्रेज़ी में). जेस्टोर. पपृ॰ 357–358.
  4. "1972: Asians given 90 days to leave Uganda" (अंग्रेज़ी में). बीबीसी. 7 अगस्त 1972. मूल से 13 जुलाई 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 14 सितम्बर 2013.
  5. कृष्ण, अपूर्व (23 नवम्बर 2012). "अमीर भारतीय खाली हाथ युगांडा से भागे थे". बीबीसी हिन्दी. मूल से 6 जनवरी 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 14 सितम्बर 2013.