इंद्रस्

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इंद्रस् एक आर्य थे और ऋग्वैदिक नायक भी। ये पौराणिक इंद्र से भिन्न हैं और तथाकथित सनातन या हिंदू धर्म से इनका कोई संबंध नहीँ है।

परिचय[संपादित करें]

इंद्रस् पहले ऐसे आर्य थे जिन्होंने पूरे आर्य साम्राज्य को एक सूत्र किया तथा असीरिया के राजा वृत्र को हराया।


  • हिलब्रैण्ट ने सूर्य रूपी इन्द्र का वर्णन करते हुए कहा है: वृत्र शीत (सर्दी) एवं हिम का प्रतीक है, जिससे मुक्ति केवल सूर्य ही दिला सकता है। ये दोनों ही कल्पनाएँ इन्द्र के दो रूपों को प्रकट करती हैं, जिनका प्रदर्शन मैदानों के झंझावात और हिमाच्छादित पर्वतों पर तपते हुए सूर्य के रूप में होता है। वृत्र से युद्ध करने की तैयारी के विवरण से प्रकट होता है कि देवों ने इन्द्र को अपना नायक बनाया तथा उसे शक्तिशाली बनाने के लिए प्रभूत भोजन-पान आदि की व्यवस्था हुई। इन्द्र प्रभूत सोमपान करता है। इन्द्र का अस्त्र वज्र है जो विद्युत प्रहार का ही एक काल्पनिक नाम है।
  • ऋग्वेद में इन्द्र को जहाँ अनावृष्टि के दानव वृत्र का वध करने वाला कहा गया है, वहीं उसे रात्रि के अन्धकार रूपी दानव का वध करने वाला एवं प्रकाश का जन्म देने वाला भी कहा गया है।
  • ऋग्वेद के तीसरे मण्डल के वर्णनानुसार विश्वामित्र के प्रार्थना करने पर इन्द्र ने विपाशा (व्यास) तथा शतद्रु नदियों के अथाह जल को सुखा दिया, जिससे भरतों की सेना आसानी से इन नदियों को पार कर गयी।


जन्म[संपादित करें]

6000-4000 ईसा पूर्व (अनुमानित)

माता[संपादित करें]

शवषी

पिता[संपादित करें]

त्वष्टा/त्वष्ट्र

पत्नी[संपादित करें]

शची

गुरु[संपादित करें]

अर्यमा

अन्य नाम[संपादित करें]

कथा[संपादित करें]