हरि नारायण आपटे

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हरि नारायण आपटे

हरि नारायण आपटे (१८६४-१९१९ ई.) मराठी के प्रसिद्ध उपन्यासकार, कवि, नाटककार थे।

परिचय[संपादित करें]

हरिभाऊ आपटे का जन्म खानदेश में हुआ। पूना में पढ़ते समय इनके भावुक हृदय पर निबंधमालाकार चिपलूणकर और उग्र सुधारक आगरकर का अत्यधिक प्रभाव पड़ा। इसी अवस्था में इन्होंने कई अंग्रेजी कहानियों का मराठी में सरस अनुवाद किया। विद्यार्थी जीवन में ही इन्होंने संस्कृत के नाटकों का तथा स्कॉट, डिकसन्, थैकरे, रेनाल्ड्स इत्यादि के उपन्यासों का गहरा अध्ययन किया और लोकमंगल की दृष्टि से उपन्यासरचना की आकांक्षा इनमें अंकुरित हुई।

सन् १८८५ में इनका 'मघली स्थिति' नामक पहला सामाजिक उपन्यास एक समाचारपत्र में क्रमश: प्रकाशित होने लगा। बी. ए. की परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने पर इन्होंने 'करमणूक' नामक पत्रिका का संपादन करना आरंभ किया। यह कार्य ये अट्ठाईस वर्षों तक सफलता से करते रहे। इस पत्रिका में इनके लगभग इक्कीस उपन्यास प्रकाशित हुए जिनमें दस सामाजिक और ग्यारह ऐतिहासिक है। मराठी उपन्यास के क्षेत्र में क्रांति का संदेश लेकर ये अवर्तीण हुए। इनकी रचनाओं से मराठी उपन्याससाहित्य की सर्वांगीण समृद्धि हुई। इनकी सामाजिक कृतियों में समाजसुधार का प्रबल संदेश है। मुख्य सामाजिक उपन्यासों में मछली स्थिति', 'गणपतराव', 'पण लक्षांत कोण वेतों', 'मो' और 'यशवंतराव खरे' उत्कृष्ट हैं। ये चरित्रचित्रण करने में सिद्धहस्त थे। इनकी रचनाओं में यथार्थवाद और ध्येयवाद (आदर्शवाद) का मनोहर संगम है। साथ ही मिल और स्पेंसर के बुद्धिवाद का रोचक विवेचन भी है। इन्होंने मध्यमवर्गीय महिलाओं की समस्याओं का भावपूर्ण एवं कलात्मक चित्रण किया।

ऐतिहासिक उपन्यासों में चंद्रगुप्त, उष:काल, गड आला पण सिंह गेला और वज्राघात आपटे की उत्कृष्ट कृतियाँ है। इनकी ऐतिहासिक दृष्टि व्यापक और विशाल थी। गुप्तकाल से मराठों की स्वराज्य स्थापना तक के काल पर इन्होंने कलापूर्ण उपन्यास लिखे। 'वज्राघात' इनकी अंतिम कृति है जिसमें दक्षिण के विजयनगरम् राज्य के नाश का प्रभावकारी चित्रण है। इसकी भाषा काव्यपूर्ण और सरस है। इनके सामाजिक उपन्यास ऐतिहासिक उपन्यास जैसे सजीव चरित्रचित्रण से ओतप्रोत है। ये 'सत्यं, शिवं, सुंदरम्' के अनन्य उपासक थे।

इनकी कहानियाँ 'स्फुट गोष्ठी' नामक चार पुस्तकों में संगृहीत हैं। इनमें चरित्रचित्रण तथा घटनाचित्रण का मनोहर संगम है। कला तथा सौंदर्य की अभिव्यक्ति करते हुए जनजागरण का उदात्त कार्य करते में ये सफल रहे।

कृतियाँ[संपादित करें]

सामाजिक उपन्यास[संपादित करें]

  • मधली स्थिति (1885)
  • गणपतराव (1886)
  • पण लक्षात कोण घेतो? (1890)
  • मी (1895)
  • जग हे असे आहे (1899)
  • यशवंतराव खरे
  • आजच
  • भयंकर दिव्य
  • कर्मयोग
  • मायेचा बाजार

ऐतिहासिक उपन्यास[संपादित करें]

  • म्हैसूरचा वाघ (1890)
  • उषःकाल (1896)
  • गड आला पण सिंह गेला
  • सूर्योदय
  • सूर्यग्रहण
  • केवळ स्वराज्यासाठी
  • मध्याह्न
  • चंद्रगुप्त
  • वज्राघात
  • कालकूट