नारायण बापूजी उदगीकर

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नारायण बापूजी उदगीकर (मृत्यु संवत १९३१) संस्कृत साहित्य के अन्वेषक के रूप में प्रसिद्ध थे।

परिचय[संपादित करें]

एम॰ए॰ तक शिक्षा प्राप्त कर लेने के अनंतर पूना के सरकारी हाईस्कूल में अध्यापक के रूप में आपने सर्वप्रथम अपना सार्वजनिक जीवन आरंभ किया। उसके बाद डेक्कन कॉलेज के पुस्तकालय विभाग में भी आपने कुछ समय तक कार्य किया। १९१६ से १९१८ तक भांडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टिट्यूट के अवैतनिक सचिव तथा १९१८ से १९१९ तक हस्तलिखित ग्रंथसंग्रह के क्यूरेटर के रूप में आप रहे। उक्त संस्था से 'महाभारत' के शुद्ध संस्करण की योजना जब बनी, आप प्रधान संपादक के रूप में १९१९ से १९२४ तक काम करते रहे। विराटपर्व का प्रकाशन आपके ही सुयोग्य संपादकत्व में हुआ। रा.गो. भांडारकर के निबंधों के चार भाग आपने ही संपादित किए थे। इतिहास और संस्कृत के विद्यार्थियों तथा अन्वेषकों के लिए इस पुस्तक की उपादेयता महत्वपूर्ण है। प्रसिद्ध जर्मन विक्षन रिचर्ड गावें की भगवद्गीता की प्रस्तावना का आपने अंग्रेजी अनुवाद किया था। इसके अतिरिक्त प्राकृत महाकाव्य 'गौडवहो' का संशोधित संस्करण आपने ही अंत्यत परिश्रम से तैयार किया।

स. १९२७ में आप लकवे से आक्रांत हो गए और कुछ ही वर्षों बाद १९३१ में आपकी मृत्यु हुई।

सन्दर्भ[संपादित करें]