दुर्गाप्रसाद मिश्र

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दुर्गाप्रसाद मिश्र (31 अक्टूबर 1860 -1910) हिन्दी के पत्रकार थे। 19वीं सदी की हिंदी पत्रकारिता में दुर्गाप्रसाद मिश्र का महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है। वे हिंदी के ऐसे पत्रकार रहे हैं जिन्हें हिंदी पत्रकारिता के जन्मदाताओं एवं प्रचारकों में शुमार किया जाता है। हिंदी पत्रकारिता को क्रांति एवं राष्ट्रहित के मार्ग पर ले जाने के लिए अनेकों पत्रकारों ने अहोरात्र संघर्ष किया। पं॰ दुर्गाप्रसाद मिश्र ऐसे ही पत्रकार थे।

परिचय[संपादित करें]

दुर्गाप्रसाद मिश्र का जन्म 31 अक्टूबर 1860 को जम्मू-कश्मीर के सांवा नगर में हुआ था। उन्होंने काशी में संस्कृत एवं कलकत्ता के नार्मल स्कूल से अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त की।

दुर्गाप्रसाद ने कलकत्ता को ही अपनी कर्मभूमि बनाया। उन्होंने अपनी पत्रकारिता की शुरुआत काशी से निकलने वाली साहित्यिक पत्रिका ‘कविवचनसुधा‘ के संवाददाता के रूप में की। इसके पश्चात वे 17 मई 1878 को कलकत्ता से प्रकाशित होने वाले ‘भारत-मित्र‘ से जुड़े जिसका संपादन पं॰ छोटूलाल मिश्र करते थे। ‘भारत-मित्र‘ के प्रबंध संपादक की जिम्मेदारी पं॰ दुर्गाप्रसाद मिश्र के पास ही थी। लगभग एक वर्ष के पश्चात वे ‘भारत-मित्र‘ से अलग हो गए, कितु उनकी पत्रकार जीवन की यात्रा के कई पड़ाव अभी बाकी ही थे। 13 अप्रैल 1879 को उन्होंने पं॰ सदानंद मिश्र के सहयोग से ‘सारसुधानिधि‘ निकाला। यह पत्र उन्नीसवीं सदी के अत्यंत ओजस्वी पत्रों में से एक था। राष्ट्र में स्वराज्य की वापसी एवं समाज का पुनर्जागरण ही ‘सारसुधानिधि‘ का मूल स्वर था।

१७ अगस्त १८८० को 'उचित वक्ता' नामक हिन्दी साप्ताहिक प्रकाशित करना आरम्भ किया। यह पत्र अंग्रेजी राज की असलियत उजागर करने में लग गया और न्याय के पक्ष में लिखता रहा। कुछ ही वर्षों में यह बहुत लोकप्रिय हो गया।

पत्रकारिता के उद्देश्यों के लिए पं॰ दुर्गाप्रसाद मिश्र सदैव प्रयत्नशील रहे। सारसुधानिधि, उचितवक्ता एवं भारतमित्र जैसे अपने समय के प्रतिष्ठित पत्रों में उन्होंने लेखन एवं संपादन किया। उनके पत्रों से लेखक के तौर पर भारतेन्दु हरिश्चन्द्र एवं दयानन्द सरस्वती जैसी महान विभूतियां भी जुड़ीं। हिंदी पत्रकारिता के अतिरिक्त उन्होंने बंगला के 'स्वर्णलता' के आधार पर 'सरस्वती' नामक नाटक भी लिखा। उन्होंने बिहार प्रांत के विद्यालयों के लिए पाठ्य पुस्तकें भी लिखीं। उनका जीवन शब्दों की आराधना के लिए ही समर्पित था।

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