कौमार्य परीक्षण

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योनिच्छद की विभिन्न स्थितियाँ

कौमार्य परीक्षण यह निर्धारित करने की प्रक्रिया है कि क्या कोई महिला कुंवारी है या नहीं, यानी कि क्या उसने कभी भी संभोग किया है या नहीं? इस परीक्षण में महिला की योनिद्वार की झिल्ली (अर्थात् योनिच्छद) का परीक्षण इस धारणा पर किया जाता है कि उसकी योनिद्वार की झिल्ली केवल संभोग के परिणामस्वरूप ही फट सकती है। इस परीक्षण को सामान्यतः दो उँगली परीक्षण (अंग्रेज़ी: Two-Finger Test) के नाम से भी जाना जाता है। जे॰एन॰यू॰ के सेंटर फॉर लॉ ऐंड गवर्नेंस में प्राध्यापक प्रतीक्षा बख्शी के अनुसार फ्रांसीसी मेडिकल विधिवेत्ता एल॰ थोइनॉट ने 1898 के आसपास नकली और असली कुंआरी लड़कियों में फर्क करने वाली जाँच के लिए इस तरह का टेस्ट ईजाद किया था। नकली कुंआरी उस महिला को कहा जाता था, जिसकी हाइमन लचीलेपन के कारण सेक्स के बाद भी नहीं टूटती है।[1] भारत में मेडिकल विधिशास्त्र की लगभग हर पुस्तक में टी॰एफ॰टी॰ को बढ़ावा दिया गया है, जिनमें जयसिंह पी॰ मोदी की लिखी किताब ए टेक्स्ट बुक ऑफ मेडिकल ज्यूरिसप्रूडेंस ऐंड टॉक्सीकोलॉजी भी शामिल है।[2]

लड़कियों के लिए इसके विपरीत प्रभाव और इस जाँच में प्रमाणिकता एवं सटीकता का अभाव होने के कारण कौमार्य परीक्षण एक बहुत ही विवादास्पद जाँच है।[3] एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा यह अपमानजनक और मानव अधिकारों का उल्लंघन माना गया है।[4] और कई देशों में यह अवैध घोषित है।

देश में प्रचलित दो उँगली परीक्षण (टी॰एफ॰टी॰) से बलात्कार पीड़ित महिला की वजाइना के लचीलेपन की जाँच की जाती है। अंदर प्रवेश की गई उँगलियों की संख्या से डॉक्टर अपनी राय देता है कि ‘महिला सक्रिय सेक्स लाइफ’ में है या नहीं। भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है, जो डॉक्टरों को ऐसा करने के लिए कहता है। 2002 में संशोधित साक्ष्य कानून बलात्कार के मामले में सेक्स के पिछले अनुभवों के उल्लेख को निषिद्ध करता है। सुप्रीम कोर्ट ने 2003 में टी॰एफ॰टी॰ को ‘दुराग्रही’ कहा था। ज्यादातर देशों ने इसे पुरातन, अवैज्ञानिक, निजता और गरिमा पर हमला बताकर खत्म कर दिया है।[5]

जस्टिस जे॰एस॰ वर्मा समिति ने भी इसकी तीखी आलोचना की है। समिति ने महिलाओं की सुरक्षा को लेकर आपराधिक कानूनों पर 23 जनवरी 2013 को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। रिपोर्ट के मुताबिक, “सेक्स अपराध कानून का विषय है, न मेडिकल डायग्नोसिस का।” रिपोर्ट में कहा गया है कि महिला की वजाइना के लचीलेपन का बलात्कार से कोई लेना-देना नहीं है। इसमें टू फिंगर टेस्ट न करने की सलाह दी गई है। रिपोर्ट में डॉक्टरों के यह पता लगाने पर भी रोक लगाने की बात कही गई है जिसमें पीड़िता के ‘यौन संबंधों में सक्रिय होने’ या न होने के बारे में जानकारी दी जाती है।[6]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 2 मार्च 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 मार्च 2013.
  2. "संग्रहीत प्रति". मूल से 2 मार्च 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 मार्च 2013.
  3. University of California at Santa Barbara's SexInfo – The Hymen Archived 2012-03-11 at the वेबैक मशीन. Retrieved 4 मार्च 2009.
  4. "Amnesty International". मूल से 9 दिसंबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 17 जनवरी 2013.
  5. "संग्रहीत प्रति". मूल से 2 मार्च 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 मार्च 2013.
  6. "संग्रहीत प्रति". मूल से 2 मार्च 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 मार्च 2013.

इन्हें भी देखें[संपादित करें]