पाटीगणित

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पाटीगणित श्रीधराचार्य द्वारा संस्कृत में रचित गणित ग्रन्थ है। 'पाटी' से तात्पर्य गणना-विधि (procedure or algorithm) से है।

संरचना[संपादित करें]

पाटीगणित काव्य के रूप में है। कोई नियम बताने के बाद श्रीधराचार्य एक-दो आंकिक प्रश्न पूछते हैं किन्तु वे न तो इनका हल बताते हैं न उत्तर।

इसका आरम्भ मंगलाचरण से होता है। इसके बाद 'परिभाषा' है जिसमें मुद्रा, द्रव्यमान, लम्बाई, आयतन आदि के मात्रकों और उनके आपसी सम्बन्धों का वर्णन है। इसके बाद 'परिकर्म' (arithmetical operations) का अध्याय है जिसमें वर्ग, घन, वर्गमूल, घनमूल आदि निकालने के १६ परिकर्मों के विधिकल्प वर्णित हैं। इसके आगे के अध्यायों में कलासवर्ण, त्रैराशिक, व्यस्तत्रैराशिक, पंचसप्तनवराशिक, भाण्डप्रतिभाण्डम, जीवविक्रय के नाम के अध्याय हैं। इसके बाद 'व्यवहारः' के अन्तर्गत धनप्रयोगः (ब्याज आदि), सुवर्नगणितम्, प्रक्षेपगणितम्, विविधविषयाः, श्रेढीव्यवहारः, क्षेत्रव्यवहारः नामक अध्याय हैं

पाटीगणित में श्रीधर ने गोले का आयतन निकालने का एक बहुत अच्छा नियम दिया है। इसमें शून्य के साथ परिकर्म के आठ नियम दिए गए हैं। इसके अलावा विभिन्न समान्तर श्रेणियों और गुणोत्तर श्रेणियों के योग की विधि बताई गई है।

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