स्तन

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स्तन
गर्भिणी महिला का स्तन
लैटिन स्तन

mammalis "of the breast"[1])

धमनी आंतरिक थोरेसिक शिरा
शिरा आंतरिक थोरेसिक धमनी

स्तन रूपांतरित स्वेद ग्रंथियां है, जो दुग्ध उत्पन्न करती हैं और यह दुग्ध नवजात और छोटे बच्चों के पीने के काम आता है। प्रत्येक स्तन में एक चूचुक और स्तनमण्डल (एरिओला) होता है। स्तनमण्डल का रंग गुलाबी से लेकर गहरा भूरा तक हो सकता है साथ ही इस क्षेत्र में बहुत सी स्वेदजनक ग्रंथियां भी उपस्थित होती हैं। स्त्री और पुरुष दोनों में स्तन का विकास समान भ्रूणीय ऊतकों से होता है परन्तु यौवनारम्भ पर स्त्रियों के अंडाशय से स्रावित हार्मोन ईस्ट्रोजन स्त्रियों में स्तन के विकास के लिए मुख्य रूप से उत्तरदायी है, जबकि पुरुषों में इस हार्मोन की उपस्थिति बहुत कम मात्रा में होने के कारण स्तनों का विकास नहीं होता, हालांकि बाल्यवस्था में चूचुक और मण्डल स्त्री-पुरूष दोनों में एक समान होते हैं। बच्चे के जन्म के समय में उसके वक्षस्थल हल्के उभरे हुए हो सकते हैं। यदि इन उभरे हुए स्तनों को दबाया जाए तो 1-2 बूंदे दूध की भी निकलती है। यह दूध मां के इस्ट्रोजन हार्मोन के प्रभाव के कारण होता है और जिसे आम भाषा में जादूगरनी का दूध कहकर पुकारा जाता है। स्त्रियों के शरीर में प्रोजेस्ट्रोन हार्मोन दूध का निर्माण करता है।

वैसे दूध बनाने का प्रमुख कार्य प्रोलेक्टीन का है जो पिट्यूटी ग्रंथि से प्रसव के बाद निकलता है। स्तनों के अंदर कुछ फाइबर्स कोशिकाओं के कारण स्तन छोटे-छोटे हिस्सों में बंटा रहता है जिसमें दूध बनाने वाली ग्रंथियां होती है। यह ग्रंथियां आपस में मिलकर एक नलिका बनाती है जो निप्पल में जाकर खुलती है तथा जहां से दूध रिस्ता है। यह नलिका निप्पल के पास आकर कुछ चौड़ी हो जाती है जहां दूध भी इकट्ठा हो सकता है। स्तनों में मांसपेशियां नहीं होती। केवल एक तरह का लिंगामेंट इसे बांधे रहता है, जिसको कूपरलिगामेंट कहते हैं। इसलिए अधिक वजन के कारण या अच्छा सहारा न मिलने के कारण स्तन नीचे की ओर लटक जाते हैं।

बच्चे के जन्म के बाद स्तनपान कराना अमृत के समान होता है। बच्चे के शरीर का विकास तथा समय के अनुसार शरीर में परिवर्तन आना यह गुण मां के दूध में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होता है। गर्भावस्था की अवधि के दौरान मां के शरीर में अधिक चर्बी जम जाती है। परन्तु मां के शरीर की चर्बी स्तनपान के साथ-साथ कम होती चली जाती है। मां अपने पहले जैसे सामान्य वजन पर आ जाती है।

समाज और संस्कृति[संपादित करें]

ईसाई आइकनोग्राफी में, कला के कुछ काम महिलाओं को उनके हाथों में या थाली में उनके स्तनों के साथ चित्रित करते हैं, यह दर्शाता है कि उनके स्तनों को काटकर शहीद के रूप में उनकी मृत्यु हो गई; इसका एक उदाहरण सिसिली के संत अगाथा हैं।

शरीर की छवि

कई महिलाएं अपने स्तनों को अपने यौन आकर्षण के लिए महत्वपूर्ण मानती हैं, स्त्रीत्व के संकेत के रूप में जो उनकी स्वयं की भावना के लिए महत्वपूर्ण है। छोटे स्तनों वाली महिला अपने स्तनों को कम आकर्षक मान सकती है।

कपड़े

क्योंकि स्तन ज्यादातर वसायुक्त ऊतक होते हैं, उनका आकार-सीमा के भीतर-कपड़ों द्वारा ढाला जा सकता है, जैसे नींव के वस्त्र। ब्रा आमतौर पर लगभग 90% पश्चिमी महिलाओं द्वारा पहनी जाती हैं, और अक्सर समर्थन के लिए पहनी जाती हैं।

अधिकांश पश्चिमी संस्कृतियों में सामाजिक मानदंड सार्वजनिक रूप से स्तनों को ढंकना है, हालांकि कवरेज की सीमा सामाजिक संदर्भ के आधार पर भिन्न होती है। कुछ धर्म या तो औपचारिक शिक्षाओं में या प्रतीकवाद के माध्यम से महिला स्तन को एक विशेष दर्जा देते हैं। इस्लाम महिलाओं को स्तन दिखाने से रोकता है| उत्तरी नामीबिया में हिम्बा में, महिलाएं आमतौर पर नंगे स्तन पाई जाती हैं।

प्राचीन भारतीय कार्य कामसूत्र, नाखूनों से स्तनों को हल्का खरोंचना और दांतों से काटना कामुक माना जाता है।

स्तनपान[संपादित करें]

महिलाओं द्वारा स्तनपान कराने से बच्चे को होने वाले लाभ[संपादित करें]

  • शिशु मां के दूध को अन्य दूध पीने की तुलना में आसानी से पचा लेता है।
  • बच्चों के संपूर्ण विकास के लिए मां के दूध में सभी गुण उपलब्ध होते हैं।
  • स्तनपान कराने से बच्चों को किसी भी प्रकार की परेशानी (जैसे कोई रोग या पेट का खराब होना आदि) नहीं होती है। इसकी तुलना में बोतल या डिब्बे का दूध बच्चे को पिलाने से बच्चे रोग से पीड़ित हो सकते हैं तथा उन्हें दस्त भी लग सकते हैं।
  • मां अपने बच्चे को दूध कभी भी और किसी भी समय पिला सकती है जबकि बोतल का दूध देने से पहले दूध को पकाना, बोतल को साफ करना आदि कार्यो को करना पड़ता है।
  • मां जब अपने बच्चे को स्तनपान कराती है तो बच्चे और मां में एक अनूठे संबन्ध का विकास होता है। जब मां बच्चे को स्तनपान कराने के लिए बच्चे को सीने से लगाती है तो मां के दिल की धड़कनों से बच्चा अपने आपको सुरक्षित महसूस करता है।
  • स्तनपान कराने से जो हार्मोन्स उत्पन्न होते हैं उससे मां की बच्चेदानी सिकुड़ जाती है तथा वह जल्दी ही अपने पूर्व रूप में आ जाती है।
  • जब तक महिलाएं स्तनपान कराती है तो वह जल्द गर्भधारण नहीं करती है।

बच्चे को स्तनपान कराते समय महिलाओं द्वारा बरती जाने वाली प्रमुख सावधानियां[संपादित करें]

  • महिलाओं को हमेशा बच्चे को बैठकर स्तनपान कराना चाहिए। जिससे बच्चे का सिर ऊपर तथा पैर नीचे की ओर होना चाहिए। मां को अपने बच्चे को स्तनपान कराते समय अच्छी तरह पकड़कर रखना चाहिए।
  • स्तनपान कराते समय बच्चे को स्तन से इतनी दूरी पर रखें कि बच्चे को दूध पीने में किसी भी प्रकार की परेशानी न हो तथा न ही बच्चे को स्तन के इतना समीप रखें कि बच्चे की नाक स्तन से दब जाए जिसके कारण सांस लेने में बच्चे को तकलीफ न हो।
  • महिलाओं के स्तनों का निप्पल मुलायम होना चाहिए जिससे बच्चे को दूध पीने में अधिक ताकत न लगानी पड़े। स्तनों के निप्पल को मुलायम करने के लिए निप्पल को गुनगुने पानी से धोना चाहिए या निप्पलों में वैसलीन लगाना चाहिए। बच्चे को दूध पिलाने से पहले महिलाओं को स्तनों में लगा हुआ वैसलीन अच्छी तरह से पानी से धो देना चाहिए।
  • यदि किसी महिला के स्तनों का निप्पल छोटा है तो उसे मालिश करनी चाहिए तथा उसे अंगुली और अंगूठे से बाहर निकालने की कोशिश करनी चाहिए तकि बच्चा आसानी से दूध पी सके।
  • महिलाओं को शांतिपूर्वक मस्तिष्क में कोई विचार लाए बिना बच्चे को पूरा दूध पिलाना चाहिए।
  • महिलाओं को तीन बार स्तनपान अपने एक ही स्तन से कराना चाहिए क्योंकि पहली बार मां का दूध बच्चा पूरी तरह से नहीं पी पाता है। स्तनपान कराते समय मां के मस्तिष्क में संवेदना उत्पन्न होती है। इस कारण स्तनों में दूध आने और निकलने में समय लगता है।
  • स्तनपान करते समय बच्चा दूध के साथ हवा भी अपने पेट में ले जाता है। बच्चे के पेट के अंदर हवा जाने से पेट की डकार (पेट की गैस) बन जाती है। इसलिए बच्चे के पेट की डकार (पेट की गैस) निकालने के लिए उसे छाती से लगाकर उसकी पीठ थपथपानी चाहिए। इससे पेट की हवा निकल जाएगी। इसके बाद बच्चे को पुनः दूध पिलाना चाहिए।
  • महिलाओं को स्तनपान कराने के बाद स्तनों के निप्पल तथा बच्चे के मुंह को गीले कपड़े से साफ करना चाहिए।
  • बच्चे को सोते समय उसकी करवटे बदलता रहना चाहिए। ताकि बच्चे को दूध जल्दी ही हजम हो जाए। करवटे न देने से बच्चा एक ही तरफ लेटा रहता है जिस कारण कभी-कभी बच्चे का सिर चपटा हो जाता है।
  • स्तनपान कराने के बाद बच्चे को हिचकियां आना एक साधारण सी बात है। इसलिए इसको लेकर परेशान नहीं होना चाहिए।
  • निप्पल के पीछे काले भूरे रंग का एक घेरा होता है जिसको एरोला कहते हैं बच्चा स्तनपान करते समय ऐरोला को अपने मसूड़े और तालु के बीच दबाता है और जुबान से दूध पीता है इस कारण बच्चा आसानी से दूध पी लेता है।
  • यदि बच्चा एरोला तक नहीं पहुंच पाता है तो वह केवल निप्पल को ही मुंह से चूसता रहता है जिससे मां को अधिक कष्ट होता है। जब मां को कष्ट हो तो हाथ की अंगुली को बच्चे के मुंह के किनारे से डाकलर बच्चे को सही स्थान तक पहुंचाए या अपनी ठोड़ी को स्तन और बच्चे के मुंह के बीच में डालकर बच्चे को दूर करना चाहिए फिर उसे सही तरीके से स्तनपान करायें।
  • स्तनपान के समय जब बच्चा ऐरोला को दबाता है तो मां के मस्तिष्क में संवेदना होती है और हार्मोन्स निकलते हैं जिसके कारण स्तनों में अधिक दूध उतर आता है।
  • स्तनपान करते समय बच्चों को निप्पल से दूध पीने में काफी शक्ति लगानी पड़ती है जबकि बोतल का दूध पीने वाले बच्चें को आसानी से दूध मिल जाता है। इस कारण बोतल का दूध पीने वाले बच्चों की वजन अधिक होता है जबकि मां का दूध पीने बच्चों का जबड़ा अधिक मजबूत होता है।

विविध[संपादित करें]

  • बच्चे के जन्म के बाद स्तनों में दूध आने से पहले एक चिकना, गाढ़ा पीले रंग का पदार्थ निकलता है जिसे खीस (कोलोस्ट्रम) कहते हैं। पहले दो दिन तक इसकी मात्रा लगभग 40 मिलीलीटर होती है फिर बाद में यह दूध के साथ मिलकर एक सप्ताह तक आता रहता है। यह बच्चे के लिए बहुत ही उपयोगी तत्व होता है। कुछ महिलाएं इसको उपयोगी न समझकर इसे हाथों से दबाकर बाहर निकालती है। परन्तु यह गलत विचार है।
  • स्तनों में निकलने वाले खीस (कोलोस्ट्रम) में प्रोटीन अधिक मात्रा में होती है।


  • स्तनपान करने वाले बच्चे रोग से पीड़ित नहीं होते हैं क्योंकि मां के दूध में रोगों के कीटाणुओं को नष्ट करने की क्षमता होती है।
  • स्तनपान करने वाले बच्चे को कब्ज नहीं होता है तथा बच्चे का पेट भी ठीक रहता है।
  • प्रारम्भ में मां के दूध में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है। परन्तु 6 महीने के बाद दूध में प्रोटीन की मात्रा में कमी हो जाती है। अधिक मात्रा में प्रोटीन बच्चे के पालन-पोषण तथा बच्चे के मस्तिष्क और नसों के विकास में सहायता करता है।
  • बच्चे के जन्म के लगभग 4 या 5 दिन के बाद मां के शरीर में रक्त का संचार काफी तेज होता है जिसके कारण मां के स्तनों में अधिक मात्र में दूध होता है। महिलाओं के स्तनों में अधिक दूध होने के कारण स्तनों में भारीपन और दर्द होता है। यदि स्तनों में अधिक दूध के कारण तेज दर्द हो तो स्तन पम्प की सहायता से दूध को निकाला भी जा सकता है।
  • स्तनों से दूध निकालने के लिए स्तन पम्प का प्रयोग करना सरल होता है। स्तन पम्प कांच के गिलास की तरह होता है तथा इसके एक हिस्से में रबर बल्ब लगा होता है। रबर बल्ब को दबाकर स्तन के ऊपर रख देते हैं। रबर बल्ब को छोड़ने पर यह स्तन को अपनी ओर खींचता है तथा दूध स्तन से निकलकर स्तन पम्प में इकट्ठा हो जाता है। इस विधि में शून्य दबाव कार्य करता है।
  • कार्यशील महिलाएं अपने स्तनों में बढ़े अधिक दूध को स्तन पम्प द्वारा या फिर स्तन को दबाकर दूध को गिलास में इकट्ठा कर सकती है परन्तु इस बात का विशेष ध्यान रखें कि दूध रखते समय साफ-सफाई और शरीर, हाथ, दूध रखने का बर्तन आदि बिल्कुल साफ होने चाहिए क्योंकि गंदा दूध पीना बच्चे के लिए हानिकारक हो सकता है। निकाले हुए दूध को फ्रिज में भी रखा जा सकता है। मां का दूध फ्रिज में दो परतों में हो जाता है। चर्बी वाला भाग ऊपर तथा दूध वाला हिस्सा नीचे हो जाता है। इस दूध को बच्चे को पिलाने से पहले हल्का गर्म कर लिना चाहिए।
  • स्त्रियों को स्तनपान कराते समय निप्पल को हाथों द्वारा खींचकर बच्चे के मुंह में डालना चाहिए। स्तन को हाथ से हल्का सहारा देना चाहिए जिससे स्तन का निप्पल आसानी से बाहर आ जाएगा। इससे आप अपने बच्चे को सरलतापूर्वक बिना किसी कष्ट के दूध पिला सकती है।
  • महिलाओं के स्तनों में दूध की अधिक मात्रा या स्तनों के निप्पल की अधिक लम्बाई के कारण बच्चे के गले में खांसी हो सकती है। इसलिए यदि स्तनों में दूध अधिक है तो उसे दबाकर बाहर निकाल देना चाहिए। यदि स्तनों के निप्पल अधिक लम्बे हों तो स्तनपान के समय बच्चों को कुछ दूरी पर रखना चाहिए।
  • स्त्रियां जब अपने बच्चे को स्तनपान कराती है जो पहले दूध में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है जिसमें चर्बी और कार्बोहाइड्रेट कम होता है। परन्तु दूध के बाद के भाग में चर्बी 4 गुना अधिक हो जाती है तथा प्रोटीन केवल एक ही भाग रह जाता है। इससे बच्चे के जन्म के बाद प्रारम्भ में स्तनों का दूध पतला और बाद का दूध बहुत गाढ़ा होता है। जब बच्चे को अधिक भूख लगी होती है या मां सोचती है कि मेरे दूध से मेरे बच्चे का पेट नहीं भरता है तो वह जल्द ही बच्चे को एक तरफ से दूध देकर कुछ ही समय के लिए दूसरी तरफ से भी दूध पिलाना शुरू कर देती है। इसी प्रकार दूसरी ओर से भी हल्का और प्रोटीन युक्त दूध ही मिल पाता है। इस प्रकार बिना चर्बी का दूध बच्चे को पीने को प्राप्त होता है और बार-बार मां का दूध मिलने पर भी बच्चे का वजन बढ़ नहीं पाता है। महिलाओं को एक बार में एक ही स्तन से दूध पिलाना चाहिए ताकि बच्चे को पूर्ण दूध मिल सके।
  • स्त्रियों को अपने बच्चे की उम्र के अनुसार स्तनपान कराना चाहिए। बच्चे को दिन में कितनी बार और कितने समय दूध देना चाहिए यह निश्चित होना चाहिए परन्तु महिलाएं सोचती है कि पता नहीं मेरा दूध बच्चे के लिए पर्याप्त है या नहीं। इसके लिए स्तनपान कराने से पहले बच्चे को तोल लेना चाहिए। फिर स्तनपान के बाद बच्चों का वजन कर लेना चाहिए। इसके यह मालूम चल जाएगा कि आपका बच्चा एक बार में कितना दूध पीता है।
  • महिलाएं जब स्तनपान कराती है तो उनके शरीर में प्रोलेक्टीन हार्मोन्स बनता है जिसके कारण महिला के स्तनों में फिर दूध बनता है। महिलाएं यह सोचती है कि बच्चे को कम दूध पिलाकर अपने स्तनों में अधिक मात्रा में दूध एकत्र कर लूंगी जबकि यह धारणा गलत है।
  • स्त्रियों के स्तनों में दूध की मात्रा संतुलित भोजन और अधिक मात्रा में दूध के सेवन पर निर्भर करता है।
  • यदि स्त्रियां अधिक मात्रा में मैथी दाना, काला जीरा, सोंठ और गुड़ का सेवन करें तो उनके स्तनों में दूध की अधिक मात्रा में वृद्वि होती है।
  • स्त्रियों को अपने स्तनों में दूध की वृद्वि के लिए बिना डाक्टर की सलाह के किसी भी दवा का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि यह दवा दूध के द्वारा बच्चे के शरीर में प्रवेश कर उसे हानि पहुंचा सकती है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]