वार्ता:कांशीराम

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लेखन संबंधी नीतियाँ

पांच लोकसभा चुनाव लड़े थे कांशीराम , दो जीते[संपादित करें]

ओमपाल भारती , मेरठ । मान्यवर कांशीराम ने अपने राजनीतिक जीवनकाल मे पांच लोकसभा चुनाव लड़े थे । जिनमे वह दो चुनाव जीते और तीन चुनाव हारे थे । उन्होंने पहला चुनाव सन् 1984 मे छत्तीसगढ की जांजगीर चांपा सीट से लड़ा था , इस चुनाव मे वह हार गये थे । दूसरा चुनाव वर्ष 1988 मे पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के खिलाफ यूपी की इलाहाबाद लोकसभा सीट से लड़ा और वह 70 हजार वोटो से पराजित हो गये थे । तीसरा लोकसभा चुनाव 1989 मे पूर्वी दिल्ली से लड़ा , इस चुनाव मे वह चौथे नंबर पर रहे ।

चौथा चुनाव सन् 1991 मे यूपी की इटावा लोकसभा सीट से सपा बसपा गठबंधन के प्रत्याशी के रूप मे लड़ा , इस चुनाव मे साहब कांशीराम ने जीत हासिल की और भाजपा प्रत्याशी को 20 हजार वोटो से हराया । पांचवा और अपने जीशन का आखिरी लोकसभा चुनाव वर्ष 1996 मे पंजाब की होशियारपुर सीट से लड़ा गया तथा विजयी रहे । आखिरी चुनाव मे वह 11 वीं लोकसभा के सदस्य बने थे । 2001 मे उन्होंने पार्टी की जिम्मेदारी बहन मायावती को दे दी थी । 2401:4900:5A4B:767D:0:0:423:A7C8 (वार्ता) 08:05, 3 सितंबर 2022 (UTC)[उत्तर दें]

अधूरा रह गया प्रधानमंत्री बनने का सपना[संपादित करें]

ओमपाल भारती , मेरठ । " जिसकी जितनी संख्या भारी , उसकी उतनी हिस्सेदारी " का नारा देने वाले मान्यवर कांशीराम देश के प्रधानमंत्री बनना चाहते थे । वर्ष 2002 मे उन्होंने यह इच्छा बहन मायावती जी के समक्ष व्यक्त की थी । तमाम प्रयासों और कड़ी मेहनत के बावजूद भी कांशीराम केन्द्र मे सरकार बनाने मे कामयाब न हो सके और उनका प्रधानमंत्री बनने का सपना अधूरा रह गया ।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने उन्हें राष्ट्रपति बनाने का ऑफर दिया था लेकिन प्रधानमंत्री बनने की इच्छा के चलते उन्होंने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया था । दूसरा सपना उनका केन्द्र मे सरकार बनाकर अपने करोड़ो समर्थको के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण करने का था , जो सरकार बनने पर ही सम्भव हो सकता था । लेकिन कहा जाता है कि सोचा कभी पूरा नही होता । सत्ता को दलित की चौखट तक लाने मे वह कामयाब न हो सके ।। 2401:4900:5EFB:7663:0:0:422:F1C4 (वार्ता) 17:18, 5 सितंबर 2022 (UTC)[उत्तर दें]

अपने समाज को ना बिकने वाला समाज बनाना चाहते थे कांशीराम[संपादित करें]

ओमपाल भारती , मेरठ । भारतीय राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक मान्यवर कांशीराम अपने समाज को ना बिकने वाला समाज बनाना चाहते थे । उनका मानना था कि अगर हमें ना बिकने वाला नेता चाहिए तो सबसे पहले ना बिकने वाला समाज बनाना होगा क्योंकि बिकने वाला समाज ही बिकने वाले नेताओं को पैदा करता है । कांशीराम ने मुम्बई मे आयोजित एक पब्लिक मीटिंग यह बात कही थी ।

उनका कहना था कि मैने यूपी मे 4200 किलोमीटर साइकिल चलकर वहां के समाज को ना बिकने वाला समाज बनाया और सरकार बनाकर दिखाई । उन्होंने महाराष्ट्र का जिक्र करते हुए कहा कि महाराष्ट्र के अंबेडकरवादी बिकाऊ हैं और कांग्रेस के लोग उनकी बोली लगा रहे हैं । उस सभा मे कांशीराम मे खेद व्यक्त करते हुए कहा था कि बिकाऊ नेता समाज का भला नही कर सकते और इन बिकाऊ नेताओ की वजह से समाज पिछड़ रहा है । 2401:4900:5A3B:766B:0:0:420:DF8B (वार्ता) 18:45, 6 सितंबर 2022 (UTC)[उत्तर दें]

जब कांशीराम ने कांग्रेस को हरा दिया था[संपादित करें]

ओमपाल भारती , मेरठ । यह वाकिया सन् 1989 का है जब देश मे नौवीं लोकसभा का चुनाव होने जा रहा था । इलाहाबाद लोकसभा सीट से मान्यवर कांशीराम ने बसपा प्रत्याशी के रूप मे पर्चा दाखिल किया । जनता दल से वीपी सिंह उम्मीदवार बने जो प्रधानमंत्री पद के दावेदार भी थे । कुल मिलाकर बसपा , जनता दल और कांग्रेस के बीच मुख्य मुकाबला था ।

जब चुनाव परिणाम आया तो कांशीराम को 86 हजार , कांग्रेस को 92 हजार और वीपी सिंह को 2 लाख 1 हजार वोट मिले थे । कांशीराम ने इस चुनाव का जिक्र मुम्बई मे हुई एक पब्लिक मीटिंग मे किया था । उनका कहना था कि हमने वह चुनाव कांग्रेस को हराने के लिए लड़ा था । जिसमे हमें कामयाबी मिली । इस पर कांग्रेस की तरफ से यह बयान आया था कि ये लोग कांग्रेस को हरा तो सकते हैं लेकिन कभी जीत नही सकते ।

कांग्रेस के उस बयान का भी कांशीराम ने जवाब दिया था ।जिसमे कहा गया था कि कांग्रेस ही दलितो का भला कर सकती है । इस पर उन्होने कहा था कि फूले , साहू , अंबेडकर ने दलितो का भला किया है बाकी किसी ने नही ।

मामला यह था कि महाराष्ट्र के अंदर कांग्रेस के लोग अंबेडकर को मानने वाले नेताओं को खरीद रहे थै । इससे कांशीराम बहुत परेशान थे और उन्होंने यह फैसला लिया था कि वह जीतें या ना जीतें लेकिन कांग्रेस को नही जीतने देंगे । उसके बाद से ही यूपी मे कांग्रेस का मजबूत दलित वोट बैंक जिसके बलबूते पर कांग्रेस जीतती रही , छिटककर बसपा के साथ चला गया । यह कांशीराम की रणनीति का ही हिस्सा था कि लाख कोशिश के बाद भी यूपी मे कांग्रेस सत्ता मे नही लौटी । 2401:4900:5C3B:6460:0:0:423:4101 (वार्ता) 05:50, 7 सितंबर 2022 (UTC)[उत्तर दें]

वैज्ञानिक बनना चाहते थे कांशीराम[संपादित करें]

ओमपाल भारती , मेरठ । संघर्षशील , कर्मठ समाजसेवी , सरल स्वभावी और बहुजन महापुरूषो के विचारो को समाज मे फैलाने वाले मान्यवर कांशीराम की सोच दूरगामी थी । वह जीवन मे वैज्ञानिक बनना चाहते थे और इससे संबंधित उन्होंने शिक्षा प्राप्त की । यही कारण है कि उनकी नियुक्ति डीआरडीओ ( रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ) मे बतौर सहायक वैज्ञानिक के पद पर वर्ष 1958 मे हुई ।

वह इस पद पर काफी आगे बढ गये थे लेकिन समाज मे फैली दौहरी व्यवस्था ने उनका जीवन बदल कर रख दिया । नौकरी के कुछ समय पश्चात ही विभाग मे अंबेडकर जयंती पर छुट्टी घोषित न करने पर वह आन्दोलन मे कूद पड़े । इस वाकिये ने उनके जीवन का मकसद बदल दिया । आन्दोलन की राह पर चलते हुए वह इतनी दूर निकल गये कि उन्होंने फिर मुड़कर नही देखा और वह दलितो शोषितो के मसीहा बनकर उभरे ।

Ompal Bharti (वार्ता) 17:37, 28 फ़रवरी 2023 (UTC)[उत्तर दें]

एक घटना ने कांशीराम के जीवन का उद्देश्य बदल दिया था[संपादित करें]

ओमपाल भारती , मेरठ । शोषितो वंचितो के मसीहा एवं समाज सुधारक मान्यवर कांशीराम वैज्ञानिक बनना चाहते थे । शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात उन्होंने पुणे स्थित सरकार के रिसर्च सेन्टर में बतौर सहायक वैज्ञानिक की नौकरी प्राप्त की । कांशीराम लग्न और मेहनत के साथ अपने कर्त्तव्य का पालन कर रहे थे । उसी दौरान एक घटना ऐसी घटी जिसने उनके जीवन का उद्देश्य बदल दिया ।


बात सन् 1964 की है । 14 अप्रैल का समय नजदीक था तो उनके सहपाठी जो वाल्मीकि समाज से थे दीनाभाना ने 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती पर छुट्टी की पेशकश की । लेकिन जातिवादी मानसिकता वाले लोगों ने इसका विरोध किया और छुट्टी देने से इंकार कर दिया । यह सारा वाकिया दीनाभाना ने कांशीराम को बताया और साथ ही यह भी बताया कि शोषितों वंचितों के जीवन में अंबेडकर का कितना बड़ा योगदान है । यह वह समय था जब कांशीराम ने अंबेडकर को जाना । इस मुद्दे को लेकर कांशीराम भी अड़ गये और 14 अप्रैल को छुट्टी घोषित करने की मांग की । लेकिन उनकी बात नहीं सुनी गयी ।


इस मुद्दे ने आन्दोलन का रूप ले लिया । हुआ यह कि इसको लेकर दीनाभाना को सस्पैन्ड कर दिया गया । जिसके कारण यह आर्त्तव्यंंउग्र हो गया । कांशीराम ने विद्रोह कर अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और शोषितों गरीबों की लड़ाई लड़ने का प्रण किया । बताया जाता है कि इसी दौरान कांशीराम को बाबा साहेब अंबेडकर द्वारा लिखी किताब'एनीहिलेशन ऑफ कास्ट' नामक पुस्तक पढने को दी गयी जिस पुस्तक का कांशीराम के जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ा । इस पुस्तक में उन्हें जीवन जीने का मकसद मिल गया और उन्होंने गरीबों की लड़ाई लड़ने का संकल्प लिया । इतना ही नहीं उन्होंने इस संकल्प को जीवन भर निभाया तथा वह बहुजन नायक के रूप मे प्रसिद्ध हुए ।


कांशीराम ने अंबेडकर साहब की नीतियों के प्रचार प्रसार में अपना पूरा जीवन लगा दिया । इसका असर यह हुआ कि भारत में अंबेडकरवाद को पुनर्जीवित करने में वह कामयाब हुए। भारतीय इतिहास में काशीराम का नाम बड़े अदब के साथ लिया जाता है । लोगों के दिल मे वह आज भी जीवित हैं । बहुजन समाज को जगाने के लिए उन्होंने जो काम किया वह कोई दूसरा नहीं कर पाया । वह अजर हैं अमर हैं । Ompal Bharti (वार्ता) 18:05, 13 अगस्त 2023 (UTC)[उत्तर दें]