गोरामानसिंह्

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चित्र:Naukavihar.jpg
बाढ के दिनों मे नौका यात्रा करते लोग


गोरमानसिंह एक छोटा गांव है जो बिहार प्रान्त के दरभंगा जिलान्तर्गत आता है। यह गांव जिला मुख्यालय से लगभग ६० कि॰मी॰ दूर कमला-बलान नदी के किनारे बसा है। प्रत्येक वर्ष कमला बलान के उमड्ने से प्रायः जुलाई में यंहा बाढ आ जाती है। बाढग्रसित क्षेत्र से पानी निर्गत होने में काफी समय लगता है जिससे जानमाल, फसल एवं द्रव्य की काफी क्षति होती है। नियमित बाढ आगमन से इस क्षेत्र में अभी तक पक्की सड्क एवं बिजली का अभाव है। इस क्षेत्र के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि है। यहां का मुख्य व्यवसायिक केन्द्र सुपौल बाजार है जहां दूर-दूर से लोग पैदल या नौका यात्रा करके अपने सामानों की खरीद-विक्री के लिये आते हैं।

अनुमंडल[संपादित करें]

  • बिरौल

प्रखंड[संपादित करें]

  • गोराबौराम

इस प्रखंड का नाम दो गांवो गोरामानसिंह एवं बौराम से आया है।

गोराबौराम प्रखंड के अंतर्गत स्थित गांव[संपादित करें]

  • गोरामानसिंह
  • लक्ष्मीपुर
  • बौराम
  • अखतवाडा
  • रौता
  • नदई
  • सरौनी

पंचायत[संपादित करें]

गोरामानसिंह

प्रखंड अध्यक्ष[संपादित करें]

मनोज कुमार यादव

गांव का नामकरण[संपादित करें]

गांव का नाम मुलतः दो शब्दों गोरा एवं मानसिंह से आया है। ऐसा कहा जाता है कि मानसिंह यहां के सर्वप्रथम पूर्वज थे जो लगभग १६वीं सदी पूर्व शीतलपुर, प्रतापगढ, यु० पी० से आकर एक विशाल भूमि पर अपनी सत्ता कायम की। गोरा शब्द यहां के स्थानीय भाषा गोडा गाड्ना से आया है, जिसका अर्थ है किसी जगह को सदा के लिए अपना लेना। चूंकि मानसिंह इस क्षेत्र में सर्वप्रथम कदम रखने वाले पुरूष थे जिन्होंने यहां से अपनी स्वतंत्र जमींदारी प्रथा प्रारंभ की इसलिये इस क्षेत्र का नाम गोरामानसिंह रखा गया। एक दुसरा मत यह भी है कि 'गोरा' शब्द मानसिंह के पत्नी 'गौरी' से आया है।

जातियां[संपादित करें]

गांव में मुख्यतः राजपूत जाति के लोगों की संख्या अधिक है। ये अपनी सज्जनता, भोलेपन एवं अतिथी-सत्कार के लिये प्रसिद्ध हैं। इसके अतिरिक्त अन्य जाति के लोग जैसे: कायस्थ, मुस्लिम, धोबी, नाई, बढई, खतबे, धानुक, मोची, मल्लाह, इत्यादि भी हैं।

भाषा एवं संस्कृति[संपादित करें]

यद्यपि मैथिली पुरे मिथिलांचल की भाषा है। चूंकि, गोरामानसिंह मिथिलांचल क्षेत्र के अंतर्गत आता है। अतः यहां के ग्रामीणवासी मैथिली को अपने मातृभाषा के रूप में प्रयोग करते हैं। मुंडन, उपनयन (यग्योपवीत) और विवाह संस्कार यहां की मुख्य संस्कृति रही है। इसके अतिरिक्त कन्याओं के विवाह के अवसर पर वर पक्ष से आये बारातियों का भव्य स्वागत, समय-समय पर कीर्त्तन, भजन एवं नृत्य का आयोजन, महिलायें द्वारा अनेक शुभ अवसरों पर विभिन्न प्रकार के मधुर मैथिली गीत जैसे: सोहर, बटगबनी, कुमार-गीत, भगवती-गीत आदि का गाया जाना जैसी अनेक संस्कृतियां प्रचलित है।