वेंकट कवि

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ऊत्तुकाड वेंकट सुब्बा अय्यर या ऊत्तुकाड वेंकट कवि (सन् १७००-१७६५) कर्नाटक शास्त्रीय सङ्गीत के महान संगीतकार व‌ रचयिता थे । वे दक्षिण भारत में तमिल नाडु में रहते थे । उन्हें ऊत्तुकाड वेंकट कवि के नाम से भी जाना जाता था । उन्होंने संस्कृत , तमिल और मराठी भाषाओं में कई रचनाएं रची हैं जिनमें से सिर्फ ५०० के आस पास रचनाएं इस समय उपलब्ध है । रचयिता के भाई के परिवार के वंशजों द्वारा उन रचनाओं को एक पीढी से दूसरी पीढी तक पहुंचाया गया ।

वेंकट कवि की रचनाओं से ये समझने को मिलता है कि वे विज्ञान और सङ्गीत के कला में पूरी तरह माहिर थे चाहे किसी भी पहलू से देखें जैसे राग हो या ताल या फिर गीत के बोल ही क्यों न हो ।

उन्हें संस्कृत और तमिल का गहन ज्ञान था । दुर्लभ विषयों की गहराई , उनमें विद्वत्ता और प्रभावशाली तरीके से तथ्यों को प्रस्तुत करने की विधा के लिए वो प्रसिद्ध थे । वो सामान्य रचनाओं ( कृतियों ), तिल्लाना और कावडिच्चिंद शैली जैसे विधाओं को रचने में भी माहिर थे । उन्होंने उन ताल और उन विषयों का प्रयोग किया जिन्हें शायद ही किसी और सामान्य रचयिता ने किया हो । उनकी रचनाएं , कई विषयों और उनसे प्रेरित भावों , पर अत्यंत ही उच्च कोटि के ज्ञान और विद्वत्ता का समन्वय है । नीडामंगलम विद्वान कृष्णमूर्ति भागवतार द्वारा १९५५ में दिए गए एक निदर्शन व्याख्यान , संगीत अकादमी के मद्रास विद्वान समिति ने वेंकट कवि के रचनाओं का एक तथ्य अनुभव किया कि वे सभी रचनाऐं जो वेंकट कवि जी ने रची , वो संत त्यागराज , मुत्तुस्वामी दीक्षित , श्याम शास्त्री की त्रिमूर्ति ( ये सभी १७६० - १८४० के कालखंड में जीवित रहे ) के रचनाओं और सन्त पुरंदरदास ( १४७४ - १५६४ ) के रचनाओं को आपस में जोडने का काम कर रहे हैं ।

वैसे तो उन्हें श्रीकृष्ण जी का एक अनन्य भक्त माना जाता है , क्योंकि अधिकतर रचनाएं इन्होंने श्रीकृष्ण को समर्पित करते हुए रची थीं , लेकिन इन्होंने कई अन्य देवी देवताओं पर भी सैकडों रचनाएं रचीं हैं । कई रचनाएं , जो मनीषी और महापुरुष उनके पहले आए थे , उनके प्रति आदरभाव और विनम्रभाव व्यक्त करते हैं और वे सभी रचनाएं उनके निर्वाणप्राप्त स्थिति , जो उन्हें अनवरत रूप से मिलता रहा , की ओर भी इंगित करते हैं ‌। उनकी रचनाएं उनके बारे मे बहुत ही कम बताती है लेकिन ये जरूर दर्शाती हैं कि वे अध्यात्म और दर्शन शास्त्र की उच्चतम शिखर पर पहुंच चुके थे । कुछ गहनतम अध्ययनों से ये भी पता चला है कि "अलैप्पायुदे कण्णा" , जो राग कानड में एक रचना है , ये रचना , उनकी जीवनी से जुडा हुआ है । उनके श्रीकृष्ण को समर्पित इस रचना और बाकि कई दूसरे रचनाओं से भी ये दिखता है कि ये सभी रचनाओं की कथाएं और स्रोत श्रीमद्भागवत है । उनकी रचनाएं उनकी ईश्वर के प्रति अनन्य भक्तिभावना और ईश्वर से निकटता को दर्शाते हैं , जो वो बहुत ज्यादा अनुभव करते थे ।