शेख भिखारी

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शेख भिखारी
Sheikh Bhikari
2 अक्टूबर 1819 से 8 जनवरी 1858
जन्मस्थल : बुढ़मू, राँची जिला, बंगाल प्रेसीडेंसी (अब झारखंड)
मृत्युस्थल: रामगढ़, बंगाल प्रेसीडेंसी (अब झारखंड)
आन्दोलन: 1857 का स्वतंत्रता आंदोलन
राष्ट्रीयता: भारतीय


शेख भिखारी (सन् १८१९ ई० -- ८ जनवरी १८५८) सन् 1857 की क्रांति के क्रान्तिकारी एवं शहीद थे।

शेख भिखारी का जन्म १८१९(1819) में झारखंड के राँची जिले के बुड़मो में होक्टे गांव में एक बुनकर अंसारी परिवार में हुआ था़। बचपन से वह अपने खानदानी पेशा, मोटे कपड़े तैयार करना और हाट-बाजार में बेचकर अपने परिवार की परवरिश करते थे़। जब उनकी उम्र 20 वर्ष की हुई तो उन्होंने छोटा नागपुर के महाराज के यहां नौकरी कर ली। परन्तु कुछ ही दिनों के बाद उन्होंने राजा के दरबार में एक अच्छी मुकाम प्राप्त कर ली, बाद में बड़कागढ़ जगन्नाथपुर के राजा ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ने उनको अपने यहां दीवान के पद पर रख लिया़। शेख भिखारी के जिम्मे में बड़कागढ़ की फौज का भार दे दिया गया।

1856 ई में जब अंगरेजों ने राजा महाराजाओं पर चढ़ाई करने का मनसूबा बनाया तो इसका अंदाजा हिंदुस्तान के राजा-महाराजाओं को होने लगा था. जब इसकी भनक ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव को मिली तो उन्होंने अपने वजीर पाण्डे गणपत राय, दीवान शेख भिखारी, टिकैत उमराँव सिंह से मशवरा किया। इन सभी ने अंगरेजों के खिलाफ मोरचा लेने की ठान ली और जगदीशपुर के बाबू कुँवर सिंह से पत्राचार किया। इसी बीच में शेख भिखारी ने बड़कागढ़ की फौज में रांची एवं चाईबासा के नौजवानों को भरती करना शुरू कर दिया। अचानक अंगरेजों ने 1857 में चढ़ाई कर दी। विरोध में रामगढ़ के रेजिमेंट ने अपने अंगरेज अफसर को मार डाला। नादिर अली हवलदार और रामविजय सिपाही ने रामगढ़ रेजिमेंट छोड़ दिया और जगन्नाथपुर में शेख भिखारी की फौज में मिल गये। इस तरह जंगे आजादी की आग छोटानागपुर में फैल गयी। रांची, चाईबासा, संथाल परगना के जिलों से अंगरेज भाग खड़े हुए।

इसी बीच अंगरेजों की फौज जनरल मैकडोना के नेतृत्व में रामगढ़ पहुंच गयी और चुट्टूपालू के पहाड़ के रास्ते से रांची आने लगे। उनको रोकने के लिए शेख भिखारी, टिकैत उमराव सिंह अपनी फौज लेकर चुट्टूपालू पहाड़ी पहुंच गये और अंगरेजों का रास्ता रोक दिया। शेख भिखारी ने चुट्टूपालू की घाटी पार करनेवाला पुल तोड़ दिया और सड़क के पेड़ों को काटकर रास्ता जाम कर दिया। शेख भिखारी की फौज ने अंगरेजों पर गोलियों की बौछार कर अंगरेजों के छक्के छुड़ा दिये। यह लड़ाई कई दिनों तक चली। शेख भिखारी के पास गोलियां खत्म होने लगी तो शेख भिखारी ने अपनी फौज को पत्थर लुढ़काने का हुक्म दिया। इससे अंगरेज फौजी कुचलकर मरने लगे। यह देखकर जनरल मैकडोन ने मुकामी लोगों को मिलाकर चुट्टूघाटी पहाड़ पर चढ़ने के लिए दूसरे रास्ते की जानकारी ली। फिर उस खुफिया रास्ते से चुट्टूघाटी पहाड़ पर चढ़ गये। अंगरेजों ने शेख भिखारी एवं टिकैत उमराव सिंह को छह जनवरी 1858 को घेर कर गिरफ्तार कर लिया और सात जनवरी 1858 को उसी जगह चुट्टूघाटी पर फौजी अदालत लगाकर मैकडोना ने शेख भिखारी और उनके साथी टिकैत उमरांव को फांसी का फैसला सुनाया। आठ जनवरी 1858 को आजादी को शेख भिखारी और टिकैत उमराव सिंह को चुट्टूपहाड़ी के बरगद के पेड़ से लटका कर फांसी दे दी गयी।[1][2][3]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "Model makeover for martyr hamlets". telegraphindia.com. मूल से 4 मई 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 मई 2019.
  2. "JPCC remembers freedom fighters Tikait Umrao Singh, Sheikh Bhikari". news.webindia123.com. मूल से 4 मई 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 मई 2019.
  3. "शेख़ भिखारी और टिकैत उमराव सिंह के शहादत की अमर कथा". heritagetimes.in. मूल से 4 मई 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 मई 2019.