सिरवेल महादेव

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सिरवेल महादेव मध्य प्रदेश के खारगोन जिला में स्थित एक स्थान है।खरगोन से 55 कि॰मी॰ दूर इस स्थान के बारे मे मान्यता है कि रावण ने महादेव शिव को अपने दसों सर यहीं अर्पण किये थे। इसीलिये यह नाम पड़ा है। यह स्थान महाराष्ट्र की सीमा से बहुत ही पास है। महाशिवरात्रि पर म.प्र. एवं महाराष्ट्र से अनेक श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते हैं,


Sirvel एक ऐसा स्थान जहा अब से पहले कभी इतनी भीड़ का ताता या इतने श्रद्धालु नही आते थे आखिर ऐसा क्या हुआ की आज सिरवेल महादेव अपने नाम से प्रसिद्ध हो गया है। यहां दूर दूर से लोग दर्शन के लिए आते है। आइए जानते है हम इस लेख में हमने पूरी रिसर्च कर आपके के लिए जानकारी एकत्र की है ।

तो चलिए शुरू करते है।

सिरवेल यह एक भारत के राज्य मध्यप्रदेश के प्रसिद्ध पश्चिमी निमाड़ क्षेत्र  खरगोन जिले में वन परिक्षेत्र के मध्य महाराष्ट्र सीमा से सटा एक खूबसूरत गांव है जो wildlife sanctuary[मृत कड़ियाँ] के पास आता है , यहां पर आने पर आपको लगेगा जैसे आप पहाड़ों की गोद में आग गए हो। आपको हर तरफ सतपुड़ा पर्वत श्रेणी के पहाड़ ही पहाड़ नजर आएंगे, बारिश के मोसाम में अपनी खूबसूरती से सरोबार हो जाता है ।

यहा का मोसम बहुत ही आनंद की आनुभूति कराता है ।

यह गांव आज से 100 साल पहले बसा था बसने से पहले यहां पर सिर्फ जंगल ही जंगल था यहां पर पुराने लोगो द्वारा इसे धीरे रहने का स्थान हेतु इसे धीरे धीरे गांव में परिवर्तित कर दिया , यहाँ पर अधिकतर जनसंख्या आदिवासी जनजाति के लोगो का निवास है,लेकिन साथ यहां पर अन्य जाति के लोग भी आकार निवास करने लगे और उन्होंने यहा व्यापार शुरू किया जिससे धीरे धीरे गांव में परिवर्तन होने लगा गांव में शिक्षा की शुरुआत भी हुई । एक ग्रामीण शख्स ने बताया कि सिरवेल से खरगौन शहर तक जाने के लिए साधन नही हुआ करते थे, और और रास्ते में बहुत से बड़े नाले है जो एक बड़ी नदी कुंदा नदी में जाकर मिलते है । उन नदी नालों से गुजरकर जाना होता था, चोरों और जानवरों का डर भी लगा रहता था, क्युकी रास्ता पूरा जंगल से होकर ही गुजरता है, यहा कही बार लोगो का शेर के साथ भी सामना हुआ है, ग्रामीण बताते है, यह रास्ता पहाड़ो को काटकर बनाया है, यहां पर कुछ सालो तक बिजली भी नही हुआ करती थी, धीरे जब बाहर के लोगो का आगमन शुरू हुआ व्यापार बड़ा तभी से यहाँ सरकारी सुविधाएं आने लगी।  यहां पर आज भी आदिवासी समुदाय के लोग जंगलों में नवाड ( जंगल में एक स्थान को चुनकर खेती करना) करते हेयर वही रहते है बड़े जंगल में एक या दो घर देखने को मिल सकते है, यहां पर पुरानी आदिवासी परंपरा के आभूषण नाच गाना त्यौहार आज भी मनाया जाते है, अपनी परंपरा को संजोकर रखा है क्या आप भी इस खूबसूरत गांव की सैर करना चाहेंगे।

यहां पर महादेव जी की असीम कृपा है , यहां पर उपस्थित देव कुंड हैं, जो काफी गहरा है, यहां पर कुंदा नदी का पानी होकर गुजरता है।

यहां पर हर साल श्रावण पर बड़ी मात्रा में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते है ।श्रावण मास में लोग कावड़ यात्रा करतें हुए दर्शन करने भी आते है ।


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