परमानन्द पांचाल

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डॉ॰ परमानंद पांचाल (जन्म 1930) हिन्दी के जाने-माने वरिष्ट साहित्यकार, प्रतिष्ठित भाषाविद् और इतिहासकार हैं। वे नागरी लिपि परिषद नामक पत्रिका के कर्ता-धर्ता रहे हैं। देवनागरी, हिन्दी एवं भारतीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार एवं प्रतिष्ठापन के लिये सतत प्रयत्नशील हैं। वे हिंदी भूषण, राष्ट्रीय गौरव, हिन्दी सेवी सम्मान, उत्तरांचल रत्न, हिंदी गौरव सम्मान से सम्मानित हैं।इन्हें वर्ष 2010 का एक लाख रु0 का महा पंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार भी प्रदान किया गया हॆ .

कार्य[संपादित करें]

उन्होंने भारत के एक द्वीप ‘मिनीकॉय’ की भाषा ‘महल’ और उसकी लिपि ‘दिवेही’ पर तो गवेषणात्मक कार्य किया ही है, दक्खिनी हिंदी के आधिकारिक विद्वान के रूप में भी पर्यांत प्रतिष्ठा अर्जित की है। भाषा और साहित्य के क्षेत्र में उनकी खोजपूर्ण कृतियाँ हैं - हिंदी के मुस्लिम साहित्यकार, दक्खिनी हिंदी की पारिभाषिक शब्दावली, दक्खिनी हिंदी : विकास और इतिहास, भारत के सुंदर द्वीप, विदेशी यात्रियों की नज़र में भारत, हिंदी भाषा : राजभाषा और लिपि, कथा दशक, अमीर खुसरो और सोहनलाल द्विवेदी, विवेच्य कृति ‘दक्खिनी हिंदी काव्य संचयन’ हिंदी भाषा: विविध आयाम तथा प्रयोजनमूलक हिंदी आदि .उर्दु भाषा और साहित्य का समुचित अध्ययन और लेखन

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]