अगस्त प्रस्ताव

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8 अगस्त सन् 1940 ई॰ को वायसराय लार्ड लिनलिथगो द्वारा अगस्त प्रस्ताव पेश किया गया था। जिसमें मुस्लिमोँ के हितो का उल्लेख किया गया था तथा यह बताया गया था कि बिना अल्पसंख्यकोँ की स्वीकृति के सरकार कोई भी संवैधानिक परिवर्तन लागू नहीँ कर सकती है। तब कांग्रेस ने भी इसका विरोध किया था। यह प्रस्ताव मुस्लिम लीग के लिए एसा हथियार साबित हुआ जिसके बल पर वह अब अपनी सभी मांगे पूरी करवा सकती थी। इसके बाद 1942 का क्रिप्स मिशन तथा 1945 की वेवेल योजना की परिणिति रही कि 1947 में भारत एवं पाकिस्तान का विभाजन हुआ जो सम्प्रदायवाद के एक दुखद अंत को दर्शाती है


द्वितीय विश्व युद्ध में जर्मनी की असाधारण सफलता तथा फ्राँस, हालैंड और बेल्जियम के पतन के पश्चात् ब्रिटेन की स्थिति अत्यन्त नाजुक हो गई थी। उन परिस्थितियों में भारतीयों का सहयोग पाने के लिये ब्रिटेन ने समझौतावादी दृष्टिकोण की नीति अपनाई। 8 अगस्त 1940 को वायसराय लिनलिथगो ने भारतीयों के लिये एक घोषणा की जिसे ‘अगस्त प्रस्ताव’ के नाम से जाना जाता है। इस प्रस्ताव के मुख्य प्रावधान निम्नलिखित थे-

(i) भारत के लिये डोमिनियम स्टेट्स मुख्य लक्ष्य।

(ii) भारतीयों को सम्मिलित कर युद्ध सलाहकार परिषद की स्थापना।

(iii) युद्ध के उपरांत संविधान सभा का गठन किया जाएगा, जिसमें मुख्यतया भारतीय ही अपनी सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक धारणाओं के अनुरूप संविधान की रूपरेखा सुनिश्चित करेंगें। संविधान ऐसा होगा कि रक्षा, अल्पसंख्यकों के हित, राज्यों से संधियाँ तथा अखिल भारतीय सेवाएँ आदि मुद्दों पर भारतीयों के अधिकार का पूर्ण ध्यान रखा जाएगा।

(iv) अल्पसंख्यकों को आवश्वस्त किया गया कि सरकार ऐसी किसी संस्था को शासन नहीं सौंपेगी, जिसके विरूद्ध सशक्त मत हो।

(v) वायसराय की कार्यकारिणी परिषद का विस्तार किया जाएगा।

यह प्रस्ताव महत्त्वपूर्ण इसलिये था क्योंकि इसमें भारतीयों द्वारा स्वयं संविधान निर्माण करने के तर्क को मान्यता दी गई थी तथा कांग्रेस की संविधान सभा गठित करने की मांग को भी स्वीकार किया गया था। राष्ट्रवादी आंदोलन में यह मांग लंबे समय से की जा रही थी। पूर्व में ‘नेहरू रिपोर्ट’ के द्वारा भी कांग्रेस ने अपनी स्वयं संविधान निर्माण करने की क्षमताओं को साबित किया था। दूसरा, इस प्रस्ताव में डीमिनियन स्टेट्स के मुद्दे को भी स्पष्ट रूप से स्वीकार किया गया था।

फिर भी, कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। नेहरू ने कहा "डोमिनियन स्टेट्स का मुद्दा पहले ही अप्रासांगिक हो चुका है।" गांधी जी ने भी इस घोषणा की आलोचना करते हुए कहा कि इस प्रस्ताव से राष्ट्रवादियों तथा उपनिवेशी सरकार के बीच खाई और चौड़ी होगी। मुस्लिम लीग ने हालाँकि प्रस्ताव में अल्पसंख्यकों के संबंध में दिये आश्वासनों का स्वागत किया परंतु प्रस्ताव में पाकिस्तान की मांग स्पष्ट रूप से स्वीकार न किये जाने के कारण लीग ने प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।

इस प्रकार, ब्रिटिश सरकार द्वारा विवशता में लाया गया अगस्त प्रस्ताव कई महत्त्वपूर्ण प्रावधानों के बावजूद राष्ट्रवादियों की वास्तविक अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पाया और अस्वीकृत कर दिया गया।