राजपूत रेजिमेंट

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राजपूत रेजीमेंट भारतीय सेना का एक सैन्य-दल है। यह प्राथमिक रूप से राजपूत,[1],50 प्रतिशत और अन्य 50 प्रतिशत मुस्लिम [2], अहीर[3], गुर्जर[4] और बंगाली जैसी जतियों से बनी है।[5] द्वितीय विश्व युद्ध के समय तक इसमे 50% राजपूत व 50% मुस्लिम राजपूतो की भागीदारी थी।[6] जिसमें बाद में बदलाव किया गया था।

राजपूत रेजीमेंट
सक्रिय1778 से आज तक
देशभारत भारत
शाखाभारतीय सेना
प्रकारपैदल सेना
विशालता23 बटालियन
रेजीमेंट केंद्रफतेहगढ़, उत्तर प्रदेश
आदर्श वाक्यसर्वत्र विजय
युद्ध घोषबोल बजरंग बली की जय, राजपूत धर्म विजय या वीरगति
सैनिक चिह्न1 परम वीर चक्र, 1 अशोक चक्र, 5 परम विशिष्ट सेवा मेडल, 7 महावीर चक्रs, 12 कीर्ति चक्रs, 5 अति विशिष्ट सेवा मेडल, 58 वीर चक्रs, 20 शौर्य चक्रs 4 युद्ध सेवा मेडल, 67 सेना मेडलs, 19 विशिष्ट सेवा मेडल, 1 द्वितीयक विशिष्ट सेवा मेडल, 1 पद्मा श्री
युद्ध सम्मानआज़ादी के बाद नौसेरा, जोजी ल, खिनसार, मधुमती नदी, बेलोनिया, खानसामा और अखौरा
बिल्ला
रेजीमेंट का बिल्ला (चिन्ह)3 अशोक के पत्तों के मध्य विपरीत दिशा में रखी हुयी कटारों का जोड़ा
Tartanराजपूत
राजपूत रेजिमेंट की तस्वीर

इतिहास[संपादित करें]

राजपूतो द्वारा ब्रिटिश भारतीय सेना में सहयोग की शुरुआत सन 1778 में तब हुई, जब 31वीं रेजीमेंट ( बंगाल नेटिव इनफ़ेंट्री) में तीसरी बटालियन बनी थी। 2 अन्य बटालियन (पहली व दूसरी) 1778 में बनाई गईं थी। तीसरी बटालियन ने ही हैदर अली से युद्ध में कुड्डालोर जीता था। उनकी इसी बहदुरी के लिए "विपरीत दिशाओं मे बने कटारों " का राज चिन्ह प्रदान किया गया था, जो आज तक राजपूत रेजीमेंट का बिल्ला है। पहली बटालियन ने दिल्ली के युद्ध में इंपेरियाल कोर्ट में मराठों की मौजूदा शक्ति को तोड़कर रख दिया था। भरतपुर की घेराबंदी में भी बटालियन सक्रिय थी जिसमे लगभग 400 सैनिक खेत रहे व 50% घायल हुये थे।

गुरखा शक्ति के खिलाफ अंग्रेजों के अभियान को भी पहली व चौथी बटालियन ने संभाला था। राजपूतों की सभी बटालियन (पहली, दूसरी, तीसरी, चौथी व पाँचवीं) "आंग्ल-सिख युद्ध" में सिखों के खिलाफ लड़ी थीं। गुजरात युद्ध में 5वीं बटालियन ने सिखों के 3 ठिकाने हथिया लिए थे। 1857 की क्रांति परमुखतः सेना की बंगाल रेजीमेंट से शुरू हुयी थी, उस समय दूसरी, तीसरी व चौथी बाटलीयनों को अस्थायी रूप में भंग कर दिया गया था। पहली बटालियन सागर में खज़ानों व शस्त्रागारों की सुरक्षा हेतु मुस्तैद रही व उनकी इस भूमिका के एवज़ में "लाइट इंफेंटरी" की उपाधि दी गयी। लखनऊ रेजीमेंट ने लखनऊ रेजीडेंसी की सफल सुरक्षा में योगदान दिया जिसके फलस्वरूप उन्हें 8 विक्टोरिया क्रॉस प्रदान किए गए व हर सैनिक को तमगा दिया गया। पहली बटालियन ने 1876 में क्वीन्स रेजीमेंट व रॉयल रेजीमेंट का सम्मान हासिल किया था।

संदर्भ सूत्र[संपादित करें]

  1. Mustasad Ahmad (1997). Living Up to Heritage: History of the Rajput Regiment, 1947-1970, Volume 2. Lancer Publishers. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 1897829035, 9781897829035 |isbn= के मान की जाँच करें: invalid character (मदद).
  2. Gautam Sharma (1990). Valour and Sacrifice: Famous Regiments of the Indian Army. Allied Publishers. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 817023140X, 9788170231400 |isbn= के मान की जाँच करें: invalid character (मदद).
  3. V. K. Shrivastava (2000). Infantry, a Glint of the Bayonet. Lancer Publishers. पृ॰ 135. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788170622840.
  4. Gautam Sharma (1990). Valour and Sacrifice: Famous Regiments of the Indian Army. Allied Publishers. पृ॰ 137. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788170231400. मूल से 25 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 जून 2016.
  5. V. K. Shrivastava (2000). Infantry, a Glint of the Bayonet. Lancer Publishers. पृ॰ 135. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788170622840. मूल से 31 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 जून 2016.
  6. Indian Army. "Brief History - The Rajput Regimental Centre Fatehgarh". Indian Army Web Portal. Indian Army Official web site. मूल से 9 जनवरी 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 June 2015.

[1]

  1. Yadav, Sandeep. [www.mygreet.in/status/rajput-status.php "Rajput Status"] जाँचें |url= मान (मदद). www.mygreet.in.