विकिपीडिया:आज का आलेख - पुरालेख/२०१०/दिसंबर

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१ दिसंबर २०१०[संपादित करें]

भारतीय रुपये का आधिकारिक प्रतीक-चिह्न
भारतीय रुपये का आधिकारिक प्रतीक-चिह्न
भारतीय रुपया भारत की राष्ट्रीय मुद्रा है। इसका बाज़ार नियामक और जारीकर्ता भारतीय रिज़र्व बैंक है। नये प्रतीक चिह्न के आने से पहले रूपये को हिन्दी में दर्शाने के लिए 'रु' और अंग्रेजी में Re. (१ रुपया), Rs., और Rp. का प्रयोग किया जाता था। आधुनिक भारतीय रुपये को १०० पैसे में विभाजित किया गया है। सिक्कों का मूल्य ५, १०, २०, २५ और ५० पैसे है और १, २, ५ और १० रुपये भी। बैंकनोट ५, १०, २०, ५०, १००, ५०० और १००० के मूल्य पर हैं। भारत के अधिकांश भागों में रुपये को इन नामों से जाना जाता है: हिन्दी में रुपया, गुजराती (રૂપિયો) में रुपियो, तेलुगू (రూపాయి), तुलू भाषा (ರೂಪಾಯಿ) और कन्नड़ (ರೂಪಾಯಿ) में रूपाइ, तमिल (ரூபாய்) में रुबाइ, मलयालम (രൂപ) में रूपा, मराठी (रुपये) में रुपये या संस्कृत से निकले अन्य शब्द जैसे रूप्यकम्, रूप्यकं इत्यादि।[1] संस्कृत में रौप्य का अर्थ होता है चाँदी; रूप्यकं का अर्थ होता है चाँदी का सिक्का। हालांकि पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, मिज़ोरम, उड़ीसा, और असम में रुपये को आधिकारिक रूप से संस्कृत के तनक नाम से जाना जाता है। इसलिए रुपये को बंगाली में टका (টাকা), असमिया में तोका (টকা), और उड़िया में टन्का (ଟଙ୍କା) के नाम से जाना जाता है और रोमन अक्षर 'T' से भारतीय बैंकनोटों में दर्शाया जाता है।  विस्तार में...

२ दिसंबर २०१०[संपादित करें]

सैक्रामेन्टो का ध्वज
सैक्रामेन्टो का ध्वज
सैक्रामेण्टो, संयुक्त राज्य अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया राज्य की राजधानी है। यह नगर कैलिफ़ोर्निया की सरकार और विधानमण्डल का गृह-नगर है। यहाँ की अनुमानित जनसंख्या ४,५०,००० (२००७) से अधिक है। इसके अतिरिक्त इसके आसपास के क्षेत्रों में (उपनगरों में) १७ लाख के लगभग लोग और रहते है। २००४ में टाइम पत्रिका ने इस नगर को संराअमेरिका के सबसे विविध नगर का दर्जा दिया था।[1] सैक्रामेण्टो शब्द स्पेनी और पुर्तगाली भाषाओं से आया है जिसका अर्थ होता है पवित्र विधियाँ। सैक्रामेण्ट एक प्रकार का धार्मिक अनुष्ठान है जिससे लोगों को ईश्वरीय प्रेम प्राप्त होता है। सैक्रामेण्टो की स्थापना १८४८ में जॉन सुट्टर द्वारा की गई थी। यह स्थान कैलिफ़ोर्निया की स्वर्ण होड़ (द गोल्ड रश) के दौरान बहुत महत्वपूर्ण था। स्वर्ण होड़ वह समय था जब कैलिफ़ोर्निया में सोने की खोज हुई। बहुत से लोग सोना पाने की लालसा में कैलिफ़ोर्निया आए। उस समय में, सैक्रामेण्टो वह स्थान था जहाँ पर रेलमार्ग का अन्त होता था। इसी स्थान पर पॉनी एक्सपेस का अन्तिम स्टेशन था।  विस्तार में...

३ दिसंबर २०१०[संपादित करें]

बांजुल किंग फ़हद मस्जिद और उसका परिवेश
बांजुल किंग फ़हद मस्जिद और उसका परिवेश
बांजुल (भूतपूर्व बाथर्स्ट), जिसका आधिकारिक नाम बांजुल नगर है, अफ़्रीका महाद्वीप के गाम्बिया की राजधानी, जो उसी नाम के विभाग में स्थित है। बांजुल नगर की जनसंख्या मात्र ३४,८२८ है जबकि वृहदतर बांजुल क्षेत्र, जिसमें बांजुल नगर और कानिफ़िंग नगरपालिका परिषद सम्मिलित हैं, की जनसंख्या ३,५७,२३८ (२००३ की जनगणना अनुसार) है।[1] यह नगर सेंट मैरी द्वीप (जिसे बांजुल द्वीप भी कहते हैं) पर स्थित है। यहीं पर गाम्बिया नदी, अंध महासागर में मिलती है। यह द्वीप मुख्यभूमि से उत्तर की ओर यात्री और वाहन नौकाओं से और दक्षिण की ओर पुल से जुड़ा हुआ है। वर्तमान गाम्बिया राष्ट्र कभी घाना साम्राज्य और सोंघाई साम्राज्य का भाग हुआ करता था। इस क्षेत्र के संबंध में उपलब्ध प्रथम लिखित प्रमाण ९वीं और १०वीं शताब्दियों में अरब व्यापारियों के लिखे मिलते हैं। अरब व्यापारियों ने इस क्षेत्र में दासों, सोने, और हाथी-दाँत के व्यापार के लिए ट्रांस-सहारा व्यापार मार्ग की स्थापना की थी। १५वीं शताब्दी में पुर्तगालियो ने समुद्री व्यापार मार्गों की स्थापना की। उस समय गाम्बिया, माली साम्राज्य का भाग था।[2] सन १८१६ में अंग्रेज़ों ने बाजुंल की स्थापना एक व्यापार-गाह के रूप में और दास व्यापार को कुचलने के लिए की थी। इसका सर्वप्रथम नामकरण ब्रितानी औपनिवेशिक कार्यालय के सचिव हेनरी बाथर्स्ट के नाम पर बाथर्स्ट हुआ था, लेकिन १९७३ में इसका नाम बांजुल रख दिया गया।  विस्तार में...
  1. गाम्बिया के विभाग
  2. यात्रा सलाह पर गाम्बिया राष्ट्र

४ दिसंबर २०१०[संपादित करें]

[[चित्र: |100px|right|नित्यानन्द स्वामी ]]

नित्यानन्द स्वामी भारत के उत्तराखण्ड राज्य के भूतपूर्व मुख्यमंत्री हैं। उनके शासनकाल में उत्तराखण्ड का नाम उत्तरांचल था। वे राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री थे और उनका शासनकाल ९ नवंबर, २००० से लेकर २९ अक्टूबर, २००१ तक चला। इनका जन्म २७ दिसंबर, १९२७ को हरियाणा राज्य में हुआ था, लेकिन उन्होनें अपना लगभग सारा जीवन देहरादून में बिताया जहाँ पर उनके पिता भारतीय वानिकी संस्थान में कार्यरत थे। उनका विवाह चन्द्रकान्ता स्वामी से हुआ और उनकी चार बेटियाँ हैं। कम आयु में ही वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के माध्यम से भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम से जुड़ गए और देहरादून में उन्होंने स्थानीय विरोधों में भागीदारी की। ये पेशे से एक वकील हैं, और जन संघ से जुड़कर उन्होनें सक्रीय राजनीति में प्रवेश किया। व्यावसायिक रूप से वकील, स्वामी ने जनसंघ के अन्तर्गत सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया। नित्यानंद पहले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में गए और बाद में भारतीय जनता पार्टी में पहुंचे हैं। विस्तार में...

५ दिसंबर २०१०[संपादित करें]

भारतीय वानिकी संस्थान
भारतीय वानिकी संस्थान
भारतीय वानिकी संस्थान, भारतीय वानिकी शोध और शिक्षा परिषद का एक संस्थान है और भारत में वानिकी शोध के क्षेत्र में एक प्रमुख संस्थान है। यह देहरादून, उत्तराखण्ड में स्थिर है। इसकी स्थापना १९०६ में की गई थी और यह अपने प्रकार के सब्से पुराने संथानों में से एक है। १९९१ में इसे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा डीम्ड विश्वविद्यालय घोषित कर दिया गया।[1] भारतीय वानिकी संस्थान ४.५ किमी² के क्षेत्रफल में फैला हुआ है, बाहरी हिमालय की निकटता में। मुख्य भवन का वास्तुशिल्प यूनानी-रोमन और औपनिवेशिक शैली में बना हुआ है। यहाँ प्रयोगशालाएँ, एक पुस्तकालय, वनस्पतिय-संग्राह, वनस्पति-वाटिका, मुद्रण - यंत्र, और प्रयोगिक मैदानी क्षेत्र हैं जिनपर वानिकी शोध किया जाता है। इसके संग्रहालय, वैज्ञानिक जानकारी के अतिरिक्त, पर्यटकों के लिए आकर्षण भी है। एफ़आरआई और कॉलेज एरिया प्रांगण एक जनगणना क्षेत्र है, उत्तर में देहरादून छावनी और दक्षिण में भारतीय सैन्य अकादमी के बीच। टोंस नदी इसकी पश्चिमी सीमा बनाती है। देहरादून के घण्टाघर से इस संस्थान की दूरी लगभग ७ किमी है।  विस्तार में...

६ दिसंबर २०१०[संपादित करें]

बाबा फकीर चंद
बाबा फकीर चंद
बाबा फकीर चंद (१८ नवंबर, १८८६ - ११ सितंबर, १९८१) सुरत शब्द योग अर्थात मृत्यु अनुभव के सचेत और नियंत्रित अनुभव के साधक और भारतीय गुरु थे।[1] [2] [3] वे संतमत के पहले गुरु थे जिन्होंने व्यक्ति में प्रकट होने वाले अलौकिक रूपों और उनकी निश्चितता के छा जाने वाले उस अनुभव के बारे में बात की जिसमें उस व्यक्ति को चैतन्य अवस्था में इसकी कोई जानकारी नहीं थी जिसका कहीं रूप प्रकट हुआ था. इसे अमरीका के कैलीफोर्निया में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर डॉ॰ डेविड सी. लेन ने नई शब्दावली 'चंदियन प्रभाव' के रूप में व्यक्त किया और उल्लेख किया. [4] [5] राधास्वामी मत सहित नए धार्मिक आंदोलनों के शोधकर्ता मार्क ज्यर्गंसमेयेर ने फकीर का साक्षात्कार लिया जिसने फकीर के अंतर्तम को उजागर किया. यह साक्षात्कार फकीर की आत्मकथा का अंश बना.[6] विस्तार में...
  1. द अननोइंग सेज-लाइफ एण्ड वर्क ऑफ बाबा फकीर चंद।पृष्ठ २०।२७ सितंबर, २००९
  2. द अननोइंग सेज-लाइफ एण्ड वर्क ऑफ बाबा फकीर चंद।पृष्ठ ५।२२ सितंबर, २००९
  3. chand.html. बाबा फ़कीरचंद, अवेकंड टीचर्स फ़ोरम, अभिगमन तिथि 2009-09-12, भाषा अंग्रेज़ी}}
  4. पृ.५।अभिगमन तिथि: २२ सितंबर, २००९
  5. chand.html "बाबा फकीर चंद" जाँचें |url= मान (मदद) (अंग्रेज़ी में). अवेकंड टीचर्स फोरम. अभिगमन तिथि 2009-09-12.
  6. p.69. अभिगमन तिथि 2009-10-31

७ दिसंबर २०१०[संपादित करें]

कन्नड़ का द्विभाषी पट्ट
कन्नड़ का द्विभाषी पट्ट
कन्नड़ (ಕನ್ನಡ Kannaḍa, [ˈkʌnːəɖa]) या कैनड़ीज़[1] भारत के कर्नाटक राज्य में बोले जानेवाली भाषा है और कर्नाटक की राजभाषा है। यह भारत के सबसे ज़्यादा प्रयोग की जाने वाली भाषाओं में से एक है। ४.५० करोड़ लोग कन्नड भाषा प्रयोग करते हैं।[2] ये भाषा एन्कार्टा के अनुसार विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली ३० भाषाओं की सूची में २७वें स्थान पर आती है।[3] ये द्रविड़ भाषा-परिवार में आती है पर इसमें संस्कृत से भी बहुत शब्द हैं। कन्नड भाषा इस्तेमाल करनेवाले इसको विश्वास से 'सिरिगन्नड' बोलते हैं। कन्नड भाषा कुछ २५०० साल से उपयोग में है। कन्नड लिपि कुछ १९०० साल से उपयोग में है। कन्नड अन्य द्रविड़ भाषाओं की तरह है। तेलुगु, तमिल और मलयालम इस भाषा से मिलतेजुलते है। संस्कृत भाषा से बहुत प्रभावित हुई यह भाषा में संस्कृत में से बहुत सारे शब्द वही अर्थ से उपयोग किया जाता है। कन्नड भारत की २२ आधिकारिक भाषाओं में से एक है।[4]  विस्तार में...
  1. [1].[जैमिनी भारत: प्रसिद्ध कन्नड़ काव्य, अनुवाद एवं टीका सहित (१८५२)].[२०१०-११-१३].
  2. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; census नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  3. १ करोड़ से अधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषाएं. एन्कार्टा. Archived 2009-10-31.
  4. "कर्नाटक आधिकारिक भाषा अधिनियम" (PDF). संसदीय मामलों एवं विधि का आधिकारिक जालस्थल. कर्नाटक सरकार. अभिगमन तिथि २९ जुलाई २००७.

८ दिसंबर २०१०[संपादित करें]

ओड़िया लिपि
ओड़िया लिपि
ओड़िआ उड़िया या ओडिया (ଓଡ଼ିଆ, oṛiā ओड़िआ) भारत के ओड़िशा प्रान्त में बोली जाने वाली भाषा है। यह यहाँ के राज्य सरकार की राजभाषा भी है। भाषाई परिवार के तौर पर ओड़िआ एक आर्य भाषा है और नेपाली, बांग्ला, असमिया और मैथिली से इसका निकट संबंध है। ओड़िसा की भाषा और जाति दोनों ही अर्थो में उड़िया शब्द का प्रयोग होता है, किंतु वास्तव में ठीक रूप "ओड़िया" होना चाहिए। इसकी व्युत्पत्ति का विकासक्रम कुछ विद्वान् इस प्रकार मानते हैं : ओड्रविषय, ओड्रविष, ओडिष, आड़िषा या ओड़िशा। सबसे पहले भरत के नाट्यशास्त्र में उड्रविभाषा का उल्लेख मिलता है। इसकी लिपी का विकास भी नागरी लिपि के समान ही ब्राह्मी लिपि से हुआ है। अंतर केवल इतना है कि नागरी लिपि की ऊपर की सीधी रेखा उड़िया लिपि में वर्तुल हो जाती है और लिपि के मुख्य अंश की अपेक्षा अधिक जगह घेर लेती है। विद्वानों का कहना है कि उड़िया में पहले तालपत्र पर लौह लेखनी से लिखने की रीति प्रचलित थी और सीधी रेखा खींचने में तालपत्र के कट जाने का डर था। अत: सीधी रेखा के बदले वर्तुल रेखा दी जाने लगी और उड़िया लिपि का क्रमश: आधुनिक रूप आने लगा। विस्तार में...

९ दिसंबर २०१०[संपादित करें]

कर्नाटक की विधान सौध
कर्नाटक की विधान सौध
कर्नाटक (कन्नड़: ಕರ್ನಾಟಕ,उच्चारण [kəɾˈnɑːʈəkɑː]), जिसे कर्णाटक भी कहते हैं, दक्षिण भारत का एक राज्य है। इस राज्य का सृजन १ नवंबर, १९५६ को राज्य पुनर्संगठन अधिनियम के अधीन किया गया था। मूलतः यह मैसूर राज्य कहलाता था, और १९७३ में इसे पुनर्नामकरण कर कर्नाटक नाम मिला था। कर्नाटक की सीमाएं पश्चिम में अरब सागर, उत्तर पश्चिम में गोआ, उत्तर में महाराष्ट्र, पूर्व में आंध्र प्रदेश, दक्षिण-पूर्व में तमिल नाडु एवं दक्षिण में केरल से लगती हैं। राज्य का कुल क्षेत्रफल ७४,१२२ वर्ग मील (१,९१,९७६ कि.मी.²) है, जो भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का ५.८३% है। यह राज्य आठवां सबसे बड़ा राज्य है और इसमें २९ जिले हैं। राज्य की आधिकारिक और सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है कन्नड़। हालांकि कर्नाटक शब्द के उद्गम के कई संदर्भ हैं, फिर भी उनमें से सर्वाधिक स्वीकार्य तथ्य है कि कर्नाटक शब्द का उद्गम कन्नड़ शब्द करु, अर्थात काली या ऊंची और नाडु अर्थात भूमि या प्रदेश या क्षेत्र से आया है, जिसके संयोजन करुनाडु का पूरा अर्थ हुआ काली भूमि या ऊंचा प्रदेश। काला शब्द यहां के बयालुसीम क्षेत्र की काली मिट्टी से आया है और ऊंचा यानि दक्खन के पठारी भूमि से आया है। ब्रिटिश राज में यहां के लिये कार्नेटिक शब्द प्रयोग किया गया है, जो कृष्णा नदी के दक्षिणी ओर की प्रायद्वीपीय भूमि के लिये प्रयोग किया गया है, और कर्नाटक शब्द का अपभ्रंश है। विस्तार में...

१० दिसंबर २०१०[संपादित करें]

मोबाइल कंप्यूटर
मोबाइल कंप्यूटर
मोबाइल कंप्यूटिंग एक सामान्य शब्द है जो गतिशील अवस्था में प्रौद्योगिकी का उपयोग करने की क्षमता का वर्णन करता है, पोर्टेबल कंप्यूटर के ठीक विपरीत, जो केवल तभी प्रयोग में लाये जा सकते हैं जब उन्हें स्थिर अवस्था में रखा जाए।[1] मोबाइल कंप्यूटिंग में सामान्यतया यात्रा के दौरान इंटरनेट प्रयोग के लिए कई तकनीकों को समाहित किया जाता है। नोटबुक कंप्यूटरों से लेकर ब्लैकबेरी और आईफोन तक और साधारण मोबाइल फोन उपकरणों, जैसे पर्सनल डिजिटल एसिस्टेंट (पीडीए) के माध्यम से मोबाइल कंप्यूटिंग काफी प्रयोग में है। मोबाइल, लैपटॉप और नोटबुक कंप्यूटर में यात्रा के समय दो तरह की बेतार यानि वायरलेस एक्सेस सेवा का प्रयोग संभव है। अधिकतम होने वाली और सबसे सस्ती सेवा वाइफाई है, जिसके माध्यम से एक वायरलेस राउटर के द्वारा इंटरनेट सिग्नल कंप्यूटर तक पहुंचता है। वाइफाई का अधिकांश प्रयोग सार्वजनिक स्थानों, जैसे विमानक्षेत्र, कंपनियों, कार्यालयों आदि में किया जाता है। किन्तु इसकी कमी यह है कि इसे हॉटस्पॉट बनाना होता है और फिर उसे प्रसारण सीमा के भीतर ही सीमित रखना होता है। वाइफाई का विकल्प एक सेल्युलर ब्रॉडबैंड होता है। इसमें एक मोबाइल सेल्युलर मॉडम या एयरकार्ड के द्वारा मोबाइल टावरों से संपर्क किया जाता है। फिर इस एयरकार्ड को नोटबुक के पीसी कार्ड या एक्सप्रेस कार्ड में लगाया जाता है, जिससे यात्रा में इंटरनेट का प्रयोग हो सकता है। इसके बाद उपयोक्ता को जहां भी भी सेल्युलर सेवा उपलब्ध होती है, ब्रॉडबैंड का सिग्नल स्पष्ट मिलता रहता है। सेल्युलर ब्रॉडबैंड से मोबाइल फोनों को भी इंटरनेट सिग्नल मिलता है। विस्तार में...
  1. मोबाइल कंप्यूटिंग| हिन्दुस्तान लाइव।१८ नवंबर, २०१०

११ दिसंबर २०१०[संपादित करें]

स्लो फूड
स्लो फूड
स्लो फूड एक है जिसकी स्थापना कार्लो पेट्रिनी ने १९८६ में की थी। अधिकांश लोगों के अनुसार स्लो फूड की स्थापना फास्ट फूड के विरोध में हुई, लेकिन वास्तव में इस संगठन का उद्देश्य काफी व्यापक रहा है। फिर भी मूलतः स्लो फूड के सदस्य सिद्धांत रूप में फास्ट फूड के विरुद्ध हैं। स्लो फूड मूलत: तेज औद्योगिकीकरण के कारण मशीनी होते जा रहे मानव जीवन के विरोध में है क्योंकि इसके कारण खानपान की पुरानी अनूठी परंपराओं और खाद्य पदार्थों की कई किस्मों का इस के कारण विलोप होता जा रहा है।[1] स्लो फूड का आरंभ ऐसे खाद्य पदार्थो के उत्पादन से जुड़ा रहा है, जो न केवल अच्छे, स्वच्छ और उचित हों बल्कि बेहतरीन स्वाद वाले और स्वास्थ्यवर्धक भी हों। इतना ही नहीं, उपज के दौरान कार्य स्थिति भी अच्छी रही हो। जैव विविधता का भी इसमें महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है जिसने स्वाद निधि संजोने के इस काम को खाद्य पदार्थो की तमाम अनूठी किस्मों के संरक्षण के प्रयास में बदल दिया है।  विस्तार में...
  1. स्लो फूड।हिन्दुस्तान लाइव।१७ नवंबर, २०१०

१२ दिसंबर २०१०[संपादित करें]

द्विआयामी प्रोजेक्शन
द्विआयामी प्रोजेक्शन
सापेक्षिकता का सिद्धांत या केवल सापेक्षता, अलबर्ट आइंस्टाईन के दो सिद्धान्तों को सूचित करता है - (विशिष्ट सापेक्षता) तथा (सामान्य सापेक्षता) का सिद्धान्त।[1] फिर भी कई बार सापेक्षिकता या रिलेटिविटी शब्द को गैलीलियन इन्वैरियन्स के संदर्भ में भी प्रयोग किया जाता है। थ्योरी ऑफ् रिलेटिविटी नामक इस शब्द का प्रयोग सबसे पहले सन १९०६ में मैक्स प्लैंक ने किया था। यह अंग्रेज़ी शब्द समूह "रिलेटिव थ्योरी" (जर्मन: Relativtheorie)से लिया गया था जिसमें यह बताया गया है कि कैसे यह सिद्धांत प्रिंसिपल ऑफ रिलेटिविटी का प्रयोग करता है। इसी पेपर के चर्चा संभाग में अल्फ्रेड बुकरर ने प्रथम बार "थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी" (जर्मन: Relativitätstheorie) का प्रयोग किया था।[2][3] इसका प्रतिपादन सन १९०५ में आइंस्टीन ने अपने एक शोधपत्र ऑन द इलेक्ट्रोडाइनेमिक्स ऑफ् मूविंग बॉडीज में की थी। विशिष्ट सापेक्षता दो परिकल्पनाओं (पॉस्चुलेट्स) पर आधारित है जो शास्त्रीय यांत्रिकी (क्लासिकल मेकैनिक्स) के संकल्पनाओं के विरुद्ध (उलटे) हैं:
  • भौतिकी के नियम एक दूसरे के सापेक्ष एकसमान (यूनिफार्म) गति कर रहे सभी निरिक्षकों के लिये समान होते हैं। (गैलिलियो का सापेक्षिकता का सिद्धान्त)
  • निर्वात में प्रकाश का वेग सभी निरिक्षकों के लिये समान होता है चाहे उन सबकी सापेक्ष गति कुछ भी हो , चाहे प्रकाश के स्रोत की गति कुछ भी हो।  विस्तार में...
  1. आइंस्टीन, ए (१९१६ (अनुवार १९२०)), रिलेटिविटी: द स्पेशल एण्ड जनरल थ्योरी, न्यू यॉर्क: एच होल्ट एण्ड कंपनी |year= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  2. प्लैंक, मैक्स (१९०६), "द मेज़र्मेंट ऑफ कॉफमैन ऑन द डिफ़्लेक्टिबिलिटी ऑफ बीटा रेज़ इन देयर इम्पॉर्टैन्स फ़ॉर द डायनेमिक्स ऑफ द इलेक्ट्रॉन्स", Physikalische Zeitschrift, : ७५३-७६१
  3. मिलर, अर्थर, आई (१९८१), अल्बर्ट आइंश्टीन्स स्पेशल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी। इमर्जेन्स (१९०५) एण्ड अर्ली इन्टर्प्रिटेशन (१९०५-१९११), रीडिंग: एडीसन-वेलेस्ली, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-201-04679-2सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)

१३ दिसंबर २०१०[संपादित करें]

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शेख अबु अल-फ़ैज़, प्रचलित नाम:फ़ैज़ी (२४ सितंबर १५४७, आगरा–५ अक्तूबर, १५९५, लाहौर[1]) मध्यकालीन भारत का फारसी कवि था। १५८८ में वह अकबर का मलिक-उश-शु‘आरा (विशेष कवि) बन गया था।[2] फ़ैज़ी अबुल फजल का बड़ा भाई था। सम्राट अकबर ने उसे अपने बेटे के गणित शिक्षक के पद पर नियुक्त किया था। बाद में अकबर ने उसे अपने नवरत्नों में से एक चुना था। फ़ैज़ी के पिता का नाम शेख मुबारक नागौरी था। ये सिंध के सिविस्तान, सहवान के निकट रेल नामक स्थान के एक सिन्धी शेख, शेख मूसा की पांचवीं पीढ़ी से थे।[2] इनका जन्म आगरा में ९५४ हि. (१५४७ ई.) में हुआ। पूरी शिक्षा अपने पिता से प्राप्त की। शेख मुबारक सुन्नी, शिया, महदवी सबसे सहानुभूति रखते थे। फ़ैज़ी तथा अबुल फ़ज़ल इसी दृष्टिकोण के कारण अकबर के राज्यकाल में सुलह कुल (धार्मिक सहिष्णुता) की नीति को स्पष्ट रूप दे सके। हुमायूँ के पुन: हिंदुस्तान का राज्य प्राप्त कर लेने पर ईरान के अनेक विद्वान भारत पहुँचे। वे शेख मुबारक के मदरसे, आगरा में भी आए। फैज़ी को उनके विचारों से अवगत होने का अवसर मिला।  विस्तार में...
  1. ओर्सिनी, फ़्रांन्सेस्का (संपा.) (२००६). लव इन साउथ एशिया: अ कल्चरल हिन्स्ट्री. कैम्ब्रिज: कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय प्रेस. पपृ॰ ११२-११४. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0521856787.
  2. ब्लॉक्मैन, एच. (ट्र.) (१९२७, पुनर्मुद्रण १९९३)। द आइन-ए-अकबरी बाय अबुल-फ़ज़्ल अल्लामी, खण्ड-१, कलकत्ता:द एशियाटिक सोसायटी, पृ. ५४८-५०

३० दिसंबर २०१०[संपादित करें]

गुजरात में स्थिति
गुजरात में स्थिति
काठियावाड़ (गुजराती: કાઠીયાવાડ; उच्चारण: [kaʈʰijaʋaɽ]) पश्चिम भारत में एक प्रायद्वीपहै। ये गुजरात का भाग है, जिसके उत्तरी ओर कच्छ के रण की नम भूमि, दक्षिण और पश्चिम की ओर अरब सागर और दक्षिण-पश्चिम की ओर कैम्बे की खाड़ी है। इस क्षेत्र की दो प्रमुख नदियाँ भादर और शतरंजी हैं जो क्रमश: पश्चिम और पूर्व की ओर बहती हैं। इस प्रदेश का मध्यवर्ती भाग पहाड़ी है।[1] इस स्थान का नाम राजपूत शासक वर्ग की काठी जाति से पड़ा है। गुर्जर प्रतिहार शासक मिहिर भोज के काल में गुर्जा साम्राज्य की पश्चिमी सीमा काठियावाड़ और पूर्वी सीमा बंगाल की खाड़ी थी। [2] हड्डोला शिलालेखों से यह सुनिश्चित होता है कि गुर्जर प्रतिहार शासकों का शासन महिपाल २ के काल तक भी उत्कर्ष पर रहा।काठियावाड़ क्षेत्र के प्रमुख शहरों में प्रायद्वीप के मध्य में मोरबी राजकोट,कच्छ की खाड़ी में जामनगर, खंबात की खाड़ी में भावनगर मध्य-गुजरात में सुरेंद्रनगर और वधावन, पश्चिमी तट पर पोरबंदर और दक्षिण में जूनागढ़ हैं। पुर्तगाली उपनिवेश का भाग रहे और वर्तमान में भारतीय संघ में जुड़े दमन और दीव संघ शासित क्षेत्र काठियावाड़ के दक्षिणी छोर पर हैं। सोमनाथ का शहर और मंदिर भी दक्षिणी छोर पर स्थित हैं। इस मंदिर में हिन्दू धर्म के बारह ज्योतिर्लिंगोंमें से एक ज्योतिर्लिंग स्थापित है। इसके अलावा दूसरा प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ द्वारका भी यहीं स्थित है, जहां भगवान कृष्ण ने अपनी नगरी बसायी थी। पालिताना प्रसिद्ध जैन तीर्तथहै जहां पर्वत शिखर पर सैंकड़ो मंदिर बने हैं। विस्तार में...
  1. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; वॉटर नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  2. बैजनाथ पुरी (१९८६). द हिस्ट्री ऑफ गुर्जर प्रतिहार्स. मुंशी राममनोहरलाल प्रकाशन. पृ॰ xvii.

३१ दिसंबर २०१०[संपादित करें]

गुजरात में खंभात
गुजरात में खंभात
खंभात की खाड़ी (पूर्व नाम: कैंबे की खाड़ी) अरब सागर स्थित एक तिकोनी आकृति की खाड़ी है। यह दक्षिणी ओर अरब सागर में खुलती है। यह भारतीय राज्य गुजरात के सागर तट, पश्चिमी भारत के शहर मुंबई और काठियावाड़ प्रायद्वीप के बीच में स्थित है और उसे पूर्व और पश्चिमी, दो भागों में बांटती है। केन्द्र शासित प्रदेश दमन और दीव के निकट इसका मुहाना लगभग १९० किलोमीटर चौड़ा है, जो तीव्रता सहित २४ किमी तक संकरा हो जाता है। इस खाड़ी में साबरमती, माही, नर्मदा और ताप्ती सहित कई नदियों का विलय होता है।[1] दक्षिण दिशा से दक्षिण पश्चिमी मानसून के सापेक्ष इसकी आकृति और इसकी अवस्थिति, इसकी लगभग १०-१५ मीटर ऊँची उठती और प्रवेश करती लहरों की ६-७ नॉट्स की द्रुत गति के कारण है। इसे शैवाल और रेतीले तट नौपरिवहन के लिए दुर्गम बनाते हैं साथ ही खाड़ी में स्थित सभी बंदरगाहों को लहरों व नदियों में बाढ़ द्वारा लाई गई गाद का बाहुल्य मिलता है। गुजरात से ४ बड़ी, ५ मध्यम, २५ छोटी एवं ५ मरुस्थलीय नदियां खाड़ी मं गिरती हैं एवं खाड़ी में प्रतिवर्ष ७१,००० घन मि.मी जल छोड़ती हैं।[2]  विस्तार में...