मदकरी नायक

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मदकरी नायक
चित्रदुर्ग के नायक
शासनावधि1754 से 1779 तक
पूर्ववर्तीकस्तूरी रंगप्पा नायक द्वितीय
जन्म13 अक्टूबर 1742 चित्रदुर्ग, भारत ( वर्तमान चित्रदुर्ग जिला, कर्नाटक, भारत )
निधन15 माई 1782 श्रीरंगपट्टनम कर्नाटक, भारत
पूरा नाम
राजा वीरा मदकरी नायक
पिताभरमप्पा नायक
माताओबव्वा नगति
धर्मसनातन धर्म

मदकरी नायक भारत के चित्रदुर्ग के अन्तिम निषादवंशी शासक थे।[1][2] हैदर अली द्वारा मैसूर पर किये गए एक हमले में नायक को चित्रदुर्ग से हाथ धोना पड़ा और अली के पुत्र टीपू सुल्तान द्वारा धोखा से उनकी हत्या कर दी गयी।

मदकरी नायक के शासनकाल के दौरान हैदर अली की सेनाओं द्वारा चित्रदुर्ग शहर की घेराबंदी कर कर दी गयी थी। हैदर अली ने एक महिला को चट्टानों के बीच छेद (किन्दी) से चित्रदुर्ग में प्रवेश करते देखा और अपने सैनिकों को भी उसी मार्ग से अंदर भेज दिया। उस छेद के निकट के मचान का पहरेदार दोपहर के भोजन के लिए घर गया हुआ था। घर पर पानी न होने के कारण उसकी पत्नी ओबव्वा बाहर निकली। मार्ग में उसने हैदर अली के सैनिकों को छेद के रास्ते किले में प्रवेश करते देखा. वो अपने पति के भोजन में खलल नहीं डालना चाहती थी इसलिए उसने एक ओनेक (एक प्रकार का धान पीटने वाला डंडा) उठाया और किले के अंदर घुसने की कोशिश करने वाले सैनिकों को एक-एक कर मारना शुरु कर दिया। भोजन से लौटने के बाद ओबव्वा का पति उसके हाथ में खून से सने ओनेक और आसपास पड़े सैकड़ों मृत सैनिकों को देखकर सकते में आ गया।

चित्रदुर्ग किला

यह कहानी और तान्निरू दोनी (Tanniru DoNi) - जल का एक लघु स्रोत जिसमे वर्ष भर ठंडा पानी रहता है - वहां की लोककथाओं में काफी प्रसिद्ध हैं। हैदर अली ने 1799 में फिर हमला किया और किले पर कब्जा कर लिया। यह स्थान अपने कल्लिना कोट ("चट्टानी किले का स्थान") के लिए प्रसिद्ध है और सात चक्करों वाला किला भी यहीं स्थित है जिसे बड़ी-बड़ी चट्टानों से बनाया गया है।

बारह वर्ष की आयु में चित्रदुर्ग के सिंहासन पर बैठने वाले मदकेरी नायक, चित्रदुर्ग के अंतिम नायक के रूप में जाने जाते हैं। चित्रदुर्ग के शत्रुओं ने फिर से उसे जीतने की कोशिश की लेकिन बेदा राजाओ ने अपनी वफादारी बनाए रखी और राज्य की रक्षा की। कल्यादुर्ग ने अकेले ही प्रयास किया लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। 1759-60 में रायदुर्ग, हरपनहल्ली और सवनूर के एक संयुक्त मोर्चे ने आक्रमण किया। होसकेर के निकट एक युद्ध हुआ जिसमे चित्रदुर्ग की विजय हुई, हालांकि उसे कुछ नुकसान भी उठाना पड़ा. इसके बाद राज्य के सीमावर्ती क्षेत्रों के तरिकेर और जरिमेल के सरदारों की गतिविधियों के कारण कुछ मामूली बाधाओं का भी सामना करना पड़ा.

चित्रदुर्ग दक्षिण का एक शक्तिशाली राज्य बन चुका था, जिसके कारण हैदर अली और पेशवा जैसी कुछ प्रमुख शक्तियों ने एक दूसरे के खिलाफ उसकी सहायता प्राप्त करने की कोशिश की। नायक ने पहले बांकापुर, निजगल, बिदनूर और मराठों के खिलाफ हैदर अली के अभियान में उनकी मदद की। इसके बावजूद भी नवाब चित्रदुर्ग पर हमला करने की फ़िराक में था। 1777 में, हैदर अली पर मराठों और निजाम की एक संयुक्त सेना द्वारा भीषण हमला किये जाने का खतरा मंडराने लगा। चित्रदुर्ग के नायक ने अपनी निष्ठा बदल दी, जिसके कारण हैदर ने नायक द्वारा एक बड़ा जुर्माना अदा करने की पेशकश को ठुकराते हुए चित्रदुर्ग पर चढ़ाई कर दी। लेकिन कुछ महीनों की यह घेराबंदी असफल साबित हुई; उसके बाद एक समझौता हो गया जिसके तहत नायक को तेरह लाख पगोडा का जुर्माना अदा करना पड़ा. मराठा अभियान के समाप्त हो जाने पर हैदर ने एक बार फिर चित्रदुर्ग पर चढ़ाई की, लेकिन कई महीनों तक उसे सफलता नहीं मिली। पालेयगार के सेवा में कार्यरत कुछ विश्वासघाती मुसलमान अधिकारियों की सहायता से चित्रदुर्ग पर 1779 में विजय प्राप्त कर ली गयी। मदकेरी नायक और उनके परिवार को कैदियों के रूप में श्रीरंगपट्टना भेज दिया गया और उनकी शक्ति को खतम करने के इरादे से चित्रदुर्ग के 20,000 बेदा सैनिकों को श्रीरंगपट्टना (मैसूर) के द्वीप पर भेज दिया गया। नायक की मृत्यु के बाद चित्रदुर्ग के राजकोष से हैदर को, अन्य चीजों के अतिरिक्त, कथित तौर पर निम्नलिखित मात्रा में सिक्कों की कमाई होती थी: 400,000 चांदी; 100,000 शाही; 1,700,000 अशर्फी; 2,500,000 डाबोलिकडली; और 1,000,000 चावुरी.

स्रोत[संपादित करें]

  • भारत का राजपत्र, चित्रदुर्ग जिला, 1967.
  • बी. एल. राइस द्वारा मैसूर का राजपत्र-अधिकारी

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Lewis, Barry. "An Informal History of the Chitradurga Nayakas". मूल से 14 अप्रैल 2019 को पुरालेखित.
  2. "संग्रहीत प्रति". मूल से 15 मई 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 फ़रवरी 2011.