गंगरेल बांध

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गंगरेल बांध
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राष्ट्रभारत
स्थानधमतरी जिला
स्थितिप्रचालन में
आरम्भ तिथि1979
बाँध एवं उत्प्लव मार्ग
प्रकारतटबंध, भू-भरण
घेरावमहानदी नदी
~ऊँचाई30.5 मी॰ (100 फीट)
लम्बाई1,830 मी॰ (6,004 फीट)
बांध आयतन1,776,000 मी3 (2,322,920 घन गज)
उत्प्लव मार्ग क्षमता17,230 m3/s (608,472 घन फुट/सेकंड)
जलाशय
बनाता हैRavishankar Reservoir
कुल क्षमता910,500,000 मी3 (1.190889039×109 घन गज)
सक्रिय क्षमता766,890,000 मी3 (1.003054250×109 घन गज)
सतह क्षेत्रफ़ल95 कि॰मी2 (37 वर्ग मील)[1]
सामान्य ऊंचाई333 मी॰ (1,093 फीट)

गंगरेल बांध जिसे रविशंकर सागर के नाम से भी जाना जाता है, जिसका नाम छत्तीसगढ़, भारत में स्थित रविशंकर शुक्ल के नाम पर रखा गया है। यह महानदी नदी पर बना है। यह धमतरी जिले में स्थित है, धमतरी से लगभग 17 किमी और रायपुर से लगभग 90 किमी। यह छत्तीसगढ़ का सबसे लंबा बांध है। यह बांध साल भर सिंचाई की आपूर्ति करता है, जिससे किसान प्रति वर्ष दो फसलों की कटाई कर सकते हैं और भिलाई स्टील प्लांट के प्रमुख जल आपूर्तिकर्ता हैं। यह बांध 10 मेगावाट की पनबिजली क्षमता की आपूर्ति भी करता है।[2]

इस परियोजना के मुख्य अभियंता श्री देव राज सिक्का थे। बांध में 14 गेट (स्पिलवे) हैं।[3]


  • गंगरेल बांध निर्माण के लिए सन् 1965 में सर्वे का काम शुरु हो चुका था। सबसे पहले ग्राम सटियारा के पास बांध बनाने के लिए जगह की तलाश की गई, पर तकनीकी कारणों के चलते यहां बांध का निर्माण संभव नहीं हो सका।
  • इसके बाद वर्तमान जगह पर गंगरेल गांव के पास दो पहाड़ों की बीच इसका निर्माण करने का निर्णय लिया गया। इस कार्य का शिलान्यास 5 मई 1972 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया था।[4] इस बांध की नींव बनाने का काम रेडियो हजरत नाम की कंपनी ने किया।
  • इसके बाद सागर कंपनी तथा मित्तल एंड कंपनी के साथ ही कुछ अन्य छोटी बड़ी कंपनियों ने इस कार्य को पूरा किया।

करीब 6 साल तक लगातार काम चलने के बाद 1978 में बांध बनकर तैयार हुआ। 32.150 टीएमसी क्षमता वाले इस बांध का जलग्रहण क्षेत्र मीलों तक फैला हुआ है।[5]इसमें धमतरी के अलावा बालोद व कांकेर जिले का भी बड़ा हिस्सा शामिल है।

जब बांध अस्तित्व में आया, तब तक 55 गांव इसके जलग्रहण क्षेत्र में समा चुके थे।[6]इनमें ग्राम गंगरेल, चंवर, चापगांव, तुमाखुर्द, बारगरी, कोड़ेगांव, मोंगरागहन, सिंघोला, मुड़पार, कोरलमा, कोकड़ी, तुमाबुजुर्ग, कोलियारी, तिर्रा, चिखली, कोहका, माटेगहन, पटौद, हरफर, भैसमुंडी, तासी, तेलगुड़ा, भिलई, मचांदूर, बरबांधा, सिलतरा, सटियारा समेत अन्य गांवों के लोग ऊपरी क्षेत्रों में आकर बस गए।

16 हजार 704 एकड़ जमीन डूबी[संपादित करें]

गंगरेल बांध में जल भराव होने के बाद 55 गांवों में रहने वाले 5 हजार 347 लोगों की 16 हजार 496.62 एकड़ निजी जमीन व 207.58 एकड़ आबादी जमीन सहित कुल 16 हजार 704.2 एकड़ जमीन डूब गई। इनमें ग्राम बारबरी के मालगुजार त्रयंबक राव जाधव, कोड़ेगांव गांव के भोपाल राव पवार, कोलियारी के पढ़रीराव कृदत्त सहित अन्य मालगुजारों की जमीन भी शामिल थी।

कभी लगते थे मड़ई मेले[संपादित करें]

  • बांध की डूब में आ चुके कई गांवों में अनेक देवी-देवता विराजमान थे, जिनके नाम पर हर साल होने वाले मड़ई मेले काफी मशहूर थे।
  • वर्तमान में बांध के एक छोर में स्थापित आदि शक्ति मां अंगार मोती की मूर्ति पहले करीब 10 किलो मीटर दूर डूब में आ चुके ग्राम चंवर में स्थापित थी।

आज भी इस देवी की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है। ग्राम लमकेनी में देवी मनकेशरी विराजित थी, जिन्हें बाद में ग्राम कोड़ेगांव में स्थापित किया गया। भिड़ावर में रनवासिन माता, कोरलमा में छिनभंगा माता के मंदिर आसपास के क्षेत्रों में आज भी प्रसिद्ध हैं।[7]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

फोटो गैलरी - गंगरेल बांध

  1. "National Register for Large Dams" (PDF). India: Central Water Commission. 2009. पपृ॰ 194–197. मूल (PDF) से 21 July 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 November 2011.
  2. "गंगरेल बाँध". dhamtari.gov.in. अभिगमन तिथि 24 मई 2022.
  3. "छत्तीसगढ़ : महानदी में छोड़ा गया गंगरेल बांध का पानी". मूल से पुरालेखित 24 मई 2011. अभिगमन तिथि 5 जुलाई 2006.सीएस1 रखरखाव: BOT: original-url status unknown (link)
  4. "गंगरेल बांध - रविशंकर जलाशय". अभिगमन तिथि 24 मई 2022.
  5. "पिछले साल छलका गंगरेल बांध, इस साल आधा ही भरा". अभिगमन तिथि 11 सितंबर 2021.
  6. "गंगरेल धमतरी छत्तीसगढ़ में बांध". अभिगमन तिथि 19 फरवरी 2022.
  7. "गंगरेल बांध धमतरी छत्तीसगढ़". अभिगमन तिथि 23 सितंबर 2021.