राष्ट्रीय जीन बैंक, नई दिल्ली

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राष्ट्रीय जीन बैंक केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान लखनऊ द्वारा नई दिल्ली में १९९६ से स्थापित स्थापित एवं अनुरक्षित है। इसमें औषधीय एवं सगंध पौधों हेतु (एनजीबीमैप) वनस्पति हर्बेरियम, संरक्षणशाला, जीन बैंकिंग, पौध सत्व एवं रसायनों का संग्रह सम्मिलित है, यह सुविधा वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद एवं जैव प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार द्वारा पोषित है।

पृष्ठभूमि[संपादित करें]

वैविध्यपूर्ण पादप भौगोलिक क्षेत्रों तथा विविध कृषि जलवायु क्षेत्रों एवं सम्पन्न सांस्कृतिक तथा पारम्परिक ज्ञान की विरासत के कारण भारतवर्ष औषधीय एवं सगंध पौधों की सम्पदा से एक सम्पन्न राष्ट्र है। अनेक भारतीय चिकित्सार पद्धतियों-आयुर्वेद, यूनानी एवं सिद्ध पद्धतियों में, लगभग 1000 पौधों का प्रयोग स्वास्थ्य के लिये किया जाता रहा है। इनमें से लगभग 100 पौधे जिनकों अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आधुनिक औषधियों तथा सौन्दर्य प्रसाधनों के निर्माण हेतु प्रयुक्त किया जाता है। इन 100 पौधों में से लगभग 50 पौधे भारतीय मूल के पौधे है। इन पौधों से प्राप्त क्रियाशील जैविक अणुओं तथा पौधों के नवीन उपयोग के कारण यह आवश्यक हो गया है कि इन पादप आनुवांशिक संसाधनों की वनस्पतिक विविधता का संरक्षण किया जाय।

मनोवोद्भिक विकास, जनसंख्या विस्फोट, शहरीकरण तथा औद्योगिकीकरण से वातावरणीय रासायनिक संरचना में निरंतर परिवर्तन हो रहा है जिसके कारण वानस्पतिक जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। साथ ही साथ पौधों से प्राप्त हर्बल औषधियों एवं सौन्दर्य प्रसाधनों के उत्पादों के प्रति बढ़ती रूचि के कारण अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर औषधियों एवं सगंध पौधों की मांग में निरन्तर वृद्धि हो रही है जिससे औषधीय एवं सगंध पौधों की प्राकृतिक अवस्था पर अनावश्यक दबाव बढ़वा जा रहा है।

अत: वानस्पतिक विविधता का संरक्षण अतिआवश्यक है। वानस्पितिक विविधता को संरक्षित करने की अनेक विधियाँ है जिनमें से सबसे प्रभावशाली तरीका है कि पौघों को उनके पारिस्थितिकी में प्राकृतिक रूप में उगने दिया जाय तथा उनके प्राकृतिक स्थल पर ही उनका रख रखाव करते हुए उनका संरक्षण किया जाय-इस विधि से संरक्षित पौधों में उनकी आनुवांशिक शुद्धता बनी रहती है, परन्तु इस विधि द्वारा पौधों का तेजी से संरक्षण व्यवहारिक नहीं हो पा रहा है, अत: आनुवांशिक विविधता का संरक्षण प्रकृति से दूर वानस्पतिक उद्यानों, वन-वृक्षों तथा जैव प्रक्षेत्रों में करना होगा। इन पौधों की पहचान, रासायनिक तथा जैविक अभिलक्षण, पादप प्रजनन तथा जैव प्रौद्योगिकी की सहायता से आनुवांशिक सुधार इन उपयोगी पौधों का अनुवांशिक पौध संरक्षण प्रक्षेत्रों, बीज ऊतक तथा डीएनए बैंकों में भी किया जा सकता है। इन सभी बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुये जी-15 देशों के समूह ने 1991 में केराकस में हुई संगोष्ठी में यह निर्णय किया कि औषधीय एवं सगंध पौधों के संरक्षण हेतु जीन बैंकों की स्थापना किया जाना चाहिए। जिसके फलस्वरूप भारत सरकार ने तीन जीन बैंकों की स्थापना जैवप्रौद्योगिकी विभाग के अन्तर्गत किया है।

उद्देश्य[संपादित करें]

• विभिन्न श्रोतों से जर्मप्लास्म को एकत्रित करके औषधीय एवं सगंध पौधों की विभिन्नताओं का एक सजीव बैंक विकसित करना। • रासायनिक यौगिकों (सक्रिय घटक) का एकत्रीकरण / पृथक्करण करके उनका संग्रहण। • एक उचित एवं तीव्र विश्लेषण विधि को विकसित करना जिससे औषधीय एवं सगंध पौधों की जांच एवं मूल्यांकन हो सके। • औषधीय एवं सगंध पौध सामग्री की प्रमाणिकता के लिए फिंगर प्रिंट क्रोमेटोग्राफ विकसित करना। • औषधीय एवं सगंध पौधों की जैविक सक्रियता की जांच जीवाणुओं, कीटों तथा पशुओं की सेल लाइनों का प्रयोग करते हुए करना।

वर्तमान स्थिति[संपादित करें]

  1. सीमैप संगह में 80 से अधिक औषधीय एवं सगंध पौधों की विभिन्न किस्मों से 303 यौगिकों तथा 461 पौध सत्व (exract), का संग्रहण किया गया है जिसका उपयोग सन्दर्भो के रूप में किया जा सकता है।
  2. 120 से अधिक पौधों के तत्वों का 2-डी प्रिंट क्रोमेटोग्राम बनाये गये हैं जिन्हें एचपीटीएलसी के द्वारा तैयार किया गया है।
  3. निम्नलिखित महत्वपूर्ण औषधीय पौधों से उनके जैव सक्रिय पदार्थों के विश्लेषण हेतु त्वरित विश्लेषण विधियां विकसित किये गये हैं:
  • आर्टीमिसिया एनुआ - आर्टीमिसीनिन - आर्टीइनुईन-बी, आर्टीमिसीनिक एसिड
  • सेन्टेला एशियाटिका - एशियाटिकोसाइड
  • कैथेरेन्थस रोजियस - विनक्रिस्टीन, विनब्लास्टिन, विन्डोलीन, कैथेरेन्थाईन
  • हायोसाइमस म्यूटिकस तथा डुबोसिया मायोपोराइडिस- हायेसिन तथा हायोसाईमिन
  • बकोपा मोनिराई-बैकोसाइड- ए
  • करक्यूमा (हल्दी)- करक्यूमीन, डिमिथोक्सी करक्यूमीन, बिसडेमिथोक्सीकरक्यूमीन
  • एन्ड्रोग्राफिस पेनिकुलाटा- एन्ट्रोग्रेफोलाईड, नियो-एन्ड्रोग्रेफोलाइड, एन्ड्रोग्रेफोसाइड
  • पैपेवर सोम्नीफेरम- मारफीन, कोडीन, ओरीपेवीन, कोडीनोन, थिबाइन, रेटिक्यूलाइन, पैपावेरीन, नारकोरित
  • प्लम्बैगो जिलेनिका- प्लम्बाजिन
  • पाईपर मैलेसुआ- 1, 3 बेन्जोडाई आक्सेन डेरिवेटिक्स।
  1. सीमैप में 118 पौधों की 182 से अधिक किस्मों को जीवंत जीन बैंक में स्थापित किया गया। संस्थान के हर्बेरियम में 120 पौधों के शुष्क रूप उपलब्ध हैं।
  2. बिहारी रोयेंदार केटरपिलर, स्पाइलार्कशिया आबलीकुआ के विरूद्व 9 पौधों के सारसत्वों ने 90% से अधिक की खाद्य प्रवृत्ति में गिरावट देखी गई। सेन्टला एशियाटिका से स्लिमास्टिराल, स्विमासिराल-बी-डी ग्लूकोपाइरेनोसाइड।

अन्तर्राष्ट्रीय पर्यावरण प्रत्ययपत्र[संपादित करें]

जैविक हर्बल एवं सगंध उत्पादों को उत्पादित करने के लिए सीमैप द्वारा पर्यावरणीय अनुकूल प्रयासों को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इकोसर्ट एस ए, जो अन्तर्राष्ट्रीय जैविक प्रमाणन संस्था है, द्वारा प्रमाणित किया गया। इकोसर्ट ने केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीमैप) लखनऊ में जैविक कृषि एवं पौधों तथा उत्पादों के प्रसंस्करण के लिये प्रत्ययपत्र प्रदान किया है। उल्लेखनीय है कि यहां के पर्यावरण को रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशियों के प्रयोग से अत्याधिक हानि होती है जिसका प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। सीमैप द्वारा किये जा रहे शोध में जैविक खेती शोध एवं प्रमुख कार्य है और सीमैप में न केवल पर्यावरणीय अनुकूल कृषि प्रौद्योगिकियाँ विकसित की है बल्कि इन्हें अपने तथा किसानों के खेतों में भी प्रदर्शित किया है।

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]