तमिलनाडू के नवग्रह मंदिर

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पृथ्वी से जुड़े प्राणियों की प्रभा (ऊर्जा पिंडों) और मन को ग्रह प्रभावित करते हैं। प्रत्येक ग्रह में एक विशिष्ट ऊर्जा होती है। ग्रहों की ऊर्जा किसी व्यक्ति के भाग्य के साथ एक विशिष्ट तरीके से उस समय जुड़ जाती है जब वे अपने जन्मस्थान पर अपनी पहली सांस लेते हैं और यह ऊर्जा जुड़ाव तब तक साथ रहता है जब तक उसका वर्तमान शरीर जीवित है। नवग्रह सार्वभौमिक, आद्यप्ररुपील ऊर्जा के संचारक है। प्रत्येक ग्रह के गुण स्थूल जगत और सुक्ष्म जगत वाले ब्रह्मांड की ध्रुवाभिसारिता के समग्र संतुलन के बनाए रखने में मदद करते हैं। मनुष्य ग्रह या उसके स्वामी देवता के साथ संयम के माध्यम से किसी विशिष्ट ग्रह की चुनिंदा ऊर्जा केसाथ खुद की अनुकुलता बैठाने में सक्षम है। विशिष्ठ देवताओं की पूजा का प्रभाव उनकी संबंधित ऊर्जा केमाध्यम से पूजा करने वाले व्यक्ति के लिए तदोनुसार फलता है। विशेष रूप से संबंधित ग्रह द्वारा धारण किए गए भाव के अनुसार ब्रह्मांडीय ऊर्जा जो हम हमेशा प्राप्त करते हैं उसमें अलग-अलग खगोलीय पिंडों से आ रही ऊर्जा शामिल होती है। जब हम बार-बार किसी मंत्र का उच्चारण करते हैं तो हम किसी खास फ्रीक्वेंसी से तालमेल बैठाते हैं और यह फ्रीक्वेंसी ब्रह्मांडीय ऊर्जा के साथ संपर्क कर उसे हमारे शरीर केभीतर और आसपास खींचती है। ग्रह तारे और अन्य खगोलीय पिंड ऊर्जा की ऐसी सजीव सत्ता है जो ब्रह्मांड के अन्य प्राणियों को प्रभावित करते हैं। इस प्रकार जीवन में नवग्रहों (देवता) का प्रभाव अति महत्वपूर्ण है। ये नवग्रह सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु है। सूर्य सभी ग्रहों का प्रधान है तथा बाकी ग्रह सूर्य से ही ऊर्जा पाते हैं। सूर्य केंद्र में, चन्द्र सूर्य के दक्षिण पूर्व में (आग्नेय), मंगल सूर्य केदक्षिण में, बुध सूर्य केउत्तर पूर्व (इर्शान कोण), बृहस्पति सूर्य केउत्तर में, शुक्र सूर्य केपूर्व में, शनि सूर्य केपश्चिम में, राहु सूर्य केदक्षिण-पश्चिम में (नैऋत्य) और केतु सूर्य केउत्तर-पश्चिम में (वायव्य) में स्थित होते हैं। इनमें किसी भी देवता का मुख एक दूसरे की तरफ नहीं होता।

1. सूर्यनार मंदिर (सूर्य)[संपादित करें]

यह नवग्रह का पहला मंदिर है। यह कुम्बाकोड़म से 15 किलोमीटर तथा स्वामीमलै से 21 किलोमीटर की दूरी पर तंजावुर जिले में है। तंजावुर चौल राजाओं की राजधानी थी। यह भगवान शिव को समर्पित है। सूर्यदेव सभी ग्रहों केमुखिया है। यहां पर सूर्यनारायण लेटे हुए हैं तथा उनकी सहचरी उषा देवी व प्रत्युषा देवी है। यह पहला मंदिर है जहां अन्य 8 ग्रह सूर्य भगवान केपास देखे जा सकते है। यह इस प्रकार बनाया गया है कि ग्रहों की किरणें अधिक से अधिक पड़े। इसे चोल राजा कुलातुग ने 1100 ई. में बनवाया था। यहां लगभग 15 तीर्थ है। यहां कांशीविश्वनाथ, विलाक्षी तथा बृहस्पति केभी मंदिर है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि जो जातक शनि केदुष्प्रभाव से (शनि आठवें घर में, जन्म-पहले घर में) ग्रस्त हो वह सूर्य नारायण मंदिर में पूजा करकेयह दुष्प्रभाव दूर कर सकता है। भगवान सूर्य सफलता, स्वास्थ्य, संपन्नता देने वाले हैं। इनका वाहन रथ है जिसे सात घोड़े खींचते हैं जो सातों चक्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं। उड़ीसा में सूर्य का कोर्णाक मंदिर भी है। सूर्य का रत्न-रूबी, तत्व-अग्रि, रंग-लाल व तांबा, धातु-स्वर्ण अथवा पीतल होते हैं। यह रविवार व सिंह राशि केस्वामी है।

2. कैलाशनाथ मंदिर (चन्द्र)[संपादित करें]

कैलाशनाथ मंदिर तिगलूर जो कुम्बाकोड़म से 36 किलोमीटर तथा Thirupayhanam से 1 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस शहर का नाम तमिल के तिंगल शब्द पर पड़ा। तमिल में तिंगल का अर्थ चन्द्रमा होता है। यह 1500 वर्ष पुराना मंदिर है। जिसे 7 वीं सदी में पल्लव राजा राजसिम्हा ने बनवाया था। यहां भगवान शिव को कैलाशनाथ तथा माता पार्वती को पेरीनायकी कहते हैं। यहां चन्द्र की भी पूजा होती है। चन्द्र देवता के रथ को दस सफेद घोड़े खींचते हैं। चन्द्र जन्म क्षमता के देवताओं में एक है इन्हें निशादपति भी कहा जाता है। निशा=रात्रि, अधिपति=देवता। चन्द्र ने शाप से बचने के लिए यहां पर शिव की पूजा की थी। कहा जाता है कि जो जातक चन्द्र के दोष से प्रभावित हो वह यहां पूजा कर के दोषमुक्त हो सकता है। यहां मुख्य मंदिर में काले पत्थर का सोलह मुखी शिवलिंग स्थापित है। यहां की विशेषता यह है कि मार्च-अप्रैल तथा सितम्बर-अक्टूबर के महीनों में सूर्य की किरणें शिवलिंग पर पड़ती हैं। चन्द्र का रत्न-मोती, तत्व-जल, रंग-सफेद, धातु-चांदी होते हैं। यह सोमवार व कर्क राशि के स्वामी है।

3. वैदीश्वरम मंदिर (मंगल)[संपादित करें]

वैदीश्वरम मंदिर 24 किलोमीटर चिदांबरम से तथा 50 किलोमीटर कुम्बाकोड़म तथा 110 तंजावुर की दूरी पर शिरकांज़ी के नजदीक स्थित है। मंगल को अंगारक भी कहते हैं। इनका वाहन भेड़ा है। इन्हें पृथ्वी की संतान माना जाता है तथा ये ब्रह्मचरी है। ये शिक्षक है तथा आत्मविश्वास एवं अहंकार का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये चतुर्भुज है तथा त्रिशूल, मुगदर, कमल और भाला धारण करते हैं। जो जातक मंगल दोष से ग्रसित हैं वे यहां पूजा कर के दोषमुक्त हो सकते हैं। यहां पर सूरपदम और उसकेअन्य असुरों को मारने के कारण घायल भगवान सुब्रमण्यम (कार्तिकेय) और उनके अन्य सहायकों के घावों का इलाज यहां पर किया गया था। यहां केनीम केपेड़ में वैद्यकीय गुण है। यहां शिव भगवान को वैद्यनाथ स्वामी तथा पार्वती माता को तय्यल नायकी या बालाभ्बाल कहते हैं। यहां वैद्यनाथ स्वामी का स्वयंभु लिंग है। यहां का दक्षिण गोपुर ऐसे बनाया गया है कि सूर्य की किरणें शिवलिंग पर पड़े। कार्तिकेयन स्वामी को मुत्तुकुमार कहा जाता है। कहा जाता है कि भगवान सुब्रमण्यम (कार्तिकेय) को दिव्य शूल यहीं प्राप्त हुआ था जिससे उन्होंने असुरों का संहार किया। यहां पर नटराज, मंगल (अंगारक), जटायू, सोमस्कन्दर, सिंगारवेलर और भिक्षाटनर की भी कांसे की प्रतिमा है। इसे Pullirukkuvelur भी कहते हैं जिसका अर्थ Pul= जटायु, lirukku= ऋंगवेद, vel= स्कंद तथा ur = सूर्य से लिया गया है। कहते हैं कि इन्होंने यहां भगवान शिव की पूजा की थी। उज्जैन, मध्यप्रदेश में भी मंगलनाथ का प्रसिद्ध मंदिर हैं। मंगल का रत्न-मुगा, तत्व-अग्रि, रंग-लाल, धातु-पीतल होते हैं। यह मंगलवार व वृश्चिक और मेष राशि के स्वामी है। यह मंदिर इसलिए भी प्रसिद्ध है कि रामायण के अनुसार जटायु ने माता सीता को बचाने केलिए रावण से युद्ध किया था तथा उनके दोनों पंख कटकर यहीं गिरे। जब भगवान राम यहां पहुंचे तो जटायु अपने जीवन की अंतिम घडिय़ां गिन रहा था। जटायु ने भगवान राम को सभी बाते बताई और प्रार्थना की कि वे उनका दाह संस्कार करें। भगवान राम द्वारा जटायु का यहीं पर दाह संस्कार किया गया। जिस स्थान पर दाह संस्कार किया गया उसे जटायु कुंड केनाम से जाना जाता है। यह मंदिर कुलतुगा चोला-1 केसमय 1070-1120 ई. में बना था।

4. श्वेतांयेश्वर- (बुध)[संपादित करें]

यह मंदिर 10 किलोमीटर श्रीकाजी से तथा 59 किलोमीटर कुम्बाकोडम से Thriuvengadu में है। वेन का अर्थ सफेद तथा काड्डू का अर्थ जंगल यानि दुर्लभ श्वेत जंगल। यहां शिव जी (श्वेतांयेश्वर) पार्वती जी (ब्रह्मविद्या नायकी) तथा बुध का मंदिर है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने यहां 7 तांडव नृत्य किये थे। (आनन्द, सन्ध्या, समहरा, त्रिपुश्रत, उध्र्व, भुजग व ललिता) यहां नटराज की मूर्ति भी है जिसमें 7 हाथों में 7 यंत्र व आयुद्य है। यहां शिव की मूर्ती के5 मुखी है। यहां भद्रकाली का भी मंदिर है। यहां तीन तीर्थ है- अग्रि तीर्थ, सूर्य तीर्थ और चन्द्र तीर्थ। कहते है ये तीनों तीर्थ (टैंक) शिव भगवान की नृत्य करते समय आंखों से गिरी 3 बूंदों से बने हैं। बुध देवता व्यापार केदेवता है। बुध देवता केहाथ में एक राजदंड और कमल होता है। वे गरुड़ अथवा शेरों केरथ पर सवारी करते हैं। ये चांद व तारा केपुत्र हैं। कहते है कि सूर्य व चन्द्रमा ने यहां भगवान शिव की पूजा की थी। आदित्य चोला और राजा राज चोला का इसमें बहुत योगदान रहा। कहते है कि शिव भगवान ने चिदाम्बरम में नृत्य से पहले यहां नृत्य किया था। बुध का रत्न-पन्ना, तत्व-पृथ्वी, रंग-हरा, धातु-पीतल होते हैं। यह बुधवार व मिथुन राशि केस्वामी है।

5. स्वंभूतेश्वर (बृहस्पति) Abathsahayeswarar[संपादित करें]

यह मंदिर अलनगुड़ी में कुम्बाकोड़म से 17 किलोमीटर तथा तंजावुर से 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां पर बृहस्पति की मूर्ती दिवार पर खुदी है। यहां पर 15 तीर्थ हैं। अगस्त्य मुनी तथा आदि शंकराचार्य तथा विश्वामित्र मुनि ने भी यहां शिव की पूजा की थी। यहां गणेश जी ने भी असुर को मारने केबाद भगवान शंकर की पूजा की थी। बृहस्पति देवताओं केगुरु है, शील और धर्म केअवतार माने जाते है, प्रार्थना और बलिदानों केमुख्य प्रस्तावक है, इन्हें देवताओं का पुरोहित कहा जाता है। ये मनुष्यों केमध्यस्त हैं। ये ज्ञान और शिक्षण को देने वाले हैं। ये एक छड़ी, एक कमल और माला धारण करते हैं। हिंदू शास्त्रों केअनुसार ये दानवों केगुरु शुक्राचार्य केविरोधी है। ये गुरुवार केस्वामी है। बृहस्पति का रत्न-पुखराज, तत्व-आकाश, रंग-पीला, धातु-स्वर्ण होते हैं। यह वीरवार व धनु राशि केस्वामी है।

6. अग्रिश्वर मंदिर (शुक्र)[संपादित करें]

यह कंजनूर में है। यह कुम्बाकोड़म से 18 किलोमीटर तथा सूर्यनार मंदिर से 2 किलोमीटर की दूरी पर पूर्व की ओर कावेरी केतट पर स्थित है। यहां मुख्य मंदिर शिव व पार्वती देवी का है। शिव भगवान को अग्रिश्वर तथा पार्वती माता को करपगल्म कहते है। अग्रि देव ने यहां शिव की पूजा की थी। यहां मुख्य शिवलिंग पर तेल से अभिषेक होता है। यहां नटराज सभा भी है जहां पर शिव भगवान ने मुक्ति तांडव किया था। यहां पर ब्रह्मा जी ने भी शिवलिंग की पूजा की थी। यह चोल व विजयनगर राजाओं केसमय में 600-800 ई. में बनाया गया था। यहां शिव तांडव को मुक्ति तांडव कहते है। यहां पर पांचपत्ती का बेल पत्र पाया जाता है जो दुर्लभ है। शुक्र का संस्कृत में अर्थ है साफ, शुद्ध, चमक तथा स्पष्ट। यदि मनुष्य की कुंडली में शुक्र मजबूत स्थान पर हो तो उसे धन, भाग्य व ऐशो-आराम की प्राप्ति होती है। ये दैत्यों केगुरु (शुकराचार्य) व शिक्षक हैं। ये धन, खुशी व प्रजनन का प्रतिनिधित्व करते हैं। शुक्र की दशा कुंडली में बीस वर्षों तक सक्रीय रहती है। ये एक छड़ी, कमल और माला कभी-कभी धनुष व तीर धारण करते हैं। शुक्र का रत्न-हीरा, तत्व-जल, रंग-सफेद, धातु-चांदी होते हैं। यह शुक्रवार व वृष राशि केस्वामी है।

7. दरबारनेश्वरम (शनि)[संपादित करें]

यह 59 किलोमीटर कुम्बाकोडम से है तथा 5 किलोमीटर Kaarraikal से तिरुनल्लर में स्थित है। यह मंदिर शिव को समर्पित है। यहां भगवान शिव ने सात तांडव नृत्यों में से एक तांडव नृत्य भी किया था। शिव जी ने ब्रह्मा जी को यहां वेद और शास्त्रों का ज्ञान दिया था। शनि अन्य ग्रहों की तुलना में धीमे चलता है। शनि शब्द की उत्पत्ति शनये क्रमति स: अर्थात, जो धीरे-धीरे चलता है। शनि को सूर्य की प्रक्रिमा में 30 वर्ष लगते हैं। शनि कठिन मार्गीय शिक्षण और दीर्घायु को देने वाला है। शनि महाराज देने वाले व नाश करने वाले दोनों ही हैं। यहां भगवान शिव को दरबारनेश्वरम तथा देवी पार्वती को प्रणमबिका कहा जाता है। शनि जब जन्म राशि (प्रथम घर) में हो तो जतक मुश्किलों से गुजरता है और जब अष्टम घर में हो तो जातक को काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। ये दोष शनि की पूजा से दूर हो सकते हैं। शनि को सूर्य देव तथा उनकी पत्नी छाया का पुत्र कहा जाता है। जब उन्होंने शिशु रूप में अपनी आंखें खोली तो सूर्य ग्रहण में चला गया था। ये अक्सर काले कौएं पर सवारी करते हैं। यम भगवान सूर्य तथा उनकी दूसरी पत्नी उषा केपुत्र हैं तथा शनि केभाई माने जाते हैं। शनि का रत्न-नीलम, तत्व-वायु, रंग-काला या नीला, धातु-लोहा होते हैं। यह शनिवार व कुंभ राशि केस्वामी है।

8. नागेश्वरम मंदिर (राहु)[संपादित करें]

यह मंदिर कुम्भाकोड़म से 7 किलोमीटर है। यहां शिव भगवान को नागनाथ स्वामी तथा माता पार्वती को गजअंबिका केनाम से जानी जाती है। यहां लक्ष्मी जी व सरस्वती जी भी है। राहु यहां अपनी दो पत्नी नागवली व नागकणि केसाथ है। यहां की विशेषता यह है कि यहां राहु मानव चेहरे में है। यहां राहु ने श्राप से छुटने केलिए भगवान शिव की पूजा की थी। जब भगवान शिव का दूध से अभिषेक किया जाता है तो दूध नीले रंग में बदल जाता है जो साफ दिखता है। यहां कई मण्डप व गोपुर है यहां 12 दुर्लभ (पानी के) तीर्थ है। सूर्य पुशकरिनी, गौतमतीर्थ, पराशर तीर्थ, इन्द्रतीर्थ, भृगुतीर्थ, कन्व्यतीर्थ, वशिष्ठ आदि। यह 10वीं सदीं में आदित्य चोल द्वारा बनवाया गया था। कहते है कि राहु काल प्रतिदिन डेढ़ घंटा दूध द्वारा राहु का अभिषेक करने से शादी में देरी टलती है। जिन्हें बच्चे नहीं होते उनको भी लाभ मिलता है तथा वैवाहिक जीवन की तकलीफ दूर होती है। शनि केरथ को आठ काले घोड़े खींचते हैं। राहु काल को अशुभ माना जाता है जिसमें व्यक्ति काफी कठिनाईयों, अराजकतों व रूकावटों का सामना करता है। पौराणिक कथा केअनुसार समुंद्र मंथन केदौरान असुर राहु ने थोड़ा सा अमृत पी लिया था। इससे पहले की वह अमृत उसकेगले से नीचे उरता मोहिनी (भगवान विष्णु का स्त्री अवतार) ने उसका गला काट दिया। इससे वह सिर तो अमर रहा और उसे राहु कहा जाता है जबकि बाकि शरीर केतु बन गया। यह अमर सिर कभी-कभी सूरज और चांद को निगल जाता है जिससे ग्रहण फलित होता है फिर सूर्य और चंद्रमा गले से होते हुए निकल जाता है और ग्रहण समाप्त हो जाता है। हिंदू शास्त्रों केअनुसार राहु सूर्य तथा चंद्रमा को निगलते हुए ग्रहण को उत्पन्न करता है। राहु का रत्न-गोमेद, तत्व-छाया, रंग-धुम्र, धातु-शीशा होते हैं।

9. नागनाथस्वामि (केतु)[संपादित करें]

यह कुम्बाकोडम से 63 किलोमीटर तथा 6 किमी तिरकवेन्डू से Keezpherumpallam में स्थित है। यहां शिव को नागनाथ स्वामी तथा माता पार्वती को सुंदरनायकी देवी कहते हैं। माना जाता है कि केतु ने पाप से छुटने केलिए यहां शिव की पूजा की थी। यहां की विशेषता यह है कि यहां केतु का सिर पांच नागों तथा शरीर असुर का है और वे हाथ जोड़े भगवान शिव की पूजा करते दिखते हैं। माना जाता है कि मानव जीवन व पूरी सृष्टि पर इसका जबर्दस्त प्रभाव पड़ता है। कुछ विशेष परिस्थितियों में यह किसी को भी प्रसिद्धि केशिखर पर पहुंचाने में मदद करता है। ज्योतिष केअनुसार केतु और राहु, आकशीय परिधि में चलने वाले चंद्रमा और सूर्य केमार्ग के प्रतिच्छेदन बिंदु को निरूपित करते हैं। इसलिए राहु और केतु को क्रमश: उत्तर और दक्षिण चंद्र आसंधि कहा जाता है। यह तथ्य कि ग्रहण तब होता है जब सूर्य और चंद्रमा इनमें से एक बिंदू पर होते हैं, चंद्रमा और सूर्य को निगले वाली कहानी को उत्पन्न करता है। केतु का रत्न-लहसुनिया, तत्व-छाया, रंग-धुम्र, धातु-शीशा होते हैं।

वैथीस्वरन कोईल[संपादित करें]

ये तमिल नादु के नवग्रह मन्दिर में मगल ग्रह का मन्दिर हे

यह मंदिर इसलिए प्रसिद्ध है, क्योंकि रामायण के अनुसार जटायु ने दुष्ट रावण से माता सीता को बचाने के लिए युद्ध किया था और इस लड़ाई में उसके दोनों पंख कटकर यहीं मंदिर की जगह पर गिरे थे। सीता की खोज में जब प्रभु श्रीराम अपने अनुज लक्ष्मण के साथ यहाँ पहुँचे, तो जटायु अपने जीवन की अंतिम घड़ियाँ गिन रहा य्थाए। जटायु ने राम को सारा वाकया बताया और उनसे प्रार्थना की कि वे स्वयं उसका दाह संस्कार करें। जिस स्थान पर श्रीराम ने जटायु का दाह संस्कार किया, उसे जटायु कुंडम के नाम से जाना जाता है। यह भव्य स्थान मंदिर के अंदर स्थित है तथा किसी भी धर्म के लोग हो, इस कुंडम से विभूति प्रसाद लेते हैं। श्रीराम ने रावण को युद्ध में पराजित किया एवं सीता तथा अन्य साथियों के साथ लौटकर उन्होंने इस भव्य स्थान पर भगवान शिव से प्रार्थना की। देवी शक्ति से भगवान मुरुगा ने वेल शस्त्र प्राप्त किया था एवं इसी शस्त्र से पदमा सुरन नामक असुर का वध किया था। संत विश्वामित्र, वशिष्ठ, तिरुवानाकुरसर, तिरुगनंसबंदर, अरुनागीरीनाथर ने इस स्थान पर भगवान से पूजा-अर्चना की थी। यह भव्य स्थान विशिष्ट है, क्योंकि कुष्ठ रोग से पीड़ित अंगरकन (तमिल भाषा में मंगल ग्रह का नाम) ने भगवान से प्रार्थना की तथा अपनी बीमारी का इलाज किया। अतः यह स्थान नवग्रह क्षेत्रम में से एक है। जिन लोगों की जन्मकुंडली में चेव्वा दोष है, वे यहाँ आते हैं और अंगकरण की पूजा करते हैं। भगवान शिव अपनी शक्ति थय्यालनायकी अम्माई, जो अपने साथ थाईलम, संजीवी तथा विल्वा पेड़ की जड़ों की रेत, जिसके मिश्रण से 4,480 बीमारियों का इलाज हो सकता है, के साथ इस क्षेत्र में आए तथा रोग से पीड़ित भक्तों को मुक्त किया और वैईथीयनाथ स्वामी के नाम से जाने गए।

मान्यता[संपादित करें]

लाखों लोग इस भव्य मंदिर में दर्शन करने प्रतिवर्ष आते हैं और अपने अच्छे स्वास्थ्य के लिए यहाँ प्रार्थना करते हैं। मान्यता है कि भक्तों की मनोकामनाएँ यहाँ पर पूर्ण होती हैं। प्रथाओं के अनुसार एक विशेष प्रकार से दवा बनाई जाती है। यह प्रथा अभी भी यहाँ पर प्रचलित है। ‘शुक्ल पक्ष के दिन भक्तों को अंगसंथना तीर्थम (पवित्र जलधर) में स्नान करना चाहिए। उसी जलाशय से रेत को जटायु कुंडम के विभूति प्रसाद के साथ मिश्रित किया जाता है एवं सिद्धामीर्थम तीर्थम के कुंभ से आप पवित्र जल ले सकते हैं। यह स्थान प्रसिद्ध है नादी ज्योत‍िधाम के लिए - जहाँ पर किसी भी व्यक्ति के वर्तमान, भूत, एवं भविष्यकाल का पता लगा सकते हैं। नगर में हर तरफ आप नादी ज्योतिधाम के केंद्र देख सकते हैं। भगवान मुरुगा के समक्ष उस मिश्रण को पीसते हैं एवं इस क्रिया के दौरान पंजाकारा झाबा की प्रथा का पालन करते हैं। प‍िसे हुए मिश्रण की छोटी-छोटी गोली बनाई जाती है। शक्ति समाधि के समक्ष उस दवा की पूजा-अर्चना की जाती है तथा सिद्धामिरथा जलाशय से पवित्र जल के साथ इस दवा का सेवन होता है। एक तमिल भाषा के अनुसार पाँच जन्मों तक कोई भी बीमारी आपको पीड़ित नहीं करेगी। मंदिर में गुरुकुल के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि भगवान शिव वैथियंधर के रूप में माने जाते हैं। चेव्व दोषम के लिए एक इलाज है। भगवान कामधेनु एवं करपगा विरुकशम के समान भगवान गणपति की भी पूजा होती है। विवाह से संबंधित समस्याएँ, जायदाद से संबंधित विषय, छेवा थिसाई इन समस्याओं के लिए एक बहुत ही प्रसिद्ध क्षेत्र है। भगवान मुरुगा भक्तों को पुत्र भाग्यम का आशीर्वाद देते हैं। इस क्षेत्रम में सभी नवग्रह एक कड़ी में खड़े हैं। यह स्थान उपयु्क्त है ग्रह दोषम को हटाने के लिए। जनश्रुति के अनुसार बिल्व, चंदन तथा विभूति पदार्थों की मिश्रित दवा से भगवान सभी भक्तों का इलाज करते हैं। क्षेत्रम का पेड़ चार युगों के लिए भिन्न हैं। सतयुग में कदम्बा के रूप में था। त्रेता युग में बिल्वा रूप में, द्वापर युग में वाकुला के रूप में एवं कलियुग में नीम के रूप में। भव्य मंदिर में स्थित पवित्र कुंभ को सिद्धामीर्था कुंभ कहते हैं। कीरत युग में कामधेनु इस क्षेत्रम के निकट आए थे एवं लींगा पर अत्यधिक मात्रा में दूध गिरने के वजह से वह कुंभ में बह गया एवं यह कुंभ पवित्र धार्मिक स्थल माना जाता है। प्रेतबाधा से पीड़ित व्यक्ति अगर इस कुंभ में स्नान करें तो उस आत्मा से वे मुक्त हो जाएँगे। भगवान वैईथीय्नाथस्वामी के नाम से प्रसिद्ध इस नगर को वैईथीसवरन कोइल के नाम से जाना जाता है। यह स्थान प्रसिद्ध है नादी ज्योत‍िधाम के लिए, जहाँ पर किसी भी व्यक्ति के वर्तमान, भूत एवं भविष्यकाल का पता लगा सकते हैं। नगर में हर तरफ आप नादी ज्योतिधाम के केंद्र देख सकते हैं।

कैसे पहुँचें[संपादित करें]

रेल के माध्यम से चेन्नई के थानजावर राह से वैथीसवरन रेलवे स्टेशन पर पहुँच सकते हैं। सड़क मार्ग वैथीसवरन कोइल चिदम्बरन के पास स्थित है, जो कि चेन्नई से 235 किमी है। चिदम्बरन से 26 किमी की दूरी पर भगवान शिव के क्षेत्रम के लिए प्रसिद्ध है। बस सेवा के माध्यम से आप वैथीसवरन कोइल 35 से 40 मिनट में पहुँच सकते हैं।