हिन्दू दर्शन में नास्तिकता

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नास्तिक्य या निरीश्वरवाद का सिद्धान्त अनेकों हिन्दू दर्शनों में तथा समय-समय पर देखने को मिलता है।

'आस्तिक' या वैदिक दर्शनों में नास्तिकता[संपादित करें]

  • मीमांसा सृजन करने वाले ईशवर के अस्तित्व को नहीं मानता।
  • सांख्य दर्शन में 'ईश्वर' का कोई स्थान नहीं दिया है। इसमें 'प्रकृति' और 'पुरुष' के द्वैत अस्तित्व की बात कही गयी है।

'नास्तिक' या अवैदिक दर्शनों में नास्तिकता[संपादित करें]

जैन दर्शन, बौद्ध दर्शन और चार्वाक दर्शन वेदों को अस्वीकार करते हैं। इस अर्थ में उन्हें नास्तिक कहा जाता है न कि ईश्वर के अस्तित्व को न मानने के कारण। वेदों को न मानने के साथ इन दर्शनों में 'सृजक ईश्वर' को भी अस्वीकार किया गया है।

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स्रोत[संपादित करें]

  1. नंदी, आशीष (2003). Time Warps: The Insistent Politics of Silent and Evasive Pasts. दिल्ली: Orient Longman. पृ॰ 71. OCLC 49616949. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788178240718.
  2. कुमार, प्रमोद (1992). Towards Understanding Communalism. चण्डीगढ़: Centre for Research in Rural and Industrial Development. पृ॰ 348. OCLC 27810012. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788185835174.

इन्हें भी देखें[संपादित करें]