युग निर्माण योजना

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युग निर्माण योजना नवनिर्माण की अभिनव योजना है, जिसकी संकल्पना पं॰ श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा मथुरा में आयोजित सन 1958 के सहस्रकुंडीय गायत्री महायज्ञ के समय की गई थी। व्यक्ति निर्माण, परिवार निर्माण, समाज निर्माण का लक्ष्य लेकर यह अभियान उन्होने सन 1962 में गायत्री तपोभूमि, मथुरा से आरम्भ किया।

स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन एवं सभ्य समाज की अभिनव रचना का लक्ष्य पूरा करने के लिए विगत कई दशकों से संचालित यह आंदोलन पूरे संसार में चलाया जा रहा है। नवनिर्माण का यह अभियान समय की एक अत्यंत आवश्यक एवं महत्वपूर्ण पुकार है। प्रत्येक विचारशील व्यक्ति के लिए यह योजना अपनाएं जाने योग्य है। व्यक्ति के परिवर्तन से ही समाज, विश्व एवं युग का परिवर्तन सम्भव है। इस धरती पर स्वर्गीय वातावरण का सृजन करने केलिए हमें जनमानस का स्तर बदलना होगा।

उद्देश्य[संपादित करें]

युग निर्माण योजना का प्रधान उद्देश्य है -विचार क्रान्ति । मूढ़ता और रूढ़ियों से ग्रस्त अनुपयोगी विचारों का ही आज सर्वत्र प्राधान्य है । आवश्यकता इस बात की है कि सत्य, प्रेम, न्याय पर आधारित विवेक और तर्क से प्रभावित हमारी विचार पद्धति हो । आदर्शों को प्रधानता दी जाए और उत्कृष्ट जीवन जीने की, समाज को अधिक सुखी बनाने के लिए अधिक त्याग, बलिदान करने की स्वस्थ प्रतियोगिता एवं प्रतिस्पर्धा चल पड़े । वैयक्तिक जीवन में शुचिता-पवित्रता, सच्चरित्रता, ममता, उदारता, सहकारिता आए । सामाजिक जीवन में एकता और समता की स्थापना हो । इस संसार में एक राष्ट्र, एक धर्म, एक भाषा, एक आचार रहे; जाति और लिंग के आधार पर मनुष्य-मनुष्य के बीच कोई भेदभाव न रहे । हर व्यक्ति को योग्यता के अनुसार काम करना पड़े; आवश्यकतानुसार गुजारा मिले । धनी और निर्धन के बीच की खाई पूरी तरह पट जाए । न केवल मनुष्य मात्र को वरन् अन्य प्राणियों को भी न्याय का संरक्षण मिले । दूसरे के अधिकारों को तथा अपने कर्तव्यों को प्राथमिकता देने की प्रवृत्ति हर किसी में उगती रहे सज्जनता और सहृदयता का वातावरण विकसित होता चला जाए।

युग निर्माण योजना का उद्देश्य व्यक्ति, परिवार एवं समाज की ऐसी अभिनव रचना करना है, जिसमें मानवीय आदर्शों का अनुकरण करते हुए सब लोग प्रगति, समृद्धि और शांति की ओर अग्रसर हों। इस दूसरे शब्दों में ‘मनुष्य में देवत्व का उदय’ एवं ‘धरती पर स्वर्ग का अवतरण’ कह सकते हैं। इसे क्रियान्वित करने हेतु विशिष्ट वैचारिक, आध्यात्मिक सूत्रों की रचना की गई, जिसे युग निर्माण सत्संकल्प के रूप में सन् 1963 में अभिव्यक्त किया गया। विभिन्न शिविरों का आयोजन किया जताा रहा। आचार्य जी ने स्वयं छोटे-बड़े जनसम्मेलनों के द्वारा विचारक्रांति की पृष्ठभूमि बनाई। इस युग में नैतिक, बौद्धिक, सामाजिक, सांस्कृतिक क्रांति द्वारा सतयुगी वातावरण उत्पन्न करने का प्रबल प्रयास इस आंदोलन द्वारा किया जा रहा है। हम बदलेंगे, युग बदलेगा", "हम सुधरेंगे,युग सुधरेगा - यह इस आंदोलन का उद्घोष (नारा) है। युग परिवर्तन का आधार, विचार परिवर्तन है। वैयक्तिक, पारिवारिक, सामाजिक, जीवन में उत्कृष्टता लाने का प्रचंड पुरुषार्थ युग निर्माण योजना के ‘शतसूत्री’ कार्यक्रमों द्वारा किया जा रहा है।

जनमानस के परिष्कार एवं वैचारिक उत्कर्ष हेतु चारों वेद, 108 उपनिषद, षडदर्शन, स्मृति, पुराण के सरल हिंदी अनुवाद की प्रस्तुति के साथ हजारों ग्रंथों का प्रकाशन किया गया है। आंदोलन की विचारधारा को जन-जन तक पहुंचाने हेतु कई भाषाओं में नियमित प्रकाशन तथा प्रकाशित सामग्री को लोगों तक पहुंचाने हेतु पत्रिका सदस्यता क्रम, झोला पुस्तकालय, ज्ञानरथ, स्टीकर आंदोलन, विद्या विस्तार, पुस्तक मेला, बिक्री केंद्र आदि अनेक तरह के उपाय किए जा रहे हैं। अब क 171 जिलों में 345 पुस्तक मेले लगे। हमारा लक्ष्य है कि पूज्य आचार्य जी द्वारा रचित सभी पुस्तकें देश-विदेश के पाठकों को उनकी भाषा में प्रकाशित कर उपलब्ध कराई जाएं। पुस्तक मेलों ने इस साहित्य के प्रति जो भूख जगाई है, उसकी आपूर्ति के लिए स्थानीय बिरला मंदिर के बगल में एक नया प्रेस खोला जा रहा है।

युग निर्माण योजना से जुड़े लाखों परिजन नियमित रूप से प्रतिदिन एक घंटा समयदान एवं अंशदान करते हुए संस्था के कार्यों को आगे बढ़ा रहे हैं। समयदानी, जीवनदानी प्राणवान परिजन ही इस योजना के आधार स्तंभ हैं तथा प्रचारात्मक, रचनात्मक और सुधारात्मक कार्यक्रमों को सफल बनाने में लगे हैं। देश, धर्म, समाज, संस्कृति, राष्ट्र एवं विश्व के उत्थान एवं कल्याण के लिए सप्त आन्दोलन (साधना, स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वावलम्बन, नारी जागरण, पर्यावरण, दुर्व्यसन-कुरीति उन्मूलन) जैसे अनेक कार्यक्रमों का सफल संचालन हो रहा है। घीयामंडी, मथुरा में अखंड ज्योति पारमार्थिक औषधालय खोला गया है, जिससे यहां के नागरिक लाभ ले रहे हैं। गायत्री तपोभूमि स्थित पं॰ श्रीराम शर्मा आचार्य चिकित्सालय द्वारा पिछले पितृ पक्ष में चार हजार से अधिक रोगियों की निशुल्क चिकित्सा की गई, जिसकी लोगों ने भूरि-भूरि प्रशंसा की।

युग निर्माण योजना के प्रमुख संस्थानों, प्रतिष्ठानों (पूज्यवर की जन्मस्थली आंवलखेड़ा-आगरा, अखंड ज्योति संस्थान-मथुरा, गायत्री तपोभूमि-मथूरा, शांतिकुंज, ब्रह्मवर्चस, देव संस्कृति विश्वविद्यालय - हरिद्वार) आदि के अतिरिक्त देश एवं विदेशों में फैले हजारों केंद्र ऐसे हैं जिन्हें शक्तिपीठ, प्रज्ञापीठ, ज्ञानमंदिर, ज्ञानकेंद्र आदि के रूप में जाना जाता है। जहां से लोक कल्याण की दिशा में अनगिनत कर्य संपन्न होते हैं। संसार में एक धर्म, एक संस्कृति, एक भाषा, एक शासन की स्थापना को महत्वपूर्ण मानकर कार्यक्रमों को आगे बढ़ाना, युग निर्माण योजना ने अपना ध्येय रखा है। योजना के संस्थापक पं॰ श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे संतु निरामयाः’ के लक्ष्य को अपना जीवन लक्ष्य माना तथा उन्होंने ‘आत्मवत् सर्वभूतेषु’ एवं ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के लिए ही अपना संपूर्ण जीवन समर्पित किया। उन्हीं के पदचिन्हों पर चलने का सत्यप्रयास उनके अनुयायी सदैव करते रहते हैं।

धर्मतंत्र को लोक शिक्षण का माध्यम बनाते हुए गायत्री उपासना, यज्ञ, संस्कार, पर्व त्यौहार आदि के द्वारा विवेकपूर्ण विचारधारा जनमानस के लिए प्रस्तुत की जाती है। अध्यात्म के विज्ञान सम्मत स्वरूप को ही यहां मान्यता मिली है तथा संस्कृति, सभ्यता के उत्कृष्ट स्वरूप को जीवन जीने की कला के रूप में अपनाया गया है।

समाज में फैली दुष्प्रवृत्तियों, अंधविश्वासों, कुरीतियों, मूढ़ मान्यताओं, कुप्रचलनों एवं दुर्व्यसनों को मिटाने में बड़ी सफलता मिली है। सत्प्रवृत्तियों की स्थापना, परिष्कृत धर्मधारणा, आस्तिकता, कर्तव्यपरायणता की प्रतिष्ठापना में भी यह आंदोलन सफल रहा है। आशा है, विचारशील जनसमुदाय इससे जुड़ता हुआ लक्ष्य प्राप्ति तक इसे अग्रसर करने में सफल होगा। ईश्वर की इच्छा और जनसमुदाय की आकांक्षा अवश्य ही युग निर्माण योजना के माध्यम से पूर्ण होगी।

कार्यक्रम[संपादित करें]

युग निर्माण योजना (विचार क्रान्ति अभियान) के तीन कार्यक्रम हैं -

व्यक्ति निर्माण[संपादित करें]

युग निर्माण का अर्थ है व्यक्ति निर्माण और व्यक्ति निर्माण का अर्थ है -- गुण, कर्म, स्वभाव की दृष्टि से मानवीय विशेषताओं से परिपूर्ण व्यक्तित्व का विकास। युग निर्माण आरम्भ पर उपदेश से नहीं बल्कि आत्म सुधार से होगा। व्यक्ति निर्माण ही युग निर्माण की आधार शिला है, इसके अन्तर्गत व्यक्ति के भीतर उसके गुण कर्म स्वभाव में घुसी हुई अवांछनीयता को, दुष्प्रवृत्तियों को हटाया जाना है।

व्यक्ति निर्माण के सूत्र हैः-

उपासना, आत्म साधना, लोक आराधना, समयदान व अंशदान।

जन्मदिन मनाना, संस्कार करना, बाल संस्कार शाला में बच्चों को पढ़ाना, प्रौढ़ शिक्षा शाला के द्वारा प्रौढ़ों को शिक्षित करना, युवाओं हेतु युवा शिविर लगाना, स्वाध्याय करना, उपासना करना, आदि व्यक्ति निर्माण के निमित्त किए जाने वाले कार्य हैं। इन आधारों पर व्यक्तित्व का परिष्कार और निर्माण होता है।

परिवार निर्माण[संपादित करें]

दूसरा कार्यक्रम परिवार निर्माण। व्यक्ति निर्माण होगा उन्हीं से उनके परिवारों को भी निर्माण होगा। इसके लिए पारिवारिक स्तर पर- सामूहिक उपासना, सामूहिक स्वाध्याय, परिवार में संस्कार परम्परा की स्थापना, पारिवारिक गोष्ठी, विवाहितों के विवाह दिवस संस्कार आदि के माध्यम से परिवार निर्माण किये जाने की प्रक्रिया चल रही है।

Hare krishna

समाज निर्माण[संपादित करें]

श्रेष्ठ व्यक्ति तथा सुसंस्कारित परिवारों के संयोग से आदर्श समाज निर्माण का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। उसके लिए दो अभियान है -

  • (१) दुष्प्रवृत्ति उन्मूलन
  • (२) सत्प्रवृत्ति संवर्द्धन।

धर्म तन्त्र आधारित विविध माध्यमों से लोक शिक्षण करना, गायत्री सामूहिक विवेकशीलता एवं यज्ञ- सहकारिता युक्त सत्कर्म द्वारा सातों आन्दोलनों के माध्यम से सामूहिक स्तर पर किए जाने वाले कार्यों द्वारा समाज निर्माण का प्रयास हो रहा है।

सप्त क्रान्तियाँ[संपादित करें]

गुरुदेव ने युग परिवर्तन के लिए युग निर्माण योजना के तहत सात क्रांतियों का आगाज किया जो सप्त क्रांतियों के नाम से विख्यात हैं। ऐसा कहा जा सकता है कि अगर पूरी तरह इनका पालन किया जाए, तो भारत को फिर से जगत गुरू बनने से कोई नहीं रोक सकता। ये सात क्रांतियां हैं-

शिक्षा क्रांति- बाल संस्कार शाला, प्रौढ़ शिक्षा शाला, रात्रिकालीन पाठशाला, भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा, व्यक्तित्व निर्माण युवा शिविर, कन्या शिविर के द्वारा संस्कार एवं संस्कृतिजन्य शिक्षा हेतु प्रयास। गुरूदेव कहते थे कि शिक्षा वह सीढ़ी है, जिस पर चढ़कर व्यक्ति निरन्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर हो सकता है। आज देश में शिक्षा तो है, लेकिन विद्या यानी संस्कार नहीं है। गुरुदेव से शिक्षा के साथ विद्या का समन्वय करने का सिद्धान्त प्रतिपादित किया। उन्होंने शिक्षा को संस्कार मूलक बनाने की बात कही। इसके लिए संस्कार शालाएं और भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा जैसी मूल्यपरक शिक्षा को आगे बढ़ाने को कहा।

साधना - गुरुदेव साधना को भी एक आन्दोलन मानते थे। आज के समय में जब हर जगह आसुरी शक्तियां अपने पांव पसार रही हैं, ऐसे में साधना के जरिए ही इनसे मुकाबला किया जा सकता है। साधना यानी अपनी इंद्रियों को बस में करना। अपनी साधक प्रवृत्ति को विकसित करना। इसके तहत गुरुदेव ने साधना के तीन आयाम बताए। उपासना यानी ईश्वर के समीप बैठना, साधना यानी अपने मन को नियंत्रित करना और आराधना यानी ईश्वरीय गुणों को धारण करना।

स्वास्थ्य - कहा जाता है कि स्वास्थ्य अगर खराब है, तो इंसान कुछ भी नहीं कर सकता। इसलिए इस क्रांति के तहत पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य ने स्वास्थ्य के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए कहा। इसके तहत गायत्री परिवार लोगों को प्राकृतिक दिनचर्या अपनाने, योग के ​जरिए स्वस्थ रहने के लिए प्रेरित करता है। इसके साथ ही वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों पर जोर दिया जाता है। स्वास्थ्य शिविर, योग शिविर, घर-घर योग व स्वास्थ्य के सूत्रों की स्थापना, गोष्ठियों के माध्यम से आहार-विहार के प्रति जागरूकता, आयुर्वेद का प्रचार एवं स्थापना, बीमार पड़ने के पहले ही उपचार के सूत्र हृदयंगम कराना।

स्वावलम्बन- गुरुदेव कहा करते थे कि बेरोजगारी सभी समस्याओं की जड़ है। इसके लिए उन्होंने हर व्यक्ति को स्वावलम्बी बनाने पर जोर दिया। उनके इस मिशन के तहत युग निर्माण मिशन ने कुटीर उद्योगों को बढ़ाने के लिए नागरिकों को प्रशिक्षण देने का काम शुरू किया। इसके अंतर्गत खादी ग्रामोद्योग, गोपालन, साबुन, मोमबत्ती, अगरबत्ती, प्लास्टिक मोल्डींग, स्क्रीन प्रिंटिंग जैसे कार्य सिखाए जाते हैं।

नारी जागरण- नारी को समर्थ व सशक्त बनाने हेतु प्रयास करना। उसे व्यक्तित्व निर्माण, परिवार निर्माण एवं समाज निर्माण के कार्य में प्रशिक्षित करके उसकी प्रतिभा व योग्यता का पूरा लाभ उठाना इस हेतु उसे संस्कारगत शिक्षा, गोष्ठियों, सभा सम्मेलनों के माध्यम से आगे लाना। उसे यज्ञ संस्कार व रचनात्मक कार्यक्रमों की जिम्मेदारी सौंपना। गुरुदेव कहते थे कि नारियां परिवार की धुरी हैं। देश में हजारों महिला मंडलों और नारी संगठनों को स्थापित किया गया है।

पर्यावरण संरक्षण- आज पर्यावरण लगातार प्रदूषित होता जा रहा है। आज अगर पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्य नहीं किया गया, तो धरती नष्ट हो जाएगी। इसके लिए युग निर्माण योजना के तहत पर्यावरण संरक्षण को लेकर लोगों को जागरुक किया जा रहा है। इसके अंतर्गत पर्यावरण बचाने हेतु पौधे लगाना, नर्सरी तैयार करना, स्वच्छता सफाई अपनाना, पॉलीथीन का बहिष्कार, डिस्पोजेबल वस्तुओं का विरोध करना, वायु, जल, जैविक खाद का प्रयोग, भूमि का संरक्षण। जैसे कार्यक्रम चलाए जाते हैं।

व्यसन मुक्ति व कुरीति उन्मूलन आन्दोलन- जिस देश में कुरीतियाँ हों, वह देश कभी विकास नहीं कर सकता है। इसके लिए गुरुदेव ने कुरीति उन्मूलन क्रांति का आगाज किया। इसके तहत दहेज, खर्चीली शादी, मृत्युभोज, अंधविश्वास, नशा आदि के उन्मूलन के लिए उन्होंने कार्यक्रम चलाए, जिन्हें आज भी उनके कार्यकर्ता चला रहे हैं। इसके लिए रैलियों, पोस्टर, नुक्कड़ नाटक के जरिए आम जन मानस में जागरुकता लाने का प्रयास किया जा रहा है।

युग-निर्माण का सत्संकल्प[संपादित करें]

युग परिवर्तन के लिए जिस अवतार की आवश्यकता है, वह पहले 'आकांक्षा' रूप में ही अवतरित होगा। इसी अवतार का सूक्ष्म स्वरूप यह युग निर्माण सत्संकल्प है। इसका प्रत्येक सूत्र व्यक्ति, परिवार, समाज एवं राष्ट्र को आमूलचूल बदलने की आधारशिला के रूप में रखा गया है। एकता, समता की सर्वांगपूर्ण रूपरेखा-वसुधैव कुटुम्बकम् की समग्र परिकल्पना इसमें की गई है। इस घोषणा पत्र को हम ठीक प्रकार से समझें, उस पर मनन और चिंतन करें तथा यह निश्चय करें कि हमें अपना जीवन इसी ढाँचे में ढालना है। दूसरों को उपदेश करने की अपेक्षा इस संकल्प पत्र में आत्म निर्माण पर सारा ध्यान केन्द्रित किया गया है। एक-एक अच्छा मनुष्य मिलकर ही अच्छा समाज बनेगा।

  • (१) हम ईश्वर को सर्वव्यापी, न्यायकारी मानकर उसके अनुशासन को अपने जीवन में उतारेंगे।
  • (२) शरीर को भगवान् का मंदिर समझकर आत्म-संयम और नियमितता द्वारा आरोग्य की रक्षा करेंगे।
  • (३) मन को कुविचारों और दुर्भावनाओं से बचाए रखने के लिए स्वाध्याय एवं सत्संग की व्यवस्था रखे रहेंगे।
  • (४) इंद्रिय-संयम, अर्थ-संयम, समय-संयम और विचार-संयम का सतत अभ्यास करेंगे।
  • (५) अपने आपको समाज का एक अभिन्न अंग मानेंगे और सबके हित में अपना हित समझेंगे।
  • (६) मर्यादाओं को पालेंगे, वर्जनाओं से बचेंगे, नागरिक कर्तव्यों का पालन करेंगे और समाजनिष्ठ बने रहेंगे।
  • (७) समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी और बहादुरी को जीवन का एक अविच्छिन्न अंग मानेंगे।
  • (८) चारों ओर मधुरता, स्वच्छता, सादगी एवं सज्जनता का वातावरण उत्पन्न करेंगे।
  • (९) अनीति से प्राप्त सफलता की अपेक्षा नीति पर चलते हुए असफलता को शिरोधार्य करेंगे।
  • (१०) मनुष्य के मूल्यांकन की कसौटी उसकी सफलताओं, योग्यताओं एवं विभूतियों को नहीं, उसके सद्विचारों और सत्कर्मों को मानेंगे।
  • (११) दूसरों के साथ वह व्यवहार न करेंगे, जो हमें अपने लिए पसन्द नहीं।
  • (१२) नर-नारी परस्पर पवित्र दृष्टि रखेंगे।
  • (१३) संसार में सत्प्रवृत्तियों के पुण्य प्रसार के लिए अपने समय, प्रभाव, ज्ञान, पुरुषार्थ एवं धन का एक अंश नियमित रूप से लगाते रहेंगे।
  • (१४) परम्पराओं की तुलना में विवेक को महत्त्व देंगे।
  • (१५) सज्जनों को संगठित करने, अनीति से लोहा लेने और नवसृजन की गतिविधियों में पूरी रुचि लेंगे।
  • (१६) राष्ट्रीय एकता एवं समता के प्रति निष्ठावान् रहेंगे। जाति, लिंग, भाषा, प्रान्त, सम्प्रदाय आदि के कारण परस्पर कोई भेदभाव न बरतेंगे।
  • (१७) मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है, इस विश्वास के आधार पर हमारी मान्यता है कि हम उत्कृष्ट बनेंगे और दूसरों को श्रेष्ठ बनायेंगे, तो युग अवश्य बदलेगा।
  • (१८) हम बदलेंगे-युग बदलेगा, हम सुधरेंगे-युग सुधरेगा इस तथ्य पर हमारा परिपूर्ण विश्वास है।

सारांश[संपादित करें]

आत्मनिर्माण के दो सूत्र
—उत्कृष्ट चिन्तन, आदर्श कर्तृत्व
—सादा जीवन, उच्च विचार।
आधारभूत कार्यक्रम
—नैतिक क्रांति, बौद्धिक क्रांति, सामाजिक क्रांति
— धर्मतंत्र-आधारित विविध माध्यमों से लोकशिक्षण
— गायत्री-सामूहिक विवेकशीलता एवं यज्ञ-सहकारितायुक्त सत्कर्म।
उद्घोष
—हम बदलेंगे-युग बदलेगा, हम सुधरेंगे-युग सुधरेगा
—इक्कीसवीं सदी - उज्ज्वल भविष्य
—सबकी सेवा - सबसे प्रेम।
प्रतीक
लाल मशाल-समग्र क्रान्ति के लिए सामूहिक सशक्त प्रयास-युग शक्ति का विकास।
संविधान
युग निर्माण सत्संकल्प के 18 सूत्र।
ध्रुव मान्यताएँ
—मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है।
—जो जैसा सोचता और करता है, वह वैसा ही बन जाता है।
—नर-नारी परस्पर प्रतिद्वन्द्वी नहीं, पूरक हैं।

इक्कीसवीं सदी का मार्गदर्शक साहित्य : क्रान्तिधर्मी साहित्य।

जीवन निर्माण के चार सूत्र : साधना, स्वाध्याय, संयम, सेवा।

आध्यात्मिक जीवन के तीन आधार : उपासना, साधना, आराधना।

प्रगतिशील जीवन के चार चरण : समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी, बहादुरी।

समर्थ जीवन के चार स्तम्भ : इंद्रिय संयम, अर्थ संयम, समय संयम, विचार संयम।

आत्मिक प्रगति के चार चरण : आत्मसमीक्षा, आत्मसुधार, आत्मनिर्माण, आत्मविकास।

परिवार-निर्माण के पंचशील : श्रमशीलता, शालीनता (शिष्टता), मितव्ययिता, सुव्यवस्था, सहकारिता।

तीन को परिष्कृत करें : स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर।

तीन की साधना करें : ज्ञानयोग, कर्मयोग, भक्तियोग।

तीन का सन्तुलित समन्वय करें : भावना, विचारणा, क्रिया-प्रक्रिया।

तीन का विकास करें : श्रद्धा, प्रज्ञा, निष्ठा।

तीन को सुधारें : गुण, कर्म, स्वभाव।

तीन को सँवारें : चिंतन, चरित्र, व्यवहार।

तीन को त्यागें :

— लोभ, मोह, अहंकार।
— वासना, तृष्णा, अहंता
— पुत्रैषणा, वित्तैषणा, लोकैषणा।

तीन को धारण करें : ओजस्, तेजस्, वर्चस्।

तीन का सम्मान करें : संत, सुधारक, शहीद।

सात आन्दोलन : साधना, शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वावलम्बन, नारी जागरण, पर्यावरण, व्यसन मुक्ति एवं कुरीति उन्मूलन।

तीन अभियान : प्रचारात्मक, रचनात्मक, संघर्षात्मक।

प्रचारात्मक अभियान: जन-जन तक युगनिर्माण का संदेश।
रचनात्मक अभियान : नव सृजन में प्रतिभाओं का रचनात्मक सहयोग।
संघर्षात्मक अभियान : सृजन के मार्ग में आने वाली बाधाओं का निवारण।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]