उषा प्रियंवदा

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उषा प्रियंवदा राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से पद्मभूषण डॉ॰ मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार प्राप्त करते हुए।

उषा प्रियंवदा (जन्म २४ दिसम्बर १९३०) प्रवासी हिंदी साहित्यकार हैं। कानपुर में जन्मी उषा प्रियंवदा ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. तथा पी-एच. डी. की पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यापन किया। इसी समय उन्हें फुलब्राइट स्काॅलरशिप मिली और वे अमरीका चली गईं। अमरीका के ब्लूमिंगटन, इंडियाना में दो वर्ष पोस्ट डाॅक्टरल अध्ययन किया और १९६४ में विस्कांसिन विश्वविद्यालय, मैडिसन में दक्षिण एशियाई विभाग में सहायक प्रोफेसर के पद पर कार्य प्रारंभ किया।[1] आजकल वे सेवानिवृत्त होकर लेखन और भ्रमण कर रही हैं। उषा प्रियंवदा के कथा साहित्य में छठे और सातवें दशक के शहरी परिवारों का संवेदनापूर्ण चित्रण मिलता है। उस समय शहरी जीवन में बढ़ती उदासी, अकेलेपन, ऊब आदि का अंकन करने में उन्होंने अत्यंत गहरे यथार्थबोध का परिचय दिया है।

प्रमुख कृतियाँ[संपादित करें]

  • कहानी संग्रहः वनवास, कितना बड़ा झूठ, शून्य, जिन्दग़ी और गुलाब के फूल(1961), एक कोई दूसरा(1966), फिर वसंत आया (1961), कितना बड़ा झूठ (1972)

धनंजय सिंह (पटना विश्वविद्यालय)

  • उपन्यासः - पचपन खंभे लाल दीवारे (1961) , रुकोगी नहीं राधिका (1967) , शेषयात्रा (1984) , अंतर्वंशी (2000) , भया कबीर उदास (2007) , नदी (2013)।

पुरस्कार व सम्मान[संपादित करें]

वर्ष २००७ के पद्मभूषण डॉ॰ मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार[2] से सम्मानित।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "विस्कांसिन विश्वविद्याल". मूल से 10 जून 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 सितंबर 2012.
  2. "केंद्रीय हिंदी संस्थान". मूल से 4 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 जून 2020.