विकिपीडिया:आज का आलेख - पुरालेख/२००९/जून

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१ जून २००९[संपादित करें]

एलिफेंटा में त्रिमूर्ति
एलिफेंटा में त्रिमूर्ति
एलिफेण्टा भारत में मुम्बई के गेट वे आफ इण्डिया से लगभग १२ किलोमीटर दूर स्थित एक स्थल है जो अपनी कलात्मक गुफ़ाओं के कारण प्रसिद्ध है। यहाँ कुल सात गुफाएँ हैं। मुख्य गुफा में २६ स्तंभ हैं, जिसमें शिव को कई रूपों में उकेरा गया हैं। पहाड़ियों को काटकर बनाई गई ये मूर्तियाँ दक्षिण भारतीय मूर्तिकला से प्रेरित है। इसका ऐतिहासिक नाम घारानगरी है। एलिफेंटा नाम पुर्तगालियों द्वारा यहाँ पर बने पत्थर के हाथी के कारण दिया गया था। यहाँ हिन्दू धर्म के अनेक देवी देवताओं कि मूर्तियाँ हैं। ये मंदिर पहाड़ियों को काटकर बनाये गए हैं। यहाँ भगवान शंकर की नौ बड़ी-बड़ी मूर्तियाँ हैं जो शंकर जी के विभिन्न रूपों तथा क्रियाओं को दिखाती हैं। इनमें शिव की त्रिमूर्ति प्रतिमा सबसे आकर्षक है। यह मूर्ति २३ या २४ फीट लम्बी तथा १७ फीट ऊँची है। इस मूर्ति में भगवान शंकर के तीन रूपों का चित्रण किया गया है। इस मूर्ति में शंकर भगवान के मुख पर अपूर्व गम्भीरता दिखती है। विस्तार में...

२ जून २००९[संपादित करें]

डहेलिया
डहेलिया
डहेलिया बड़े आकार का अनेक रंगों और आकारों में पाया जाने वाला आकर्षक फूल है। यह उष्णकटिबन्धीय शीतोष्ण जलवायु में उगाया जाता है। डहेलिया के लिए सामान्य वर्षा वाली ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है। शुष्क एवं गर्म जलवायु इसकी सफल खेती में बाधक मानी गई है। दूसरी ओर सर्दी और पाले से फसल को भारी क्षति पहुँचाती है। इसके लिए खुली धूप वाली भूमि उत्तम रहती है फूल बड़े आकार के बनते हैं जो देखने में अत्यन्त आकर्षक होते है, जबकि छाया में उगे पौधों के फूल आकार में छोटे और आकर्षक लगते हैं। डहेलिया की सफल खेती के लिए भूमि का चयन एक अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य है। विस्तार में...

३ जून २००९[संपादित करें]

कार्बन का एक बहुरूप हीरा
कार्बन का एक बहुरूप हीरा
पृथ्वी पर पाए जाने वाले तत्वों में कार्बन एक प्रमुख एवं महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। इस रासायनिक तत्त्व का संकेत C तथा परमाणु संख्या ६, मात्रा संख्या १२ एवं परमाणु भार १२.००० है। कार्बन के तीन प्राकृतिक समस्थानिक 6C12, 6C13 एवं 6C14 होते हैं। कार्बन के समस्थानिकों के अनुपात को मापकर प्राचीन तथा पुरातात्विक अवशेषों की आयु मापी जाती है। कार्बन के परमाणुओं में कैटिनेशन नामक एक विशेष गुण पाया जाता है जिसके कारण कार्बन के बहुत से परमाणु आपस में संयोग करके एक लम्बी शृंखला का निर्माण कर लेते हैं। इसके इस गुण के कारण पृथ्वी पर कार्बनिक पदार्थों की संख्या सबसे अधिक है। यह मुक्त एवं संयुक्त दोनों ही अवस्थाओं में पाया जाता है। विस्तार में...

४ जून २००९[संपादित करें]

आवर्त सारणी के जनक मेंडलीफ
आवर्त सारणी के जनक मेंडलीफ
आवर्त सारणी अथवा तत्वों की आवर्त सारणी रासायनिक तत्वों को उनकी संगत विशेषताओं के साथ एक सारणी के रूप में दर्शाने की एक व्यवस्था है। वर्तमान आवर्त सारणी मै ११७ ज्ञात तत्व सम्मिलित हैं। रूसी रसायन-शास्त्री मेंडलीफ (सही उच्चारण- मेन्देलेयेव) ने सन १८६९ में आवर्त नियम प्रस्तुत किया। इसके अनुसार तत्वों के भौतिक और रासायनिक गुण उनके परमाणुभारों के आवर्तफलन होते हैं। अर्थात यदि तत्वों को परमाणु भार के वृद्धिक्रम में रखा जाय तो वो तत्व जिनके गुण समान होते हैं एक निश्चित अवधि के बाद आते हैं। मेंडलीव ने इस सारणी के सहारे तत्वों के भौतिक एवं रासायनिक गुणों के आवर्ती होने के पहलू को प्रदर्शित करने का प्रयत्न किया। १८१५ से १९१३ तक इसमें बहुत से सुधार हुए ताकि नये आविष्कृत तत्वों को उचित स्थान दिया जा सके और सारणी नयी जानकारियों के अनुरूप हो। रसायन शास्त्रियों के लिये आवर्त सारणी अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं उपयोगी है। विस्तार में...

५ जून २००९[संपादित करें]

वृहत मीटरवेव रेडियो टेलिस्कोप
वृहत मीटरवेव रेडियो टेलिस्कोप
वृहत मीटरवेव रेडियो टेलिस्कोप भारत के पुणे शहर से ८० किलोमीटर उत्तर में खोडाड नामक स्थान पर स्थित रेडियो दूरबीनों की विश्व की सबसे विशाल सारणी है। इसकी स्थिति १९° ५'४७.४६6" उत्तरी अक्षांश रेखा तथा ७४° २'५९.०७" पूर्वी देशान्तर रेखा पर है। यह टेलिस्कोप दुनिया की सबसे संवेदनशील दूरबीनों में से एक है। इसका संचालन पुणे विश्वविद्यालय परिसर में स्थित राष्ट्रीय खगोल भौतिकी केन्द्र (एनसीआरए) करता है जो टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान (टी आइ एफ़ आर) का एक हिस्सा है। इस दूरबीन के केन्द्र में वर्ग रूप से १४ डिश हैं तथा तीन भुजाओं का निर्माण १६ डिश से हुआ है, जनमें से प्रत्येक का व्यास ४५ मीटर है। इस प्रकार २५ किलोमीटर क्षेत्र में फैला यह जायंट मीटरवेव रेडियो टेलिस्कोप ३० दूरबीनों का समूह है। विस्तार में...

६ जून २००९[संपादित करें]

तरह-तरह के सजावटी साबुन
तरह-तरह के सजावटी साबुन
साबुन उच्च अणु भार वाले कार्बनिक वसीय अम्लों का सोडियम या पोटैशियम लवण है। मृदु साबुन का सूत्र C17H35COOK एवं कठोर साबुन का सूत्र C17H35COONa है। साबुनीकरण की क्रिया में वनस्पति तेल या वसा एवं कास्टिक सोडा या कास्टिक पोटाश के जलीय घोल को गर्म करके रासायनिक प्रतिक्रिया के द्वारा साबुन का निर्माण होता तथा ग्लीसराल मुक्त होता है।
वसा या वसीय अम्ल + NaOH या KOH → साबुन + ग्लीसराल
साधारण तापक्रम पर साबुन नरम ठोस एवं अवाष्पशील पदार्थ है। यह कार्बनिक मिश्रण जल में घुलकर झाग उत्पन्न करता है। इसका जलीय घोल क्षारीय होता है जो लाल लिटमस को नीला कर देता है। विस्तार में...

७ जून २००९[संपादित करें]

लाल बासमती चावल
लाल बासमती चावल
बासमती भारत की लम्बे चावल की एक उत्कृष्ट किस्म है। इसका वैज्ञानिक नाम है ओराय्ज़ा सैटिवा। यह अपने खास स्वाद और मोहक खुशबू के लिये प्रसिद्ध है। इसका नाम बासमती अर्थात खुशबू वाली किस्म होता है। भारत इस किस्म का सबसे बड़ा उत्पादक है, जिसके बाद पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश आते हैं। पारंपरिक बासमती पौधे लम्बे और पतले होते हैं। इनका तना तेज हवाएं भी सह नहीं सकता है। इनमें अपेक्षाकृत कम, परंतु उच्च श्रेणी की पैदावार होती है। यह अन्तर्राष्ट्रीय और भारतीय दोनों ही बाजारों में ऊँचे दामों पर बिकता है। बासमती के दाने अन्य दानों से काफी लम्बे होते हैं। पकने के बाद, ये आपस में लेसदार होकर चिपकते नहीं, बल्कि बिखरे हुए रहते हैं। यह चावल दो प्रकार का होता है :- श्वेत और भूरा। कनाडियाई मधुमेह संघ के अनुसार, बासमती चावल में मध्यम ग्लाइसेमिक सूचकांक ५६ से ६९ के बीच होता है , जो कि इसे मधुमेह रोगियों के लिये अन्य अनाजों और श्वेत आटे की अपेक्षा अधिक श्रेयस्कर बनाता है। विस्तार में...

८ जून २००९[संपादित करें]

धब्बेदार घृत कुमारी
धब्बेदार घृत कुमारी
घृत कुमारी या अलो वेरा, जिसे क्वारगंदल, गिलोय या ग्वारपाठा के नाम से भी जाना जाता है, एक औषधीय पौधे के रूप में विख्यात है। इसकी उत्पत्ति संभवतः उत्तरी अफ्रीका में हुई है। विश्व में इसकी २७५ प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इसे सभी सभ्यताओं ने एक औषधीय पौधे के रूप मे मान्यता दी है और इस प्रजाति के पौधों का इस्तेमाल पहली शताब्दी ईसवी से औषधि के रूप में किया जा रहा है। इसका उल्लेख आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों मे मिलता है। घृत कुमारी का पौधा बिना तने का या बहुत ही छोटे तने का एक गूदेदार और रसीला पौधा होता है जिसकी लम्बाई ६०-१०० सें.मी तक होती है। इसका फैलाव नीचे से निकलती शाखाओं द्वारा होता है। इसकी पत्तियां भालाकार, मोटी और मांसल होती हैं जिनका रंग, हरा, हरा-स्लेटी होने के साथ कुछ किस्मों मे पत्ती के ऊपरी और निचली सतह पर सफेद धब्बे होते हैं। पत्ती के किनारों पर की सफेद छोटे कांटों की एक पंक्ति होती है। ग्रीष्म ऋतु में पीले रंग के फूल उत्पन्न होते हैं।विस्तार में...

९ जून २००९[संपादित करें]

डा० रामदरश मिश्र हिन्दी के प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं। ये जितने समर्थ कवि हैं उतने ही समर्थ उपन्यासकार और कहानीकार भी। इनकी लंबी साहित्य-यात्रा समय के कई मोड़ों से गुजरी है और नित्य नूतनता की छवि को प्राप्त होती गई है। ये किसी वाद के कृत्रिम दबाव में नहीं आये बल्कि उन्होंने अपनी वस्तु और शिल्प दोनों को सहज ही परिवर्तित होने दिया। गीत, नई कविता, छोटी कविता, लंबी कविता यानी कि कविता की कई शैलियों में उनकी सर्जनात्मक प्रतिभा ने अपनी प्रभावशाली अभिव्यक्ति के साथ-साथ गजल में भी उन्होंने अपनी सार्थक उपस्थिति रेखांकित की। इसके अतिरक्त उपन्यास, कहानी, संस्मरण, यात्रावृत्तांत, डायरी, निबंध आदि सभी विधाओं में उनका साहित्यिक योगदान बहुमूल्य है। ये हिन्दी साहित्य संसार के बहुआयामी रचनाकार हैं। उन्होंने गद्य एवं पद्य की लगभग सभी विधाओं में सृजनशीलता का परिचय दिया है और अनूठी रचनाएँ समाज को दी है। विस्तार में...

१० जून २००९[संपादित करें]

ऑर्कुट
ऑर्कुट
ऑर्कुट इन्टरनेट पर एक प्रसिद्ध सामाजिक तंत्र-व्यवस्था समूह यानि सामाजिक नेटवर्क है जो गूगल समूह द्वारा संचालित किया जा रहा है। इसका नाम गूगल समूह के एक कर्मचारी ऑर्कुट बुयुक्कॉक्टेन के नाम पर पड़ा। इसकी सेवा में कहा गया है कि यह उपयोगकर्ता को नए दोस्त बनाने और वर्तमान संबंधों को बनाए रखने में मदद करने के लिए खोज किया गया है। पहले इसमें खाता खोलने के लिए किसी पूर्व सदस्य के निमंत्रण कि आवश्यकता होती थी पर अक्टूबर २००६ के बाद से बिना निमंत्रण के खाता खोलने कि सुविधा दे दी गई। ऑर्कुट का इस्तेमाल सबसे ज्यादा ब्राजील में होता है जबकि भारत दूसरे स्थान पर है। ऑर्कुट के उपयोगकर्ता सबसे ज्यादा ब्राजील (५१.१८%), संयुक्त राज्य अमेरिका (१७.४१%) और भारत (१७.४१%) में हैं। सबसे ज्यादा उपयोग करने वाले १८-२५ वर्ष के लोग हैं। यहां सदस्य अपनी प्रोफाइल बनाकर चित्र, वीडियो अपलोड कर सकते हैं, चैट या संदेश भी बाँट सकते हैं। विस्तार में...

११ जून २००९[संपादित करें]

वर्तनी का अर्थ भाषा में किसी शब्द को वर्णों से व्यक्त करने की क्रिया को कहते हैं। हिंदी भाषा का पहला और बड़ा गुण ध्वन्यात्मकता है, जिससे इसमें उच्चरित ध्वनियों को व्यक्त करना बड़ा सरल है। हिंदी में वर्तनी की आवश्यकता काफी समय तक नहीं समझी गई; जबकि अंग्रेजी व उर्दू आदि अन्य कई भाषाओं में इसका महत्त्व था। किंतु क्षेत्रीय व आंचलिक उच्चारण के प्रभाव, अनेकरूपता, भ्रम, परंपरा के निर्वाह आदि के कारण जब यह लगा कि एक ही शब्द की कई वर्तनियाँ मिलती हैं तो इनको व्यक्त करने के लिए किसी सार्थक शब्द की तलाश हुई। इस कारण से मानकीकरण की आवश्यकता महसूस की गई। इस अर्थ में वर्तनी शब्द मान्य हो गया और केंद्रीय हिंदी निदेशालय, ने इस शब्द को मान्यता दी, एवं एकरूपता की दृष्टि से कुछ नियम भी स्थिर किए हैं। हिन्दी के, कई राज्यों की राजभाषा स्वीकृत हो जाने के फलस्वरूप भारत के भीतर, बाहर इसे सीखने वालों की संख्या में पर्याप्त वृद्धि हो जाने से हिन्दी वर्तनी की मानक पद्धति निर्धारित करना आवश्यक और कालोचित लगा, ताकि हिन्दी शब्दों की वर्तनियों में अधिकाधिक एकरूपता लाई जा सके। तब शिक्षा मंत्रालय ने १९६१ में हिन्दी वर्तनी की मानक पद्धति निर्धारित करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति द्वारा हिन्दी भाषा के मानकीकरण की सरकारी प्रक्रिया का प्रारंभ किया। इस सतत प्रक्रिया के मुख्य निर्देश तय हो चुके हैं जो भारत के सभी सरकारी कार्यालयों में प्रसारित किए गए हैं। इनका अनुपालन सुनिश्चित करने हेतु भी संस्थान कार्यरत है। विस्तार में...

१२ जून २००९[संपादित करें]

अकबर महान
अकबर महान
जलाल उद्दीन मोहम्मद अकबर मुगल वंश का तीसरा शासक था। अकबर को मुगल-ए-आज़म के नाम से भी जाना जाता है। सम्राट अकबर मुगल साम्राज्य के संस्थापक जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर का पोता और नासिरुद्दीन हुमायूं और हमीदा बानो का पुत्र था। बाबर का वंश तैमूर और मंगोल नेता चंगेज खां से था अर्थात उसके वंशज तैमूर लंग के खानदान से थे और मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था। बादशाहों में अकबर ही एक ऐसा बादशाह था, जिसे हिन्दू मुस्लिम दोनों वर्गों का बराबर प्यार और सम्मान मिला। उसने हिन्दू-मुस्लिम संप्रदायों के बीच की दूरियां कम करने के लिए दीन-ए-इलाही नामक धर्म की स्थापना की। उसके दरबार में नौ बुद्घिमान प्रतिभावान व्यक्ति नवरत्न कहलाते थे। उसका दरबार सबके लिए हर समय खुला रहता था। उसके दरबार में मुस्लिम सरदारों की अपेक्षा हिन्दू सरदार अधिक थे। अकबर ने हिन्दुओं पर लगने वाला जज़िया ही नहीं समाप्त किया ,बल्कि ऐसे अनेक कार्य किए जिनके कारण हिन्दू और मुस्लिम दोनों उसके प्रशंसक बने। वह निश्चय ही एक महान सम्राट था। विस्तार में...

१३ जून २००९[संपादित करें]

महाकालेश्वर मंदिर, उज्जैन
महाकालेश्वर मंदिर, उज्जैन
महाकालेश्वर मंदिर भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मध्यप्रदेश राज्य के उज्जैन नगर में स्थित, महाकालेश्वर भगवान का प्रमुख मंदिर है। पुराणों, महाभारत और कालिदास जैसे महाकवियों की रचनाओं में इस मंदिर का मनोहर वर्णन मिलता है। स्वयंभू, भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण महाकालेश्वर महादेव की अत्यंत पुण्यदायी महत्ता है। इसके दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है, ऐसी मान्यता है। महाकवि कालिदास ने मेघदूत में उज्जयिनी की चर्चा करते हुए इस मंदिर की प्रशंसा की है। १२३५ ई. में इल्तुत्मिश के द्वारा इस प्राचीन मंदिर का विध्वंस किए जाने के बाद से यहां जो भी शासक रहे, उन्होंने इस मंदिर के जीर्णोद्धार और सौन्दर्यीकरण की ओर विशेष ध्यान दिया।  विस्तार में...

१४ जून २००९[संपादित करें]

आचार्य रामचंद्र शुक्ल
आचार्य रामचंद्र शुक्ल
आचार्य रामचंद्र शुक्ल (४ अक्तूबर, १८८२-१९४२) बीसवीं शताब्दी के हिन्दी के प्रमुख साहित्यकार थे। उनका जन्म बस्ती, उत्तर प्रदेश मे हुआ था। शुक्ल जी हिंदी साहित्य के कीर्ति स्तंभ हैं। हिंदी में वैज्ञानिक आलोचना का सूत्रपात उन्हीं के द्वारा हुआ। वे श्रेष्ठ और मौलिक निबंधकार भी थे। उन्होंने जिस रूप में भावों और मनोविकारों को व्यक्त किया वे सर्वथा अभिनव और अनूठे हैं। इनकी कृतियां मौलिक, संपादित तथा अनूदित सभी थीं। इनकी श्रेष्ठ कृतियों में से कुछ हैं: हिंदी साहित्य का इतिहास चिंतामणि हिंदी शब्द सागर, नागरी प्रचारिणी पत्रिका, चिंतामणि, मित्रता, तथा भ्रमर गीत सार। उन्होंने अंग्रेज़ी से विश्व-प्रबंध, आदर्श जीवन, मेगस्थनीज का भारतवर्षीय वर्णन, कल्पना का आनंद आदि रचनाओं का अनुवाद किया। १९४० में हृदय की गति रुक जाने से शुक्ल जी का देहांत हो गया। विस्तार में...

१५ जून २००९[संपादित करें]

कार्ल लीनियस
कार्ल लीनियस
कार्ल लीनियस या कार्ल वॉन लिने एक स्वीडिश वनस्पतिशास्त्री, चिकित्सक और जीव विज्ञानी थे, जिन्होने द्विपद नामकरण की नींव रखी थी। इन्हें आधुनिक वर्गिकी का जनक कहते हैं। इनका जन्म दक्षिण स्वीडन के ग्रामीण इलाके स्मालैंड में हुआ था। लीनियस ने उप्साला विश्वविद्यालय से अपनी उच्च शिक्षा ग्रहण की थी और १७३० में वहाँ पर वनस्पति विज्ञान के व्याख्याता हो गए। फिर ये स्वीडन आये और उप्साला में प्रोफेसर बन गये। १७४० के दशक मे इन्हें जीवों और पादपों की खोज और वर्गीकरण के लिए कई यात्राओं पर भेजा गया। १७५० और १७६० के दशकों में, उन्होने जीवों और पादपों और खनिजों की खोज व वर्गीकरण का काम जारी रखा और इस संबंध मे कई पुस्तके भी प्रकाशित कीं। अपनी मृत्यु के समय लीनियस यूरोप के सबसे प्रशंसित वैज्ञानिकों मे से एक थे। विस्तार में...

१६ जून २००९[संपादित करें]

मदुरई
मदुरई
मदुरई तमिल नाडु राज्य में वैगई नदी के किनारे स्थित नगर है। लगभग २५०० वर्ष पुराना यह स्थान राज्य का एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और व्यावसायिक केंद्र है। मदुरै कभी तमिल शिक्षा का मुख्य केंद्र था और आज भी यहां शुद्ध तमिल बोली जाती है। यह नगर जिले का व्यापारिक, औद्योगिक तथा धार्मिक केंद्र है। उद्योगों में सूत कातने, रँगने, मलमल बुनने, लकड़ी पर खुदाई का काम तथा पीतल का काम होता है। आज भी अपनी समृद्ध परंपरा व संस्कृति को संरक्षित किए हुए इस शहर के प्राचीन यूनान एवं रोम की सभ्यताओं से ५५० ई.पू. से व्यापारिक संपर्क थे। यहां के मुख्य आकर्षण मीनाक्षी मंदिर के ऊंचे गोपुरम और दुर्लभ मूर्तिशिल्प श्रद्धालुओं व सैलानियों को आकर्षित करते हैं। इसे मंदिरों का शहर भी कहते हैं। मदुरई शहर मंदिर को घेरे हुए बसा हुआ है। पूरा शहर एक कमल के रूप में रचा हुआ है।  विस्तार में...

१७ जून २००९[संपादित करें]

वास्को द गामा
वास्को द गामा
डॉम वास्को द गामा (लगभग १४६०-२४ दिसंबर, १५२४) एक पुर्तगाली अन्वेषक, यूरोपीय खोज युग के सबसे सफल खोजकर्ताओं में से एक, और यूरोप से भारत सीधी यात्रा करने वाले जहाज़ों का कमांडर था, जो केप ऑफ गुड होप, अफ्रीका के दक्षिणी कोने से होते हुए भारत पहुँचा। वह जहाज़ द्वारा तीन बार भारत आया। उसकी जन्म की सही तिथि तो अज्ञात है लेकिन यह कहा जाता है की वह १४९० के दशक में साइन, पुर्तगाल में एक योद्धा था। ८ जुलाई, १४९७ के दिन चार जहाजों सहित उसकी प्रथम भारत यात्रा लिस्बन से आरंभ हुई व २० मई, १४९८ के दिन कालीकट पहुंचे। इसके बाद १५०३ एवं १५३४ में भारत की दो और यात्राएं कीं। उस समय पुर्तगाल की भारत में उपनिवेश बस्ती के वाइसरॉय के रूप में आया, पर वहाँ पहुँचने के कुछ समय बाद उसकी मृत्यु हो गई।

 विस्तार में...

१८ जून २००९[संपादित करें]

मोदीनगर
मोदीनगर
मोदीनगर उत्तर प्रदेश राज्य के गाजियाबाद जिले में एक तहसील है जो दिल्ली से लगभग ५० कि॰मी॰ उत्तर दिशा में स्थित है। यह निकटवर्ती शहरों मेरठगाजियाबाद से २४ कि॰मी॰ दूर है। यह उद्योगपति मोदी का गृह स्थान है और यहीं पर शहर के संस्थापक रायबहादुर गूजर मल मोदी ने १९३३ में मोदी उद्योग की नींव रखी थी। इस कारण यह एक बड़ा औद्योगिक क्षेत्र रहा है। पिछले कुछ वर्षों में मोदीनगर की उन्नति शिक्षा के क्षेत्र में भी द्रुत गति से हुई है। मोदीनगर में औद्योगिक क्रांति तो आई, किंतु शहर हरे भरे खेतों एवं बागों आदि से घिरा रहने के कारण यहां पर्यावरण का सान्निध्य भी भरपूर मिलता है। शहर में बड़े इंजीनियरी कॉलिज व प्रबंधन संस्थान हैं, जो मोदी उद्योग-गृह द्वारा १९८० के दशक में स्थापित किए गए थे। मोदीनगर का प्रसिद्धतम स्थान है, लक्ष्मी नारायण मंदिर, जिसे स्थानीय लोग मोदी मंदिर कहते हैं।  विस्तार में...

१९ जून २००९[संपादित करें]

चीन की महान दीवार
चीन की महान दीवार
चीन की महान दीवार मिट्टी और पत्थर से बनी एक किलेनुमा दीवार है जिसे चीन के विभिन्न शासको के द्वारा उत्तरी हमलावरों से रक्षा के लिए पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर सोलहवी शताब्दी तक बनवाया गया। यह अकेला मानव निर्मित ढांचा है जिसे अन्तरिक्ष से भी देखा जा सकता है। इसका विस्तार पूर्व में शानहाइगुआन से पश्चिम में लोप नुर तक है, और कुल लंबाई लगभग ६७०० कि॰मी॰ (४१६० मील) है। पांचवीं शताब्दी से बहुत बाद तक ढेरों दीवारें बनीं, जिन्हें मिलाकर चीन की दीवार कहा गया। प्रसिद्धतम दीवारों में से एक २२०-२०६ ई.पू. में चीन के प्रथम सम्राट किन शी हुआंग ने बनवाई थी। अनुमानतः इस महान दीवार निर्माण परियोजना में लगभग २० से ३० लाख लोगों ने अपना जीवन लगा दिया था। यह दीवार विश्व धरोहर घोषित है।  विस्तार में...

२० जून २००९[संपादित करें]

साँची का स्तूप
साँची का स्तूप
सांची भारत के मध्य प्रदेश राज्य के रायसेन जिले, में स्थित एक छोटा सा गांव है। यह भोपाल से ४६ कि॰मी॰ पूर्वोत्तर में, तथा बेसनगर और विदिशा से १० कि॰मी॰ की दूरी पर मध्य-प्रदेश के मध्य भाग में स्थित है। यहां कई बौद्ध स्मारक हैं, जो तीसरी शताब्दी ई.पू से बारहवीं शताब्दी के बीच के काल के हैं। सांची में रायसेन जिले की एक नगर पंचायत है। यहीं एक महान स्तूप स्थित है। इस स्तूप को घेरे हुए कई तोरण भी बने हैं। यह प्रेम, शांति, विश्वास और साहस के प्रतीक हैं। सांची का महान मुख्य स्तूप, मूलतः सम्राट अशोक महान ने तीसरी शती, ई.पू. में बनवाया था। इसके केन्द्र में एक अर्धगोलाकार ईंट निर्मित ढांचा था, जिसमें भगवान बुद्ध के कुछ अवशेष रखे थे। इसके शिखर पर स्मारक को दिये गये ऊंचे सम्मान का प्रतीक रूपी एक छत्र था। यह स्मारक १९८९ में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित हुआ है।  विस्तार में...

२१ जून २००९[संपादित करें]

हरिद्वार में गंगा
हरिद्वार में गंगा
गंगा भारत की दीर्घतम एवं सबसे महत्वपूर्ण नदी है। इसकी कुल लम्बाई २,५१० कि.मी है जिसमें से २,०७१ कि.मी भारत के अन्तर्गत है तथा शेष भाग बांग्लादेश के अन्तर्गत है। गंगा अपनी २,५१० कि.मी की लंबी यात्रा भारत के उत्तरांचल राज्य में पश्चिमी हिमालय से आरंभ करके बंगाल की खाड़ी के सुंदरवन मुहाने (डेल्टा) में समाप्त करती है। गंगा नदी का अपवाह तंत्र उत्तरी भारत का महत्वपूर्ण नदी तंत्र है। यह अपनी सहायक नदियों के साथ दस लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के उपजाऊ मैदान की रचना करतीं है, जहां बहुत ही सघन जनसंख्या निवास करती है। इस नदी की अधिकतम गहराई १०० फीट (३१ मी) है। हिंदू धर्म में इसे एक पवित्र नदी माना जाता है तथा इसकी उपासना एक देवी के रूप में की जाती है। गंगा नदी के कई प्रतीकात्मक अर्थों का वर्णन जवाहर लाल नेहरू ने अपनी पुस्तक भारत की खोज (डिस्कवरी ऑफ इंडिया) में किया है। नवंबर,२००८ में भारत सरकार ने गंगा को भारत की राष्ट्रीय नदी घोषित करने का निर्णय लिया है।  विस्तार में...

२२ जून २००९[संपादित करें]

श्री जगन्नाथ मंदिर एक हिन्दू मंदिर है, जो भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण) को समर्पित है। यह भारत के उड़ीसा राज्य के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित है। जगन्नाथ शब्द का अर्थ जगत के स्वामी होता है। इनकी नगरी ही जगन्नाथपुरी या पुरी कहलाती है। इस मंदिर को हिन्दुओं के चार धाम में से एक गिना जाता है। यह वैष्णव सम्प्रदाय का मंदिर है एवं भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है। इस मंदिर का वार्षिक रथ यात्रा उत्सव प्रसिद्ध है। इसमें मंदिर के तीनों मुख्य देवता, भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भ्राता बलभद्र और भगिनी सुभद्रा तीनों, तीन अलग-अलग भव्य और सुसज्जित रथों में विराजमान होकर नगर की यात्रा को निकलते हैं। मध्य-काल से ही यह उत्सव अतीव हर्षोल्लस के साथ मनाया जाता है। इसके साथ ही यह उत्सव भारत के ढेरों वैष्णव कृष्ण मंदिरों में मनाया जाता है, एवं यात्रा निकाली जाती है।  विस्तार में...

२३ जून २००९[संपादित करें]

महाविहार में वेसाक उत्सव
महाविहार में वेसाक उत्सव
बुद्ध जयन्ती (जिसे बुद्ध पूर्णिमा, वेसाक या हनमतसूरी भी कहते हैं) बौद्ध धर्म में आस्था रखने वालों का एक प्रमुख त्यौहार है। बौद्ध अनुयायियों के अलावा हिन्दू लोग भी इसे मनाते हैं। बुद्ध जयन्ती वैशाख पूर्णिमा को मनाया जाता हैं। इस दिन ही गौतम बुद्ध का स्वर्गारोहण समारोह भी मनाया जाता है। इस दिन ५६३ ई.पू. में बुद्ध स्वर्ग से संकिसा मे अवतरित हुए थे। इस पूर्णिमा के दिन ही ४८३ ई. पू. में ८० वर्ष की आयु में, देवरिया जिले के कुशीनगर में निर्वाण प्राप्त किया था। भगवान बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण ये तीनों एक ही दिन अर्थात वैशाख पूर्णिमा के दिन ही हुए थे। इसी दिन भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। आज बौद्ध धर्म को मानने वाले विश्व में ५० करोड़ से अधिक लोग इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। यह त्यौहार भारत सहित दक्षिण पूर्व एशिया के बहुत से देशों में मनाया जाता है।  विस्तार में...

२४ जून २००९[संपादित करें]

सुंदरवन डेल्टा के बीच गंगासागर स्थित है।
सुंदरवन डेल्टा के बीच गंगासागर स्थित है।
गंगासागर बंगाल की खाड़ी के कॉण्टीनेण्टल शैल्फ में कोलकाता से १५० कि॰मी॰ दक्षिण में ३०० वर्ग कि॰मी॰ का एक द्वीप है। यह भारत के अधिकार क्षेत्र में और पश्चिम बंगाल सरकार के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन है। इसमें ४३ गांव हैं, जिनकी जनसंख्या १,६०,००० है। यहीं गंगा नदी का सागर से संगम माना जाता है।इस द्वीप में ही रॉयल बंगाल टाइगर का प्राकृतिक आवास है। यहां मैन्ग्रोव की दलदल, जलमार्ग तथा छोटी छोटी नदियां, नहरें हीं। इस द्वीप पर ही प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ है। प्रत्येक वर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर लाखों हिन्दू श्रद्धालुओं का तांता लगता है, जो गंगा नदी के सागर से संगम पर नदी में स्नान करने के इच्छुक होते हैं। यह मेला महाकुंभ के बाद मनुष्यों का दूसरा सबसे बड़ा मेला है। यहाँ एक मंदिर भी है जो कपिल मुनि के प्राचीन आश्रम स्थल पर बना है।  विस्तार में...

२५ जून २००९[संपादित करें]

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विनायक दामोदर सावरकर भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के अग्रिम पंक्ति के सेनानी और प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे। उन्हें प्रायः वीर सावरकर के नाम से सम्बोधित किया जाता है। हिन्दू राष्ट्र की राजनीतिक विचारधारा -हिन्दुत्व को विकसित करने का बहुत बड़ा श्रेय वीर सावरकर को जाता है। ये न केवल स्वाधीनता-संग्राम के एक तेजस्वी सेनानी थे अपितु महान क्रांतिकारी, चिंतक, सिद्धहस्त लेखक, कवि, ओजस्वी वक्ता तथा दूरदर्शी राजनेता भी थे। वे एक ऐसे इतिहासकार भी थे जिन्होंने हिन्दू राष्ट्र की विजय के इतिहास को प्रमाणिक ढंग से लिपिबद्ध किया है। उन्होंने १८५७ के प्रथम स्वातंत्र्य समर का सनसनीखेज व खोजपूर्ण इतिहास लिख कर ब्रिटिश शासन को हिला डाला था। सेल्यूलर जेल में रहते हुए उन्होंने बंदियों को शिक्षित करने का काम तो किया ही, साथ ही साथ वहां हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु काफी प्रयास किया। विस्तार में...

२६ जून २००९[संपादित करें]

श्री चैतन्य महाप्रभु
श्री चैतन्य महाप्रभु
चैतन्य महाप्रभु (१८ फरवरी, १४८६-१५३४) वैष्णव धर्म के भक्ति योग के परम प्रचारक एवं भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में से एक हैं। इन्होंने वैष्णवों के गौड़ीय संप्रदाय की आधारशिला रखी, भजन गायकी की एक नयी शैली को जन्म दिया तथा राजनैतिक अस्थिरता के दिनों में हिंदू-मुस्लिम एकता की सद्भावना को बल दिया, जाति-पांत, ऊंच-नीच की भावना को दूर करने की शिक्षा दी तथा विलुप्त वृंदावन को फिर से बसाया और शेष जीवन वहीं रहे। उनके दिए महामंत्र नाम संकीर्तन का अत्यंत व्यापक व सकारात्मक प्रभाव आज पश्चिमी जगत तक में है। कहते हैं, कि यदि गौरांग ना होते तो वृंदावन आज तक एक मिथक ही होता। वैष्णव लोग तो इन्हें श्रीकृष्ण का राधा रानी के संयोग का अवतार मानते हैं। गौरांग पर बहुत से ग्रंथ लिखे गए हैं, जिनमें से प्रमुख है चैतन्य चरितामृत, चैतन्य भागवत तथा चैतन्य मंगल। विस्तार में...

२७ जून २००९[संपादित करें]

कोणार्क सूर्य मंदिर
कोणार्क सूर्य मंदिर
कोणार्क का सूर्य मंदिर (ब्लैक पगोडा), उड़ीसा राज्य के पुरी नामक शहर में स्थित है। इसे लाल बलुआ पत्थर एवं काले ग्रेनाइट पत्थर से १२३६-१२६४ ई.पू. में गंग वंश के राजा नृसिंहदेव द्वारा बनवाया गया था। यह मंदिर, भारत की सबसे प्रसिद्ध स्थलों में से एक है। इसे युनेस्को द्वारा सन १९८४ में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है। कलिंग शैली में निर्मित यह मंदिर सूर्य देव(अर्क) के रथ के रूप में निर्मित है। इस को पत्थर पर उत्कृष्ट नक्काशी करके बहुत ही सुंदर बनाया गया है। संपूर्ण मंदिर स्थल को एक बारह जोड़ी चक्रों वाले, सात घोड़ों से खींचे जाते सूर्य देव के रथ के रूप में बनाया है। मंदिर अपनी कामुक मुद्राओं वाली शिल्पाकृतियों के लिये भी प्रसिद्ध है। आज इसका काफी भाग ध्वस्त हो चुका है। इसका कारण वास्तु दोष एवं मुस्लिम आक्रमण रहे हैं। यहां सूर्य को बिरंचि-नारायण कहते थे। विस्तार में...

२८ जून २००९[संपादित करें]

दशहरे पर रावण-दहन
दशहरे पर रावण-दहन
दशहरा (विजयदशमी या आयुध-पूजा) हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। अश्विन मास के शुक्ल दशमी को इसका आयोजन होता है। भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था। इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग नया कार्य प्रारम्भ करते हैं, शस्त्र-पूजा की जाती है। प्राचीन काल में राजा इस दिन विजय की प्रार्थना कर रण-यात्रा पर निकलते थे। इस दिन जगह-जगह मेले लगते हैं। रामलीला का आयोजन होता है। रावण का विशाल पुतला बनाकर उसे जलाया जाता है। विजयदशमी भगवान राम की विजय या दुर्गा पूजा के रूप में मनाएं, दोनों ही रूपों में यह शक्ति-पूजा का पर्व है, शस्त्र पूजन की तिथि है, हर्ष और उल्लास तथा विजय का पर्व है। भारतीय संस्कृति वीरता की पूजक है, शौर्य की उपासक है। व्यक्ति और समाज के रक्त में वीरता प्रकट हो इसलिए दशहरे का उत्सव रखा गया है। यह पर्व दस प्रकार के पापों को काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है। विस्तार में...

२९ जून २००९[संपादित करें]

डॉ॰केशव बलीराम हेडगेवार
डॉ॰केशव बलीराम हेडगेवार
केशव बलीराम हेडगेवार ( १ अप्रैल, १८८९ - २१ जून १९४०) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक एवं क्रांतिकारी थे। उनका जन्म १ अप्रैल, १८८९ को महाराष्ट्र के नागपुर जिले में पंडित बलिराम पंत हेडगेवार के घर हुआ था। इनकी माता रेवतीबाई एक सहृदय महिला थीं। केशव बाल्यकाल से ही क्रांतिकारक विचारों धनी थे। केशवराव ने कलकत्ता मेडिकल कॉलेज से प्रथम श्रेणी में डॉक्टरी की परीक्षा भी उत्तीर्ण की, किंतु देश-सेवा के लिए नौकरी का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया। लोकमान्य तिलक की मृत्यु के बाद केशव कॉग्रेस और हिन्दू महासभा दोनों में काम करते रहे। गांधीजी के अहिंसक असहयोग आन्दोलन और सविजय अवज्ञा आंदोलनों में भाग लिया, किंतु ख़िलाफ़त आंदोलन की आलोचना की। नागपुर में १९२३ के दंगों में के दौरान इन्होंने डॉक्टर मुंजे के साथ सक्रिय सहयोग किया। डॉ॰साहब ऐसे व्यक्ति थे, जिसने व्यक्ति की क्षमताओं को उभारने के लिए नए तौर-तरीके विकसित किए। १९२५ को दशहरे के दिन इन्होने नागपुर मे राष्टीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की। डॉ॰साहब १९२५ से १९४० तक, यानि मृत्यु पर्यन्त इसके सरसंघचालक रहे। विस्तार में...

३० जून २००९[संपादित करें]

विश्व का सबसे लंबा गलियारा, रामेश्वरम मंदिर में
विश्व का सबसे लंबा गलियारा, रामेश्वरम मंदिर में
रामेश्वरम तीर्थ चेन्नई से सवा चार सौ मील दक्षिण में स्थित द्वीप पर हिंदुओं का एक पवित्र तीर्थ है। यह तमिल नाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है। यह तीर्थ हिन्दुओं के चार धामों में से एक है। इसके अलावा यहां स्थापित शिवलिंग द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। भारत के उत्तर मे काशी की जो मान्यता है, वही दक्षिण में रामेश्वरम की है। यह हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरा हुआ एक सुंदर शंख आकार द्वीप है। बहुत पहले यह द्वीप भारत की मुख्य भूमि के साथ जुड़ा हुआ था, परन्तु बाद में सागर की लहरों ने इस मिलाने वाली कड़ी को काट डाला, जिससे वह चारों ओर पानी से घिरकर टापू बन गया। यहां भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करने से पूर्व एक पत्थरों के सेतु का निर्माण करवाया था, जिसपर चढ़कर वानर सेना लंका पहुंची व वहां विजय पाई। बाद में राम ने विभीषण के अनुरोध पर धनुषकोटि नामक स्थान पर यह सेतु तोड़ दिया था। आज भी इस ३० मील (४८ कि.मी) लंबे आदि सेतु के अवशेष सागर में दिखाई देते हैं। यहां के मंदिर का तीसरा प्राकार विश्व का सबसे लंबा गलियारा है। विस्तार में...