सतपंथ

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सतपन्थ अनादि काल से चला आ रहा एक धर्म है।


सतपंथ धर्म अनादिकाळथी चालतो आवेलो धर्म छे तेनु अंतरंग एक ज होय छे. मात्र तेनुं ब्रह्मस्वरूप पिरिस्थती मुजब दरेक वखते बदलाय छे.सत्युगमां ब्रह्मदेवे स्थापना करेलो सतपंथ युगधर्म त्रेतायुगमां ते वखतनी पिरिस्थित प्रमाणे फेरफार करी वशिस्ठ मुनिए जगतमां आगळ मूकयो अने व्यासजीए द्रापरयुगनो सतपंथ धर्म ते युग प्रमाणे फेरफार साथे मूकयो.हाल कळयुगमां ए ज सतपंथ युगधर्म पिरिस्थती मुजब योग्य फेरफार करी युगगुरू श्री इमामशाह महाराजे आ कळयुगमां दुनिया आगळ मूकयो छे.आ रीते सत्युग, त्रेतायुग, द्रापरयुगमां जगतनां उध्धार माटे अनुक्रमे सदगुरू ब्रह्मा, अमरतेज, विसष्ठ अने व्यासजी जे ते युगमां सद्गुरू थइ गया। तेम कळीयुगमां सद्गुरू श्री इमामशाह महाराज अवतर्या छे


सतपंथ धर्म क्या है[संपादित करें]

सर्वधर्म नुं मूळ सत्य पर आधारित छे, आ अिद्वतीय सत्य छे. जे रीते एक नानु बीज मोटा वृक्षनो आधार छे तेज प्रकारे सुक्ष्म महान सत्य) आत्मा (ने ओळखवानां मार्गने सूफी संत इमामशाह महाराजए सतपंथ नाम आप्यु छे. (ॐ) ओम प्रणव ब्रह्मनुं स्मरण करवानी साथे जयोति स्वरूप परब्रह्मनुं ध्यान करवानुं सतपंथ धर्ममां बताव्युं छे.सूफी संत इमामशाह महाराजए मानव जीवननो अंतिम ध्येय मोक्ष प्राप्ति बताव्यो छे.मोक्षनी व्याख्या सूफी संतए भकतोने मात्र सोळ सरळ शब्दो किलतारक मंत्र तरीके नीचे मुजब करी छे. ॐ श्री निष्कलंकीनारायणाय नमो नम: उपरोकत मंत्रनो जाप अने चिंतन करवाथी जीवात्माने संसारनी मोहमायाथी छूटकारो आपी परब्रह्मनी प्राप्ति थाय छे.

सूफी संत इमामशाह महाराजए मूळबंध ग्रंथ मां तत्व दर्शननी रचना करी हती.जेमा मनिचन्तामणी, मनिचतवरणी, योगवाणी, गुरूवाणी, आगमवाणी, अमृतवाणी, शिक्षापत्री, कुंभकळश, वारियज्ञनुं तत्वज्ञान तथा आत्मज्ञाननो समावेश कर्यो छे.सूफी संतए वारियज्ञमां नव अवतारोने वंदन तथा दशमा अवतार श्री निष्कलंकी नारायणनी पूजा करवानो आदेश आप्यो छे. जेमा पांच देव, ब्रह्मा, विष्णु, महेश, सक्तीमाता तथा आध नारायणनुं पूजन करवामां आवे छे. शिक्षापत्री मां सो क्रियाओनुं पालन करवानुं बताव्यु छे. जेमा भूख्याने अन्न, तरस्याने पाणी वस्त्रहीनने वस्त्र आपवुं, लीलु झाड न कापवुं, पशु लईने न वेचवुं, परगमन न करवुं, जीवमात्र पर दया राखवी, अवगुण करवावाळा पर दया करवी.क्षमा मांगो तथा क्षमा आपो वगेरे.सूफी संत इमामशाह महाराजए पोते पोतानुं कर्मफळ पूर्ण करीने अंतिम समये पोताना पांच खास शिष्योने बोलाव्या जेमा १ हाजरबेग पीराणा २ नायाकाका महाराज कुकस ३ भाभाराम महाराज देवागाम४ साध्वी कीकीबाई ऋणगाम ५ शाणाकाका पीराणा. स शिष्योने आदेश आप्यो के तमे बधा जयोतिपात्रमां जयोत राखो जे तेमणे पोतानी योग शिकतथी जाते प्रजविल्लत करी हती ते अखंड दिव्य जयोत नामथी ओळखाय छे.सूफी संतईमामशाहए पोतानी बधी ज दिव्य सक्ती जयोति स्वरूपे प्रजविल्लत करी पोते समाधिष्ट थया. आ अखंड जयोतनां दर्शन करी श्रध्धाळु धन्य थई रहया छे. अने आ अखंड जयोत सामे ध्यान धरीने परब्रह्ममां लीन थाय छे. त्यां बेडी पहेरवानी पण एक मान्यता चाली आवे छे. जेनी मनोकामनापूर्ण थवानी होय तो बेडी आपोआप बे डगलां चालता खूली जाय छें.सूफी संत ईमामशाह महाराजए वचन आप्यु छे के सफेद धजा, निष्कलंकीनारायण भगवाननुं सिहासन, चांदीनी पादुका, कुंभकळश, वारीयज्ञ, अखंड जयोत अनंतकाळ सुधी रहेशे.सूफी संते चार वेदनी गायत्री तथा पांचमी मोक्ष मार्गनी गायत्रीनो ऊपदेश आप्यो छे. जे नीचे प्रमाणे छे.)१(ऋग्वेद)२(यर्जुवेद)३(सामवेद)४(अर्थववेद

सतपंथ स्वरूप[संपादित करें]

१ (दृढ निश्चय) २(प्रितज्ञा) ३(नियम)

१ (दृढ निश्चय :-)

१ (सत्य) २(पुरुषाथ) ३(प्रेम) ४(समानभाव) ५(अिहंसा) ६(परोपकार) ७(क्षमा) उपरना तत्वोनुं पालन दृढ निश्चयथी करवुं.

(अ) सत्य : बोलवा अने आचरणमां हंमेशा सत्य अने निष्कपट बुद्धि अने मृदुवाणीनुं अवलंबन करवुं.

(आ) पुरुषार्थ : धर्म, अर्थ, काम अने मोक्ष

(१) धर्म : वेदेाकत मार्गनुं प्रेमथी आचरण करवुं

(२) अर्थ : जात महेनत अने प्रमाणिकताथी धन मेळववुं. स सात्विक संपित कहेवाय, पण अन्याय, जुलम के खोटा मार्गे मेळवेली संपितनो उपभोग लेनार माणस हीन बने छे. तेथी न्याय अने नीतीना मार्गे ज धन मेळववुं.

(३) काम : विषय सेवन के इन्द्रियों ना क्षिणक उपयोगमां भेरवाई न रहेवुं. वासनाओ जीती इन्द्रियों उपर काबू मेळववो.

(४) मोक्ष : वेद विहित मुक्ति मार्गनी साधना मुजब वर्तन राखी मुक्ति नुं अंतिम ध्येय प्राप्त करवा प्रयत्नशील रहेवुं. एम करवामां आवशे तो ज मानवजन्म सार्थक थशे. अन्यथा मानव अने पशुमां फरक नहीं रहे.

(ई) प्रेम : कोईना प्रत्ये द्रेष, तिरस्कार के अदेखाई न राखता, एकबीजा प्रत्ये प्रेमभावथी रहेवुं. दोषो तरफ न जोतां गुण ग्रहण करी प्रेमथी रहेवुं.

(उ) समान भाव : आपणामां अने बीजामां रहेलो आत्मा एक ज छे एवी आत्मौपजय बुद्धि राखवी. आपणे बधा एक ज ईश्वरना बाळको छीए. कोई नानुं मोटुं नथी ए द्रिष्टथी बधा साथे बंधुत्व भावथी रहेवुं.

(ए) अिहंसा : सत्पंथ मार्गमां अिहंसा ए एक महान तत्व छे. पशु पक्षी के अन्य प्राणीने मारवाथी ज हिंसा थाय छे तेम ज मार !एटलुं कहेवाथी के लागणी दुभाववाथी पण हिंसा थाय छे. एथी नैतिक अध:पतन थाय छे.

(ऐ) परोपकार : सन्मार्गे जनारा प्रत्येकने मदद आपवा हंमेशा तैयार रहेवुं शुद्ध बुद्धि अने निष्कामभावथी दु:खीजनोनी सेवा करवी अने दरेकना कल्याणनी भावना राखवी तेमज सत्पुरूषोनी सेवा करवी.

(औ) क्षमा : आपणने दु:ख के कष्ट आपनारने क्षमा आपवी ए आपणी फरज छे.

(२) प्रितज्ञा :

(अ) सत्पंथनी दरेक प्रितज्ञानुं पालन करवुं.सद्गोर ईमामशाहे व्यवहार कर्तव्यपालन, अने धर्मकार्यमां केवी रीते आचरण राखवुं ते संबधे करेला नियमोनुं पालन करवुं.

(आ) बाळकोने सत्पंथनी शिखामण आपवी : पोतानां संतानोने बाळपणथी ज धर्म शिक्षण पण आपवामां आवशे तो ज संस्कृति टकशें.

(ई) अंधश्रद्धानो त्याग अने ज्ञान द्रिष्टनुं अवलंबन : अज्ञान के अंधश्रद्धाथी रहेवामां खतरो छे. तेथी वेद, उपिनषदो वगेरे सत्शास्त्रो उपर तेमज सद्गुरूवचन उपर ढश्रद्धा अने निष्ठा राखवी.

(३) नियम :) अ (शरीर शुद्धि) आ (ह्यदय शुद्धि) ई (व्रत) ई (उपासना) उ (ध्येय

(अ) शरीर शुद्धि : लाईसुतक) वुद्धि -जनन शौच (स्त्री, प्रसुत थया पछी तेणीए सवा मिहनो एटले ४० दिवस अने गोत्रजोए ११ दिवस सुधी सूतक पाळवुं. मरण सूतक, मरण प्रसंगे गोत्रजोए ११ दिवस सुधी सूतक पाळवुं. मासिक धर्म वखते स्त्रीए ४ दिवस सुधी कोईने स्पर्श करवो निहं. स्नान शौचादि बाबतोमां शास्त्र मुजब वर्तवुं अने सद्गुरू वचन मुजब तीर्थमंत्रो थी शुद्ध थवुं.

(आ) ह्यदय शुद्धि : अमली) केफी (पदार्थो एटले लसण, डुंगळी, हिंग, तमाकुं, अफीण, गांजो, भांग, ताडी, मांस-मिदरा वगेरे निषेद्ध वस्तुओनो त्याग करवो. कारण के आ पदार्थोना सेवनथी माणसने नुकसान थाय छे अने प्रभु भिकतथी परावृत) दूर (थवाय छे.

व्याज, सवाई, व्याज अने परस्त्रीगमन चिंतन थी पण मनुष्यने हीनता आवे छे. माणस आत्मिचंतनथी दूर रहे छे. अने आसुरी संपित वधे छे. आ महापापथी मनुष्यनुं अध:पतन थाय छे, तेथी वेदमां निषेध करेल वस्तुओनो त्याग करी सात्विक अन्न पदार्थोनुं सेवन करवुं आथी ह्यदय शुद्धि थाय छे. मन प्रभु भक्तिमां तल्लीन थाय छे. दैवि संपति वधे छे.

(इ) व्रत : युग धर्म मुजब दरेक मिहनानी सुदी बीजनुं व्रत करवुं, तेमज थावर बीजनुं महाव्रत करवुं. तेमज दसवंत सूकृत, पुणयितथी, श्राद्ध, उतर कार्य,- पिंड श्राद्ध विगेरे बाबतो सतपंथ पूजाविधि प्रमाणे करवी. महाशिवरात्री, रामनवमी, गोकूळ अष्टमी, गुरू पूर्णिमा, नवरात्री, गणेशचतुर्थी, दिवाळी, अिगयारस, चौदस, अमास ए तिथीनुं व्रत पालन करवुं.

(ई) उपासना : प्रणव ॐ कार मंत्रनुं ध्यान चिंतन करवुं अने सतपंथना वचनानुसार वरूणदेव वारियज्ञ घटपाट पूजा करवी.

(उ) ध्येय : आज किळयुगना अंतिम दशमा अवतार आद्य विष्णु श्री निष्कलंकी नारायण तेमज आद्यशिकत माताने तेमज प्रणव मंत्र ॐ ने ध्येय पुरूष मानवा.

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