भार्गव समाज

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भार्गव भारत में ब्राह्मण होते हैं जो अपने आप को ऋषि भृगु(भार्गव) का वंसज मानते हैं।[उद्धरण चाहिए]

ब्राह्मणों के आज जितने गोत्र पाये जाते हैं वे सब वैदिक काल के सात मूल वंशों की ही शाखा-प्रशाखा हैं। ये सात वंश भार्गव, आंगिरस, आत्रेय, काश्यप, वसिष्ठ, आगस्त्य और कौशिक हैं। इनमें सबसे प्राचीन भार्गव, आत्रेय और काश्यप हैं जिनके प्रवर्तक भृगु, अत्रि और काश्यप नामक ऋषि थे, जो वैदिक युग के आरम्भ में हुए थे, और वैवस्वत मनु के समकालीन थे। महिर्ष भृगु अग्नि क्रिया के प्रवर्तक होने के कारण अथर्वन् और अंगिरस् भी कहलाते थे। इसीलिए इनके वंशज प्रारंभ में भार्गव और आंगिरस दोनों नामों से प्रसिद्ध थे। परन्तु कुछ समय बाद भृगुवंश की एक शाखा ने आंगिरस नाम से एक स्वतंत्र वंश का रूप धारण कर लिया अत: शेष भार्गवों ने अपने को आंगिरस कहना बन्द कर दिया। इस प्रकार आंगिरस वंश का चौथे ब्राह्मण वंश के रूप में उदय हुआ।

प्राचीन काल की कई रचनाओं में भृगुवंशी ब्राह्मणों का विशेष योगदान रहा है ।

महर्षि भृगु के ही पुत्र दैत्यगुरु शुक्राचार्य का भी वंश आगे बढ़ा भार्गव नाम से क्योंकि शुक्राचार्य को भी भार्गव कहा जाता है । आज ये वंश राजस्थान के कुछ इलाकों में डाकोत (भार्गव) ब्राह्मण के नाम से जाने जाते है ।


भार्गव सबसे श्रेष्ठ ब्राह्मण होते है ।ओर सभी ब्राह्मणों में सबसे उच्च कुल के ब्राह्मण होते है ये थी भृगुवंशी ब्राह्मणों के बारे में छोटी सी जानकारी ।

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