बासमती चावल

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लाल बासमती चावल

बासमती (अंग्रेज़ी: Basmati, IAST: bāsmatī, उर्दू: باسمتى) भारत की लम्बे चावल की एक उत्कृष्ट किस्म है। इसका वैज्ञानिक नाम है ओराय्ज़ा सैटिवा। यह अपने खास स्वाद और मोहक खुशबू के लिये प्रसिद्ध है। इसका नाम बासमती अर्थात खुशबू वाली किस्म होता है। इसका दूसरा अर्थ कोमल या मुलायम चावल भी होता है। भारत इस किस्म का सबसे बड़ा उत्पादक है, जिसके बाद पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश आते हैं।[1][2] पारंपरिक बासमती पौधे लम्बे और पतले होते हैं। इनका तना तेज हवाएं भी सह नहीं सकता है। इनमें अपेक्षाकृत कम, परंतु उच्च श्रेणी की पैदावार होती है। यह अन्तर्राष्ट्रीय और भारतीय दोनों ही बाजारों में ऊँचे दामों पर बिकता है।[3] बासमती के दाने अन्य दानों से काफी लम्बे होते हैं। पकने के बाद, ये आपस में लेसदार होकर चिपकते नहीं, बल्कि बिखरे हुए रहते हैं। यह चावल दो प्रकार का होता है :- श्वेत और भूरा। कनाडियाई मधुमेह संघ के अनुसार, बासमती चावल में मध्यम ग्लाइसेमिक सूचकांक ५६ से ६९ के बीच होता है, जो कि इसे मधुमेह रोगियों के लिये अन्य अनाजों और श्वेत आटे की अपेक्षा अधिक श्रेयस्कर बनाता है।

स्वाद और गंध तथा प्रजातियां[संपादित करें]

बासमती चावल का एक खास पैन्डन (पैन्डेनस एमारिफोलियस पत्ते) का स्वाद होता है। यह फ्लेवर (स्वाद+खुशबू) रसायन २-एसिटाइल-१-पायरोलाइन[4] के कारण होता है।

बासमती की अनेक किस्में होती हैं। पुरानी किस्मों में – बासमती-३७०, बासमती-३८५ और बासमती-रणबिरसिँहपुरा (आर.एस.पुरा), एवं अन्य संकर किस्मों में पूस बासमती 1, (जिसे टोडल भी कहा जाता है) आती है। खुशबूदार किस्में बासमती स्टॉक से ही व्युत्पन्न की जाती हैं, परन्तु उन्हें शुद्ध बासमती नहीं माना जाता है। उदाहरण के लिए पीबी२ (जिसे सुगन्ध-२ भी कहते हैं), पीबी-३ एवं आर.एच-१०। नई दिल्ली स्थित भारतीय कृषि विज्ञान अनुसंधान केन्द्र, पूसा संस्थान, ने एक परंपरागत बासमती की किस्म को शोधित कर एक संकर किस्म बनाई, जिसमें बासमती के सभी अच्छे गुण हैं और साथ ही यह पौधा बहुत छोटा भी है। इस बासमती को पूसा बासमती-१ कहा गया। पी.बी.-१ की उपज/पैदावार अन्य परंपरागत किस्मों से अपेक्षाकृत दुगुनी होती है। काला शाह काकू, में स्थित पाकिस्तान के चावल अनुसंधान संस्थान[मृत कड़ियाँ] बासमती की कई किस्में विकसित करने में कार्यरत रहा है। इसकी एक उत्कृष्ट किस्म है सुपर बासमती, जो कि डॉ॰मजीद नामक एक वैज्ञानिक ने १९९६ में विकसित की थी। यहीं विकसित हुआ विश्व का सबसे लम्बा चावल दाना, जिसे पाकिस्तान कर्नैल बासमती कहा गया। इसकी औसत लम्बाई कच्चा: ९.१ मि.मि. और पका हुआ: १८.३ मि.मि. होती है।[5]

इसके साथ अन्य अनुमोदित किस्मों में कस्तूरी (बरान, राजस्थान), बासमती १९८, बासमती २१७, बासमती ३७०, बासमती ३८५, बासमती ३८६, कर्नैल (पाकिस्तान), उत्तर प्रदेश, देहरादून, हरियाणा, कस्तूरी, माही सुगन्ध, पंजाब, पूसा, रणबीर, तरओरी हैं।[6] कुछ गैर-परंपरागत खुशबूदार संकर किस्में भी होती हैं, जिनमें बासमती लक्षण हैं।[7][8]

बासमती अशुद्धीकरण बाधक[संपादित करें]

बासमती चावल विश्वभर में अत्यधिक लंबे दाने और खुशबू के लिये प्रसिद्ध है। यह न केवल राष्ट्रीय, वरन अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ारों में भी अत्यधिक मांग में है, जो कि अरबों डालरों का निर्यात उपलब्ध कराता है। विशुद्ध बासमती खेती केवल भारत के गांगीय समतल क्षेत्रों और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों में ही होती है। इसके लिये उपभोक्ताओं की मांग, यहां उच्च स्तर की विदेशी मुद्रा और कई क्षेत्रों में कर-मुक्ति भी दिलाती है। कृत्रिम किस्में मंहगी खेती मांगतीं हैं और फिर भी उनके गुण, शुद्ध किस्मों का मुकाबला ना कर पाने के कारण कम कीमत लातीं हैं। साथ ही चावल बाज़ारों में बिना खुशबू की किस्मों की निम्न श्रेणी की कई किस्में पहले ही उपस्थित हैं। शुद्ध बासमती और कृत्रिम किस्मों को पहचानने में मुश्किल आने के कारण ही नकली किस्मों का धोखाधड़ी का बाजार भी खूब चलता है। उपभोक्ताओं को इससे बचाने हेतु, एक पॉलिमरेज़ चेन प्रतिक्रिया (पी.सी.आर) आधारित ऐसेय (मानवों में डी.एन.ए. अंगुली चिह्न तकनीक की तरह ही) अशुद्ध किस्मों और मिलावटी किस्मों को पहचानने में मदद करता है। इसकी पहचान क्षमता १% ±१.५% है। चावल के निर्यातक और आयतक इस पर आधारित शुद्धता प्रमाण पत्र प्रयोग करते हैं।[9][10] इस प्रोटोकॉल पर आधारित, डी.एन.ए. अंगुलचिन्ह और निदान शास्त्र केन्द्र, लैब-इंडिया , (एक भारतीय कम्पनी) द्वारा विकसित किट्स प्रसारित की गयीं। ये किट्स बासमती में अशुद्धिकरण मापन करतीं थीं।

इन्हें भी देखें: लैब इंडिया की बासमती परीक्षण किट

पेटेन्ट युद्ध[संपादित करें]

सितंबर १९९७ में, राइसटैक नामक एक टैक्सास की कम्पनी ने बासमती लाइन्स और दानों का पेटेण्ट जीत लिया (यू.एस.पेटेण्ट सं० ५,६६३,४८४)। इस पेटेण्ट से बासमती और समान चावलों की शोधन प्रक्रिया आदि पर उनका एकाधिकार हो गया था। राइसटैक नामक लीख़्टेनश्टाइन की एक कंपनी ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विरोध का सामना किया, जिससे संयुक्त राज्य और भारत के बीच एक लघु कालीय राजनयिक संकट उभरा था। इस संदर्भ में भारत ने इस मामले को ट्रिप समझौते को तोड़ने के आरोप में, डब्ल्यू.टी.ओ. तक पहुंचाने का संकल्प किया, जिससे सं.राज्य को काफ़ी परेशानियों का सामना करना पड़ा।[11] बाद में कुछ स्वेच्छापूर्वक, व कुछ सं.राज्य पेटेंट कार्यालय के इस दावे के पुनरावलोकन पश्चात, उस कम्पनी को अपने सभी दावे छोड़ने पड़े। अंतिम फैसला भारत के पक्ष में हुआ था। यह भारतीय किसानों के लिये एक बड़ी विजय हुई, क्योंकि अन्यथा उन्हें अत्यधिक आर्थिक हानि झेलनी पड़ती। इसके बाद भारत सरकार ने बासमती चावल से निर्यात कर भी हटा लिया। बासमती चावल पर ८००० रुपए प्रति टन निर्यात कर था, जिससे उसका न्यूनतम निर्यात मूल्य १२०० डॉलर प्रति टन था। २१ जनवरी २००९ को इसकी न्यूनतम कीमत घटाकर ११०० डॉलर प्रति टन कर दी गई है।[12]

देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

एफ.डी.ए.द्वारा अस्वीकृत निर्यातक

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "बासमती चावल की रूपरेखा वर्णन". मूल से 19 जून 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 अगस्त 2008.
  2. "चीन: भारत का नया बासमती निर्यात स्थान". मूल से 3 जून 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 अगस्त 2008.
  3. "ऑक्स्फोर्ड जर्नल पर". मूल से 13 अक्तूबर 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 अगस्त 2008.
  4. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  5. "बल्क बासमती सेला चावल". मूल से 23 जुलाई 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 अगस्त 2008.
  6. "संयुक्त राजशाही सरकार के जालस्थल पर" (PDF). मूल (PDF) से 31 मई 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 अगस्त 2008.
  7. "संग्रहीत प्रति". मूल से 22 मई 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 अगस्त 2008.
  8. "संग्रहीत प्रति". मूल से 11 जून 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 अगस्त 2008.
  9. "संग्रहीत प्रति". मूल से 17 दिसंबर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 अगस्त 2008.
  10. [1]
  11. "बासमती केस स्टडी". मूल से 4 जुलाई 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 अगस्त 2008.
  12. बासमती चावल पर निर्यात कर हटा वेब दुनिया पर