क मुं हिंदी विद्यापीठ आगरा

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क.मुं. हिंदी तथा भाषाविज्ञान विद्यापीठ K.M. Institute of Hindi and Linguistics

स्थापित1953
प्रकार:शैक्षणिक एवं शोध संस्थान
निदेशक:प्रो॰ हरिमोहन
अवस्थिति:आगरा, भारत
जालपृष्ठ:[1]
चित्र:KMI Emblum copy.jpg

कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी हिंदी तथा भाषाविज्ञान विद्यापीठ डॉ भीमराव अंबेदकर विश्वविद्यालय, आगरा का प्रतिष्ठित शिक्षण और शोध संस्थान है जो हिंदी भाषा और भाषाविज्ञान के उच्चतर अध्ययन और अनुसंधान के क्षेत्र में उत्तर भारत के सर्वप्रथम संस्थान के रूप में सन 1953 से कार्य कर रहा है।

इतिहास[संपादित करें]

कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी हिंदी तथा भाषाविज्ञान विद्यापीठ भारतीय भाषाओं और भाषाविज्ञान के अध्ययन-अध्यापन से जुड़े देश के सबसे पुराने संस्थानों में से एक है। आरंभ में इसकी परिकल्पना आगरा विश्वविद्यालय के हिंदी अध्ययन संस्थान ‍‌‍‍‌ (AGRA UNIVERSITY INSTITUTE OF HINDI STUDTES) के रूप में की गई थी। बाद में इसका उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल और प्रख्यात गुजराती उपन्यासकार श्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी के नाम पर रख दिया गया। विद्यापीठ की स्थापना हिंदी को केंद्र में रखते हुए विभिन्न भारतीय भाषाओं और उनके साहित्य के बहुपक्षीय तुलनात्मक साहित्यिक और भाषावैज्ञानिक अध्ययन एवं अनुसंधान को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य के साथ की गई थी।

इस विचार-दृष्टि के साथ आगरा में हिंदी और भाषाविज्ञान के उच्चतर अध्ययन के लिए एक विद्यापीठ की स्थापना का निर्णय सन 1953 में लखनऊ में आयोजित विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के सम्मेलन में लिया गया। सम्मेलन में आगरा विश्वविद्यालय को यह गुरुतर दायित्व देते हुए यह अपेक्षा व्यक्त की गई कि इस संस्थान में हिंदी और हिंदीतरभाषी विद्वान अध्ययनार्थी परस्पर विद्वत्सहयोग और अकादमिक आदान-प्रदान के माध्यम से हिंदी को इस देश की राष्ट्रभाषा के रूप में विकसित और प्रतिष्ठित करने में अपना योगदान दे सकेंगे।

हिंदी को भारत की समग्र सांस्कृतिक अभिव्यक्ति और समन्वयात्मक एकता की मज़बूत कड़ी के रूप में विकसित करने की दृष्टि से क.मुं. हिंदी विद्यापीठ ने ऐतिहासिक भूमिका निभाई है। हिंदी विद्यापीठ की परिकल्पना करते हुए इसके प्रेरणास्रोत कन्हैयालाल माणिक मुंशी ने कहा था, "The lovers and scholars of Hindi should concentrate on developing the range and power of Hindi; that higher studies in Hindi must be based on comparative study of Indian languages and literatures, that its strengths and elasticity, rooted in Sanskrit must be strengthened by a core study of that great language." तब से आज तक विद्यापीठ हिंदी भाषा और साहित्य के बहुदिशीय वैज्ञानिक अध्ययन अनुसंधान के क्षेत्र में अपने दायित्वों का सफलतापूर्वक निर्वाह करते हुए देश और दुनिया भर के हिंदी शिक्षार्थियों को शिक्षण प्रशिक्षण प्रदान कर रहा है।

अकादमिक विभाग[संपादित करें]

  • हिंदी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग
  • भाषाविज्ञान विभाग
  • संस्कृत और अन्य प्राचीन शास्त्रीय भाषा विभाग
  • पत्रकारिता और जनसंचार विभाग
  • सूर पीठ

निदेशक[संपादित करें]

प्रख्यात भाषावैज्ञानिक प्रोफ़ेसर विश्वनाथ प्रसाद इस विद्यापीठ के पहले निदेशक थे। भाषाविज्ञान के लंदन स्कूल के प्रख्यात भाषावैज्ञानिक जे.आर. फ़र्थ के सुयोग्य शिष्य डॉ॰ विश्वनाथ प्रसाद के दूरदर्शी नेतृत्व में विद्यापीठ के अकादमिक स्वरूप, उद्देश्यों और कार्यक्षेत्र का निर्धारण संभव हुआ। इसके बाद डॉ॰ सत्येन्द्र, प्रो॰ माताप्रसाद गुप्त, प्रो॰ विद्यानिवास मिश्र, डॉ॰ रामविलास शर्मा, डॉ॰ गणपतिचन्द्र गुप्त आदि सुयोग्य विद्वानों के निदेशकत्व में विद्यापीठ को अकादमिक प्रतिष्ठा के नये आयाम मिले। वर्तमान में प्रो॰ हरिमोहन इस संस्थान के निदेशक हैं।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]