अपरांत

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अपरांत भारतवर्ष की पश्चिम दिशा का देशविशेष। 'अपरांत' (अपर + अंत) का अर्थ है पश्चिम का अंत। आजकल यह 'कोंकण' प्रदेश माना जाता है। तालेमी नामक भूगोलवेता ने इस प्रदेश को, जिसे वह 'अरिआके' या 'अबरातिके' के नाम से पुकारा है, चार भागों में विभक्त बतलया है। समुद्रतट से लगा हुआ उत्तरी भाग थाणा और कोलांबो जिलों से। इसी प्रकार समुद्र से भीतरी प्रदेश के भी दो भाग हैं। उत्तरी भाग में गोदावरी नदी बहती है और दक्षिणी में कन्नड़ भाषाभाषियों का निवास है।

अपरांत का सबसे प्रामाणिक उल्लेख अशोक के अभिलेखों से मिलता है :

३ – पपे हि नम सुपदरे व [ । ] से अतिक्रतं अन्तरं न भुतप्रुव ध्रममहमत्र नम [ । ] से त्रेडशवषभिसितेन मय ध्रममहमत्र कट [ । ] से सव्रपषडेषु
४ – वपुट ध्रमधिथनये च ध्रमवध्रिय हिदसुखये च ध्रमयुतस योन-कम्बोज-गधरन रठिकपितिनिकन ये व पि अञे अपरत [ । ] भटमये-


—पाँचवाँ प्रमुख शिलालेख, अशोक महान[1]

३ – पाप वस्तुतः सरलता से फैलता है। बहुत काल बीत गया, पहले धर्ममहामात्र नहीं होते थे। सो १३ वर्षों से अभिषिक्त मेरे द्वारा धर्ममहामात्र नियुक्त किये गये।
४ – वे सब पाषण्डों ( पन्थों ) पर धर्माधिष्ठान और धर्मवृद्धि के लिए नियुक्त हैं। वे यवनों, कंबोजों, राष्ट्रिकों और पितिनिकों के मध्य और अन्य भी जो अपरान्त के रहने वाले हैं उनके बीच धर्मायुक्तों के हित और सुख के लिए नियुक्त हैं ।

महाभारत (आदिपर्व) तथा मार्कडेय-पुराण के अनुसार यह समस्त प्रदेश 'अपरांत' के अंतर्गत है। बृहत्‌संहिता (14/20) ने इस प्रदेश के निवासियों का 'अपरांतक' नाम से उल्लेख किया है जिनका निर्देश रूद्रदामन्‌ जूनागढ़ शिलालेखों में भी है। रधुवंश (4/53) से भी स्पष्ट है कि अपरांत स्ह्रा पर्वत तथा पश्चिम सागर में बीच का वह सँकरा भूभाग है जिसे परशुराम ने पुराणानुसार समुद्र को दूर हटाकर अपने निवास के लिए प्रस्तुत किया था।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Ashoka, Fifth Major Rock Edict. "अशोक का पाँचवाँ बृहद् शिलालेख". ज्ञानप्रभा (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2024-04-10.