वातिल उपकरण

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

वातिल उपकरण (Pneumatic tools or air tools) वे उपकरण हैं जो किसी गैस (प्राय: संपीडित वायु) की शक्ति से चलाये जाते हैं। संपीडित गैस किसी गैस संपीडक (gas compressor) से प्राप्त किया जाता है। वातिल उपकरण, विद्युत चालित उपकरणों की तुलना में प्राय: सस्ते पड़ते हैं एवं इनका प्रयोग एवं रखरखाव अधिक सुरक्षित होता है। इसके अलावा इनका शक्ति और भार का अनुपात अधिक होता है जिससे किसी काम के लिये अपेक्षाकृत छोटे एवं हल्का उपकरण से ही काम हो जाता है।

परिचय[संपादित करें]

आधुनिक औद्योगिक कार्यों में, निर्वात उत्पन्न कर वायुमंडलीय दाब तथा संपीडित हवा में निहित शक्ति द्वारा चालित अनेक प्रकार के उपकरण बनाकर, इससे अनेक प्रकार के काम किए जाते हैं, जिनसे मानवीय श्रम तथा समय की बचत होकर बड़ी सुविधा से और अच्छा काम होता है। 19वीं शताब्दी के मध्योत्तर काल में हवा की शक्ति तथा विद्युत् शक्ति के प्रयोग में एक प्रकार से बड़ी स्पर्धा सी हो गई थी। दोनों ही में निहित शक्ति का प्रयोग, शक्ति उत्पादक केंद्र से बहुत दूरी पर जाकर, सुविधानुसार किया जा सकता है। लेकिन अब हवा तथा बिजली एक दूसरे की सहायक होकर, औद्योगिक कार्यों के लिए वरदान स्वरूप हो गई हैं। बहुत बड़े बड़े विस्तृत कारखानों में तो सैकड़ों किमी दूरी पर स्थित जलविद्युत् संयंत्रों द्वारा उत्पादित बिजली ग्रिडप्रणाली से प्राप्त कर, मोटरें चलाई जाती हैं और उनके द्वारा वायुसंपीडक यंत्र अथवा निर्वातन यंत्र चलाकर, विभिन्न प्रकार के वातिलउपकरणों से विशेष प्रकार के काम किए जाते हैं।

जहाजों के निर्माण तथा मरम्मत के कार्यों में तथा संरचनीय इंजीनियरी के कामों में, जब छेदे अथवा काटी जानेवाली वस्तु कारखाने के साधारण स्थायी यंत्रोपकरणों पर नहीं लाई जा सकती, तब विशेष वातिल उपकरणों से उनपर, जहाँ वह है उसी स्थान पर, काम कर दिया जाता है। यही काम विद्युत् तारों को जहँ तहाँ ले जाकर उठौआ (Portable) विद्युतोपकरणों से भी किया जा सकता है, लेकिन ऐसा करने में जरा सी भी असावधानी से बिजली का झटका लगने से मृत्यु भी हो सकती है। वातिल उपकरणों के उपयोग में इस प्रकार का कोई डर नहीं रहता। खानों के काम के लिए तो वातिल प्रणाली महान वरदान ही है, क्योंकि इनमें काम करने के बाद निकली हुई हवा के द्वारा खानों का संवातन भी ठीक होता रहता है। वातिल प्रणाली से अनेक प्रकार के वाहित्र बनाकर विशेष परिस्थितियों में सामान इधर से उधर ले जाया जाता है, बोझा उठाया जाता है और कुएँ से पानी खींचा जाता है। ढलाई खानों में तो अनेक यंत्र वातिल प्रणाली से ही काम करते हैं।

प्रमुख वातिल उपकरण[संपादित करें]

हविस (Hoist)[संपादित करें]

हवाई मोटर युक्त हविस कई नापों में बनाया जाता है, जिसके द्वारा 200 किग्रा. से लेकर 9,000 किग्रा. तक बोझा उठाया जा सकता है। इसमें चार सिलिंडर युक्त शक्तिशाली मोटर लगी होतीं हैं जो 80 से 100 पाउंड प्रति वर्ग इंच दाब की संपीडित हवा से चलाई जाती है। यह मोटर पहले दाहिने हाथ की तरफ लगे गियरों (gears) को चलाती है जिनसे संबंधित बीच में लगा ड्रम घूमता है जिसपर बोझे की रस्सी लिपटती या खुलती है। इसमें खूबी यह है कि मोटर में हवा की दाब बंद होते ही स्वत: ब्रेक लग जाते हैं जिससे भार को बीच में कहीं भी रोका जा सकता है और ज्यों ही बोझे को ऊपर चढ़ाने या उतारने के लिए संपीडित हवा खोली जाती है, वह एक नली द्वारा ब्रेक युक्ति में पहुँचकर ब्रेक के गुटके को हटा देती है। इस प्रकार के हविस निर्माण कारखानों में भारी सामान उठाने, धरने और वर्कशाप में खराद, मिलिंग, तथा प्लेनिंग मशीनों पर लगाए जाते हैं।

खड़े हविस (सिलिंडरनुमा)[संपादित करें]

खड़े अथवा आड़े सिलिंडरनुमा हविसों में एक पिस्टन अपने दंड सहित संपीड़ित वायु की दाब से सरक कर काम करता है। यह भी तीन प्रकार का होता है : एकक्रियात्मक, द्विक्रियात्मक और संतुलित पिस्टनयुक्त। संतुलित प्रकार के हविस का उपयोग ढलाई खानों में क्रोड (core) बैठाने, साँचों को बंद करने, फरमे को साँचे से बाहर निकालने आदि कामों में किया जाता है जिसमें बिना झटके के मिट्टी के नाजुक तथा भंगुर साँचों आदि को उठाना होता है। इस प्रकार के हविस में हवा की दाब सदैव पिस्टन के नीचे की तरफ बनी रहती है, अत: बोझे को उठाने के लिए केवल पिस्टन के ऊपर की हवा को निष्कासित करना होता है और नीचे उतारने के लिए ऊपर की तरफ हवा भरनी पड़ती है, क्योंकि पिस्टन के नीचे की तरफ के अंतराल में पिस्टनदंड भी कुछ जगह रोकता है, अत: उसमें प्रभावकारी दाब कम होने के कारण ही बोझा धीरे-धीरे नीचे उतरता है। ऊपर की हवा को थोड़ा निकाल तथा संतुलित कर बोझ को बिल्कुल सही सही जहाँ चाहें वहाँ रोक भी सकते हैं। गैंट्री अथवा शिरोपरि गरडरों पर लगे ठेले से लटकाकर बोझे सहित इसे अपनी सीमा के भीतर भीतर इधर से उधर भी ले जा सकते हैं। इसके सिलिंडर 3 इंच से लेकर 24 इंच व्यास तक के बनाए जाते हैं और विभिन्न व्यासों के अनुसार बने हविसों को 60 से 100 पाउंड प्रति वर्ग इंच दाब की संपीडित हवा से चलाया जा सकता है। 24 इंच व्यास के सिलिंडर से, 60 पाउंड वायुमंडलीय दाब पर 24,430 पाउंड, 80 पाउंड वायुमंडलीय दाब पर 32,570 पाउंड और 100 पाउंड वायुमंडलीय दाब पर 40,720 पाउंड तक का बोझा उठाया जा सकता है।

झड़झड़ानेवाली (jarring) साँचा मशीन[संपादित करें]

इसकी मेजनुमा क्षैतिज टोपी पर साँचे का बक्स मिट्टी और फरमे सहित रख दिया जाता है। इस मेज के नीचे एक पिस्टन लगा है जो आधार पर कसे हुए सिलिंडर में चलता है। संपीडित हवा सिलिंडर के पेंदे में दाहिने हाथ की तरफ से प्रविष्ट होती है जिससे पहले तो स्टिन 2- इंच ऊपर उठता है फिर जब हवा बाएँ हाथ की तरफ के रास्ते से निकल जाती हैं, तब पिस्टन नीचे उतर जाता है। पिस्टन के नीचे की तरफ एक प्लंजर लगा है जब वह आधार प्लेट से टकराता है, तब पिस्टन पर लगी टेबल और उसपर लगे साँचे को झटका लगता है। इस प्रकार पिस्टन के बार बार उठने और गिरने से साँचे में मिट्टी ठँसकर बैठ जाती है। इस यंत्र को चलाने के लिए 60 से 100 पाउंड प्रति वर्ग इंच दाब की संपीडित हवा की आवश्यकता होती है। इस यंत्र से 100 से लेकर 160 झटके प्रति मिनट तक लगते हैं।

लोटन (roll over) साँचा मशीन[संपादित करें]

इसके द्वारा साँचा बनाने के लिए फरमे को बोर्ड पर लगाकर फ्रेम में रख देते हैं, फिर फरमे के चारों तरफ सही बैठनेवाला साँचा बक्स रखकर उसमें मिट्टी भरकर प्रकंपक के द्वारा संपीडित वायु के बल से मशीन को चलाकर साँचे की मिट्टी को बैठा दिया जाता है। फिर साँचे के नीचे लगनेवाले बोर्ड को साँचे के ऊपर रखकर, शिकंजों से कस देते हैं। इसके बाद वाल्व को खोलने से सिलिंडर में संपीडित वायु प्रविष्ट होकर फ्रेम को इस प्रकार से संचालित करती है कि उसपर रखा साँचा लौटकर टेबल पर फन्नी की सहायता से सही सही स्थान पर आ जाता है, तब पहले के बांधे हुए शिकंजे खोल लिए जाते हैं और फ्रेम को खड़ा कर साँचे में से फरमा भी निकाल लिया जाता है। फिर फ्रेम दाहिने हाथ की तरफ दूसरा साँचा बनाने के लिए वापस आ जाता है।

प्रेसनुमा साँचा मशीनें[संपादित करें]

इस प्रकार की साँचा मशीनें संपीडित हवा के बल से चलाई जाती हैं जिनका ढलाईखानों में बहुत उपयोग होता है। इन्हें ठेलों पर बिठाकर इधर से उधर भी ले जाने योग्य बनाया जाता है।

रेतमारी (sand blasting) यंत्र[संपादित करें]

यह एक उठौआ (portable) प्रकार के यंत्र hotaa है। इसके द्वारा, संपीडित वायु के बल से रेत की धारा चलाकर, ढली हुई वस्तुओं की ऊपरी सफाई बड़ी सरलता से की जा सकती है जिससे उनके ऊपर लगी हुई जली मिट्टी और पपड़ी हट जाती है और वे चिकनी तथा पालिश की हुई दिखाई देने लगती हैं। ढली हुई हलकी वस्तुओं के लिए 5 से 10 पाउंड, मध्यम दरजे की भारी वस्तुओं के लिए 15 से 20 पाउंड और ढले हुए इस्पात की भारी वस्तुओं के लिए 30 से 75 पाउंड प्रति वर्ग इंच दाब की संपीडित वायु का प्रयोग किया जाता है।

हवाई हथौड़ा[संपादित करें]

इस उपयोगी उपकरण का आविष्कार सेंटलुई के बॉयर नामक इंजीनियर ने 1883 ई. में किया था जिसमें पीछे से कई सुधार किए गए। यह इसी में लगी डाइ के अनुसार रिवटों के मत्थे ठोकने के लिए ही उपर्युक्त है। चिप करने का हथौड़ा भी बिल्कुल इसी प्रकार का होता है। अंतर केवल यही रहता है कि उसमें रिवट की स्नैप डाइ के बदले एक छेनी लगी होती है।

हवाई गैंसी[संपादित करें]

यह उपकरण भी सिद्धांतत: हवाई हथौड़े के समान ही होता है लेकिन दो प्रकार का बनाया जाता है : एक तो छोटे हैंडिल से युक्त होता है और उन्हीं स्थानों पर सुरंगें खोदने के काम में आता है, जहाँ जगह की अंडस (कमी) होती है। दूसरा लंबे हैंडिल से युक्त होता है तथा वह खुलासा जगहों में और खाइयाँ खोदने के कम आता है। इसी चोट से मिट्टी ढीली होकर बिखर जाती है, क्योंकि इसका प्लंजर एक बेलचेनुमा भाग पर चोट करता है जिससे वह मिट्टी में घुसता चला जाता हैं। फर्शतोड़ (paving breaker) भी हवाई छेनी के समान ही होता है जिसका प्लंजर एक फन्नीनुमा भाग पर चोट करता है। इसके द्वारा पुरानी इमारतों को तोड़ने का काम बड़ी सरलता से होता है, क्योंकि इसके द्वारा एक आदमी 12 आदमियों के बराबर काम कर सकता है

हवाई दुरमुस[संपादित करें]

पुराने ढंग के ढलाईखानों में तो साँचों की मिट्टी दबाने के लिए मुंगराननुमा दुरमुसों का उपयोग होता है लेकिन आधुनिक प्रकार का हवाई दुरमुस, जो काफी हल्का भी होता है और 30 से 100 पाउंड प्रति वर्ग इंच की दाबवाली संपीडित हवा से चलता है; साधारण मुँगरे की अपेक्षा लगभग ड्योढ़ा काम बिना किसी थकावट के कर देता है। रबर की पतली हवानली से इन्हें संबंधित कर कहीं भी और आड़ी टेढ़ी किसी भी अवस्था में एक समान कुटाई की जा सकती है जो ढलाई करने पर किसी भी प्रकार का दोष नहीं दिखाती।

हवाई घन[संपादित करें]

वातिलशक्ति चालित लोहारोपयोगी धन का उपयोग आधुनिक कारखानों में बहुत होता है।

रिवट लगाने की हवाई मशीन[संपादित करें]

इसके ऊपर की तरफ लगे सिलिंडर में हवा की दाब से एक पिस्टन सरककर, रिवट दबानेवाले प्लंजर को कुछ लिवरों का टॉगलयुक्त बनावट की सहायता से चलाकर आवश्यक दाब पहुंचता है। फिर एक लीवर की सहायता से, यह दाब आवश्यक मात्रा में डाइ के ऊर बनाई रखी जाती है, जिससे रिवट का लोहा, दम न देकर, अपनी जगह पर ठसकर बैठ जाए।

स्वेज (swaging) यंत्र[संपादित करें]

ताँबे और पीतल की नलियों के मुँह फुलाने के लिए स्वेज यंत्र इस प्रकार से बनाए जाते हैं कि फुलाए जानेवाली नली को चक में बाँधने एवं डाइयों में फीड करने और डाइयों को दबाने तथा उन्हें खोलकर ढीली करने का काम संपीडित हवा के बल से होता है। यंत्र के मुँह के पास हवा से चलनेवाले दो सिलिंडर और पिस्टन लगे होते हैं जो आपस में एक दूसरे से स्वतंत्र होते हुए भी एक ही त्रिमार्गी वाल्व में से हवा लेकर अपने पिस्टनों पर दाब देते हुए उनसे संबंधित डाइयों को चला देते हैं। इस वाल्व को चलाने के लिए एक हथ लीवर और उसकी मूठ के साथ ही लगा एक अंगुष्ठ लीवर होता है। अत: हथ लीवर से तो डाइयों के बीच में नलियों को सरकाने और वापस खींचने की क्रिया की जाती है तथा अंगुष्ठ लीवर से चक में लगी डाइयों पर दबाव डाला जाता है। चक में कमानियाँ भी लगी होती हैं जो पिस्टनों के पीछे लौटते ही नली को ढीला कर आगे सरका देती हैं।

ठप्पा ढलाई यंत्र (Die casting machines)[संपादित करें]

कई प्रकार की डाइ कास्टिंग मशीनों में भी गली हुई धातु को संपीडित वायु की दाब से बलपूर्वक धातु के ठप्पों तथा साँचों में भरा जाता है। इनके आविष्कार के आरंभिक काल में एक बड़ा दोष यह रह जाता था कि गली हुई धातु संपीडित हवा के संपर्क में आने से ठंढी होने के अतिरिक्त उसके ऑक्सीज़न का अवशोषण कर लेती थी, जिससे ढली हुई वस्तु स्पंज जैसी छिद्रल बन जाती थी और पुर्जों के ठंढे हो जाने से प्लंजर आदि अपने सिलिंडरों में जाम भी हो जाया करते थे, लेकिन अब कुछ विशेष युक्तियों के द्वारा इस दोष का सर्वथा निराकरण कर दिया गया है।

वातिल पंचिंग मशीन[संपादित करें]

वातिल काउंटर शाफ्ट[संपादित करें]

वर्कशाप के मुख्य चालक धुरे से प्रत्येक मशीन को अलग-अलग चलाने के लिए काउंटर शाफ्टों का प्रयोग करते है जिनकी पक्की और ढीली पुलियों पर माल को सरका कर मशीन को क्रमश: चालू और बंद किया जाता है और इस काम के लिए अँकुड़ी और लीवरों का उपयोग होता है। वातिल काउंटर शाफ्ट लगाने से यही काम संपीड़ित हवा के द्वारा भी किया जा सकता है। वातिल काउंटर शाफ्ट में दो पुलियों के बीच एक बेलनाकार ढला हुआ सिलिंडर लगा दिया जाता है जिसमें छेद कर पिस्टन लगा दिए जाते हैं, ज्यों ही एक तरफ से सिलिंडर में हवा प्रविष्ट करती है, उसका पिस्टन सरककर अपने पड़ोस में लगी हुई पुली को बलपूर्वक बाहर की तरफ ढकेल देता है जिससे यह एक घर्षण क्लच से संबंधित हो जाती है। यह क्लच धुरे पर चाबी द्वारा पक्का लगा होता है जिससे शक्ति का परिषण उसी के माध्यम से होने लगता है। सिलिंडरों में हवा पहुंचाने के लिए धुरे की अक्षीय दिशा में एक लंबा छेद होता है, जिसमें एक नली इतनी ढीली लगी होती है कि छेद में, उस नली के चारों तरफ की खाली जगह में, से होकर भी एक तरफ के सिलिंडर में हवा जा सकती है और दूसरा सिलिंडर उस हवा नली से ही संबंधित रहता है। इसी धुरे पर एक उचित प्रकार का हवा वाल्व और हवा नली लगाकर एक ही काउंटर शाफ्ट द्वारा दो मशीनों का नियंत्रण किया जा सकता है।

खराद मशीन के चक[संपादित करें]

खराद मशीनों में खरादी जानेवाली वस्तुओं को कसकर पकड़ने के लिए हाथ से काम करने के, चार स्वतंत्र जबड़ों युक्त और स्क्रॉल से कसे जानेवाले तीन जबड़ों युक्त, चक हुआ करते हैं। कई बड़ी टरेट खरादों में संपीडित वायु द्वारा कसे जानेवाले दो जबड़ों युक्त चकों का भी उपयोग हुआ करता है। यह चक खराद मशीन के स्पिंडल के दाहिने सिरे पर अन्य चकों की भाँति ही चढ़ा दिया जाता है और उस पोले स्पिंडल के दूसरे सिरे पर एक हल्का सिलिंडर और पिस्टन होता है जो एक छड़ के द्वारा उस पोले स्पिंडल के मध्य में से होकर चक्र से संबंधित रहता है। पोले सिलिंडर में दो हवा नलियाँ लगी होती हैं जो पिस्टन के दोनों तरफ, एक लीवर संचालित वाल्व के द्वारा, आवश्यकतानुसार हवा पहुँचा सकती हैं।

हवाई बरमा[संपादित करें]

चट्टानी बरमा[संपादित करें]

चट्टानी बरमों के निर्माण का सिद्धांत तो हवाई बरमे के समान ही होता है लेकिन चट्टानों की कठोरता तथा उनकी किस्म, छेद की गहराई आदि के अनुसार इन बरमों की परिकल्पना में कुछ भिन्नता हो जाती है। इनका उपयोग पहाड़ी प्रदेशों में बुनियादें खोदने, सड़कें बनाने और खनिज कर्म में बहुत होता है। चट्टानी बरमों में एक जैक हैमर नामक बरमा बहुत प्रसिद्ध है इसमें भी संपीडित हवा, उसके हैंडिल में ही लगे एक नियामक वाल्व में से प्रविष्ट होकर, चपटे ढक्कननुमा एक वाल्ब में जाकर पिस्टन की चाल पर नियंत्रण करती है। इसके सिलिंडर में जब पिस्टन नीचे जाता है तब, वह, उस समय बरमे के डंठल पर चोट मारता है जिससे बरमे की नोक पर कटावोपयोगी दाब पड़ती है। वापस लौटते समय पिस्टन वेष्टननुमा गली (खाँचे) युक्त एक राइफलवार के ऊपर से होकर सरकता है, अत: उन वेष्टन युक्त गलियों के कारण घूमते समय वह बरमे को भी घुमा देता है। इस प्रकार से बरमे को नई फीड (feed) मिल जाती है, जिससे वह आगे सरकता जाता है। इस यंत्र में एक रैचट (ratchet) गियर भी लगा होता है जिसके कारण बरमा केवल एक ही दिशा में घूमने पाता है। बुरादे को छेद में से निकलने के लिए बरमे के भीतर ही भीतर लंबे छेदनुमा कुछ अक्षीय मार्ग बने होते हैं जिनमें पिस्टन की चाल के कारण हवा प्रविष्ट होकर उस बुरादे अथवा छीलन को बाहर फेंकती रहती है।

वातिल चक्की[संपादित करें]

उपर्युक्त हवाई बरमे के सिद्धांतों पर ही उठौआ (portable) चक्की यंत्र भी बनाए जाते हैं। अंतर केवल यही होता है कि साधारण बरमों की अपेक्षा इनके घूमने की गति बहुत अधिक अर्थात् 3,000 से 6,000 चक्कर प्रति मिनट तक होती है। इनके स्पिंडल पर बरमे के बदले छोटे-छोटे सान चक्र लगा दिए जाते हैं। इनका उपयोग, ढलाईखानों में ढली वस्तुओं को साफ करने, मोटर गाड़ी ओर इंजनों के कारखानों में अपने स्थान पर लगे पुर्जों को पेषित कर सही करने तथा पालिश और बफ करने अथवा डाइयाँ खोदने के काम में, होता है।

वातिल शिकंजा (Vice)[संपादित करें]

आधुनिक यंत्र निर्माण में कई बार आवश्यक समझा जाता है कि किसी विशेष पुर्जें काटते, छीलते या रेतते समय, उसे किसी विशेष दाब से ही पकड़ा जाए। साधारण पेचों द्वारा कसे जानेवाले शिकंजों में दाब का कोई अंदाजा नहीं रहता पर वातिल शिकंजों में दाबमापी लगा रहने के कारण, उसके अनुसार काम करने से दाब में भिन्नता नहीं आने पाती। इसके बगल में जो खड़ा हैंडिल लगा है उसे चलाने से ही दाब पर नियंत्रण किया जा सकता है।

वातिल नियंत्रित जिग और फिक्श्चर[संपादित करें]

वातिल फुहार द्वारा रंगाई (Spray painting)[संपादित करें]

मकानों की दीवारों पर सफेदी तथा रंग, मोटर गाड़ियों, रेलगाड़ियों इंजनों तथा यंत्रों के ढाँचों पर रंग और रोगन आदि का काम वातिलफुहार द्वारा बड़ी किफायत से, सब जगह एक सा और उत्तमता से बहुत थोड़े समय में किया जा सकता है। इसमें अश्वशक्ति की बिजली की मोटर से एक वायुसंपीडक यंत्र चलाया जाता है जिसमें ऊपर बाएँ हाथ की ओर ताजी वायु के प्रवेश के लिए जालीदार एक कीप लगा है जिसमें से छनकर हवा संपीडक में प्रविष्ट होती है। इस यंत्र पर वायु की दाब पर आवश्यक नियंत्रण रखने के लिए एक दाबघड़ी और आवश्यक वाल्व आदि भी लगे होते हैं। संपीडन के बाद, हवा, यंत्र के दाहिनी ओर खड़े हुए, लगभग 2 इंच व्यास तथा 15 इंच लंबे सिलिंडर में जाती है जिसमें ऊन और नारियल के रेशे भरे होते हैं, अत: बाहर निकलने के पहले हवा को उनमें से होकर गुजरना पड़ता है जिससे वह छन जाती है। उन के साथ कुछ रासायनिक पदार्थ भी रखे रहते हैं जिनके द्वारा हवा की नमी भी सोख ली जाती है। यदि हवा में अधिक पानी होता है, तो वह टपककर नीचे इकट्ठा हो जाता है जिसे समय-समय पर, नीचे लगी एक टोंटी के द्वारा निकाल दिया जाता है। अंत में हवा एक बारीक जाली में से फिर छनकर रबर की नलियों द्वारा फुहार यंत्र में जाती है। इस फुहार यंत्र के साथ एक डिब्बा लगा होता है जिसमें रंगीन तरल पदार्थ भर दिया जाता है, जो संपीड़ित वायु के संपर्क में आकर बारीक झौंसी के रूप में बाहर निकलता है। रंग के बारीक कण हवा में उड़ते हुए, रँगी जानेवाली सतह पर एक समान मोटाई में चिपक जाते हैं। प्रयोगकर्ताओं का अनुभव है कि इसके द्वारा साधारण मजदूर एक घंटे में लगभग 75 वर्ग गज सतह को बड़े आराम से रँग सकता है।

एयरोग्राफ बुरुश (Aerograph brush)[संपादित करें]

यह उपकरण, आकार में एक फाउंटेन पेन जैसा होता है। इसके साथ में, हाथ से पंच कर संपीड़ित वायु तैयार करने की एक छोटी टंकी होती है जिसमें से एक पतली रबर की नली के द्वारा बुरुश में हवा ली जाती है। छिड़के जानेवाले रंग का ट्यूब बुरुश के भीतर ही बैठा दिया जाता है। आवश्यक होने पर दूसरे रंग की ट्यूब भी उसमें आसानी से पहले ट्यूब के बदले लगाई जा सकती है जिसके कारण कई रंगों में बारीक से बारीक चित्रकारी का काम और स्टेंसिलों की छपाई भी की जा सकती है। इसके द्वारा बाल के समान बारीक रेखा भी बनाई जा सकती है।