अंग्रेजी कविता

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प्राचीन काल (650-1350 ई.)[संपादित करें]

बहुत समय तक 14वीं सदी के कवि चॉसर को ही अंग्रेजी कविता का जनक माना जाता था। अंग्रेजी कविता की केंद्रीय परंपरा की दृष्टि से यह धारणा सर्वथा निर्मूल भी नहीं है। लेकिन वंशानुगतिकता के आधार पर अब चॉसर के पूर्व की सारी कविता का अध्ययन प्राचीनकाल के अंतर्गत किया जाने लगा है।

नार्मन विजय ने इंग्लैंड की प्राचीन ऐंग्लो-सैक्सन संस्कृति पर गहरा प्रभाव डाला और उसे नई दिशा दी। इसलिए प्राचीन काल के भी दो स्पष्ट विभाजन किए जा सकते हैंउद्भव से नार्मन विजय तक (650-1066 ई.) और नार्मन विजय से चॉसर के उदय तक (1066-1350 ई.) भाषा की दृष्टि से हम इन्हें क्रमश: ऐंग्लो-सैक्सन या प्राचीन अंग्रेजी काल और प्रारंभिक मध्यदेशीय अंग्रेजी (मिडिल इंग्लिश) काल भी कह सकते हैं।

प्राचीन अंग्रेजी कविता लगभग 500 वर्षों तक प्राचीन अंग्रेजी में कविताएँ लिखी जाती रहीं लेकिन आज उनका अधिकांश केवल चार हस्तलिखित प्रतियों में प्राप्त है। उस काल की सारी कविता का ज्ञान इनके अतिरिक्त दो-चार और रचनाओं तक ही सीमित है।

ऐंग्लो-सैक्सन कबीले ट्यूटन जाति के थे जो प्रकृति और प्राकृतिक देवी-देवताओं के पूजक थे। वे अपने साथ साहसिक जीवन और युद्धों के बीच पैदा हुई कविता की मौखिक परंपरा भी इंग्लैंड ले आए। छठी शताब्दी के अंतिम वर्षों में उन्होंने व्यापक पैमाने पर इतिहास की दीक्षा ली। इस प्रकार प्राचीन अंग्रेजी कविता सांस्कृतिक दृष्टि से बर्बर सभ्यता और ईसाइयत का संगम है। एक ओर ‘विडसिथ’, ‘वाल्डियर’, ‘बैेवुल्फ’, ‘दि फाइट ऐट फ़िन्सबर्र’, ब्रुनबर्र और ‘दि बैटिल ऑव माल्डॉन’ जैसी, पराक्रमपूर्ण अभियानों और युद्धों की गाथाओं में ईसाई धर्म की सदाशयता, करुणा, रहस्यात्मकता, आध्यात्मिक निराशा और नैतिकता की छाया है तो दूसरी ओर सातवीं शताब्दी के कैडमन और आठवीं नवीं के सिनउल्फ की बाइबिल की कथाओं और संतों की जीवनियों पर लिखी कविताओं में पुरानी वीर गाथाओं का रूप अपनाया गया है। उपदेश की प्रवृत्ति के कारण प्राचीन अंग्रेजी कविता में गीतिकाव्य डियोर्स लेमेंट जैसे नाटकीय गीतों और ‘दि वांडरर’, ‘दि सीफेयरर’, ‘दि गइन’, ‘दि वाइफूस कंप्लेंट’जैसे शोक गीतों तक सीमित हैं। एक छोटा-सा अंश पहेलियों और हास्यपूर्ण कथोपकथनों का भी है।

प्राचीन अंग्रेजी कविताएँ अत्यंत अलंकृत और अस्वाभाविक भाषा में लिखी गई हैं। शब्दक्रीड़ा इन कवियों का स्वभाव है और एक-एक शब्द के कई पर्याय देने में उन्हें बड़ा आनंद आता है।

प्राचीन अंग्रेजी कविता में पद्मरचना का आधारभूत सिद्धांत अनुप्रास है। यह व्यंजन मुखर भाषा है और व्यंजनों के अनुप्रास पर ही पंक्तियों की रचना होती है। प्रत्येक पंक्ति के दो भाग होते हैं जिनमें से पहले में दो और दूसरे में एक निकटतम वर्णों में यह स्वराघातपूर्ण अनुप्रास रहता है। इन कविताओं में तुकों का सर्वथा अभाव है।

प्रारंभिक मध्यदेशीय अंग्रेजी काल[संपादित करें]

नार्मन विजय इंग्लैंड पर फ्रांस की सांस्कृतिक विजय भी थी। इसके बाद लगभग 200 वर्षों तक फ्रेंच भाषा अभिजातों की भाषा बनी रही। पुरानी आनुप्रासिक कविता की परंपरा लगभग समाप्त हो गई। दूसरे शब्दों में, यह पुरानी गाथाओं पर रोमानियत की विजय थी। साथ ही अनुप्रासों की जगह अब तुकों ने ले ली। 12वीं शताब्दी में इस प्रकार की नई कविता का अद्भुत विकास फ्रांस और स्पेन में हुआ। यह युग इस्लाम के विरूद्ध ईसाइयों के धर्मयुद्धों (क्रुसेंडों) का था और प्रत्येक ईसाई सरदार अपने की नाइट (सूरमा) के रूप में चित्रित देखना चाहता था। फ्रांस के वैतालिकों और कवियों ने गाथाओं का निर्माण किया। इनके प्रधान तत्त्व शौर्य, प्रेम, ईश्वर भक्ति, अज्ञात के प्रति आकर्षण और कभी-कभी कवि की व्यक्तिगत अनुभूतियों की अभिव्यक्ति थे। फ्राँस के रोलाँ और इंग्लैंड के आर्थर की गाथाओं तथा केल्टी दंतकथाओं के अतिरिकत लातीनी प्रेमगाथाओं ने भी इस काल की कविता को समृद्ध किया। इस तरह 13वीं शताब्दी में लौकिक और धार्मिक दोनों तरह की गीतिप्रधान कविताओं के कुछ उत्कृष्ट नमूने प्रस्तुत हुए। यूरोपीय संगीत, फ्रेंच छंद और पदरचना तथा वैतालिकों और कवियों की उदात्त कल्पना ने मिलकर इस युग की कविता को सँवारा। 12वीं और 13वीं सदी की कुछ प्रसिद्ध रचनाओं में ‘द आउल ऐंड दि नाइटइंगेल’, ‘आरम्युलम’, ‘कर्सर मंडाइ’, ‘हैवेलाक दि डेन’, ‘आर्थर ऐंड मर्लिन’, ‘ग्रिक ऑव कान्शंस’, ‘डेम सिरिथ’, ब्रुट इत्यादि हैं। लेकिन इसमें संदेह नहीं कि इस युग की अधिकांश कविता उच्च कोटि की नहीं है। 14वीं सदी के उत्तरार्ध ने पहले पहल चॉसर और उनके अतिरिकत कुछ और महत्त्वपूर्ण कवियों का उदय देखा। इस प्रकार मध्यदेशीय अंग्रेजी (मिडिल इंग्लिश) का प्रारंभिक काल उपलब्धियों से अधिक प्रयत्नों का था।

चॉसर से पुनर्जागरण तक[संपादित करें]

चॉसर (1340 ई. - 1400 ई.) ने मध्यदेशीय अंग्रेजी कविता के अनेक तत्त्व ग्रहण किए। लेकिन उसने उसके रूप और वस्तु में क्रांति कर बाद के अंग्रेजी कवियों के लिए एक नई परंपरा स्थापित की। उसकी समृद्ध भाषा और शैली को स्पेंसर ने ळ् अंग्रेजी का पावन स्रोतळ् कहा और उसमें काव्य और जीवन की विविधता की ओर संकेत करते हुए ड्राइडन ने कहाः "यहाँ पर ईशसुलभ प्रचुरता है।"

चॉसर की कविता रस और अनुभवसिद्ध उदारचेता व्यक्ति की कविता है। उसे दरबार, राजनीति, कूटनीति, युद्ध, धर्म, समाज और इटली तथा फ्रांस जैसे सांस्कृतिक केंद्रों का व्यापक ज्ञान था। उसने अंग्रेजी कविता को एकांतिकता और संकुचित दृष्टिकोण से मुक्त किया। मध्ययुगीन यूरोप की सामंती संस्कृति के दो प्रमुख रोमानी तत्वों, दाक्षिण्य (कटसा) और माधुर्य (ग्रेस) का आदर्श फ्रेंच, जर्मन और स्पेनी भाषाओं में प्रस्तुत हो चुका था। इंग्लैंड में चॉसर और उसके समसामयिक कवि गॉवर (1330-1408) ने उस आदर्श को समान सफलता के साथ अंग्रेजी कविता में प्रतिष्ठित किया।

मध्यदेशीय अंग्रेजी को फ्रेंच कविता के उदात्त भाव और उसकी अभिव्यक्ति की स्वच्छता, सुघरता और सरसता देने के कारण प्रायः चॉसर को अंग्रेजी में लिखने वाला 'फ्रेंच कवि' कहा जाता है। इसमें संदेह नहीं कि चॉसर ने प्रसिद्ध प्रेमगाथा दि रोमांस ऑव् दि रोज़ और अपने पूर्ववर्ती या समकालीन फ्रेंच कवियों, माशो (Guillaume de Machaut), दशाँ, (Eustache Deschamps) फ़्वासार (Froissart) और ग्राँजों (Granson) से बहुत कुछ सीखा। दि बुक ऑव डचेंस, दि पार्लियामेंट ऑव फाउल्स, दि हाउस ऑव फैम आदि उसकी प्रारंभिक रचनाओं और दि लीजेंड ऑव गुड विमेन को प्रस्तावना में यह प्रभाव देखा जा सकता है। इनमें प्रतीक योजना या रूपक (अलेगरी), स्वप्न, आदर्श प्रेम, मधु प्रात, कलरवमग्न पक्षी इत्यादि फ्रेंच कविता की अनेक विशेषताओं का समावेश है। चॉसर की छंद रचना पर भी उसका व्यापक प्रभाव है।

1372 ई. में चॉसर की प्रथम इटली यात्रा के बाद उसकी कविता में एक और नया तत्त्व आता है। दांते, पेत्रार्क और बोक्काच्चो ने उसे न केवल नए विषय दिए बल्कि नई दृष्टि भी दी। इनमें से अंतिम कवि ने उसे सबसे अधिक प्रभावित किया। बोक्काच्चो से अनेक कथाएँ लेने के अतिरिक्त चॉसर ने वर्णन की निपुणता, आकर्षक चित्र योजना और आवेग-पूर्ण अभिव्यक्ति की कला सीखी। उसकी प्रसिद्ध रचना फ़ ट्रायलस ऐंड क्रेसिडफ़ पर यह नया प्रभाव स्पष्ट है। लेकिन चॉसर की प्रतिभा केवल ऋणों पर जीवित रहने वाली नहीं थी; उसने अनेक प्राचीन कथाओं को यथार्थ और नाटकीय चरित्र-चित्रण, विनोद और व्यंग्य और उत्साहपूर्ण वर्णन से अत्यंत सजीव कर दिया।

चॉसर की अंतिम और महान कृति दि कैंटरबरी टेल्स में उसकी प्रतिभा अपनी सारी शक्ति के साथ प्रकट हुई। यह रचना उसके समाज का चित्र है और अपने यथार्थवाद के कारण इसने फ्रांस और इटली की तत्कालीन कविता को बहुत पीछे छोड़ दिया। इस रचना में चॉसर ने अपना सारा ज्ञान और मानव जीवन का अध्ययन उँडेल दिया। इसमें यथार्थ चरित्र-चित्रण और चरित्रों के पारस्परिक सघंर्ष द्वारा चॉसर ने नाटक और उपन्यास के भावी विकास को भी प्रभावित किया। उदार व्यंग्य और विद्रूप की परंपरा भी इसी कृति से प्रारंभ हुई।

चॉसर में छदों के प्रयोग की अद्भुत क्षमता थी। फ़ ट्रायलस ऐंड क्रेसिडफ़ में प्रयुक्त सात पंक्तियों का फ़ राइम रायलफ़ और फ़ दि कैंटरबरी टेल्सफ़ में प्रयुक्त दशवर्णी तुकांत द्विपदी का व्यापक प्रयोग आगे की अंग्रेजी कविता में हुआ।

चॉसर के समसामयिकों में गॉवर का स्थान भी ऊँचा है। उसकी रचना कन्फेसियो अमांटिस की प्रेम कहानियों पर नैतिकता का गहरा पुट है। इसलिए उसे फ़ सदाचारी गॉवरफ़ भी कहा गया। उसमें चॉसर की यथार्थवादिता और विनोदप्रियता नहीं है। वह प्रतिभा से अधिक स्वच्छ शिल्प का कवि है।

विलियम लैंगलैंड 14वीं शताब्दी की अत्यंत प्रसिद्ध रचना फ़ पियर्स प्लाउमनफ़ का कवि है। उसने अंग्रेजी की सानुप्रासिक शैली का व्यवहार किया। लेकिन उसकी कविता उस युग के सामाजिक और धार्मिक पाखंडों के विरुदध चुनौती है। उसमें जीवन के लिए धर्म और उसकी रहस्यभावना के महत्त्व की स्थापना है। पूरी रचना रूपक है और उसके अर्थ के कई स्तर हैं। लेकिन लैंगलैंड ने कथा के अंशों को सफलता के साथ एकान्वित किया है। लैंगलैंड में चॉसर और गॉवर का माधुर्य नहीं, वह आक्रोश और ओज का कवि है।

इसी युग में कुछ और भी सानुप्रासिक रचनाएँ हुई जिनमें सर ग्वाइन ऐंड दि ग्रीन नाइट और पर्ल विशेष रूप से उल्लेखनीय है। ये क्रमश आथर की गाथा और दि रोमांस ऑव दि रोज़ पर आधारित है। पहली में चरित्र-चित्रण की सूक्ष्म दृष्टि और प्रकृति के असाधारण रूपों और स्थितियों के प्रति मोह व्यक्त होता है और दूसरी रचना अवसादपूर्ण कोमल भावनाओं और रहस्यानुभूति से ओत प्रोत है।

चॉसर की म्रत्यु और पुनर्जागरण के बीच का समय अर्थात् पूरी 15वीं शताब्दी कविता की दृष्टि से अनुर्वर है। चॉसर के अनेक और लैंगलैंड के कुछ अनुयायी इंग्लैंड और स्कॉटलैंड में हुए। लेकिन उनमें से अधिकांश की कविता निर्जीव है। आक्लीव, लिडगेट, हॉज, बार्कले और स्केल्टन जैसे अंग्रेज अनुयायियों से कहीं अधिक शक्तिशाली स्कॉटलैंड के अनुयायी राबर्ट हेनरीसन, विलियम डनबर और जेम्स प्रथम थे, क्योंकि उन्होंने अपनी बोली, अपनी भूमि के प्राकृतिक सौंदर्य और अनुभूतियों की सच्चाई का अधिक ध्यान रखा।

इस शताब्दी की महत्त्वपूर्ण रचनाओं में धर्म, प्रेम तथा पराक्रम संबंधी गीतों और बैलडों का उल्लेख किया जा सकता है। व्यंग्य और विनोदपूर्ण कविताएँ भी लिखी गईं।

पुनर्जागरण युग[संपादित करें]

मध्ययुगीन संस्कृति के अवशेषों के बावजूद 16वीं शताब्दी इंग्लैंड में पुनर्जागरण के मानवतावाद का उत्कर्ष काल है। यह मानवतावाद सामंती व्यवस्था के धर्म, समाज, नैतिकता और दर्शन के विरूद्ध व्यापारी पूँजीपतियों के नए वर्ग की विचारधारा थी। इसी वर्ग की प्रेरणा से धर्म-सुधार-आंदोलन (रिफार्मेशन) हुआ, ज्योतिष और विज्ञान में क्रांतिकारी अनुसंधान हुए, धन और नए देशों की खोज में साहसिक सामुद्रिक यात्राएँ हुईं। मानवतावाद ने व्यक्ति के ज्ञान और कर्म की अमित संभावनाओं के साथ-साथ साहित्य में प्रयोगों और कल्पना की मुक्ति की घोषणा की।

16वीं शताब्दी[संपादित करें]

इंग्लैंड में इटली, फ्रांस, स्पेन और जर्मनी के काफी बाद आने के कारण यहाँ का पुनर्जागरण इन देशों, विशेषतः इटली, से अत्यधिक प्रभावित हुआ। पुनर्जागरण के प्रथम दो कवियों में सर टॉमस वायट (1503-42) और अर्ल ऑव सरे (1517-47) हैं। वायलट ने पेत्रार्क के आधार पर अंग्रेजी में सॉनेट लिखे और इटली से अनेक छंद उधार लिए। सरे ने सॉनेट के अतिरिक्त इटली से अतुकांत छंद लिया। इन कवियों ने प्राचीन यूनानी साहित्य और पेत्रार्क इत्यादि को पैस्टरल कविता की रूढ़ियों को अंग्रेजी में आत्मसात् किया तथा अनेक सुंदर और तरल गीत लिखे।

इस तरह उन्होंने एलिज़ाबेथ के शासनकाल के अनेक बड़े कवियों के लिए जमीन तैयार की। इनमें सबसे पहले एडमंड स्पेंसर (1552-99) और सर फिलिप सिडनी उल्लेखनीय हैं। मृत्यु के बाद प्रकाशित सिडनी की रचना फ़ ऐसट्रोफेल ऐंड स्टेलाफ़ (1591) ने कथाबद्ध सॉनेट की परंपरा को जन्म दिया। इसके पश्चात् तो ऐसे सॉनेटों की एक परंपरा चल निकली और डेनियल, लॉज, ड्रेटन, स्पेंसर, शेक्सपियर और अन्य कवियों ने इसे अपनाया। इनमें रूढ़ियों के कारण वास्तविक और काल्पनिक प्रेमी-प्रेमिकाओं का भेद करना आसान नहीं, लेकिन सिडनी और कई अन्य कवियों, जैसे ड्रेटन, स्पेंसर और शेक्सपियर का प्रेम केवल वायवी प्रेम नहीं है। सिडनी ने लिखाः फूलफ़, सेड माइ म्यूज टु मीफ़, लुक इन दाइ हार्ट ऐंड राइट.

विचारों में संस्कार तथा चारुता और काव्य में व्यापकता और विविधता की दृष्टि से स्पेंसर को इंग्लैंड में पुनर्जागरण का प्रतिनिधि कवि कहा जा सकता है। उसने प्राचीन यूनान से लेकर आधुनिक यूरोप की साहित्यिक जागरण से समन्वित किया। उदाहरण के लिए उसकी प्रसिद्ध रचना दि फ़ेयरी क्वीन का कथानक मध्ययुगीन है, लेकिन उसकी आत्मा मानवतावाद की है। गोपगीत (पैस्टरल), मर्सिया (एलेजी), व्यंग्य और विद्रूप, सॉनेट, रूपक, प्रेमकाव्य, महाकाव्य जैसे अनेक रूपों से उसने अंग्रेजी कविता की सीमाओं का विस्तार किया। उसने भाषा को इंद्रियबोध, संगीत और चित्रमयता दी। छंदों के प्रयोग में भी वह अद्वितीय है। इसीलिए उसे कवियों का कवि कहा जाता है।

एलिज़ाबेथ के शासनकाल में गीति की परंपरा और भी विकसित हुई। एक ओर ओविद् के अनुकरण पर श्रृंगारपूर्ण गीतों, जैसे मार्लों के हीरो ऐंड लियंडर और शेक्सपियर के वीनस ऐंड अडॉनिस और रेप ऑव लुक्रीस की रचना हुई, तो दूसरी ओर बैलडों और लोकगीतों की परंपरा में ऐसे गीतों की जिनमें उस काल के अनेक पक्ष--युद्ध और प्रेम से लेकर तंबाकू तक—प्रतिबिंबित हुए। इन पर इटली के संगीत का प्रभाव स्पष्ट है। ऐसे मस्ती भरे, सरल, मधुर और सुघर गीत लिली, पील, ग्रीन, डेकर और शेक्सपियर के नाटकों के अतिरिक्त विलियम बर्ड, टॉमस मार्लों, टॉमस कैंपियन, लॉज, राली, ब्रेटन, वाट्सन, नैश, डन और कांस्टेबिल की रचनाओं में बड़ी संख्या में प्राप्त होते हैं। इन कवियों ने अंग्रेजी कविता में फ़ वैतालिक पखेरुओं का घोंसलाफ़ बनाया।

16वीं शताब्दी की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों में अतुकांत छंद का विकास भी है। मार्लों और शेक्सपियर ने अरुद्धचरणांत वाक्यों द्वारा इसमें आर्केस्ट्रा के संगीत अनुच्छेद की शैली का विकास किया। मार्लो ने यदि इसे प्रपात का वेग और उच्च स्वरता दी तो शेक्सपियर ने यतियों की विविधता से इसे सूक्ष्म चिंतन से लेकर साधारण वार्तालाप तक की क्षमता दी। संक्षेप में 16वीं सदी के कवियों में आत्मविश्वास का स्वर है। उनकी कविता निसर्ग (फ़ नेचरफ़) की तरह नियमबद्ध किंतु उन्मेषपूर्ण, शब्दों और चित्रों में उदार और अलंकृत, संगीत, लय और ध्वनि में मुखर, तुकों और छंदों में व्यवस्थित और स्पर्श, रूप, रस और गंध में प्रबुद्ध है।

17वीं सदी[संपादित करें]

17वीं सदी पूर्वार्ध एलिज़ाबेथ के बाद का समय धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक और वैज्ञानिक क्षेत्र में संघर्ष और संशय का था। कवि अपने परिवेश की अतिशय बौद्धिकता और अनुदारता से त्रस्त जान पड़ते हैं। स्पेंसर के शिष्य ड्रमंड, डैनियल, चैपमन और ग्रेविल भी इससे अछूते नहीं हैं। इस सदी के पूर्वार्ध में कविता का नेतृत्व वेन जॉन्सन (1572-1637) और जॉन डन (1572-1631) ने किया। उनकी काव्य धाराओं को क्रमशः फ़ कैवेलियरफ़ (दरबारी) और फ़ मेटाफ़िज़िकलफ़ (अध्यात्मवादी) कहा जाता है। इस विभाजन के बावजूद उनमें बौद्धिकता, कविताओं और गीतों की लघुता, रति और श्रृंगार, ईश्वर के प्रति भक्ति और उससे भय इत्यादि समान गुण हैं। एलिज़ाबेथ युग की कविता के औदार्य के स्थान पर उनमें घनत्व है।

वेन जॉन्सन इंग्लैंड का प्रथम आचार्य कवि है। उसने कविता को यूनानी और लातीनी काव्यशास्त्र के साँचे में ढाला। उसकी कविता में बुद्धि और अनुभूति के संयम के अनुरूप नागरता, रचना संतुलन और प्रांजलता है। इसी प्रवृत्ति से बेन जॉन्सन की संतुलित, स्वायत्त और सूक्ति प्रधान दशवर्णी द्विपदी (हिरोइक कपलेट) का जन्म हुआ, जो चॉसर की द्विपदी से बिलकुल भिन्न प्रकार की है और जो 18वीं शताब्दी की कविता पर छा गई। उसके प्रसिद्ध आत्मजों में रॉबर्ट हेरिक, टॉमस केरी, जॉन सकलिंग और रिचर्ड लवलस हैं। इनकी कला और अनुभूति में भी मूलतः वही आदर्शवादी और व्यक्तिवाद से परांगमुखी स्वर है।

मेटाफ़िज़िकल कविता की प्रवृत्ति व्यक्तिगत अनुभव और अभिव्यक्ति के अन्वेषण की है। डन के शब्दों में यह फ़ नग्न चिंतनशील हृदयफ़ की कविता है। डॉ॰ जॉन्सन के शब्दों में इसकी विशेषताएँ परस्पर विरोधी विचारों और बिंबों का सायास संयोग और बौद्धिक सूक्ष्मता, मौलिकता, व्यक्तिकरण और दीक्षागम्य ज्ञान हैं। लेकिन आधुनिक युग ने उसका अधिक सहानुभूतिपूर्ण मूल्याँकन करते हुए उनकी इन विशेषताओं पर अधिक जोर दिया है- गंभीर चिंतन के साथ कटाक्ष और व्यंग्यपूर्ण कल्पना, विचार और अनुभूति की अन्विति, आंतरिक तनाव और संघर्ष, अलंकृत बिंबों के स्थान पर अनुभूति या विचारप्रसूत मार्मिक बिंबों की योजना और ललित अभिव्यक्ति के स्थान पर यथार्थवादी अभिव्यक्ति।

17वीं शताब्दी के कवियों में जॉन मिल्टन (1608-74) का व्यक्तित्व ऊँचे शिखर की तरह है। उसके लिए चिंतन और कर्म, कवि और नागरिक अभिन्न थे। पूर्ववर्ती पुनर्जागरण और परवर्ती 18वीं शताब्दी की राजनीतिक और दार्शनिक स्थिरता से वंचित, संक्रांति काल का कवि होते हुए भी मिल्टन ने मानव के प्रति असीम आस्था व्यक्त की। इस तरह की ईसाई मानवतावादियों में सबसे अंतिम और सबसे बड़ा कवि है। मध्ययुगीन अंकुशों के विरुद्ध नई मान्यताओं के लिए उसने कविता के अतिरिक्त केवल गद्य में लगातार बीस वर्षों तक संघर्ष किया और अपनी आँखें भी खो दीं।

मिल्टन के अनुसार कविता को सरल, सरस और आवेगपूर्ण होना चाहिए। अपनी प्रारंभिक रचनाओं- आन दि मार्निंग ऑव क्राइस्ट्स नेटिविटी, ल एलग्रो, पेन्सेरोसो, फ़ कोमसफ़ और फ़ लिसिडासफ़ में वह बेन जॉन्सन और मुख्य रूप के स्पेंसर से प्रभावित रहा, किंतु लंबे विराम के बाद लिखी हुई तीन अंतिम रचनाओं, फ़ पैराडाइज़ लॉस्टफ़, फ़ पैराडाइज़ रीगेंडफ़ और सैम्सन एगनाइस्टीज़ में उसकी चिंतन शक्ति और काव्य प्रतिभा का उत्कर्ष है। अपनी महान कृति फ़ पैराडाइज़ लॉस्टफ़ में उसने अंग्रेजी कविता को होमर, वर्जिल और दांते का उदात्त स्वर दिया। उसमें उसने अंग्रेजी कविता में पहली बार महाकाव्य के लिए अतुकांत छंद का प्रयोग किया और भाषा, लय और उपमा को नई भंगिमा दी।

1660 ई. से लेकर शताब्दी के अंत तक की अवधि का सबसे बड़ा कवि जॉन ड्राइडन (1631-1700) है। यह अंग्रेजी कविता में प्रखर कल्पना और अनुभूति की जगह काव्य शास्त्रीय चेतना, तर्क और व्यवहार कुशल सामाजिकता के उदय का युग है। इस नए मोड़ के पीछे काम करने वाली शक्तियों में उस युग के राजनीतिक दलों के संघर्ष, फ्राँस के रंग में रँगे हुए चार्ल्स द्वितीय का दरबार, फ्राँस के नए रीतिकारों के आदर्श, कॉफी हाउसों और मनोरंजन गृहों का उदय और नागरिक जीवन का महत्त्व इत्यादि हैं। स्वभावतः, इस युग की कविता का आदर्श सरल, स्पष्ट, संतुलित, सूक्तिप्रधान, फलयुक्त अभिव्यक्ति है। ड्राइडन की व्यंग्यपूर्ण कविताओं- फ़ ऐबसेलम ऐंड आर्कीटोफेलफ़, फ़ मेडलफ़ और फ़ मैक्फ्लेक्नोफ़ में ये गुण प्रचुरता से हैं। नीति की कविता में वह अद्वितीय है। ड्राइडन में गीतिकाव्य की परंपरा के भी तत्त्व हैं। लेकिन कुल मिलाकर उसकी कविता बुद्धिवादी युग की पूर्वपीठिका ही है। ड्राइडन को छोड़कर यह युग छोटे कवियों का है जिनमें सबसे उल्लेखनीय, प्रसिद्ध और लोकप्रिय व्यंग्यकृति फ़ हुडिब्राजफ़ का कवि सैमुएल बटलर है।

18वीं शताब्दी[संपादित करें]

तर्क या रीतिप्रधान युग

18वीं शताब्दी अपेक्षाकृत राजनीति और सामाजिक स्थिरता का काल है। इसमें इंग्लैंड के साम्राज्य, वैभव और आंतरिक सुव्यवस्था का विस्तार हुआ। इस युग के दार्शनिकों और वैज्ञानिकों के अनुसार यंत्र की तरह नियमित सृष्टि तर्क और गणितगम्य है और धर्म की डीइस्ट (प्रकृति देववादी) विचारधारा के अनुसार धर्म श्रुतिसंमत न होकर नैसर्गिक और बुद्धिगम्य है। साहित्य में यह तर्कवाद रीति के आग्रह के रूप में प्रकट हुआ। कवियों ने अपने ढंग से यूनान और रोम के कवियों का अनुकरण करना अनिवार्य समझा। इसका अर्थ था कविता में तर्क, नीर-क्षीर-विवेक और संतुलित बुद्धि की स्थापना। काव्य में शुद्धता को उन्होंने अपना मूल मंत्र बनाया। इस शुद्धता की अभिव्यक्ति विषय वस्तु में सार्वजनीनता (ह्वाट ऑफ्ट वाज़ थॉट बट नेवर सो बेल एक्सप्रेस्ड), भाषा में पदलालित्य, छंद में दशवर्णी द्विपदी में अत्यधिक संतुलन और यतियों में अनुशासन के रूप में हुई।

इस कविता का पौरोहित्य अलेक्जैंडर पोप (1688-1744) ने किया। उसके आदर्श रोम के जुवेनाल और होरेस, फ्राँस के ब्वालो (एदृत्थ्ड्ढठ्ठद्व) और इंग्लैंड के ड्राइडन थे। काव्य सिद्धांतों पर लिखी हुई अपनी पद्यरचना एसे ऑन क्रिटिसिज़्म में उसने प्रतिभा और रुचि तथा इन दोनों को अनुशासित रखने की आवश्यकता बतलाई। उसकी अधिकांश कृतियाँ व्यंग्य और विद्रूप प्रधान हैं और उनमें सबसे प्रसिद्ध फ़ दि रेप ऑव दि लॉकफ़ और फ़ डंसियडफ़ हैं जिनमें उसने कृत्रिम उदात्त (मॉक हिरोइक) शैली का अनुसरण किया। उसके काव्यों की समता बरछी की नोंक से की जाती है। उसकी रचना फ़ एसे ऑन मैनफ़ मानव जीवन के नियमों का अध्ययन है। इस पर उसके बुद्धिवादी युग की छाप स्पष्ट है।

उसके युग के अन्य व्यंग्यकारों में प्रायर, गे, स्विफ्ट और पारनेल हैं। इस बुद्धिवादी और व्यंग्यप्रधान युग में ही ऑलिवर गोल्डस्मिथ, लेडी विंचेल्सिया, जेम्स टाम्सन, टॉमस ग्रे, विलियम कॉलिंस, विलियम कूपर, एडवर्ड यंग आदि प्रसिद्ध कवि हुए जिनमें से अनेक ने स्पेंसर और मिल्टन की परंपरा को कायम रखा और प्रकृति, एकांत जीवन, भग्नावशेषों और समाधि स्थलों के संबंध में अवसाद और चिंतनपूर्ण अनुभूति के साथ लिखा। इन्हें 19वीं शताब्दी की रोमानी कविता का अग्रदूत कहा जाता है। रहस्यवादी कवि विलियम ब्लेक और किसान की कवि रॉबर्ट बर्न्स में भी प्रधान तत्त्व रोमानी प्रवृत्तियाँ और गीति हैं। इन दोनों का स्वर विद्रोद और मुक्ति का है।

रोमैंटिक युग

18वीं शताब्दी के कुछ कवियों में अनेक रोमानी तत्वों के अंकुरों के बावजूद रोमैंटिक युग का प्रारंभ 1798 में विलियम वर्ड्स्वर्थ (1770-1850) और सैमुएल टेलर कोलरिज (1772-1834) के संयुक्त संग्रह फ़ लिरिकल बैलड्सफ़ के प्रकाशन से माना जाता है। अंग्रेजी कविता के इस सबसे महान युग के साथ पर्सी बिशी शेली (1792-1822), जॉन कीट्स (1795-1821), जॉर्ज गॉर्डन बायरन (1788-1824), अलफ्रेड टेनिसन (1809-92), रॉबर्ट ब्राउनिंग (1812-89) और मैथ्यू आर्नल्ड (1822-88) के नाम भी जुड़े हुए हैं।

पूर्वार्ध- 19वीं सदी के पूर्वार्ध की कविता उस युग की चेतना की उपज है और उस पर फ्राँसीसी दार्शनिक रूसो और फ्राँसीसी क्रांति का गहरा असर है। इसलिए इस कविता की विशेषताएँ मानव में आस्था, प्रकृति से प्रेम और सहज प्रेरणा के महत्त्व की स्वीकृति हैं। इस युग ने रीति के स्थान पर व्यक्तिगत प्रतिभा, विश्वजनीनता के स्थान पर व्यक्तिगत रुचि तथा अनुभव, तर्क और विकल्प के स्थान पर संकल्पात्मक कल्पना और स्वप्न, अभिव्यक्ति में स्पष्टता के स्थान पर लाक्षणिक वक्रता पर अधिक जोर दिया। इस युग की कविता में गीति का स्वर प्रधान है।

बर्ड्स्वर्थ प्रकृति का कवि है और इस क्षेत्र में वह बेजोड़ है। उसने बड़ी सफलता के साथ साधारण भाषा में साधारण जीवन के चित्र प्रस्तुत किए। प्रकृति के प्रति उसका सर्वात्मवादी दृष्टिकोण अंग्रेजी कविता के लिए नई चीज है। उसके साथी कोलरिज ने प्रकृति के असाधारण पक्षों का चित्र खींचा। वह चिंतन प्रधान, संशय और अवसाद से भरे मन के दिवास्वप्नों का कवि है। शेली मानव जीवन की व्यथा और उसके उज्ज्वल भविष्य का क्रांतिकारी स्वप्नद्रष्टा कवि है। वह अपने संगीत और सूक्ष्म किंतु प्रखर कल्पना के लिए प्रसिद्ध है। कीट्स इस युग का सबसे जागरूक कवि है। उसमें इंद्रियबोध की अद्भुत क्षमता है। इसलिए वह सौंदर्य का कवि माना जाता है और उसके भाव चित्रों के माध्यम से व्यक्त होते हैं। बायरन रोमानी कविता की अवसादपूर्ण और नाटकीय आत्मरति का कवि है। इस प्रवृत्ति से जुड़कर उसके आकर्षक विद्रोही व्यक्तित्व ने यूरोप के अनेक कवियों को प्रभावित किया। किंतु आज उसकी प्रसिद्धि 18वीं शताब्दी से प्रभावित उसके व्यंग्यकाव्य पर टिकी है।

इस काल के अनेक उल्लेखनीय कवियों में रॉबर्ट सदी, टॉमस मूर, टॉमस कैंबेल, टॉमस हुड, सैबेज लैंडर, बेडोज़, ली हंट इत्यादि हैं।

विक्टोरिया युग

रोमैंटिक कविता का उत्तरार्ध विक्टोरिया के शासनकाल के अंतर्गत आता है। विक्टोरिया के युग में मध्यवर्गीय प्रभुत्व की असंगतियाँ उभरने लगी थीं और उसकी शोषण व्यवस्था के विरुद्ध आंदोलन भी होने लगे। वैज्ञानिक समाजवाद के उदय के अतिरिक्त यह काल डार्विन के विकासवाद का भी है जिसने धर्म की भीतें हिला दीं। इन विषमताओं से बचने के लिए ही मध्यवर्गीय उपयोगितावाद, उदारतावाद और समन्वयवाद का जन्म हुआ। समन्वयवादी टेनिसन इस युग का प्रतिनिधि कवि है। उसकी कविता में अतिरंजित कलावाद है। ब्राउनिंग ने आशावाद की शरण ली। अपनी कविता के अनगढ़पन में वह आज की कविता के समीप है। आर्नल्ड और क्लफ़ संशय और अनास्थाजन्य विषाद के कवि हैं।

इस तरह विक्टोरिया युग के कवियों में पूर्ववर्ती रोमैंटिक कवियों की क्रांतिकारी चेतना, अदम्य उत्साह और प्रखर कल्पना नहीं मिलती। इस युग में समय बीतने के साथ फ़ कला कला के लिएफ़ का सिद्धांत जोर पकड़ता गया और कवि अपने-अपने घोंसले बनाने लगे। कुछ ने मध्ययुग तथा कीट्स के इंद्रियबोध और अलस संगीत का आश्रय लिया। ऐसे कवियों का दल प्रीरेफ़ेलाइट नाम से पुकारा जाता है। उनमें प्रमुख कवि डी.जी. रोज़ेटी, स्विनबर्न, क्रिश्चियाना रॉज़ेटी और फिट्ज़ेराल्ड हैं। विलियम मारिस (1834-96) का नाम भी उन्हीं के साथ लिया जाता है, किंतु वास्तव में वह पृथ्वी पर स्वर्ग की कल्पना करने वाला इंग्लैंड का प्रथम साम्यवादी कवि है। धर्म की रहस्यवादी कल्पना में पलायन करने वालों में प्रमुख कावेंट्री पैटमोर, एलिस मेनेल और जेरॉर्ड मैनली हॉप्किंस (1844-89) हैं। हॉप्किंस अत्यंत प्रतिभाशाली कवि है और छंद में फ़ स्प्रंग रिद्मफ़ का जन्मदाता है। मेरेडिथ (1828-1909) प्रकृति का सूक्ष्मदर्शी कवि है। शताब्दी के अंतिम दशक में ह्रासशील प्रवृत्तियाँ पराकाष्ठा पर पहुँच गई। इनमें आत्मरति, आत्मपीड़न और सतही भावुकता है। ऐसे कवियों में डेविडसन, डाउसन, जेम्स टाम्सन, साइमंस, ऑस्टिन डॉब्सन, हेनली इत्यादि के नाम लिए जा सकते हैं। इसी प्रकार किपलिंग की अंध राष्ट्रवादिता और ऊँचे स्वरों के बावजूद 19वीं शताब्दी के अंतिम भाग की कविता व्यक्तिवाद के संकट की कविता है। 20वीं शताब्दी में वह संकट और भी गहरा होता गया।

20वीं शताब्दी[संपादित करें]

20वीं शताब्दी का प्रारंभ प्रश्नचिह्नों से हुआ, लेकिन उसकी प्रारंभिक कविता में, जिसे जॉर्जियन कविता कहते हैं, 19वीं शताब्दी के आदर्शों का ही प्रक्षेपण है। जॉर्जियन कविता में प्रकृतिप्रेम, अनुभवों की सामान्यतया और अभिव्यक्ति में स्वच्छता और कोमलता पर अधिक जोर है। इसीलिए उस पर अंतरहीनता का आक्षेप किया जाता है। इस शैली के महत्त्वपूर्ण कवियों में रॉबर्ट ब्रिजेज़ (1844-1930), मेसफील्ट (1878) वाल्टर डी ला मेयर, डेवीज़, डी.एच. लारेंस, लारेंस बिन्यन, हॉजसन, रॉबर्ट वेन, रूपर्ट ब्रुक, सैसून, एडमंड ब्लंडन, रॉबर्ट ग्रेव्स, अबरक्रूबी इत्यादि उल्लेखनीय हैं। निश्चय ही, इनमें से अनेक में विशिष्ट प्रतिभा है, सभी उथले भावों के कवि नहीं हैं।

इस शताब्दी के कवियों में येट्स (1865-1939), हार्डी (1840-1928) और हाउसमन (1859-1936) का स्थान बहुत ऊँचा है। येट्स में रहस्य-भावना, प्रतीक योजना और संगीत की प्रधानता है। हार्डी में स्वरों की रुक्षता और नियति की दारुण चेतना उसे जॉर्जियन युग से अलग करती है। हाउसमन हार्डी की कोटि का कवि नहीं, उससे मिलता-जुलता कवि है। वह अपनी रचना फ़ ए श्रॉपशायर लैडफ़ के लिए प्रसिद्ध है।

आधुनिकता के रंग में रँगी कविता का प्रारंभ 1913 में इमेजिस्ट (बिंबवादा) आंदोलन से प्रारंभ होता है। इसके पूर्व भी इस तरह की कविताएँ लिखी गई थीं, किंतु 1913 में एफ.एस. फ्लिंट और एज़रा पाउंड (1885) ने उसके सिद्धांतों की स्थापना की। इनके अनुसार कविता का लक्ष्य था फ़ वस्तुफ़ को कविता में सीधे उतारना, अभिव्यक्ति में अधिक से अधिक संक्षिप्ति और संगीत अनुशासित वाक्य रचना। पाउंड के अनुसार ळ् बिंब वह है जो बौद्धिक और भावात्मक संश्लिष्टता को उसकी क्षणिकता में प्रस्तुत करता है। ळ् बिंबवादी कविता कठोर और पारदर्शी अभिव्यक्ति पसंद करती है। इसी के साथ मुक्त छंद की लोकप्रियता भी बढ़ी। इसी शैली के कवियों में सबसे प्रसिद्ध एज़रा पाउंड और फ़ एडिथ सिटबेलफ़ (1887-1964) हैं।

प्रथम युद्ध के बाद टी. एस. इलियट (1888-1965) की प्रसिद्धि रचना फ़ वेस्ट लैंडफ़ ने आधुनिक अंग्रेजी कविता पर गहरा असर डाला। इस रचना में पूँजीवादी सभ्यता की ऊसर भूमि में पथहीन और प्यासे व्यक्ति का चित्र है। इसमें कवि ने रोमानी परंपरा को छोड़कर डन कवि का अनुगमन शु डिग्री किया। इसमें फ्रेंच प्रतीकवादियों का प्रभाव भी स्पष्ट है। 1928 के बाद इलियट के काव्य में धार्मिक भावना का प्रवेश होता है तो फ़ ऐस वेड्नेस्डेफ़ से होता हुआ फोर क्वार्टेट्स के रहस्यवादी काव्यपुंजों में पराकाष्ठा पर पहुँचता है। इस अंतर्मुखी क्षेत्र से अंग्रेजी कविता को निकालने का प्रयास 1930 के बाद मार्क्सवाद से प्रभावित आंडेन (1907-), लिविस, स्पेंडर, सीसल डे और मेकनीस ने किया। परंतु कालांतर में उनकी काव्यधारा भी अंतर्मुखी हो गई।

आंडेन के बाद सबसे महत्त्वपूर्ण कवि डीलन टामस (1914-53) है जो अत्यंत नवीन होते हुए भी अत्यंत मानवीय है। उसमें यौन प्रतीको, धार्मिकता तथा जीवन और मृत्यु संबंधी चिंतन का विचित्र योग है। उसकी कविता गीति और बिंब प्रधान है और बहुत अंशों में उसने अंग्रेजी कविता को रोमानी परंपरा का भी निर्वाह किया है।

20वीं शताब्दी के अन्य उल्लेखनीय कवियों में हर्बर्ट रीड, जॉर्ज बार्कर, एडविन म्योर, केज़, अलन लिविस, कोथ डगलस, लॉरेंस ड्यूरेल, रॉय फुलर, डेविड गैसक्वॉयन, राइडलर, रोज़र्स, बर्नर्ड स्पेंसर, टेरेस टिलर, डॉ॰ जे. एनराइट, टॉम गन, किंग्सले आसिम, जॉन वेन और अलबैरीज़ हैं।

आधुनिक युग को पश्चिम के बुद्धिजीवी चिंता और भय का युग कहते हैं। इसमें संदेह नहीं कि भाषा, बिंब और छंद में इस युग ने अनेक प्रयोग किए हैं, किंतु ऐसा जान पड़ता है कि अधिकांश कवियों में जीवन और उसके यथार्थ को समझने की क्षमता नहीं है।

द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् अंग्रेजी कविता में परिवर्तन हुआ है। आज के नए कवि पूर्ववर्ती कवियों को पांडित्यपूर्ण एवं जटिल शैली को छोड़कर काव्य में परंपरागत सरलता एवं छंदबद्ध शिल्प का समावेश करके दैनिक जीवन संबंधी काव्य का निर्माण कर रहे हैं। वे प्रयोगवादी कविता के विरुद्ध हैं।

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