चैती

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चैती उत्तर प्रदेश का, चैत माह पर केंद्रित लोक-गीत है।[1] इसे अर्ध-शास्त्रीय गीत विधाओं में भी सम्मिलित किया जाता है तथा उपशास्त्रीय बंदिशें गाई जाती हैं।[2] चैत्र के महीने में गाए जाने वाले इस गीत प्रकार का विषय प्रेम, प्रकृति और होली रहते है। चैत श्री राम के जन्म का भी मास है इसलिए इस गीत की हर पंक्ति के बाद अक्सर रामा यह शब्द लगाते हैं।[3] संगीत की अनेक महफिलों केवल चैती, टप्पा और दादरा ही गाए जाते है। ये अक्सर राग मिश्र पहाड़ी या मिश्र मांझ खमाज निबद्ध होते हैं। चैती, ठुमरी, दादरा, कजरी इत्यादि का गढ़ पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा मुख्यरूप से वाराणसी है। पहले केवल इसी को समर्पित संगीत समारोह हुआ करते थे जिसे चैता उत्सव कहा जाता था। आज यह संस्कृति लुप्त हो रही है, फिर भी चैती की लोकप्रियता संगीत प्रेमियों में बनी हुई है। बारह मासे में चैत का महीना गीत संगीत के मास के रूप में चित्रित किया गया है।

उदाहरण

चैती

चढ़त चइत चित लागे ना रामा/ बाबा के भवनवा/ बीर बमनवा सगुन बिचारो/ कब होइहैं पिया से मिलनवा हो रामा/ चढ़ल चइत चित लागे ना रामा

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सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 11 मई 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 31 मार्च 2008.
  2. "संग्रहीत प्रति". मूल से 18 फ़रवरी 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 31 मार्च 2008.
  3. "संग्रहीत प्रति". मूल से 8 अगस्त 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 31 मार्च 2008.