देवघर

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देवघर
बैद्यनाथधाम
बैद्यनाथधाम
नगर निगम
देवघर is located in झारखण्ड
देवघर
देवघर
देशभारत
राज्यझारखण्ड
जिलादेवघर
क्षेत्र2,479 किमी2 (957 वर्गमील)
ऊँचाई254 मी (833 फीट)
जनसंख्या (2011)
 • कुल2,03,116
 • दर्जाझारखण्ड में 5वाँ
 • घनत्व602 किमी2 (1,560 वर्गमील)
भाषा
 • आधिकारिकहिन्दीसंथाली,मगही
समय मण्डलभारतीय मानक समय (यूटीसी+५:३०)
पिन814112
दूरभाष कोड00916432
वाहन पंजीकरणJH-15 (जेएच १५)
लिंगानुपात921 /
वेबसाइटwww.babadham.org,www.deoghar.nic.in

देवघर, (संथाली: ᱫᱮᱣᱜᱷᱚᱨ) भारत के झारखण्ड राज्य का एक शहर है। यह देवघर जिले का मुख्यालय तथा हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। इसे 'बाबाधाम' नाम से भी जाना जाता है| यहाँ भगवान शिव का एक अत्यन्त प्राचीन मन्दिर स्थित है। हर सावन में यहाँ लाखों शिव भक्तों की भीड़ उमड़ती है। यहाँ भारत के विभिन्न भागों से तीर्थयात्री और पर्यटक आते ही हैं, विदेशों से भी पर्यटक आते हैं। इन भक्तों को 'काँवरिया' कहा जाता है। ये शिव भक्त बिहार में सुल्तानगंज से गंगा नदी से गंगाजल लेकर 105 किलोमीटर की दूरी पैदल तय कर देवघर में भगवान शिव को जल अर्पित करते हैं। शिव पुराण मे लिखा है ये मंदिर श्मशान मे है।

देवघर, उत्तरी अक्षांश 24.48 डिग्री और पूर्वी देशान्तर 86.7 पर स्थित है।[1] इसकी मानक समुद्र तल से ऊँचाई 254 मीटर (833 फीट) है।

देवघर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का स्थान है। इसके अलावा, देवघर 51 शक्तिपीठों में से एक मां तारापीठ भी है। देवघर की वार्षिक श्रावण मेला भारत की सबसे बड़ी मेलों में से एक है।[2]

देवघर को भगवान शिव के निवास स्थान के रूप में माना जाता है। यहां स्थित वैद्यनाथ मंदिर में भगवान शिव की पूजा की जाती है। मंदिर का गर्भगृह त्रिकोणीय आकार का है और इसमें एक काला शिवलिंग स्थापित है।

नाम का उद्गम[संपादित करें]

देवघर शब्द का निर्माण देव + घर हुआ है। यहाँ देव का अर्थ देवी-देवताओं से है और घर का अर्थ निवास स्थान से है। देवघर "बैद्यनाथ धाम", "बाबा धाम" आदि नामों से भी जाना जाता है।[3]

जनसांख्यिकी[संपादित करें]

2011 की भारत जनगणना के अनुसार देवघर की जनसंख्या 203,116 है जिसमें से 17.62% बच्चे 6 वर्ष से कम आयु के हैं। कुल जनसंख्या का 52% भाग पुरूष हैं एवं 48% महिलाएँ हैं।2011 के अनुसार  देवघर की औसत साक्षरता दर 66.34% है जो राष्ट्रीय औसत दर 74.4% से कम है। पुरूष साक्षरता 79.13% और महिला साक्षरता 52.39% है।

मुख्य आकर्षण[संपादित करें]

झारखंड कुछ प्रमुख तीर्थस्थानों का केंद्र है जिनका ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्व है। इन्हीं में से एक स्थान है देवघर। यह स्थान संथाल परगना के अंतर्गत आता है। देवघर शांति और भाईचारे का प्रतीक है। यह एक प्रसिद्ध हेल्थ रिजॉर्ट है। लेकिन इसकी पहचान हिंदु तीर्थस्थान के रूप में की जाती है। श्रावण मास में श्रद्धालु 100 किलोमीटर लंबी पैदल यात्रा करके सुल्तानगंज से पवित्र जल लाते हैं जिससे बाबा बैद्यनाथ का अभिषेक किया जाता है। देवघर की यह यात्रा बासुकीनाथ के दर्शन के साथ सम्पन्न होती है।

बैद्यनाथ धाम के अलावा भी यहां कई मंदिर और पर्वत हैं।

बैद्यनाथ मंदिर[संपादित करें]

देवघर का बाबा बैद्यनाथ मन्दिर

इस मंदिर की स्थापना १५९६ की मानी जाती है जब बैजू नाम के व्यक्ति ने खोए हुए लिंग को ढूंढा था। तब इस मंदिर का नाम बैद्यनाथ पड़ गया। कई लोग इसे कामना लिंग भी मानते हैं।

दर्शन का समय: सुबह ४ बजे-दोपहर ३.३० बजे, शाम ६ बजे-रात ९ बजे तक। लेकिन विशेष धार्मिक अवसरों पर समय को बढ़ाया जा सकता है।

यहाँ पर सावन के महीने में बड़ा मेला लगता है। मान्यता है कि भगवान शिवजी सावन में यहाँ बिराजते हैंं, इसलिये सुल्तानगंज से गंगा जल भर कर कांवरिया पैदल करीब 105 किलोमीटर की यात्रा करके यहाँ पहुंचते हैं और भगवान शिव को गंगा जल अर्पित करते हैं।

मंदिर के मुख्य आकर्षण[संपादित करें]

बैद्यनाथ का मुख्य मंदिर सबसे पुराना है जिसके आसपास अनेक अन्य मंदिर भी हैं। शिवजी का मंदिर पार्वती जी के मंदिर से जुड़ा हुआ है।

पवित्र यात्रा[संपादित करें]

बैद्यनाथधाम के यात्रा की शुरुआत श्रावण मास (जुलाई-अगस्त)से होती है जो महीने भर और भाद्र मास तक अनवरत चलता रहता है । उत्तरी भारत के कई राज्यों से श्रद्धालु भक्त _ तीर्थयात्री सर्वप्रथम उत्तरवाहिनी गंगा से जल लेकर सुल्तानगंज से ही यात्रा प्रारंभ करते हैं । जहां वे अपने-अपने पात्रों में पवित्र जल और बोल बम के उद्घोष करते हुए बैद्यनाथ धाम और बासुकीनाथ की ओर बढ़ते हैं। पवित्र जल लेकर जाते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि वह पात्र जिसमें जल है उसकी पवित्रता भंग नहीं हो इसलिए उसे कभी कहीं भी भूमि पर नहीं रखा जाता है ।

बासुकीनाथ मंदिर[संपादित करें]

बासुकीनाथ अपने शिव मंदिर के लिए जाना जाता है। बैद्यनाथ मंदिर की यात्रा तब तक अधूरी मानी जाती है जब तक बासुकीनाथ में दर्शन नहीं किए जाते। यह मंदिर देवघर से 42 किलोमीटर दूर जरमुंडी गांव के पास स्थित है। यहां पर स्थानीय कला के विभिन्न रूपों को देखा जा सकता है। इसके इतिहास का संबंध नोनीहाट के घाटवाल से जोड़ा जाता है। बासुकीनाथ मंदिर परिसर में कई अन्य छोटे-छोटे मंदिर भी हैं।

बैजू मंदिर[संपादित करें]

बाबा बैद्यनाथ मंदिर परिसर के पश्चिम में देवघर के मुख्य बाजार में तीन और मंदिर भी हैं। इन्हें बैजू मंदिर के नाम से जाना जाता है। इन मंदिरों का निर्माण बाबा बैद्यनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी के वंशजों ने करवाया था। प्रत्येक मंदिर में भगवान शिव का लिंग स्थापित है।

आसपास दर्शनीय स्थल[संपादित करें]

त्रिकुट[संपादित करें]

देवघर से 16 किलोमीटर दूर दुमका रोड पर एक खूबसूरत पर्वत त्रिकूट स्थित है। इस पहाड़ पर बहुत सारी गुफाएं और झरनें हैं। बैद्यनाथ से बासुकीनाथ मंदिर की ओर जाने वाले श्रद्धालु मंदिरों से सजे इस पर्वत पर रुकना पसंद करते हैं।

नौलखा मंदिर[संपादित करें]

देवघर के बाहरी हिस्से में स्थित यह मंदिर अपने वास्तुशिल्प की खूबसूरती के लिए जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण बालानन्द ब्रह्मचारी के एक अनुयायी ने किया था जो शहर से 8 किलोमीटर दूर तपोवन में तपस्या करते थे। तपोवन भी मंदिरों और गुफाओं से सजा एक आकर्षक स्थल है।

नंदन पर्वत[संपादित करें]

नन्दन पर्वत की महत्ता यहां बने मंदिरों के झुंड के कारण है जो विभिन्न देवों को समर्पित हैं। पहाड़ की चोटी पर कुंड भी है जहां लोग पिकनिक मनाने आते हैं।झारखंड के देवघर में स्थित नंदन पहाड़ वहां का सबसे प्रमुख पर्यटन स्थल है। इस पहाड़ी पर एक मंदिर समेत शिवजी, पार्वतीजी, गणेशजी, और कार्तिकेय जी के मंदिरों के साथ नंदी मंदिर भी स्थित है। नंदन पहाड़ वैद्यनाथ मंदिर से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। प्राचीन कथा के अनुसार, एक बार जब रावण ने शिवधाम में जबरदस्ती प्रवेश करने का प्रयास किया, तो वहां के रक्षक नंदी जी ने रावण को रोका, जिसके कारण रावण ने गुस्से में आकर नंदी को पहाड़ी से फेंक दिया, जिससे इस पहाड़ी का नाम नंदन पहाड़ हुआ।[4]

सत्संग आश्रम[संपादित करें]

ठाकुर अनुकूलचंद्र के अनुयायियों के लिए यह स्थान धार्मिक आस्था का प्रतीक है। सर्व धर्म मंदिर के अलावा यहां पर एक संग्रहालय और चिड़ियाघर भी है।

पाथरोल काली माता का मंदिर[संपादित करें]

मधुपुर में एक प्राचीन सुंदर काली मंदिर है, जिसे "पथरोल काली माता मंदिर" के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण राजा दिग्विजय सिंह ने लगभग 6 से 7 शताब्दी पहले करवाया था। मुख्य मंदिर के करीब नौ और मंदिर हैं, जहां भक्त दर्शन कर सकते हैं। यहाँ की मान्यता है कि जो मांगो मनोकामना पूर्ण होती है।

मां बासुकिनाथ के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ पर भगवान शिव के अराधना के लिए एक प्राचीन मंदिर स्थित है जिसे लोग विश्वभर से आकर दर्शन करने आते हैं।

देवघर के मंदिर का स्थापना वीर बलि के पुत्र भगवान भस्मासुर ने किया था। मां बासुकिनाथ का मंदिर यहाँ पर बसा है और यहाँ पर भगवान शिव की पूजा अनुसरण की जाती है।

आवागमन[संपादित करें]

भागलपुर, सुल्तानगंज, हजारीबाग, रांची, जमशेदपुर और गया से जुड़ा हुआ है।देवघर के लिए झारखंड के प्रमुख शहरों में रांची, धनबाद, और बोकारो के साथ-साथ झारखंड के अन्य नगरों से भी बस सेवाएं उपलब्ध हैं. इसके अलावा, आप देवघर के लिए बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ प्रमुख शहरों से भी बस सेवाएं आसानी से प्राप्त कर सकते हैं
  • रेल द्वारा: देवघर का सबसे करीबी रेलवे स्टेशन देवघर जंक्शन है, जो देवघर नगर से केवल 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। देवघर जंक्शन न केवल झारखण्ड, बल्कि झारखंड के बाहार कुछ पड़ोसी नगरों से भी रेलवे मार्ग से जुड़ा हुआ है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "Falling Rain Genomics, Inc - Deoghar". मूल से 3 नवंबर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 जुलाई 2013.
  2. "कार्तिक पूर्णिमा में डेढ़ लाख भक्तों ने किया बाबा का जलार्पण". प्रभात खबर. 28 नवंबर 2023. अभिगमन तिथि 30 नवंबर 2023.
  3. Sacred Complexes of Deoghar and Rajgir - Sachindra Narayan (b. 1974)
  4. "बाबा बैद्यनाथ धाम के आस-पास हैं ये टूरिस्ट स्पोर्ट". प्रभात खबर. 29 जुलाई 2023.