"कुम्भ मेला": अवतरणों में अंतर

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* [http://hindi.webdunia.com/news/news/regional/0905/31/1090531078_1.htm महाकुंभ समाचार]
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* [http://www.spin360.it/photo/photo.php?id=105&idCat=28 Photos by Spin360]
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* [http://www.worldbestmagic.in/kumbh-2019/ इलाहाबाद कुम्भ मेला 2019 कब से कब तक है, जानें शाही स्नान की तारीख]


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05:56, 28 दिसम्बर 2018 का अवतरण

हरिद्वार के कुंभ मेले (2010) के दौरान गंगा किनारे स्नान घाट पर श्रद्धालु
२००१ के प्रयाग कुम्भ मेले का दृष्य

कुंभ पर्व हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु कुंभ पर्व स्थल हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में स्नान करते हैं। इनमें से प्रत्येक स्थान पर प्रति बारहवें वर्ष और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ भी होता है। २०१३ का कुम्भ प्रयाग में हुआ था। २०१९ में प्रयाग में अर्धकुंभ मेले का आयोजन होगा।

खगोल गणनाओं के अनुसार यह मेला मकर संक्रांति के दिन प्रारम्भ होता है, जब सूर्य और चन्द्रमा, वृश्चिक राशी में और वृहस्पति, मेष राशी में प्रवेश करते हैं। मकर संक्रांति के होने वाले इस योग को "कुम्भ स्नान-योग" कहते हैं और इस दिन को विशेष मंगलिक माना जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन पृथ्वी से उच्च लोकों के द्वार इस दिन खुलते हैं और इस प्रकार इस दिन स्नान करने से आत्मा को उच्च लोकों की प्राप्ति सहजता से हो जाती है। यहाँ स्नान करना साक्षात स्वर्ग दर्शन माना जाता है।

अर्ध कुम्भ

‘अर्ध’ शब्द का अर्थ होता है आधा और इसी कारण बारह वर्षों के अंतराल में आयोजित होने वाले पूर्ण कुम्भ के बीच अर्थात पूर्ण कुम्भ के छ: वर्ष बाद अर्ध कुंभ आयोजित होता है। हरिद्वार में पिछला कुंभ 1998 में हुआ था।

हरिद्वार में 26 जनवरी से 14 मई 2004 तक चला था अर्ध कुंभ मेला, उत्तरांचल राज्य के गठन के पश्चात ऐसा प्रथम अवसर था। इस दौरान 14 अप्रैल 2004 पवित्र स्नान के लिए सबसे शुभ दिवस माना गया।

ज्योतिषीय महत्व

पौराणिक विश्वास जो कुछ भी हो, ज्योतिषियों के अनुसार कुंभ का असाधारण महत्व बृहस्पति के कुंभ राशि में प्रवेश तथा सूर्य के मेष राशि में प्रवेश के साथ जुड़ा है। ग्रहों की स्थिति हरिद्वार से बहती गंगा के किनारे पर स्थित हर की पौड़ी स्थान पर गंगा जल को औषधिकृत करती है तथा उन दिनों यह अमृतमय हो जाती है। यही कारण है ‍कि अपनी अंतरात्मा की शुद्धि हेतु पवित्र स्नान करने लाखों श्रद्धालु यहाँ आते हैं। आध्यात्मिक दृष्टि से अर्ध कुंभ के काल में ग्रहों की स्थिति एकाग्रता तथा ध्यान साधना के लिए उत्कृष्ट होती है। [1] हालाँकि सभी हिंदू त्योहार समान श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाए [2] जाते है, पर यहाँ अर्ध कुंभ तथा कुंभ मेले के लिए आने वाले पर्यटकों की संख्या सबसे अधिक होती है।[3]

पौराणिक कथाएँ

सागर मन्थन

कुंभ पर्व के आयोजन को लेकर दो-तीन पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं जिनमें से सर्वाधिक मान्य कथा देव-दानवों द्वारा समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत कुंभ से अमृत बूँदें गिरने को लेकर है। इस कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के शाप के कारण जब इंद्र और अन्य देवता कमजोर हो गए तो दैत्यों ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया। तब सब देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास गए और उन्हे सारा वृतान्त सुनाया। तब भगवान विष्णु ने उन्हे दैत्यों के साथ मिलकर क्षीरसागर का मंथन करके अमृत निकालने की सलाह दी। भगवान विष्णु के ऐसा कहने पर संपूर्ण देवता दैत्यों के साथ संधि करके अमृत निकालने के यत्न में लग गए। अमृत कुंभ के निकलते ही देवताओं के इशारे से इंद्रपुत्र 'जयंत' अमृत-कलश को लेकर आकाश में उड़ गया। उसके बाद दैत्यगुरु शुक्राचार्य के आदेशानुसार दैत्यों ने अमृत को वापस लेने के लिए जयंत का पीछा किया और घोर परिश्रम के बाद उन्होंने बीच रास्ते में ही जयंत को पकड़ा। तत्पश्चात अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव-दानवों में बारह दिन तक अविराम युद्ध होता रहा।

इस परस्पर मारकाट के दौरान पृथ्वी के चार स्थानों (प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक) पर कलश से अमृत बूँदें गिरी थीं। उस समय चंद्रमा ने घट से प्रस्रवण होने से, सूर्य ने घट फूटने से, गुरु ने दैत्यों के अपहरण से एवं शनि ने देवेन्द्र के भय से घट की रक्षा की। कलह शांत करने के लिए भगवान ने मोहिनी रूप धारण कर यथाधिकार सबको अमृत बाँटकर पिला दिया। इस प्रकार देव-दानव युद्ध का अंत किया गया।

अमृत प्राप्ति के लिए देव-दानवों में परस्पर बारह दिन तक निरंतर युद्ध हुआ था। देवताओं के बारह दिन मनुष्यों के बारह वर्ष के तुल्य होते हैं। अतएव कुंभ भी बारह होते हैं। उनमें से चार कुंभ पृथ्वी पर होते हैं और शेष आठ कुंभ देवलोक में होते हैं, जिन्हें देवगण ही प्राप्त कर सकते हैं, मनुष्यों की वहाँ पहुँच नहीं है।

जिस समय में चंद्रादिकों ने कलश की रक्षा की थी, उस समय की वर्तमान राशियों पर रक्षा करने वाले चंद्र-सूर्यादिक ग्रह जब आते हैं, उस समय कुंभ का योग होता है अर्थात जिस वर्ष, जिस राशि पर सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति का संयोग होता है, उसी वर्ष, उसी राशि के योग में, जहाँ-जहाँ अमृत बूँद गिरी थी, वहाँ-वहाँ कुंभ पर्व होता है।

कुम्भ २०१३

विशेष दिन

महाकुम्भ २०१३ स्नान के लिए कुम्भ में जो दिन विशेष हैं वो इस प्रकार हैं -

इतिहास

  • १०,००० ईसापूर्व (ईपू)' - इतिहासकार एस बी रॉय ने अनुष्ठानिक नदी स्नान को स्वसिद्ध किया।
  • ६०० ईपू - बौद्ध लेखों में नदी मेलों की उपस्थिति।
  • ४०० ईपू - सम्राट चन्द्रगुप्त के दरबार में यूनानी दूत ने एक मेले को प्रतिवेदित किया।
  • ईपू ३०० ईस्वी - रॉय मानते हैं कि मेले के वर्तमान स्वरूप ने इसी काल में स्वरूप लिया था। विभिन्न पुराणों और अन्य प्राचीन मौखिक परम्पराओं पर आधारित पाठों में पृथ्वी पर चार विभिन्न स्थानों पर अमृत गिरने का उल्लेख हुआ है। सर्व प्रथम आगम अखाड़े की स्थापना हुई कालांतर मे विखंडन होकर अन्य अखाड़े बने
  • ५४७ - अभान नामक सबसे प्रारम्भिक अखाड़े का लिखित प्रतिवेदन इसी समय का है।
  • ६०० - चीनी यात्री ह्यान-सेंग ने प्रयाग (वर्तमान इलाहाबाद) पर सम्राट हर्ष द्वारा आयोजित कुम्भ में स्नान किया।
  • ९०४ - निरन्जनी अखाड़े का गठन।
  • ११४६ - जूना अखाड़े का गठन।
  • १३०० - कानफटा योगी चरमपंथी साधु राजस्थान सेना में कार्यरत।
  • १३९८ - तैमूर, हिन्दुओं के प्रति सुल्तान की सहिष्णुता के दण्ड स्वरूप दिल्ली को ध्वस्त करता है और फिर हरिद्वार मेले की ओर कूच करता है और हजा़रों श्रद्धालुओं का नरसंहार करता है। विस्तार से - १३९८ हरिद्वार महाकुम्भ नरसंहार
  • १५६५ - मधुसूदन सरस्वती द्वारा दसनामी व्यव्स्था की लड़ाका इकाइयों का गठन।
  • 1678 -प्रणामी संप्रदायके प्रवर्तक, महामति श्री प्राणनाथजीको विजयाभिनन्द बुद्ध निष्कलंक घोषित ।
  • १६८४ - फ़्रांसीसी यात्री तवेर्निए नें भारत में १२ लाख हिन्दू साधुओं के होने का अनुमान लगाया।
  • १६९० - नासिक में शैव और वैष्णव साम्प्रदायों में संघर्ष; ६०,००० मरे।
  • १७६० - शैवों और वैष्णवों के बीच हरिद्वार मेलें में संघर्ष; १,८०० मरे।
  • १७८० - ब्रिटिशों द्वारा मठवासी समूहों के शाही स्नान के लिए व्यवस्था की स्थापना।
  • १८२० -हरिद्वार मेले में हुई भगदड़ से ४३० लोग मारे गए।
  • १९०६- ब्रिटिश कलवारी ने साधुओं के बीच मेला में हुई लड़ाई में बीचबचाव किया।
  • १९५४ - चालीस लाख लोगों अर्थात भारत की १% जनसंख्या ने इलाहाबाद में आयोजित कुम्भ में भागीदारी की; भगदड़ में कई सौ लोग मरे।
  • १९८९ - गिनिज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने ६ फ़रवरी के इलाहाबाद मेले में १.५ करोड़ लोगों की उपस्थिति प्रमाणित की, जोकी उस समय तक किसी एक उद्देश्य के लिए एकत्रित लोगों की सबसे बड़ी भीड़ थी।
  • १९९५ - इलाहाबाद के “अर्धकुम्भ” के दौरान ३० जनवरी के स्नान दिवस को २ करोड़ लोगों की उपस्थिति।
  • १९९८ - हरिद्वार महाकुम्भ में ५ करोड़ से अधिक श्रद्धालु चार महीनों के दौरान पधारे; १४ अप्रैल के एक दिन में १ करोड़ लोग उपस्थित।
  • २००१ - इलाहाबाद के मेले में छः सप्ताहों के दौरान ७ करोड़ श्रद्धालु, २४ जनवरी के अकेले दिन ३ करोड़ लोग उपस्थित।
  • २००३ - नासिक मेले में मुख्य स्नान दिवस पर ६० लाख लोग उपस्थित।
  • २००४ - उज्जैन मेला; मुख्य दिवस , १९, २२, २४ अप्रैल और ४ मई
  • २००७ - इलाहाबाद में अर्धकुम्भ। पवित्र नगरी इलाबाद में अर्धकुम्भ का आयोजन ३ जनवरी २००७ से २६ फ़रवरी २००७ तक हुआ।
  • २०१० - हरिद्वार में महाकुम्भ प्रारम्भ। १४ जनवरी २०१० से २८ अप्रैल २०१० तक आयोजित किया जाएगा। विस्तार से - २०१० हरिद्वार महाकुम्भ
  • २०१५ - नाशिक और त्रयंबकेश्वर में एक साथ जुलाई १४ ,२०१५ को प्रातः ६:१६ पर वर्ष २०१५ का कुम्भ मेला प्रारम्भ हुआ और सितम्बर २५,२०१५ को कुम्भ मेला समाप्त हो जायेगा। [4]
  • २०१६ - उज्जैन में २२ अप्रैल से आरम्भ

सन्दर्भ

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ