संताप

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पुं० [सं० सम्√तप् (तपना)+घञ] १. अग्नि धूप आदि का बहुत तीव्र ताप। आँच। २. शरीर में किसी कारण से होने वाली बहुत अधिक जलन। ३. ज्वर। बुखार। ४. शरीर में होने वाला दाह नामक रोग। ५. कोई ऐसा बहुत बड़ा कष्ट या दुःख जिससे मन जलता हुआ सा जान पड़े। बहुत तीव्र मानसिक क्लेश या पीड़ा। ६. दुश्मन। शत्रु। ७. पाप आदि करने पर मन में होने वाला अनुताप (स्रोत)

यह शब्द हिंदी में काफी प्रयुक्त होता है, यदि आप इसका सटीक अर्थ जानते है तो पृष्ठ को संपादित करने में संकोच ना करें (याद रखें - पृष्ठ को संपादित करने के लिये रजिस्टर करना आवश्यक नहीं है)। दिया गया प्रारूप सिर्फ दिशा निर्देशन के लिये है, आप इसमें अपने अनुसार फेर-बदल कर सकते हैं।


उदाहरण[संपादित करें]

मूल[संपादित करें]

इस शब्द का उपयोग मनुष्य के दुख को दर्शाने के लिए किया जाता है। ऐसा दुख जिससे मनुष्य अंदर ही अंदर जलता रहता है।

पुं० [सं० सम्√तप् (तपना)+घञ] १. अग्नि धूप आदि का बहुत तीव्र ताप। आँच। २. शरीर में किसी कारण से होने वाली बहुत अधिक जलन। ३. ज्वर। बुखार। ४. शरीर में होने वाला दाह नामक रोग। ५. कोई ऐसा बहुत बड़ा कष्ट या दुःख जिससे मन जलता हुआ सा जान पड़े। बहुत तीव्र मानसिक क्लेश या पीड़ा। ६. दुश्मन। शत्रु। ७. पाप आदि करने पर मन में होने वाला अनुताप (स्रोत)

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हिंदी में[संपादित करें]

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