श्रेणी वार्ता:कविता संग्रह
कवि अम्बरीष श्रीवास्तव का संक्षिप्त परिचय[संपादित करें]
बहुमुखी प्रतिभा के धनी एवं कर्मयोगी कवि अम्बरीष श्रीवास्तव जनपद सीतापुर के एक प्रख्यात वास्तुशिल्प अभियंता एवं मूल्यांकक होने के साथ साथ एक राष्ट्रवादी विचारधारा के कवि हैं | जिस समर्पित भावना से वे एक सुन्दर, उपयोगी व् टिकाऊ भवन को डिजायन करते है ठीक उसी तरह की भावना से वे काव्य सृजन में निरंतर अनुरत हैं | कई प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं जैसे “स्वर्गविभा.इन “, “साहित्य-वैभव.कॉम “, “काव्य.इन्फो” , “हिन्दी-मीडिया.इन” , “विकिपीडिया राम भजन संग्रह”, “चिट्ठाजगत.इन” तथा ब्लॉग आदि पर उनकी अनेकों रचनाएँ प्रकाशित हैं, उनकी रचनाओं के गुणवत्ता के परिणामस्वरूप उन्हें राष्ट्रीय कवि संगम वेब् साईट पर भी स्थान दिया गया है |
एक कविता के माध्यम से वे प्रभु राम से प्रार्थना करते हैं ——
“मोक्ष-वोक्ष” कुछ मैं ना माँगूं , ‘कर्मयोग’ तुम देना,
जब भी जग में मैं गिर जाऊँ मुझको अपना लेना,
कृष्ण और साईं रूप तुम्हारे, करते जग कल्याण
कैसे करुँ वंदना तेरी , दे दो मुझको ज्ञान
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम….”
अम्बरीष श्रीवास्तव का जन्म ३०, जून सन १९६५ को भारतवर्ष स्थित उत्तर प्रदेश के जिला सीतापुर के “सरैया-कायस्थान” गाँव में हुआ था | बचपन में ग्रामीण परिवेश में शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंनें
अपनी अंतिम तकनीकी शिक्षा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर से प्राप्त की | वर्तमान में वे भारतीय भवन अभिकल्पक संघ संस्थान के अध्यक्ष है तथा उन्हें देश विदेश के कई प्रतिष्ठित तकनीकी
व्यावसायिक संस्थानों जैसे अमेरिकन सोसायटी आफ सिविल इंजीनियर्स ( यू ० एस ० ए ० ) , भारतीय पुल अभियंता संस्थान, भारतीय भवन कांग्रेस, भारतीय सड़क कांग्रेस, भारतीय तकनीकी शिक्षा समिति,
भारतीय गुणवत्ता वृत्त फॉरम, भारतीय भवन अभिकल्पक संघ संस्थान, भारतीय उद्योग संस्थान, भारतीय मानवाधिकार संघ, आर्किटेक्चरल इंजीनियरिंग संस्थान ( यू ० एस ० ए ० ) तथा संरचनात्मक
इंजीनियरिंग संस्थान ( यू ० एस ० ए ० ) आदि की सदस्यता प्राप्त है | साथ- साथ वे “हिन्दी साहित्य परिषद्” व “साहित्य उत्थान परिषद्” सीतापुर के सदस्य तथा “हिन्दी सभा ” सीतापुर के आजीवन
सदस्य भी हैं | अपनी माता श्रीमती मिथलेश श्रीवास्तव एवं पिता श्री राम कुमार श्रीवास्तव के आशीर्वाद व वरद-हस्त के फलस्वरूप वर्ष २००७ में उनको स्वयं के वास्तुशिल्प अभियंत्रण कार्य क्षेत्र में उत्कृष्ट
सेवा योगदान, व प्राप्त उपलब्धियों हेतु राष्ट्रीय अवार्ड इंदिरा गाँधी प्रियदर्शनी अवार्ड से विभूषित किया गया है, इसके अतिरिक्त वे अनेकों उपाधियों यथा “सरस्वती रत्न”, “अभियंत्रण श्री” आदि से भी विभिन्न
संस्थाओं द्वारा सम्मानित किये गए हैं | वर्तमान में वे सीतापुर में वास्तुशिल्प अभियंता के रूप में स्वतंत्र रूप से जन सामान्य को अपनी सेवाएं दे रहे हैं तथा वे कई राष्ट्रीयकृत बैंकों व कंपनियों में मूल्यांकक
के रूप में सूचीबद्ध होकर कार्य कर रहे हैं | लोकोपयोगी होने के कारण उनकी रचनाएँ दीर्घकाल तक स्थाई रहेंगीं |
समर्पण (कविता संग्रह) अम्बरीष श्रीवास्तव की कवितायेँ[संपादित करें]
"माँ सरस्वती वंदना "[संपादित करें]
हे, ज्ञान की ज्योति, जगाने वाली.......
हे, अमृत रस, वर्षाने वाली.........
तेरी, महिमा अपरम्पार,
तुझको, पूज रहा संसार .........२
हे, ज्ञान की ज्योति, जगाने वाली.......
जो जन तेरी, शरण में आते,
बल बुद्धि विद्या, ज्ञान हैं पाते ..........२
हे मोक्षदायिनी, देवी माता ......२
कर दो बेड़ा पार ...........
तुझको पूज रहा संसार .........२
हे, ज्ञान की ज्योति, जगाने वाली.......
हम पर कृपा बनाये रखना ,
ज्ञान से मन हर्षाये रखना .....२
हे वीणाधारिणी हंसवाहिनी .......२
हर लो, जग का सब अंधकार .......
तुझको पूज रहा संसार ....२
हे, ज्ञान की ज्योति, जगाने वाली.......2
"जय-जय राम"[संपादित करें]
मनवा मेरा कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम,
तेरे चरणों में हैं बसते जग के सारे धाम..............
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम.........२
अयोध्या नगरी में तुम जन्मे , दशरथ पुत्र कहाये,
विश्वामित्र थे गुरु तुम्हारे, कौशल्या के जाये,
ऋषि मुनियों की रक्षा करके तुमने किया है नाम ..........२
तुलसी जैसे भक्त तुम्हारे, बांटें जग में ज्ञान................
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम.........२
मनवा मेरा कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम..................
सुग्रीव-विभीषण मित्र तुम्हारे, केवट- शबरी साधक,
भ्राता लक्ष्मण संग तुम्हारे, राक्षस सारे बाधक,
बालि-रावण को संहारा, सौंपा अदभुद धाम...........२
जटायु सा भक्त आपका आया रण में काम .................
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम.........२
मनवा मेरा कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम..................
शिव जी ठहरे तेरे साधक, हनुमत भक्त कहाते,
जिन पर कृपा तुम्हारी होती वो तेरे हो जाते,
सबको अपनी शरण में ले लो दे दो अपना धाम ........२
जग में हम सब चाहें तुझसे, भक्ति का वरदान .................
मनवा मेरा कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम..................
मोक्ष-वोक्ष कुछ मैं ना माँगूं , कर्मयोग तुम देना,
जब भी जग में मैं गिर जाऊँ मुझको अपना लेना,
कृष्ण और साईं रूप तुम्हारे, करते जग कल्याण ................२
कैसे करुँ वंदना तेरी , दे दो मुझको ज्ञान .....................
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम.........२
मनवा मेरा कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम..................
जो भी चलता राह तुम्हारी, जग उसका हो जाता,
लव-कुश जैसे पुत्र वो पाए, भरत से मिलते भ्राता,
उसके दिल में तुम बस जाना जो ले-ले तेरा नाम .........२
भक्ति भाव से सेवक सौंपे तुझको अपना प्रणाम ..........
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम.........२
मनवा मेरा कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम..................
मनवा मेरा कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम..................
तेरे चरणों में हैं बसते जग के सारे धाम..............
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम.........२
प्रभु परशुराम की महिमा[संपादित करें]
भारत वर्ष की धरती पर, प्रभु ने षष्ठम् अवतार लिया |
भक्तों की रक्षा करने को, भगवान ने फरसा थाम लिया ||
त्रेता युग में थे तुम जन्मे, भृगु के पौत्र कहाये थे |
जमदग्नि-रेणुका के तुम जाये, ऋषि-कुल में तुम आये थे ||
प्रसेनजित के पुण्य थे पाए, साक्षात् शिव से फरसा पाया,
कामधेनु का दुग्ध पिया था, माँ के आँचल की थी छाया |
कामधेनु का दर्शन करके, हैहय-नरेश था ललचाया |
ऋषि के ना करने पर उसने, कामधेनु का हरण कराया ||
पुरुषोत्तम लौटे जब आश्रम, कृतवीर्य को था ललकारा |
सहस्त्र भुजाएं काट के उसकी सैन्य सहित उसको संहारा ||
अनुपस्थिति में परशुराम की, अर्जुन-पुत्र था आश्रम आया |
एकांत में उसने ऋषि को पाकर, जमदग्नि का वध करवाया ||
प्रतिशोध में अपने पिता के, हैहय क्षत्रिय सब संहारे |
पापमुक्त कर दिया धरा को, सहस्त्रबाहु गया प्रभु के द्वारे ||
सर्वोपरि है पिता की आज्ञा, युद्ध-नीति विधि ज्ञाता हैं |
प्रभु-भक्त ब्राह्मण समाज के, ये तो भाग्य विधाता हैं ||
शिव-धनुष टंकार सुनी जब, तुरतहिं रक्षा को थे धाये |
सिया-स्वयंवर में थे पहुंचें, सप्तावतार के दर्शन पाए ||
सीता को आशीष दिया, सुख-सौभाग्य सदा तुम पाओ |
श्रीराम संग सदा बिराजो, पतिव्रता तुम सदा कहाओ ||
शिष्य भीष्म और द्रोण तुम्हारे, कर्ण को भी था ज्ञान दिया |
महाभारत काल में तुमने, प्रभु भक्तों को मान दिया ||
ब्राह्मणों की रक्षा में तुमने, सारा जीवन लगा दिया |
आज भी आवश्यकता है तुम्हारी , सबने तुमको याद किया ||
कल्कि पुराण में कहा गया है, प्रभु दशमावतार में आयेंगे |
तुम्हीं गुरु होगे उन प्रभु के, तुम्हीं से शिक्षा पाएंगे ||
भगवन परशुराम की महिमा, जगत में जो भी गायेगा |
सरस्वती की कृपा रहेगी, सदा मान वो पायेगा ||
सरगमीं प्यास को अपनी मैं बुझा लूँ तो चलूँ ,[संपादित करें]
सरगमीं प्यास को अपनी मैं बुझा लूँ तो चलूँ ,
तुम को दिल में आहिस्ता से सजा लूँ तो चलूँ ......२
भीनी यादों को यूँ संजोया है ,
बीज जन्नत का मैंने बोया है,
मन मेरा बस रहा इन गीतों में ,
ख़ुद को आईना, मैं दिखा लूँ तो चलूँ ||
सरगमीं प्यास को अपनी मैं बुझा लूँ तो चलूँ ........2
दिल की आवाज़ यूँ सहेजी है ,
मस्त मौसम में आंसू छलके हैं ,
गम की बूँदों को रखा सीपी में ,
शब्द मुक्तक मैं उठा लूँ तो चलूँ ||
सरगमीं प्यास को अपनी मैं बुझा लूँ तो चलूँ ,
तुम को दिल में आहिस्ता से सजा लूँ तो चलूँ ......२
"होली के रंग "[संपादित करें]
हर शख्श पे दिल आए, ये जरूरी तो नहीं |
कुछ एक ही मिलते हैं, दिल से लगाने के लिए ||
तेरे दीदार को तरसे हैं हम .......
सूरत तो दिखाने आ जा.......|
कैसे मिलते तुझसे........
रंगों के बहाने आ जा .......
रंग प्यार के हम सब घोलें........
अपनेपन के हों गुब्बारें ......|
इन रंगों की तेज धार से........
बह जांय नफरत की दीवारें .....||
ऐसे रंगना हमें........
दुश्मन पे प्यार आ जाए.......|
भूलकर शिकवे सारे. ......
गले मिल लें बहार आ जाए.....||
"दिल की चाहत"[संपादित करें]
इस कदर तुम तो अपने करीब आ गए ,
कि तुम से बिछड़ना गवारां नहीं |
ऐसे बांधा मुझे अपने आगोश में ,
कि ख़ुद को अभी तक संवारा नहीं ||
अपनी खुशबू से मदहोश करता मुझे ,
दूसरा कोई ऐसा नज़ारा नहीं |
दिल की दुनिया में तुझको लिया है बसा,
तुम जितना मुझे कोई प्यारा नहीं ||
दिल पे मरहम हमेशा लगाते रहे ,
आफतों में भी मुझको पुकारा नहीं |
अपना सब कुछ तो तुमने है मुझको दिया,
रहा दिल तक तो अब ये हमारा नहीं ||
हमसफ़र तुम हमारे हमेशा बने ,
इस ज़माने का कोई सहारा नही |
साथ देते रहो तुम मेरा सदा,
मिलता ऐसा जनम फिर दुबारा नहीं ||
"निर्माण श्रमिक"[संपादित करें]
भूमिहीन है वो बेचारा,
या मजदूरी तेरा सहारा |
हाड़तोड़ मेहनत वो करता ,
फिर भी उसका पेट न भरता |
रोटी संग नमक और प्याज ,
उसकी यही नियति है आज |
ये ही है जगत की सोंच,
क्षमता से ज्यादा सिर पर बोझ|
प्रायः नहीं काम पर छांव,
तसले ढोकर होते घाव |
कार्यस्थल में नहीं सुरक्षा,
राम भरोसे उसकी रक्षा |
मजदूरी में मिलते धेले '
पेस्टीसाइड तक वो झेले |
साँझ को थककर होता चूर,
टूटी साइकिल घर है दूर |
परिश्रम से जो भवन बनाता ,
बाद में उसमें जा ना पाता |
उसका नहीं प्रशिक्षण होता ,
गुरु शिष्य परम्परा वो ढोता |
यही है मजदूरी में खामी ,
चौराहे पर श्रम की नीलामी |
सहन शक्ति की भी है सीमा ,
देना होगा उसको बीमा |
श्रमिक के लिए यही जरूरी,
उसको मिले उचित मजदूरी |
यदि वो शिक्षा को अपनाये,
शोषित होने से बच जाये |
"माँ"[संपादित करें]
अपने रक्त से सिंचित करके माँ नें हमको जनम दिया ,
गर्भावस्था से ही उसने संस्कारों का आधार दिया |
सर्वप्रथम जब आँख खुली तो मुख पे माँ ही स्वर आया ,
दुनिया में किस बात का डर जब सिर पर हो माँ का साया||
पहला स्वर सुनते ही उसने छाती से अमृत डाला,
अपने वक्षस्थल में रखकर ममता से उसने पाला |
प्रथम गुरु है माँ ही अपनी उससे पहला ज्ञान मिला,
माँ का रूप है सबसे प्यारा सबसे उसको मान मिला ||
नारी के तो रूप अनेकों भगिनी रूप में वो भाती ,
संगिनी रूप में साथ निभाकर मातृत्व से सम्पूर्णता पाती |
अपरम्पार है माँ की महिमा त्याग की मूरत वो कहलाती ,
उसके कर्म से प्रेरित होकर मातृ-भूमि पूजी जाती ||
माँ में ही नवदुर्गा बसती माता ही है कल्याणी ,
माँ ही अपनी मुक्तिदायिनी माँ का नाम जपें सब प्राणी |
माँ के चरणों में स्वर्ग है बसता करते सब तेरा वंदन,
तेरा कर्जा कभी न उतरे तुझको कोटिश अभिनन्दन ||
"हिन्दी महिमा"[संपादित करें]
सोने जैसी खरी है हिन्दी,
चाँदी जैसी उज्जवल हिन्दी,
गंगा जैसी निर्मल हिन्दी,
माटी की सुगंध है हिन्दी,
ममता का आँचल है हिन्दी,
करुणा का सागर है हिन्दी,
ब्रह्मा का वरदान है हिन्दी,
सरस्वती का सम्मान है हिन्दी,
उर्दू की भगिनी है हिन्दी,
मराठी की संगिनी है हिन्दी,
गुजराती में गौरव हिन्दी,
पञ्जाबी की प्रीति है हिन्दी,
कर्मयोग का सार है हिन्दी,
संस्कृत का अवतार है हिन्दी,
वेद पुराणों का ज्ञान है हिन्दी,
अपनों की पहचान है हिन्दी,
हिन्दी सरल बनानी होगी,
जन जन तक पहुंचानी होगी,
अंग्रेजी से हाथ मिलाकर ,
ज्ञान की ज्योंति जलानी होगी|
"बचपन के दिन"[संपादित करें]
टिमटिम तारे, चंदा मामा,
माँ की थपकी मीठी लोरी|
सोंधी मिटटी, चिडियों की बोली,
लगती प्यारी माँ से चोरी ||
सुबह की ओस सावन के झूले,
खिलती धूप में तितली पकड़ना|
माँ की घुड़की पिता का प्यार,
रोते रोते हँसने लगना ||
पल में रूठे, पल में हँसते ,
अपने आप से बातें करना |
खेल खिलौने साथी संगी ,
इन सबसे पल भर में झगड़ना ||
लगता है वो प्यारा बचपन ,
शायद लौट के ना आए |
जहाँ उसे छोड़ा था हमने ,
वहीं पे हमको मिल जाए ||
"कविता"[संपादित करें]
अभावों में बीता हो शैशव,
बचपन भी हो द्वंद भरा |
युवावस्था संघर्ष भरी हो ,
कविता उपजे उसी धरा ||
व्यंग्य ओज अलंकार हैं इसके,
अंतर्मन को छू जाती |
इतनी शक्ति पाई इसने ,
जड़ तक को चेतन कर जाती ||
करुणा ममता दया दृष्टी से,
हर प्राणी को अपनाए,
क्रूर ह्रदय हो चाहे कितना,
उसको राह पे ले आए |
भीगी पलकें भीगा दामन,
सुलगती सांसे दहकती छाती |
विरह अग्नि होठों पे आह ,
कविता वहाँ जनम है पाती ||
कवि की रचना तथ्यपरक हो,
फूंके वो जन-जन में प्राण |
संयमित होकर कलम उठाये,
उद्देश्य हो उसका जग-कल्याण||
"प्रभु का आवास"[संपादित करें]
ईश्वर को हम ढूँढ़ने निकले,
मन्दिर मस्जिद गुरूद्वारे में |
मिले न भगवन कहीं भी हमको,
ढूंढा चर्च और चौबारे में ||
धर्मग्रंथों में ढूंढा उनको,
बहुत सा पूजा पाठ किया |
मस्जिद में नमाज़ पढ़ी,
अरदास किया उपवास किया ||
इतना सब कुछ करके फिर भी,
कोई न साक्षात्कार हुआ ,
पुजारी मौलवी ग्रन्थी पादरी ,
सबसे मिलना बेकार हुआ ||
थक हार कर घर को लौटे,
सदगुरु मिले थे राहों में |
बात पते की पायी उनसे,
बसते प्रभु हृदयस्थल में ||
प्राणी का सम्मान जो करता,
उसके ह्रदय है प्रभु का वास |
सत्संग त्याग दुर्जन संग पाये,
उसके हिय शैतान निवास ||
"जय जवान"[संपादित करें]
हवाओं में महके कहानी उसी की ,....2
जो सरहद पे जाए जवानी उसी की |
अपनों से बिछड़े और घर बार छोड़ा,
वतन की जरुरत पे संसार छोड़ा.......2
सरहद से लौटी निशानी उसी की .....२
जो सरहद पे जाए जवानी उसी की |
हवाओं में महके कहानी उसी की .....
दिलों में बसे हैं वतन के ये जाये,
खुशनसीबी है अपनी फतह ले के आये..२
कभी भी न भूले कुर्बानी उसी की ....२
जो सरहद पे जाए जवानी उसी की..
हवाओं में महके कहानी उसी की .....
अपना अमन चैन कायम है इनसे,
सच्चे यही हैं निगाहबां अपने .......२
हुई सारी दुनिया दीवानी इन्ही की ....२
जो सरहद पे जाए जवानी उसी की..
हवाओं में महके कहानी उसी की .....
जो सरहद पे जाए जवानी उसी की..
" स्वामी विवेकानंद के सदवचन"[संपादित करें]
बल से जीवन संचरण, दुर्बलता मृत्यु समान|
निराशा अपनी शत्रु है , साहस से कल्याण ||
पूरे मन जी प्राण से, कुछ भी कर लो काम |
श्रेष्ठतम् मानव देह है, कर लो इसे प्रणाम ||
सेवा त्याग आदर्श हो , सीरदार सरदार |
स्वयं से चाहो सहायता, सदा रहो तैयार ||
उन्नति का तो उपाय है , अपने पर विश्वास |
जैसा सोंचो पाओगे , ईश्वर होंगे पास ||
निर्भयता से अज्ञान का, सदैव हुआ विनाश |
आत्मा अव्यक्त ब्रह्म है, शिक्षा सबसे खास ||
केवल वही है नास्तिक , जिसमे न आत्मविश्वास |
जितनी हो एकाग्रता , उतनी पूरी हो आस ||
स्वामीजी के ये वचन , सब जन यदि अपनाय |
भारतवर्ष विश्व में , महाशक्ति हो जाय ||
रचयिता ,[संपादित करें]
अम्बरीष श्रीवास्तव "वास्तुशिल्प अभियंता"
९१, सिविल लाइंस सीतापुर , उत्तर प्रदेश , इंडिया ( भारतवर्ष )
मोबाइल : +९१९४१५०४७०२०
ईमेल: ambarishji@gmail.com
अम्बरीष श्रीवास्तव "वास्तुशिल्प अभियंता" का संक्षिप्त जीवन-वृत्त[संपादित करें]
अम्बरीष श्रीवास्तव
"वास्तुशिल्प अभियंता" व मूल्यांकक
बल से जीवन संचरण, दुर्बलता मृत्यु समान |
निराशा अपनी शत्रु है , साहस से कल्याण ||
जीवन लक्ष्य :[संपादित करें]
अपने आचरण व क्रियाकलापों के माध्यम से जन मानस में समयानुकूल स्वस्थ विचारयुक्त प्रवृत्ति विकसित कराने में सहयोग देना ताकि समाज में स्वस्थ परम्पराओंयुक्त वातावरण सृजित किया जा सके और हम अपने राष्ट्र को स्थिरता सहित हर प्रकार की सम्पन्नता देने में सहयोग कर सकें|
व्यावसायिक जीवन लक्ष्य :[संपादित करें]
अपने तकनीकी व्यवसाय व् भूकंपरोधी डिजाईन से सम्बंधित महत्वपूर्ण सूचनायें व बारीकियाँ, श्रमिकों, अभियंताओं, वास्तुविदों, व भवन डिजाईनरों आदि के साथ -साथ जनसामान्य को उपलब्ध कराते हुए इसे व्यवहार में लेने हेतु प्रोत्साहित करना ताकि आपदाओं के समय क्षति की मात्रा को न्यूनतम किया जा सके|
जन्म तिथि : ३०-०६-१९६५ ( तीस जून सन् उन्नीस सौ पैसठ ई०)
राष्ट्रीयता : भारतीय
स्थाई पता :
अम्बरीष श्रीवास्तव "वास्तुशिल्प अभियंता"
91/९१, आगा कालोनी, सिविल लाइंस सीतापुर २६१००१ , उत्तर प्रदेश , इंडिया ( भारतवर्ष )
मोबाइल : +९१९४१५०४७०२० +919415047020
ईमेल: ambarishji@gmail.com
फ़ोन नम्बर : +९१ ५८६२ २४४४४०
वेब साईट : www. ambarishsrivastava.com
हिन्दी कविताओं हेतु वेब साईट : http://kaviambarishsrivastava.wordpress.com, http://hindimekavita.blogspot.com
शैक्षिक योग्यता :[संपादित करें]
स्नातक
तकनीकी योग्यता :[संपादित करें]
D. C. E. , A. M. ASCE (USA), A. M. AEI. (USA), A. M. SEI. (USA), COURSE ON SEISMIC DESIGN OF STEEL STRUCTURES (IIT-KANPUR), SEISMIC DESIGN OF BRIDGES (IIT-KANPUR), SEISMIC EVALUTION AND STRENGTHENING OF BUILDINGS (IIT-KANPUR), SEISMIC DESIGN OF MASONRY BUILDINGS (IIT-KANPUR)
सदस्यता :[संपादित करें]
१. एसोशियेट सदस्य अमेरिकन सोसायटी आफ सिविल इंजीनियर्स ( यू ० एस ० ए ० )
२। आजीवन फेलो सदस्य भारतीय पुल अभियंता संस्थान
३। आजीवन सदस्य भारतीय भवन कांग्रेस
४। आजीवन सदस्य भारतीय सड़क कांग्रेस
५। आजीवन सदस्य भारतीय तकनीकी शिक्षा समिति
६। आजीवन सदस्य भारतीय गुणवत्ता वृत्त फॉरम
७। आजीवन फेलो सदस्य भारतीय भवन निर्माण अभिकल्पक संघ संस्थान
८ । सदस्य भारतीय उद्योग संस्थान
९ । सदस्य भारतीय मानवाधिकार संघ
१० । एसोशियेट सदस्य आर्किटेक्चरल इंजीनियरिंग संस्थान ( यू ० एस ० ए ० )
११ । एसोशियेट सदस्य संरचनात्मक इंजीनियरिंग संस्थान ( यू ० एस ० ए ० )
मूल्यांकक के रूप में सूचीबद्धता :[संपादित करें]
१। इलाहाबाद बैंक
२। लखनऊ क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक
३। यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी
४। ओरिएण्टल इंश्योरेंस कंपनी
तकनीकी कार्य अनुभव :[संपादित करें]
लगभग २४ वर्ष,
सीतापुर में कराये गए प्रमुख कार्य जैसे रीजेंसी डिग्री कालेज, विजयलक्ष्मी नगर में कैलाश महावर का निवास , सिविल लाइंस में डा० जी० एल० दीक्षित के निकट अवधेश वर्मा का निवास, मोहल्ला कोट में मुनिसिपल इंटर कॉलेज के पास अनीस मिर्जा का निवास व डा० समीर अग्रवाल के पीछे अग्रवाल कालोनी में अनूप अग्रवाल व संदीप अग्रवाल का निवास आदि।
अन्य सामाजिक कार्य :[संपादित करें]
इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ बिल्डिंग डिजाईनर्स एशोसिएशन का गठन , निर्माण श्रमिक संघ सीतापुर का गठन, निर्माण श्रमिकों का प्रशिक्षण, सीतापुर में वर्ष २००८ में बाढ़-आपदा के समय पीडितों की सहायता हेतु ए सी सी सीमेंट लिमिटेड व अन्य मल्टीनेशनल कंपनियों को प्रेरित किया तथा स्वयं यथासंभव सहायता की | मोहल्ला आगा कालोनी में युवकों के सहयोग से बुजुर्गों के सम्मान समारोह, भूतपूर्व सैनिकों के सम्मान समारोह तथा विवेकानंद पब्लिक स्कूल आगा कालोनी में शिक्षकों तथा कवियों के सम्मान समारोह का सफल आयोजन कराया |
नेतृत्व सम्बन्धी क्षमतायें :[संपादित करें]
१। अध्यक्ष भारतीय भवन निर्माण अभिकल्पक संघ संस्थान भारतवर्ष |
२। वरिष्ठ उपाध्यक्ष कायस्थ जाग्रति महासभा सीतापुर |
३| जिलाध्यक्ष ग्रामीण अभियंता संघ सीतापुर |
साहित्यिक रूचि:[संपादित करें]
हिन्दी कविता सृजन तथा प्रारंभिक स्तर पर बांसुरी वादन आदि |
प्रकाशित रचनाओं हेतु सन्दर्भ :
(१)http://www.swargvibha.in पर प्रकाशित अम्बरीष श्रीवास्तव का बायोडाटा व पञ्च कवितायें क्रमशः "माँ ", जय जवान" व "स्वामी विवेकानंद के सद्वचन", "कविता " व "हिंदी महिमा"
(२)http://www.sahityavaibhav.com पर सात रचनाएँ क्रमशः "सरगमीं प्यास को मैं बुझा लूँ तो चलूँ" ,, "माँ सरस्वती वंदना ", "होली के रंग ", "हिन्दी महिमा""माँ", " स्वामी विवेकानंद के सदवचन" व "जय जवान"
(3)http://www.kavya.info पर तीन कवितायें क्रमशः "माँ ", जय जवान" व "स्वामी विवेकानंद के सद्वचन"
(4)http://www.chitthajagat.in/?chitthakar=Ambarish%20Srivastava पर अम्बरीष श्रीवास्तव का बायोडाटा सरगमीं प्यास को मैं बुझा लूँ तो चलूँ "माँ सरस्वती वंदना ", "होली के रंग ", "हिन्दी महिमा""माँ", " स्वामी विवेकानंद के सदवचन" व "जय जवान" आदि |
(5)https://www.kavitavali.co.in/hindi-poetry-wife/hindi-poetry/ पत्नी के त्याग और प्रेम पर कविता
http://kavisangam.com/kavi/wordpress/pariwar/2007/06/04/%E0%A4%89%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6/ पर हिन्दी कवियों की सूची में नाम का प्रकाशन |
http://en.wikipedia.org/wiki/List_of_Hindi_language_poets पर हिन्दी कवियों की सूची में नाम का प्रकाशन |
http://en।wikipedia.org/wiki/Ambarish_Srivastava पर प्रकाशन|
http://en.wikipedia.org/wiki/Sitapur पर कवि अम्बरीष श्रीवास्तव के नाम का प्रकाशन|
http://hi.wikipedia.org/wiki/श्रेणी_वार्ता:कविता_संग्रह
• http://hindimekavita.blogspot.com
• http://madhurkavya.blogspot.com
• http://www.ambarishsrivastava.com
• http://www.nicee.org/AnnualReport_2006.pdf
• http://www.indian-business-portal.com/service-providers/designing-services.htm
• http://www.indianyellowpages.com/business-services/decorating-design
• http://www.iitk.ac.in/drpg/annualreport.pdf
• http://www.como-llamar.com.mx/phone/India/Uttar_pradesh/Sitapur.htm
• http://www।indianyellowpages.com/business-services/decorating-design/
• https://zoomseoservices.in/kl/local-seo-service-palakkad
प्राप्त अवार्ड व सम्मान :[संपादित करें]
१। राष्ट्रीय अवार्ड इंदिरा गाँधी प्रियदर्शनी अवार्ड (स्वयं के वास्तुशिल्प अभियंत्रण कार्य क्षेत्र में उत्कृष्ट सेवा योगदान, व प्राप्त उपलब्धियों हेतु )
२। भारतीय मानवाधिकार संघ द्वारा "अभियंत्रण श्री" से अलंकृत |
३। विवेकानंद सेवा संस्थान सीतापुर द्वारा " काव्य श्री " सारस्वत सम्मान से विभूषित |
४। सीतापुर जेसीज द्वारा हिन्दी हस्तलेख प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार प्राप्त |
५। जे पी सीमेंट लिमिटेड द्वारा सीतापुर में आयोजित समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में सम्मानित |
६। ए सी सी सीमेंट लिमिटेड व अन्य मल्टीनेशनल कंपनियों द्वारा अनेक बार सम्मानित |
७ । हिन्दी साहित्य परिषद् द्वारा "सरस्वती-रत्न" से सम्मानित |