शेख़ सादी

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मुस्लिहुद्दीन मुश्रीफ़ इब्न अब्दुल्लाह शीराज़ी (Muslih-ud-Din Mushrif ibn-Abdullah Shirazi)
गुलाबी बाग़ में सादी, मुग़ल काल में लिखी "गुलिस्तान" पुस्तक से, c. 1645
व्यक्तिगत जानकारी
जन्म1210[1]
शीराज़ इरान
मृत्यु1291 or 1292[1]
शिराज़
वृत्तिक जानकारी
विचार सम्प्रदाय (स्कूल)फ़ारसी शायरी, फ़ारसी साहित्य
मुख्य विचारशायरी, सूफ़ीवाद, तर्क, दर्शन, मानवतावाद

शेख़ सादी (शेख मुसलिदुद्दीन सादी), 13वीं शताब्दी का सुप्रसिद्ध साहित्यकार। ईरान के दक्षिणी प्रांत में स्थित शीराज नगर में 1185 या 1186 में पैदा हुआ था। उसकी प्रारंभिक शिक्षा शीराज़ में ही हुई। बाद में उच्च शिक्षा के लिए उसने बगदाद के निज़ामिया कालेज में प्रवेश किया। अध्ययन समाप्त होने पर उसने इसलामी दुनिया के कई भागों की लंबी यात्रा पर प्रस्थान किया - अरब, सीरिया, तुर्की, मिस्र, मोरक्को, मध्य एशिया और संभवत: भारत भी, जहाँ उसने सोमनाथ का प्रसिद्ध मंदिर देखने की चर्चा की है। सीरिया में धर्मयुद्ध में हिस्सा लेनेवाले यात्रियों ने उसे गिरफ्तार कर लिया, जहाँ से उसके एक पुराने साथी ने सोने के दस सिक्के (दीनार) मुक्तिधन के रूप में देकर उसका उद्धार किया। उसी ने 100 दीनार दहेज में देकर अपनी लड़की का विवाह भी सादी से कर दिया। यह लड़की बड़ी उद्दंड और दुष्ट स्वभाव की थी। वह अपने पिता द्वारा धन देकर छुड़ाए जाने की चर्चा कर सादी को खिजाया करती थी। ऐसे ही एक अवसर पर सादी ने उसके व्यंग्य का उत्तर देते हुए जवाब दिया 'हाँ, तुम्हारे पिता ने दस दीनार देकर जरूर मुझे आजाद कराया था लेकिन फिर सौ दीनार के बदले उसने मुझे पुन: दासता के बंधन में बाँध दिया।'

कई वर्षों की लंबी यात्रा के बाद सादी शीराज़ लौट आया और अपनी प्रसिद्ध पुस्तकों - 'बोस्ताँ' तथा 'गुलिस्ताँ' - के लेखन का आरंभ किया। इनमें उसके साहसिक जीवन की अनेक मनोरंजक घटनाओं का और विभिन्न देशों में प्राप्त अनोखे तथा मूल्यवान्‌ अनुभवों का वर्णन है। वह शताधिक वर्षों तक जीवित रहा और सन्‌ 1292 के लगभग उसका देहांत हुआ।

गुलिस्ताँ का प्रणयन सन्‌ 1258 में पूरा हुआ। यह मुख्य रूप से गद्य में लिखी हुई उपदेशप्रधान रचना है जिसमें बीच बीच में सुंदर पद्य और दिलचस्प कथाएँ दी गई हैं। यह आठ अध्यायों में विभक्त है जिनमें अलग अलग विषय वर्णित हैं; उदाहरण के लिए एक में प्रेम और यौवन का विवेचन है। 'गुलिस्ताँ' ने प्रकाशन के बाद से अद्वितीय लोकप्रियता प्राप्त की। वह कई भाषाओं में अनूदित हो चुकी है - लैटिन, फ्रेंच, अंग्रेजी, तुर्की, हिंदुस्तानी आदि। अनेक परवर्ती लेखकों ने उसका प्रतिरूप प्रस्तुत करने का प्रयास किया, किंतु उसकी श्रेष्ठता तक पहुँचने में वे असफल रहे। ऐसी प्रतिरूप रचनाओं में से दो के नाम हैं - बहारिस्ताँ तथा निगारिस्ताँ।

बोस्ताँ की रचना एक वर्ष पहले (1257 में) हो चुकी थी। सादी ने उसे अपने शाही संरक्षक अतालीक को समर्पित किया था। गुलिस्ताँ की तरह इसमें भी शिक्षा और उपदेश की प्रधानता है। इसके दस अनुभाग है। प्रत्येक में मनोरंजक कथाएँ हैं जिनमें किसी न किसी व्यावहारिक बात या शिक्षा पर बल दिया गया है। एक और पुस्तक पंदनामा (या करीमा) भी उनकी लिखी बताई जाती है किंतु इसकी सत्यता में संदेह है। सादी उत्कृष्ट गीतिकार भी थे और हाफिज के आविर्भाव के पहले तक वे गीतिकाव्य के महान्‌ रचयिता माने जाते थे। अपनी कविताओं के कई संग्रह वे छोड़ गए हैं।

फारस के अन्य बहुत से कवियों की तरह सादी सूफी नहीं थे। वे व्यावहारिक व्यक्ति थे जिनमें प्रचुर मात्रा में सांसारिक बुद्धि एवं विलक्षण परिहासशीलता विद्यमान थी। उनकी ख्याति उनकी काव्यशैली एवं गद्य की उत्कृष्टता पर ही अवलंबित नहीं है वरन्‌ इस बात पर भी आश्रित है कि उनकी रचनाओं में अपने युग की विद्वत्ता और ज्ञान की तथा मध्यकालीन पूर्वी समाज की सर्वोत्कृष्ट सांस्कृतिक परंपरा की छाप मौजूद है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • The Bustan of Saadi, English translation, 74 p., Iran Chamber Society (PDF).
  • The Golestan of Saadi, translated by Richard Francis Burton, 213 p., Iran Chamber Society (PDF).
  • Golestan Saadi, the complete work, in Persian (ParsTech). This work can be freely downloaded (File size, compiled in pdf format: 485 KB).