युद्धपोत

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विलियम वैन डे वेल्डे द यंगर द्वारा कैनन शॉट 17वीं सदी के लाइन के डच जहाज को प्रदशित कर रहा है

युद्धपोत एक ऐसा जलयान है। जिसका निर्माण युद्ध करने के लिए किया गया हो। युद्धपोतों का निर्माण आमतौर पर व्यापारिक जलयानों से पूर्णतया भिन्न रूप से होता है। सशस्त्र होने के साथ ही साथ युद्धपोत की रचना उसको होने वाली क्षति को सहने के लिए भी की जाती है, साथ ही वे व्यापारिक जलयानों की तुलना में अधिक तेज तथा आसानी से मुड़ सकने वाले होते हैं। एक व्यापारिक जलयान के विपरीत, एक युद्धपोत आमतौर पर केवल अपने स्वयं के चालक दल के लिए हथियार, गोला बारूद, तथा आपूर्ति को ढोता है (न कि व्यापारिक माल)। युद्धपोत आमतौर पर नौसेना की सम्पत्ति होते हैं, हालाँकि कभ-कभी कुछ व्यक्तियों अथवा कम्पनियों द्वारा भी इन्हें रखा जाता है।

युद्ध के समय में, युद्धपोतों और व्यापारिक जहाज़ों के बीच का अन्तर अक्सर अस्पष्ट हो जाता है। युद्ध के समय में व्यापारिक जहाज अक्सर सशस्त्र रहते हैं तथा सहायक युद्धपोतों के रूप में प्रयोग किये जाते हैं, उदाहरण के लिए प्रथम विश्व युद्ध के क्यू-शिप्स तथा द्वितीय विश्व युद्ध के सशस्त्र व्यापारिक क्रूज़र्स। 17वीं शताब्दी तक यह आम था कि व्यापारिक जलयानों को नौसैनिक सेवा में प्रयोग किया जाये तथा यह भी असामान्य नहीं था कि नौसैनिक बेड़े में आधे से अधिक व्यापारिक जलयान शामिल हों। 19वीं सदी में समुद्री डकैतों के खतरे के समाप्त होने तक बड़े व्यापारिक जलयानों, जैसे गैलियंस को सशस्त्र रखना एक आम प्रथा थी। युद्धपोतों का प्रयोग सैन्य टुकड़ियों के वाहक अथवा रसद सामग्री पहुँचाने वाले जलयान के रूप में भी किया जाता था, जैसा कि फ्रांसीसी नौसेना 18वीं सदी में अथवा जापानी नौसेना द्वितीय विश्वयुद्ध के समय करती थीं।

युद्धपोतों का विकास[संपादित करें]

अश्शूरियों युद्धपोत, बाईरीम के साथ एक नुकीला धनुष.700 BC (ईसा पूर्व).

गैली युग[संपादित करें]

मेसोपोटामिया, प्राचीन फारस, प्राचीन ग्रीस, तथा रोमन साम्राज्य के समय में गैली सर्वाधिक प्रचलित प्रकार के युद्धपोत होते थे (जैसे बाइरीम, ट्राइरीम तथा क्विनकिरीम), यह एक लम्बा, संकरा जलयान होता था जिसे मल्लाहों की कतारों के द्वारा शक्ति मिलती थी, इसका डिज़ाइन शत्रु के जलयान से टकरा कर उसे डुबाने के लिए होता था, अथवा यह शत्रु के बराबर आकर चलता था जिससे उनपर आमने-सामने आक्रमण किया जा सकता था। चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में गुलेलों के विकास तथा इसकी प्रौद्योगिकी में शोधन के साथ ही हेलेनिस्टिक युग से तोपखाने से लैस युद्धपोत के पहले बेड़ों का विकास हुआ। दूसरी और पहली सदी ई.पू. में भूमध्य सागर में राजनीतिक एकीकरण के साथ, नौसैनिक तोपखाने प्रयोग से बाहर हो गए।

बाद की एंटिक्विटी तथा मध्यकाल में 16वीं सदी तक नौसैनिक युद्ध जलयानों पर ही आधारित थे, इनका प्रयोग से टक्कर मार कर, चालक दल की तलवारों तथा विभिन्न प्रक्षेपास्त्रों, जैसे धनुष व बाण तथा जलयान के परकोटे पर लगे भारी क्रॉसबो से छोड़े गए तीरों की सहायता से युद्ध लड़े जाते थे। नौसैनिक युद्ध में मुख्य रूप से टक्कर मारना तथा बोर्डिंग क्रियाएं शामिल थीं इसलिए युद्धपोतों को विशिष्ट रूप से विशेषीकृत होने की आवश्यकता नहीं होती थी।

प्रथम और तृतीय स्तर के युद्धपोतों के चित्र, इंग्लैंड, 1728

पाल-पोतों का युग[संपादित करें]

14वीं सदी में नौसैनिक तोपखाना पुनः विकसित हुआ परन्तु समुद्र में तोपें विशेष प्रचलित नहीं हो पायीं जब तक कि उन्हें पुनः भर कर उसी युद्ध में दोबारा दागे जाने लायक नहीं बना लिया गया। बड़ी संख्या में तोपें ले जा सकने लायक जलयान के आकार के कारण नौका-आधारित प्रणोदन असंभव हो गया था, एवं इसीलिए युद्धपोत मुख्य रूप से पालों पर आधारित थे। 16वीं सदी के दौरान पाल आधारित मैन-ऑफ-वार का प्रादुर्भाव हुआ।

17वीं शताब्दी के मध्य तक युद्धपोतों के दोनों ओर ब्रॉडसाइड पर लगाई जाने वाली तोपों की संख्या बढ़ती जा रही थी, तथा युद्धक्षेत्र में प्रत्येक युद्धपोत की मारक क्षमता के पूर्ण प्रयोग की युद्धनीतियों का विकास हो रहा था। मैन-ऑफ-वार अब शिप ऑफ दि लाइन के रूप में विकसित हो चुका था। 18वीं सदी में फ्रिगेट तथा स्लूप-ऑफ-वार - जो अपने छोटे आकार के कारण युद्ध क्षेत्र के लिए अनुपयुक्त थे - व्यापारिक जलयानों के काफिले के साथ चलते थे, शत्रु के जलयानों की सूचना देते थे तथा शत्रु के समुद्र तट की नाकाबंदी करते थे।

इस्पात, भाप और गोलाबारी[संपादित करें]

19वीं सदी के दौरान प्रणोदन, आयुध और युद्धपोतों के निर्माण में एक क्रांति आ गयी। भाप के इंजन प्रकाश में आ गए, शुरुआत में 19वीं सदी के दूसरे चौथाई भाग में वे सहायक शक्तिस्रोत के रूप में थे।

जलयात्रा में फ्रांसीसी आइरन्क्लैड ला ग्लौएर

क्रीमियाई युद्ध ने तोपों के विकास को बहुत अधिक उद्दीप्त किया। विस्फोटक गोलों की शुरूआत के कारण बड़े युद्धपोतों के दोनों ओर तथा डेक पर आर्मर के लिए पहले लोहे तथा फिर इस्पात का प्रयोग किया जाने लगा। पहले लौह आच्छादित युद्धपोतों, फ़्रांसिसी ग्लोएर तथा ब्रिटिश वॉरियर ने, लकड़ी से बने जलयानों को प्रचलन से बाहर कर दिया। धातु ने जल्दी ही युद्धपोत निर्माण के लिए मुख्य सामग्री के रूप में लकड़ी की जगह ले ली।

1850 के दशक से भाप की शक्ति से चलने वाले युद्धपोतों ने पाल से चलने वाले जलयानों की जगह ले ली, जबकि पाल से चलने वाली फ्रिगेट्स के स्थान पर भाप की शक्ति से चलने वाले क्रूज़र्स आ गए। घूम सकने वाले बारबेट तथा टरेट के आविष्कार ने युद्धपोतों के आयुध को भी बदल दिया, अब तोपों को जलयान के दिशा के सापेक्ष स्वतन्त्र रूप से निशाना लगाने के लिए प्रयोग किया जा सकता था तथा अब बड़ी तोपों की कम संख्या को ढोने की आवश्यकता थी।

19वीं सदी के दौरान आखिरी बड़ी नवीनता टौरपीडो तथा टौरपीडो नौकाओं का विकास था। छोटे, तेज टारपीडो नौकाएं महंगे युद्धपोतों के बेड़े बनाने का विकल्प उपलब्ध कराती थीं।

ड्रेडनॉट युग[संपादित करें]

भाप टर्बाइन चालित, सभी बड़ी तोपों वाला युद्धपोत एचएमएस ड्रेडनॉट

युद्धपोत डिजाइन में एक और क्रांति सदी के अंत के शीघ्र बाद हुई, जब ब्रिटेन ने 1906 में सभी-बड़ी-तोपों-वाले युद्धपोत ड्रेडनॉट का जलावतरण किया। भाप की टर्बाइन से चालित, सभी तत्कालीन युद्धपोतों से, जिन्हें इसने उसी क्षण प्रचलन से बाहर कर दिया, यह बड़ा, तेज तथा भारी तोपों से लैस था। अन्य देशों में शीघ्रता से ऐसे ही जलयान बनाये जाने लगे।

ब्रिटेन ने पहले बैटलक्रूज़र का विकास भी किया। ड्रेडनॉट जैसी ही भारी तोपों के साथ और बड़े हल वाले बैटलक्रूज़र को गति पाने के लिए आर्मर की सुरक्षा का परित्याग करना पड़ा. बैटलक्रूज़र सभी तत्कालीन क्रूज़र की तुलना में अधिक तेज तथा शक्तिशाली थे, जिन्हें उसने प्रचलन से बाहर कर दिया, परन्तु बैटलक्रूज़र तत्कालीन युद्धपोतों की तुलना में कहीं अधिक असुरक्षित थे।

टारपीडो नाव विध्वंसक का विकास भी ड्रेडनॉट के समकालीन ही किया गया था। ये विध्वंसक टौरपीडो नौकाओं से बड़े, तेज तथा अधिक बड़ी तोपों से लैस थे, इनका विकास मुख्य जलयानों को टौरपीडो नौकाओं से बचाने के लिए किया गया था।

द्वितीय विश्व युद्ध[संपादित करें]

द्वितीय विश्व युद्ध के प्रारंभ होने से पहले जर्मनी और ग्रेट ब्रिटेन एक बार फिर से अटलांटिक सागर की दो सबसे बड़ी शक्तियों के रूप में उभरे. वरसाइल्स की संधि के अंतर्गत जर्मनी की नौसेना कुछ छोटे जलयानों तक ही सीमित थी। लेकिन चतुराईपूर्ण नामों, जैसे "पॉकेट युद्धपोत" जैसे नामों ने ब्रिटिश तथा फ़्रांसिसी कमानों को धोखे में डाले रखा। वे बेरुखी आश्चर्य में पड़ गए जब जलयानों, जैसे एडमिरल ग्राफ स्पी (Admiral Graf Spee), स्कार्नहोर्स्ट (Scharnhorst) तथा नीसेनाऊ (Gneisenau) आदि मित्र राष्ट्रों की आपूर्ति श्रृंखलाओं पर लगातार आक्रमण करते रहे। सबसे बड़ा खतरा हालांकि क्रीग्समरीन के सबसे खतरनाक हथियारों - बिस्मार्क तथा टिरपित्ज़ - का प्रस्तुत होना था। बिस्मार्क को उत्तरी अटलांटिक में एक भीषण तथा मुठभेड़ की एक छोटी श्रृंखला में डुबा दिया गया, जबकि टिरपित्ज़ को आरएएफ द्वारा डुबाये जाने से पहले उसने हलचल उत्पन्न की थी। 1943 तक यूरोपियन समाज में रॉयल नौसेना का दबदबा कायम हो गया था।

रूसी टाईफून वर्ग की पनडुब्बी

द्वितीय विश्व युद्ध ने युद्धपोतों की डिजाइन तथा भूमिका में भारी परिवर्तन किया। पहली बार, नौसैनिक कार्य दल (नवल टास्क फ़ोर्स) में विमानवाही जहाज मुख्य जलयान की भूमिका में पहली पसंद बन गयी। इतिहास में द्वितीय विश्व युद्ध एकमात्र ऐसा युद्ध है जिसमें विमानवाही जहाजों के समूहों के बीच अनेक लड़ाइयां हुई थीं। द्वितीय विश्व युद्ध में ही रडार का इस्तेमाल पहली बार देखा गया। इसमें पहली बार ऐसी नौसैनिक लड़ाई भी देखी गयी जिसमें दोनों पक्षों के जलयानों ने कभी भी सीधे न लड़ते हुए विमानों को भेज कर हमले किये, जैसा कि कोरल सागर की लड़ाई में हुआ।

पनडुब्बी का विकास[संपादित करें]

पहली व्यावहारिक पनडुब्बी 19वीं शताब्दी के अंत में बनायी गयी थी, परन्तु पनडुब्बियां टौरपीडो के विकास के बाद वास्तव में खतरनाक (तथा इसीलिए उपयोगी) हो गयीं। पनडुब्बियों ने प्रथम विश्व युद्ध के अंत तक अपनी क्षमता साबित कर दी थी। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जर्मन नौसेना के पनडुब्बी बेड़े की यू-बोट्स ने ब्रिटेन को समर्पण की कगार तक पराजित कर दिया था साथ ही संयुक्त राष्ट्र के तटीय जलयानों को भी बड़ी क्षति पहुंचाई थी। पनडुब्बियों की सफलता ने प्रथम तथा द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान पनडुब्बी-रोधी कॉन्वॉय एस्कॉर्ट्स के विकास का मार्ग प्रशस्त किया, जैसे कि विध्वंसक एस्कॉर्ट. भ्रमपूर्ण ढंग से, इन नए प्रकारों के नाम पाल युग के छोटे युद्धपोतों से लिए गए हैं, जैसे कौर्वेट, स्लूप तथा फ्रिगेट.

यूएसएस (USS) इंटरप्राइज़ (1961) और इसके मार्गरक्षी
एचएमएस (HMS) इन्विन्सिबल (1991)

विमानवाही जहाज का विकास[संपादित करें]

नौसैनिक युद्ध में एक प्रमुख बदलाव विमानवाही जहाज के आने से पैदा हुआ। सर्वप्रथम टारान्टो में और उसके पश्चात पर्ल हार्बर में, विमानवाही जहाज ने शत्रु के जलयानों पर, जो सतह पर चलने वाले जहाजों के दृश्य क्षेत्र व परास के बाहर थे, निर्णायक हमला करने की अपनी क्षमता का परिचय दिया। द्वितीय विश्व युद्ध के अंत तक, विमानवाही जहाज प्रमुख युद्धपोत बन गया था।

आधुनिक युद्धपोत[संपादित करें]

आधुनिक युद्धपोत आमतौर पर सात मुख्य श्रेणियों में विभाजित किये जा सकते हैं, ये हैं: विमानवाही जहाज, क्रूज़र्स, विध्वंसक, फ्रिगेट्स, कौर्वेट्स, पनडुब्बियां तथा एम्फिबियस एसौल्ट जलयान. बैटलशिप का आठवां वर्ग हो सकता है, लेकिन वर्तमान में दुनिया की किसी भी नौसेना में प्रयोग में नहीं है। सिर्फ अमेरिकी निष्क्रिय लोवा-श्रेणी के बैटलशिप अभी भी मौजूद हैं जिन्हें कॉम्बैटैंट कहा जा सकता है, तथा सामान्य रूप से बैटलशिप का बिना पुनर्परिभाषित हुए जलयानों की एक श्रेणी के रूप में फिर से शामिल करना कठिन लगता है। विध्वंसक को आमतौर से सबसे आधुनिक समुद्री नौसेनाओं का सबसे प्रमुख सतह पर चलने वाला युद्धपोत माना जा सकता है। हालांकि, ध्यान देने की बात है क्रूज़र्स, विध्वंसक, फ्रिगेट्स तथा कौर्वेट्स, जिनकी विशिष्ट भूमिकाएं तथा आकार होते थे, जो अब धुंधली पड़ चुकी हैं। ज्यादातर जहाज़ सतह, पनडुब्बी और विमान रोधी हथियारों के मिश्रण के साथ सशस्त्र होने लगे हैं। अब वर्ग पदनाम विश्वसनीय रूप से विस्थापन अनुक्रम को इंगित नहीं करते हैं, तथा जलयानों का आकार 20वीं शताब्दी में प्रतिपादित की गयी परिभाषाओं से कहीं अधिक बढ़ चुका है। पुराने और आधुनिक जहाज़ों के बीच एक और महत्वपूर्ण अंतर यह है कि सभी आधुनिक युद्धपोत "सॉफ्ट" होते हैं, उनमें द्वितीय विश्वयुद्ध तथा उससे भी पुरानी डिजाइनों में पाया जाने वाला मोटा आर्मर तथा उभरी हुई टौरपीडो रोधी सुरक्षा का आभाव होता है।

अधिकांश नौसेनाओं में अनेक प्रकार के सहायता तथा सहायक जलयान भी सम्मिलित होते हैं, जैसे माइनस्वीपर, गश्ती नौकाएं तथा ऑफशोर गश्ती जलयान.

युद्धपोत के प्रकार[संपादित करें]

मैगडेबर्ग, एक जर्मन ब्राउनश्विक वर्ग की कौर्वेट (2008)
भारतीय नौसेना विध्वंसक आईएनएस (INS) रणजीत (D53)
एक जर्मन शैसेन वर्ग फ्रिगेट (2006)
  • बख़्तरबंद क्रूजर
  • एम्फिबियस एसौल्ट शिप (जलस्थलीय मारक जलयान)
  • विमानवाही जहाज - एक युद्धपोत जो मुख्य रूप से लड़ाकू विमानों से लैस होता है।
  • बैटलक्रूज़र - एक जलयान जिसमें युद्धपोत के स्तर का शस्त्रीकरण तथा क्रूज़र के स्तर का आर्मर होता है; यह विशिष्ट रूप से युद्धपोत के तेज होता है क्योंकि आर्मर को हटा देने से अधिक भारी प्रणोदन यांत्रिकी को लगा पाना संभव हो जाता है।
  • युद्धपोत - एक बड़ा, भारी आर्मर वाला तथा भारी तोपों से लैस युद्धपोत. यह शब्द आम-तौर पर पाल आधारित युद्धपोतों के बाद प्रचलन में आया है।
  • बाईरीम - एक प्राचीन जहाज़, जो मल्लाहों की दो कतारों द्वारा चलित था।
  • मुख्य जलयान - किसी राष्ट्र के बेड़े में सबसे बड़ा तथा महत्वपूर्ण जलयान
  • वाणिज्यिक रेडर
  • कौर्वेट - एक छोटा, हल्का सशस्त्र, लेकिन तेज जलयान.
  • क्रूजर - एक तेज स्वतंत्र युद्धपोत. परंपरागत रूप से, क्रूज़र्स स्वतंत्र कार्य करने में सक्षम सबसे छोटे युद्धपोत थे। अब महासागरों से बैटलशिप तथा बैटलक्रूज़र्स के साथ ही लगभग गायब हो चुका है।
  • कटर
  • विध्वंसक - एक तेज और तेजी से मुड़ सकने की उच्च क्षमता वाला युद्धपोत, पारंपरिक रूप से स्वतंत्र कार्य करने में अक्षम, (मूल रूप से इसका विकास टौरपीडो नौकाओं के खतरे से निपटने के लिए किया गया था) परन्तु अब ये सबसे बड़े स्वतन्त्र युद्धपोत हैं जो महासागरों में दिखाई देते हैं।
  • ड्रेडनॉट - 20वीं सदी का युद्धपोत, जिसने इसके बाद में बनने वाले सभी युद्धपोतों के स्वरुप को बदल दिया।
  • फास्ट अटैक क्राफ्ट
  • फायरशिप - किसी भी तरह का पोत, जिसमें आग लगा कर उसे आतंक एवं विनाश करने के लिए किसी बंदरगाह की और भेज दिया जाता है। इसके पीछे आम विचार यह है कि शत्रु के बेड़े को समुद्र में एक उलझन की स्थिति में तथा इस प्रकार नाज़ुक स्थिति में डाल दिया जाये.
  • फ्रिगेट
  • गैलियास - पाल एवं चप्पुओं से चलित एक युद्धपोत, जो पाल एवं चप्पुओं से चलाने के लिए सर्वथा उपयुक्त होता था।
  • गैलियन - 16वीं सदी का पाल आधारित युद्धपोत.
  • गैली - एक युद्धपोत जिसे मल्लाहों द्वारा चलाया जाता था, साथ ही पाल भी होती थी जिसका प्रयोग अनुकूल दिशा में किया जा सकता था।
  • गाइडेड मिसाइल विध्वंसक
  • गनबोट
  • भारी क्रूजर
  • हेलीकाप्टर वाहक - एक विमानवाही जहाज जो विशेष रूप से हेलीकाप्टर तथा एम्फिबियस हमले के अनुकूल हो।
  • लौह आच्छादित - लकड़ी से बना युद्धपोत जिसमें सुरक्षा की दृष्टि से बाहर की ओर से लोहा चढ़ाया गया हो।
  • लाँगशिप - छापा मारने के अनुकूल एक वाइकिंग जहाज़.
  • मैन ऑफ वार - एक पाल आधारित युद्धपोत.
  • माइनस्वीपर
  • माइनहंटर
  • मॉनिटर - एक छोटा, भारी तोपों से लैस युद्धपोत जिसका प्रारूप छिछले डिजाइन का हो, तथा जो जमीन पर बमबारी के अनुकूल हो।
  • नौसैनिक ट्रौलर
  • नौसैनिक ड्रिफ्टर
  • अपतटीय गश्ती पोत
  • पौकेट युद्धपोत
  • ड्रेडनॉट के पूर्व के युद्धपोत
  • संरक्षित क्रूजर
  • क्विनकिरीम - एक प्राचीन युद्धपोत जो मल्लाहों की तीन कतारों द्वारा चालित होता था। ऊपरी कतार में तीन मल्लाह एक चप्पू पकड़ते थे, मध्य कतार में दो मल्लाह तथा निचली कतार में एक मल्लाह एक चप्पू पकड़ता था।
  • शिप ऑफ दि लाइन - युद्ध की रेखा में खड़ा हो सकने की क्षमता वाला पाल आधारित युद्धपोत.
  • स्लूप
  • पनडुब्बी - लम्बे समय तक पानी की सतह के नीचे रह सकने की क्षमता वाला जहाज. विश्व युद्धों के दौरान प्रयुक्त पनडुब्बियां पानी की सतह के नीचे अधिक से अधिक एक दिन से भी कम रह पाती थीं, परन्तु परमाण्विक रिएक्टरों तथा वायु-स्वतंत्र प्रणोदन ने पनडुब्बियों को कई हफ़्तों, यहां तक कि कई महीनों तक सतह से नीचे रहने की क्षमता प्रदान की।
  • सुपरकैरियर - बड़ी टन क्षमता वाला एक विमानवाही जहाज.
  • टारपीडो नौका - एक छोटी, तेज, सतह पर चलने वाली नौका जिसे टौरपीडो दागने के लिए डिज़ाइन किया गया था।
  • ट्राइरीम - मल्लाहों की तीन कतारों से चलित एक प्राचीन युद्धपोत.

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • सेवा में नौसेना के जहाज़ वर्गों की सूची
  • नौसेना के जहाज़
  • जंग

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]