पीनियल ग्रंथि

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Pineal gland
Diagram of pituitary and pineal glands in the human brain
लैटिन glandula pinealis
ग्रे की शरी‍रिकी subject #276 1277
धमनी superior cerebellar artery
पूर्वगामी Neural Ectoderm, Roof of Diencephalon
एमईएसएच {{{MeshNameHindi}}}

पीनियल ग्रंथि (जिसे पीनियल पिंड, एपिफ़ीसिस सेरिब्रि, एपिफ़ीसिस या "तीसरा नेत्र" भी कहा जाता है) पृष्ठवंशी मस्तिष्क में स्थित एक छोटी-सी अंतःस्रावी ग्रंथि है। यह सेरोटोनिन व्युत्पन्न मेलाटोनिन को पैदा करती है, जोकि जागने/सोने के ढर्रे तथा मौसमी गतिविधियों का नियमन करने वाला हार्मोन है।[1][2] इसका आकार एक छोटे से पाइन शंकु से मिलता-जुलता है (इसलिए तदनुसार नाम) और यह मस्तिष्क के केंद्र में दोनों गोलार्धों के बीच, खांचे में सिमटी रहती है, जहां दोनों गोलकार चेतकीय पिंड जुड़ते हैं।

उपस्थिति[संपादित करें]

मानव में पीनियल ग्रंथी लाल-भूरे रंग की और लगभग चावल के दाने के बराबर आकार वाली (5-8 मि॰मी॰), ऊर्ध्व छोटे से उभार के ठीक पीछे, पार्श्विक चेतकीय पिंडों के बीच, स्ट्रैया मेड्युलारिस के पीछे अवस्थित है। यह अधिचेतक का हिस्सा है।

पीनियल ग्रंथि एक मध्यवर्ती संरचना है और अक्सर खोपड़ी के सामान्य एक्स-रे में देखा जा सकता है, क्योंकि प्रायः यह कैल्सीकृत होता है।

संरचना और संयोजन[संपादित करें]

पीनियल ग्रंथि कैल्सीकरण के साथ पैरेन्काइमा.
एक सामान्य पीनियल ग्रंथि की सूक्ष्मछवि - अति उच्च आवर्धन.
एक सामान्य पीनियल ग्रंथि की सूक्ष्मछवि - मध्यवर्ती आवर्धन

मानवों में पीनियल पिंड संयोजक ऊतकों के अंतरालों से घिरे पीनियलोसाइट्स के खंडाकार सार-ऊतकों से बनी होती है। ग्रंथि की सतह मृदुतानिका संबंधी कैप्सूल से ढकी होती है।

पीनियल ग्रंथि मुख्य रूप से पीनियलोसाइट्स की बनी होती हैं, लेकिन चार अन्य प्रकार की कोशिकाओं की पहचान की गई है। चूंकि यह कोशिकीय होने का कारण (बाह्य स्तर और श्वेत पदार्थ के संबंध में) इसे ग़लती से अर्बुद समझा जा सकता है।[3]

कोशिका प्रकार विवरण - पीनियालोसाइट्स पीनियलोसाइट्स में 4-6 उभरती प्रक्रियाओं के साथ कोशिका निकाय शामिल है। ये मेलाटोनिन का उत्पादन और उसे स्रावित करते हैं। पीनियलोसाइट्स को विशेष रजत संसेचन विधियों से रंगीन किया जा सकता है। - अंतरालीय कोशिका अंतरालीय कोशिकाएं पीनियलोसाइट्स के बीच स्थित होती हैं। - परिवाहकीय फ़ैगोसाइट ग्रंथि में केशिकाएं मौजूद रहती हैं और परिवाहकीय फ़ैगोसाइट इन रक्त वाहिकाओं के निकट स्थित होती हैं। परिवाहकीय फ़ैगोसाइट प्रतिजन प्रस्तुतकर्ता कोशिकाएं हैं। - पीनियल न्यूरॉन उच्च पृष्ठवंशियों में न्यूरॉन पीनियल ग्रंथि में स्थित होती हैं। हालांकि, यह कृंतकों में मौजूद नहीं होती है। - पेप्टिडर्जिक न्यूरॉन-जैसी कोशिकाएं कुछ प्रजातियों में, न्योरनल-जैसी पेप्टिडर्जिक कोशिकाएं मौजूद रहती हैं। इन कोशिकाओं में पैराक्राइन विनियामक कार्य हो सकता है।

पीनियल ग्रंथि ऊर्ध्व नाड़ीग्रन्थि ग्रीवा से एक संवेदी तंत्रिका-प्रेरण प्राप्त करती है। तथापि, स्फ़ीनोपैलाटिन और कर्णपरक कंडरापुटी से एक परासंवेदी तंत्रिका-प्रेरण भी मौजूद होता है। इसके अलावा, कुछ तंत्रिका तंतु पीनियल डंठल (केंद्रीय तंत्रिका-प्रेरण) के माध्यम से पीनियल ग्रंथी में घुसते हैं। अंततः, त्रिपृष्ठी नाड़ीग्रंथि के ऊतकों में विद्यमान न्यूरॉन इस ग्रंथि में उन तंत्रिका तंतुओं के साथ तंत्रिका-प्रेरण करते हैं, जिनमें न्यूरोपेप्टाइड, PACAP होता है। मानव के छोटे स्रावी कोशों में कॉर्पोरा अरेनेशिया (या "एसरवुली," या "ब्रेन सैंड") नामक किरकिरा पदार्थ होता है। रासायनिक विश्लेषण दर्शाता है कि यह पदार्थ कैल्शियम फ़ॉस्फ़ेट, कैल्शियम कार्बोनेट, मैग्नीशियम फ़ॉस्फ़ेट के मिश्रण से बना है।[4] 2002 में, कैल्शियम कार्बोनेट के केल्साइट रूप के निक्षेपों को वर्णित किया गया था।[5] पीनियल ग्रंथि में कैल्शियम, फ़ास्फ़ोरस[6] और फ्लोराइड[7] निक्षेप को बढ़ती उम्र के साथ जोड़ा गया है।

विविध शरीर-रचना[संपादित करें]

अनेक ग़ैर-स्तनधारी पृष्ठवंशियों में पीनियलोसाइट आंख के प्रकाशग्राही कोशिकाओं से मिलते-जुलते हैं। कुछ विकासवादी जीवविज्ञानी मानते हैं कि पृष्ठवंशीय पीनियल कोशिकाएं किसी एक ही विकासशील पूर्वज की दृष्टिपटल कोशिकाओं से आई हैं।[8]

कुछ पृष्ठवंशियों में, प्रकाश के संपर्क में आने से पीनियल ग्रंथि के अंदर एंजाइम संबंधी घटनाक्रम की एक श्रृंखला शुरू हो सकती है, जोकि जैव-चक्रीय आवर्तन को नियमित करती है।[9] कुछ प्रारंभिक पृष्ठवंशियों की खोपड़ी के जीवाश्मों में एक पीनियल रंध्र (द्वार) पाया गया। इसके सूत्र आधुनिक "जीवित जीवाश्म" की शरीर-क्रिया विज्ञान के साथ जुड़ते हैं, जैसे मत्स्य वर्ग और सरीसृप वर्ग तथा अन्य पृष्ठवंशी, जिनके कोई पार्श्विका अंग या "तीसरी आंख" होती है, जोकि कुछ में प्रकाशसुग्राही होती हैं। तीसरी आंख प्रकाशग्रहण के प्रति प्रारंभिक दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करती है।[10] सरीसृप वर्ग में तीसरी आंख की संरचनाएं कॉर्निया, लेंस और दृष्टिपटल की रचना एवं उद्गम में एकसमान होती है, यद्यपि बाद वाले पृष्ठवंशियों के दृष्टिपटल की तुलना में ऑक्टोपस के दृष्टिपटल से अधिक मेल खाते हैं। विषम समग्र भाग के बाईं ओर "आंख" होती है और दाईं ओर पीनियल थैली. "स्तनधारियों सहित जिन पशुओं ने पार्श्विका नेत्र खो दिया है, पीनियल थैली बची रही है और सिमट कर पीनियल ग्रंथी बन गई है।"[10]

अन्य स्तनधारी मस्तिष्कों से भिन्न, पीनियल ग्रंथी रक्त-मस्तिष्क अवरोध प्रणाली द्वारा शरीर से अलग नहीं है;[11] बल्कि रक्त के प्रचुर प्रवाह के मामले में गुर्दे के बाद इसी का स्थान है।[7]

जीवाश्मों में कोमल शरीर रचना शायद ही कभी संरक्षित रहती है। 90 मिलियन वर्ष पुराना रूसी मेलवोत्का पक्षी का मस्तिष्क, एक अपवाद है और इसकी पार्श्विका आंख और पीनियल ग्रंथी अपेक्षाकृत बड़ी हैं।[12]

मानव और अन्य स्तनधारियों में, जैवचक्रीय अनुक्रम को व्यवस्थित करने के लिए आवश्यक प्रकाश संकेत दृष्टिपटल-अधःश्चेतकी प्रणाली के माध्यम से नेत्र द्वारा अधिव्यत्यासिका केंद्रक (SCN) तथा पीनियल को भेजे जाते हैं।

कार्यप्रणाली[संपादित करें]

पीनियल ग्रंथि को मूलतः किसी बड़े अंग का "अवशेष" रूप माना जाता था। 1917 में यह पता चला था कि गाय के पीनियल के रस ने मेंढ़क की त्वचा को चमका दिया था। येल विश्वविद्यालय में त्वचा-विज्ञान के प्रोफ़ेसर आरोन बी. लर्नर और उनके साथियों ने इस उम्मीद में कि पीनियल रस चर्म रोगों को ठीक करने में सहायक हो सकता है, 1958 में मेलाटोनिन हार्मोन को अलग किया और उसका यह नाम रखा। [13] यद्यपि यह पदार्थ वांछित रूप से मददगार साबित नहीं हुआ, लेकिन उसकी खोज अनेक अन्य रहस्यों को सुलझाने में सहायक रही, जैसे कि चूहे की पीनियल हटाने से उसकी डिंब ग्रंथी क्यों बढ़ जाती है, चूहों को लगातार प्रकाश में रखने से उनकी पीनियल का वज़न क्यों घट जाता है और पीनियल को काट कर निकाल देने तथा लगातार प्रकाश का प्रभाव समान रूप से डिंब ग्रंथि में बढ़ोतरी क्यों करता है; इस जानकारी ने तत्कालीन नए विषय-क्षेत्र कालजैविकी के बढ़ावा दिया। [14]

मेलाटोनिन N-असीटाइल-5-मीथॉक्सी-ट्रिप्टमाइन है, जोकि एमिनो एसिड ट्रिप्टोफ़न से व्युत्पन्न है, केंद्रीय तंत्रिका प्रणाली में कुछ अन्य कार्य भी करता है। पीनियल ग्रंथि द्वारा मेलाटोनिन का उत्पादन अंधेरे से उद्दीप्त होता है और प्रकाश से अवरुद्ध होता है।[15] दृष्टिपटल की प्रकाशसंवेदी कोशिकाएं प्रकाश का पता लगा लेती हैं और सीधे SCN को संकेत देती है, जहां उसका अनुक्रम 24 घंटों के प्राकृतिक चक्र से संबंध रखता है। SCN से निकले हुए तंतु परीनिलयी केंद्रक (PVN) तक जाते हैं, जो जैवचक्रीय संकेतों को आगे सुषुम्ना नाड़ी तक पहुंचाते हैं और संवेदी प्रणाली के माध्यम से आगे जाते हुए ऊर्ध्व ग्रीवा गंडिका (SCG) तक और वहां से पीनियल ग्रंथि तक जाते हैं। मानव शरीर में पीनियल ग्रंथि की गतिविधि (यां) स्पष्ट नहीं है; आम तौर पर इसे जैवचक्रीय अनुक्रम निद्रा विकार के उपचार के लिए दिया जाता है।

यौगिक पीनोलिन भी पीनियल ग्रंथि द्वारा उत्पादित होता है; यह बीटा-कार्बोलीनों में से एक है।

मानव की पीनियल ग्रंथि 1-2 वर्ष की आयु तक आकार में बढ़ती है और उसके बाद उसी आकार में स्थिर रहती है,[16][17] हालांकि यौवनारंभ के बाद से धीरे-धीरे उसका वज़न बढ़ने लगता है।[18][19] माना जाता है कि बच्चों में मेलाटोनिन स्तरों की प्रचुर मात्रा यौन विकास को बाधित करने के लिए हैं और पीनियल ट्यूमर का संबंध असामयिक यौवन के साथ जोड़ा गया है। जब यौवन आता है, मेलाटोनिन उत्पादन कम हो जाता है। वयस्कों में पीनियल ग्रंथि का कैल्सीकरण, अवस्था विशेष का सूचक है।

पशुओं में, पीनियल ग्रंथि यौन विकास, शीतनिष्क्रियता, चयापचय और मौसमी प्रजनन में प्रमुख भूमिका निभाती है।[20]

पीनियल कोशिका-संरचना और मेरुदंडियों के दृष्टिपटल की कोशिकाओं के विकास में समानताएं प्रतीत होती हैं।[8] आधुनिक पक्षी और सरीसृप की पीनियल ग्रंथि में प्रकाशपारक्रमी वर्णक मेलानोप्सिन स्पष्ट रूप से पाया गया है। माना जाता है कि पक्षियों की पीनियल ग्रंथियां स्तनपायी में SCN की तरह कार्य करती हैं।[21]

कृंतकों के अध्ययनों ने सुझाया है कि पीनियल ग्रंथि, कोकीन जैसे मनोरंजनात्मक नशीली दवाओं,[22] और फ़्लुक्सेटिन (प्रोज़ैक)[23] जैसे अवसादरोधी की क्रियाओं को प्रभावित कर सकते हैं और उसके हार्मोन मेलाटोनिन तंत्रिका-अपजनन के प्रति रक्षा कर सकती है।[24]

तत्वमीमांसा और दर्शन[संपादित करें]

पीनियल ग्रंथि की स्रावी गतिविधि को केवल सापेक्ष रूप में समझा जा सकता है। ऐतिहासिक दृष्टि से, मस्तिष्क में गहरे स्थान पर उसकी अवस्थिति ने दार्शनिकों को इसके विशेष महत्व को सुझाया. इस संयोजन ने उसके अनुभूत क्रियाकलापों के कारण उसे मिथक, अंधविश्वास तथा इंद्रियातीत सिद्धांतों से जोड़ते हुए "रहस्यमयी" ग्रंथि मानने की ओर रुझान दिखाया है।

रेने डेसकार्टेस ने, जिन्होंने पीनियल ग्रंथि के अध्ययन के लिए अपना अधिकांश समय समर्पित किया है,[25] उसे "आत्मा का आसन" कहा.[26] उनका मानना था कि यह शरीर और बुद्धि के बीच का संगम-स्थल है।[27] डेसकार्टेस द्वारा ऐसा मानने के कारण से संबंधित प्रासंगिक उद्धरण है,

My view is that this gland is the principal seat of the soul, and the place in which all our thoughts are formed. The reason I believe this is that I cannot find any part of the brain, except this, which is not double. Since we see only one thing with two eyes, and hear only one voice with two ears, and in short have never more than one thought at a time, it must necessarily be the case that the impressions which enter by the two eyes or by the two ears, and so on, unite with each other in some part of the body before being considered by the soul. Now it is impossible to find any such place in the whole head except this gland; moreover it is situated in the most suitable possible place for this purpose, in the middle of all the concavities; and it is supported and surrounded by the little branches of the carotid arteries which bring the spirits into the brain.[25] (29 जनवरी 1640, AT III:19–20, CSMK 143)

बारूक डी स्पिनोज़ा ने बाद में इसका खंडन किया:

For he [Descartes] maintained, that the soul or mind is specially united to a particular part of the brain, namely, to that part called the pineal gland, by the aid of which the mind is enabled to feel all the movements which are set going in the body, and also external objects, and which the mind by a simple act of volition can put in motion in various ways ... Such is the doctrine of this illustrious philosopher (in so far as I gather it from his own words); it is one which, had it been less ingenious, I could hardly believe to have proceeded from so great a man. Indeed, I am lost in wonder, that a philosopher, who had stoutly asserted, that he would draw no conclusions which do not follow from self-evident premisses, and would affirm nothing which he did not clearly and distinctly perceive, and who had so often taken to task the scholastics for wishing to explain obscurities through occult qualities, could maintain a hypothesis, beside which occult qualities are commonplace. What does he understand, I ask, by the union of the mind and the body? (Baruch de Spinoza, Ethics; part 5)[28]

"पीनियल-आंख" की अवधारणा फ़्रांसीसी लेखक जार्जेस बटेल के दर्शन का केंद्र रही है, जिसे विद्वान साहित्यकार डेनिस होलियर ने अपने अध्ययन अगेन्स्ट आर्किटेक्चर में सविस्तार विश्लेषित किया।[29] इस रचना में होलियर ने चर्चा की कि कैसे बटेल ने "पीनियल आंख" की अवधारणा को पश्चिमी तर्क में एक अंध-बिंदु और अतिक्रमण तथा उन्माद के संदर्भ में प्रयोग किया।[30] यह वैचारिक युक्ति उनके अतियथार्थवादी ग्रंथ द जेसुवे और द पीनियल आई में स्पष्ट रूप से वर्णित है।[31]

अतिरिक्त छवियां[संपादित करें]

इन चित्रों में पीनियल पिंड को लेबल किया गया है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

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  2. Arendt J, Skene DJ (2005). "Melatonin as a chronobiotic". Sleep Med Rev. 9 (1): 25–39. PMID 15649736. डीओआइ:10.1016/j.smrv.2004.05.002. Exogenous melatonin has acute sleepiness-inducing and temperature-lowering effects during 'biological daytime', and when suitably timed (it is most effective around dusk and dawn) it will shift the phase of the human circadian clock (sleep, endogenous melatonin, core body temperature, cortisol) to earlier (advance phase shift) or later (delay phase shift) times.
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बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

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