भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी

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भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी
आई.एन.एस.ए
भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी
संस्था अवलोकन
स्थापना १९३५
अधिकार क्षेत्र भारत
मुख्यालय नई दिल्ली
   पहली महिला अध्यक्ष=चंद्रिमा शाहा
वेबसाइट
insaindia.org/

भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (अंग्रेज़ी:इण्डियन नेशनल साइंस अकादमी (आई.एन.एस.ए)), नई दिल्ली स्थित भारतीय वैज्ञानिकों की सर्वोच्च संस्था है, जो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की सभी शाखाओं का प्रतिनिधित्व करती है। इसका उद्देश्य भारत में विज्ञान व उसके प्रयोग को बढ़ावा देना है। इसके मूल रूप की स्थापना १९३५ में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेज़ ऑफ इण्डिया नाम से हुई थी, जिसे बाद में १९७० में वर्तमान स्वरूप दिया गया है। भारत सरकार ने इसे १९४५ में भारत में विज्ञान की सभी शाखाओं का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था के रूप में दी थी। १९६८ में इसे भारत सरकार की ओर से अन्तर्राष्ट्रीय विज्ञान परिषद में भेजा गया था। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।

उद्देश्य[संपादित करें]

  • भारत में राष्ट्रीय कल्याण की समस्याओं पर इसके व्यावहारिक अनुप्रयोग सहित वैज्ञानिक ज्ञान का संवर्धन।
  • वैज्ञानिक अकादमियों, सभाओं, संस्थाओं, सरकार के वैज्ञानिक विभागों और सेवाओं के बीच समन्वय
  • भारत में वैज्ञानिकों के हितों के संवर्धन तथा रक्षा के लिए और देश में किए गए वैज्ञानिक काम को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुत करने के लिए प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों के एक निकाय के रूप में काम करना
  • राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय महत्त्व के वैज्ञानिक काम को हाथ में लेने के लिए, जो अकादमी को जनता द्वारा या सरकार द्वारा करने को कहा जाए, विधिवत् गठित राष्ट्रीय समितियों के माध्यम से काम करना जिनमें अन्य विद्वत् अकादमियों और संस्थाओं को भी सहयोजित किया जा सकता है
  • ऐसी कार्यवाहियाँ, जरनल, संस्मरण तथा अन्य रचनाएँ प्रकाशित करना जो वांछनीय समझी जाएँ
  • विज्ञान और मानविकी के बीच सम्पर्क को बढ़ाना और बनाए रखना
  • विज्ञान के संवर्धन के लिए निधियाँ तथा स्थायी निधियाँ जुटाना और उनका प्रबंध करना
  • ऐसे अन्य सभी काम करना जो अकादमी के उपर्युक्त उद्देश्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक हों या उसमें सहायता करें

इतिहास[संपादित करें]

भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी की स्थापना भारत में विज्ञान की प्रगति तथा मानवता एवं राष्ट्र कल्याण के लिए वैज्ञानिक ज्ञान का प्रसार करने के उद्देश्य से की गई थी। अकादमी जिसे पहले नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ साइंसेज इन इंडिया (निसी) के नाम से जाना जाता था, की स्थापना कुछ संस्थाओं और व्यक्तियों के संयुक्त प्रयासों का परिणाम थी तथा इस संबंध में इंडियन साइंस काँग्रेस एसोसिएशन (आई.एस.सी.ए) ने प्रमुख भूमिका निभाई थी। वर्ष १९३० के अंतिम दौर में, तत्कालीन भारत सरकार ने विभिन्न राज्यों (तब प्रांतीय) सरकारों, वैज्ञानिक विभागों, विद्वत समाजों, विश्वविद्यालयों तथा आई.एस.सी.ए. को पत्र लिखा और एक राष्ट्रीय अनुसंधान परिषद के निर्माण की वांछनीयता पर उनकी राय मांगी जो अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान परिषद और इससे संबद्ध संघों के साथ मिलकर सहयोगात्मक रूप में काम करे। इसी समय नेचर के संपादक सर रिचर्ड ग्रेगोर इंडियन अकेडमी ऑफ साइंस को प्रोत्साहन देने के लिए करंट साइंस के संपादक के साथ बातचीत करने भारत आए। इस प्रस्ताव पर बहुतेरे प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों ने विचार विमर्श किया और एक स्तरीय राष्ट्रीय परिषद के संगठन तथा कार्यप्रणाली के संबंध में उनके दृष्टिकोणों को आई.एस.सी.ए.के पुणे सत्र के दौरान, एक प्रस्ताव के रूप में सबके सामने रखा। इस योजना पर विचार करने के लिए जनवरी, १९३४ में मुम्बई में आई.एस.सी.ए. की एक विशेष बैठक का आयोजन किया गया।

आई.एस.सी.ए. के अध्यक्ष प्रोफेसर एम.एन. साहा द्वारा रॉयल सोसाइटी, लंदन के अनुरुप, भारतीय विज्ञान अकादमी बनाने के लिए किए गए निवेदन के फलस्वरुप आई.एस.पी. ए. की आम समिति ने राष्ट्रीय वैज्ञानिक के निर्माण के प्रस्ताव को एकमत से सहमति प्रदान की। समिति ने एक ‘अकादमी समिति’ का गठन किया, जिससे आई.एस.सी.ए. के अगले सत्र में विचार के लिए एक विस्तृत ब्यौरा तैयार करने हेतु अनुरोध किया गया। समिति ने 1935 में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें इन्सा नई दिल्ली

  1. निर्माणाधीन राष्ट्रीय वैज्ञानिक सोसाइटी के लक्ष्यों और उद्देश्यों;
  2. इसके संविधान के प्रारुप ;
  3. एक विशेषज्ञ समिति द्वारा चुने गए 125 संस्था सदस्यों ; तथा
  4. अकादमी की अंतरिम परिषद के सदस्यों के रूप में 25 वैज्ञानिकों के नाम शामिल किए गए थे।

डॉ॰ एल.एल. फ्रेमोर (आई.एस.सी.ए. के २२वें सत्र के अध्यक्ष) ने ३ जनवरी १९३५ को संयुक्त समिति की एक विशेष बैठक में अकादमी समिति की रिपोर्ट प्रस्तुत की। अकादमी समिति की सिफारिशों को आई.एस.सी.ए. ने सर्वसम्मत प्रस्ताव द्वारा स्वीकार कर लिया और इस प्रकार वैज्ञानिकों के एक अखिल भारतीय संगठन के रूप में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सांइसेज ऑफ इंडिया (निसि) की नींव पड़ी। कलकत्ता में ७ जनवरी १९३५ को, डॉ॰ जे.एच. हटन (आई.एस.सी.ए. के २३वें सत्र के अध्यक्ष की अध्यक्षता में नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ साइंसेज ऑफ इंडिया (निसि) की उद् घाटन बैठक का आयोजन किया गया, जिसमें निसि के प्रथम अध्यक्ष डॉ॰ एल.एल. फ्रेमोर ने उद् घाटन भाषण दिया। इस प्रकार इस संस्थान में उसी दिन से 1, पार्क स्ट्रीट कलकत्ता स्थित एशियाटिक सोसाइटी के प्रधान कार्यालय से अपना कार्य करना आरम्भ कर दिया। नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ साइंसेज ऑफ इंडिया (निसि) को सरकार द्वारा वैज्ञानिकों की एक प्रतिनिधि संस्था के रूप में मान्यता देने के विषय को, इसकी स्थापना के दस वर्षों के पश्चात उठाया गया। पर्याप्त विचार विमर्श और चर्चाओं के पश्चात, अक्टूबर, १९४५ में नेशनल इंस्टीटयूट को एक प्रमुख वैज्ञानिक संस्था के रूप में मान्यता देने का निर्णय लिया गया जिसमें भारत में विज्ञान की सभी शाखाओं तो प्रतिनिधित्व मिल सके। मई १९४६ में इसका मुख्यालय दिल्ली में स्थानांतरित हो गया और सरकार ने इसे अधिक सहायता अनुदान देना प्रारम्भ कर दिया ताकि यात्रा, प्रकाशनों, अनुसंधान अध्येतावृत्तियों पर होने वाले खर्च को पूरा करने तथा अन्य वैज्ञानिक संस्थाओं को उनके पत्र प्रकाशित करने के लिए अनुदान प्रदान करने में होने वाले खर्च को पूरा किया जा सके। सरकार ने १९४८ में मुख्यालय का भवन बनाने के लिए एक पूंजीगत अनुदान को भी मंजूरी दे दी। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरु ने १९ अप्रैल १९४८ को इस भवन की नींव रखी। वर्ष १९५१ में निसि का कार्यालय बहादुर शाह ज़फर मार्ग, नई दिल्ली स्थित इस वर्तमान परिसर में आ गया। जनवरी १९६८ में भारत सरकार की ओर से इसे इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ साइंस (इक्सू) की सहयोगी संस्था के रूप में र्निदिष्ट किया गया। फरवरी, १९७० में नेशनल इंस्टीटयूट, ऑफ साइंसेज ऑफ इंडिया का नाम बदल कर इंडियन नेशनल सांइस अकेडमी (इन्सा-भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी) कर दिया गया।

समितियां[संपादित करें]

  • अनुभागीय समितियाँ,
  • स्थायी समितियाँ,
  • सलाहकार समितियाँ
  • नेशनल कमेटीज फॉर इंटरनेशनल कॉउंसिल फॉर साइंस (इक्सू) एवं इसके सहयोगी संघ, समितियाँ और आयोग (1जनवरी, 2008 से 31 दिसम्बर 2011) वापस हुईं।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]