टोबा टेक सिंह (कहानी)

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टोबा टेक सिंह (उर्दू: ٹوبہ ٹیک سنگھ) सादत हसन मंटो द्वारा लिखी गई और १९५५ में प्रकाशित हुई एक प्रसिद्ध लघु कथा है। यह भारत के विभाजन के समय लाहौर के एक पागलख़ाने के पागलों पर आधारित है और समीक्षकों ने इस कथा को पिछले ५० सालों से सराहते हुए भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों पर एक "शक्तिशाली तंज़" बताया है।[1]

कहानी का सार[संपादित करें]

१९४७ में विभाजन के समय भारत और पाकिस्तान की सरकारों ने एक दुसरे के हिन्दू-सिख और मुस्लिम पागलों की अदला-बदली करने पर समझौता किया। लाहौर के पागलख़ाने में बिशन सिंह नाम का एक सिख पागल था जो टोबा टेक सिंह नामक शहर का निवासी था। उसे पुलिस के दस्ते के साथ भारत रवाना कर दिया गया, लेकिन जब उसे पता चला कि टोबा टेक सिंह भारत में न जाकर बंटवारे में पाकिस्तान की तरफ़ पड़ गया है तो उसने जाने से इनकार कर दिया।[2] कहानी के अंत में बिशन सिंह दोनों देशों के बीच की सरहद में कंटीली तारों के बीच लेटा, मरा या मरता हुआ दर्शाया गया। कथा का आख़री जुमला है:

इधर ख़ारदार (कंटीली) तारों के पीछे हिन्दोस्तान था। उधर वैसे ही तारों के पीछे पाकिस्तान। दरम्यान में ज़मीन के उस टुकड़े पर जिस का कोई नाम नहीं था, टोबा टेक सिंह पड़ा था।[1]

बिशन सिंह की बड़बड़ाहटें[संपादित करें]

कहानी में जब भी मुख्य पात्र बिशन सिंह उत्तेजित या ग़ुस्सा होता है तो पंजाबी, हिन्दी-उर्दू और अंग्रेज़ी को मिलाजुलाकर बड़बड़ाने या चिल्लाने लगता है। उसकी बातें वैसे तो बेमतलब होती हैं लेकिन उनमें भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए दबी हुई सी गालियाँ भी दिखती हैं। उदाहरण के लिए:

ऊपर दी गुड़-गुड़ दी एनेक्सी दी बेध्याना दी मूंग दी दाल ऑफ़ दी पाकिस्तान एंड हिन्दुस्तान ऑफ़ दी दुर्र फिट्टे मूंह[3]

प्रतिक्रियाएँ[संपादित करें]

विभाजन की ६०वीं सालगिरह पर पाकिस्तानी नाटक-मंडली अजोका ने इस कथा पर आधारित नाटक भारत में रचाया। इसपर समाचारों में हुई एक टिप्पणी के अनुसार यह 'दोनों देशों के बीच के मामलों पर एक तबसरा है, जिसमें कमेटियों, उपकमेटियों और मंत्रीय-स्तर के वार्तालापों को ही सभी मसलों का हल बताया जाता है'।[4]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "Toba Tek Singh - About the story - Columbia University". मूल से 15 जून 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 फ़रवरी 2012.
  2. Toba Tek Singh Archived 2012-04-15 at the वेबैक मशीन, Saadat Hasan Manto, The Pakistan Academy of Letters, 2006
  3. Blooming through the ashes: an international anthology on violence and the human spirit, Clifford Chanin, Aili McConnon, Rutgers University Press, 2008, ISBN 978-0-8135-4213-3, ... Bashan Singh walked away muttering: 'Upar di gur gur di annexe di bedhiyana di mung di daal of di Pakistan and Hindustan of di dar fatay mun!' ...
  4. "Beyond the shadows, Friday Review Delhi : The Hindu". मूल से 26 अक्तूबर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 फ़रवरी 2012.