हिन्दू अविभक्त कुटुम्ब

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(हिन्दू संयुक्त परिवार से अनुप्रेषित)
दक्षिण भारत के बण्ट जाति का एक संयुक्त परिवार (१९०० ई)

हिन्दू अविभक्त कुटुम्ब (Hindu Undivided Family, संक्षेप में: HUF) हिन्दू विवाह अधिनियम से सम्बन्धित एक विधिक शब्द है। इसके स्थान पर 'हिन्दू अविभाजित परिवार' या 'हिन्दू संयुक्त परिवार' भी प्रयुक्त होता है। भारतीय विधिक तंत्र के विकास के कारण अब स्त्रियों को भी हिन्दू अविभक्त कुटुम्ब के अन्तर्गत सम्पत्ति के अंश का अधिकार प्राप्त है।

संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय एक ऐसा व्यवसाय है जिसका स्वामित्व एक संयुक्त हिन्दू परिवार के सदस्यों के पास होता है। संगठन का यह स्वरूप हिन्दू अधिनियम के अंतर्गत कार्य करता है तथा उत्तराधिकार अधिनियम से नियंत्रित होता है।

संयुक्त हिन्दू परिवार व्यावसायिक संगठन का ऐसा स्वरूप है जिसमें परिवार के पास पूर्वजों की कुछ व्यावसायिक संपत्ति होती है। संपत्ति में हिस्सा केवल पुरूष सदस्यों का होता है। किसी सदस्य को पूर्वजों की इस संपत्ति में से हिस्सा अपने पिता, दादा तथा परदादा से मिलता है। अतः तीन आनुक्रमिक पीढ़ियाँ एक साथ विरासत में संपत्ति प्राप्त कर सकती हैं। संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय को केवल पुरूष सदस्य चलाते हैं जो कि व्यवसाय के सहभागी कहलाते हैं। आयु में सबसे बड़े सदस्य को कर्ता कहते हैं।

संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय की विशेषताएँ[संपादित करें]

  • जन्म से सदस्यता : परिवार में किसी भी बच्चे का जन्म होते ही उसे संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय की सदस्यता स्वतः ही मिल जाती है। इसे बनाने के लिए परिवार के सदस्यों के बीच कोई समझौता नहीं किया जाता।
  • प्रबन्ध : परिवार में सबसे बड़े सदस्य ;कर्ताद्ध के हाथों में इसका प्रबन्ध होता है। हालांकि कर्ता अन्य सदस्यों को अपनी मदद के लिए अपने साथ लगा सकता है।
  • दायित्व : कर्ता का दायित्व असीमित होता है अर्थात् व्यवसाय के दायित्वों का भुगतान करने हेतु उसकी निजी संपत्तियों को भी उपयोग में लाया जा सकता है। अन्य सभी सदस्यों का दायित्व हिन्दू अविभाजित परिवार की संपत्ति में उनके भाग तक सीमित होता है।
  • कोई अधिकतम सीमा नही : हिन्दू अविभाजित परिवार व्यवसाय के सदस्यों की संख्या पर कोई प्रतिबंध नहीं है। हालांकि इसकी सदस्या केवल तीन आनुक्रमिक पीढ़ियों तक प्रतिबंधित है।
  • अवयस्क सदस्य : परिवार में जन्म लेते ही कोई भी बच्चा इसका सदस्य बन जाता है। अतः हिन्दू अविभाजित परिवार अवस्यकों की सदस्यता को प्रतिबंध्ति नहीं करता।
  • मृत्यु से अप्रभावित : कर्ता सहित किसी भी सदस्य की मृत्यु के बाद भी हिन्दू अविभाजित परिवार व्यवसाय चलता रहता है। परिवार में अगला सबसे बड़ा जीवित सदस्य हिन्दू अविभाजित परिवार व्यवसाय का कर्ता बन जाता है। हालांकि परिवार के सभी सदस्य यदि यह घोषित करें कि अब वे संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय के सदस्य नहीं हैं, इसका समापन हो जाता है।

संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय के गुण[संपादित करें]

  • आर्थिक सुरक्षा तथा सदस्यों की प्रतिष्ठा : संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय सदस्यों को सुरक्षा की भावना तथा प्रतिष्ठा उपलब्ध् कराता है क्योंकि वे उसमें वित्तीय हित रखते हैं। अन्य लोगों के साथ व्यवहार करते समय यह उन्हें समाज में प्रतिष्ठा भी दिलाता है।
  • व्यवसाय की निरंतरता : व्यवसाय में निरंतरता बनी रहती है। कर्ता सहित किसी भी सदस्य की मृत्यु अथवा पागलपन से यह प्रभावित नहीं होता है। जब तक परिवार के सभी सदस्य इसे बंद करने का निर्णय नहीं लेते, तब तक यह निरंतर चलता रहता है।
  • परिवार गौरव : सदस्य अपनी पूर्ण लगन, निष्ठा तथा जिम्मेदारी से कार्य करते हैं क्योंकि कार्य के साथ परिवार का नाम संलग्न होता है। व्यवसाय केवल एक व्यावसायिक इकाई ही नहीं बल्कि परिवार की प्रतिष्ठा का मामला होता है।

संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय की सीमाएँ[संपादित करें]

  • असीमित दायित्व : सभी व्यावसायिक कर्त्तव्यों के लिए कर्ता व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी होता है। व्यवसाय के ऋणों के भुगतान हेतु यदि व्यवसाय की संपत्तियाँ अपर्याप्त हैं तो उसकी निजी संपत्तियाँ भी बेची जा सकती हैं।
  • सीमित पूँजी : कर्ता के पास पूँजी प्राप्त करने के सीमित स्रोत होते हैं। विस्तार हेतु उसकी अपनी निधियाँ अपर्याप्त होती हैं। यह वृद्धि के अवसरों को घटाता है।
  • कर्ता के पास अधिक शक्तियाँ : एक अकुशल कर्ता व्यवसाय को बर्बादी की ओर ले जा सकता है क्योंकि सभी व्यावसायिक निर्णय उसी के द्वारा लिए जाते हैं।
  • इस प्रकार का व्यवसायिक संगठन संयुक्त हिन्दू परिवार का प्राकृतिक आर्थिक विस्तार है। यह अपने सदस्यों को आर्थिक सुरक्षा तथा प्रतिष्ठा प्रदान करता है। इसका भारतीय व्यवसाय में अहम स्थान रहा है।

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]