सौ विचारधाराएँ

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कन्फ़्यूशियस
झुआंगज़ी (३६९-२८६ ईपू), एक ताओवादी दार्शनिक

सौ विचारधाराएँ (सरल चीनी: 诸子百家, पारम्परिक चीनी: 諸子百家, झूज़ी बाईजिआ; अंग्रेज़ी: Hundred Schools of Thought) प्राचीन चीन में ७७० ईसापूर्व से २२१ ईसापूर्व के बसंत और शरद काल और झगड़ते राज्यों के काल में पनपने वाले दार्शनिकों और नई विचारधाराओं को कहते हैं। इसे युग को चीनी दर्शनशास्त्र का सुनहरा काल समझा जाता है। हालांकि इस समय में चीन में बहुत राजनैतिक अस्थिरता थी और बहुत से राज्य आपस में ख़ून-ख़राबे वाले युद्ध लड़ते रहते थे, फिर भी चीन का बुद्धिजीवी वातावरण बहुत आज़ाद था और चिंतन करने वालों को अपने विचार खुलकर प्रकट करने का बहुत अवसर मिलता था।[1] इस काल के बारे में महान इतिहासकार के अभिलेख नामक प्रसिद्ध चीनी इतिहास-ग्रन्थ से पता चलता है।

मुख्य विचारधाराएँ[संपादित करें]

यह इस समय में उभरी कुछ मुख्य विचारधाराएँ हैं जिनका ज़िक्र शीजी ग्रन्थ (जो 'महान इतिहासकार के अभिलेख' के लिए एक अन्य नाम है) में किया गया है।[2]

कन्फ़्यूशियस-वाद[संपादित करें]

कन्फ़्यूशियसाई विचारधारा (Confucianism), जिसे चीनी में रुजिया (儒家, यानि 'विद्वानों की विचारधारा') कहते हैं, इस युग की सब से प्रभावशाली सोच-पद्दति रही है। इस विचारधारा का विकास कन्फ़्यूशियस (५५१-४७९ ईसापूर्व) ने झोऊ राजवंश के शुरू के काल को देखकर एक आदर्श सामाजिक और राजनैतिक व्यवस्था के सिद्धांतों को ढूँढने के प्रयास के बाद किया था। इसके अनुसार समाज में हर व्यक्ति का एक किरदार है जो उसे निभाना चाहिए। प्रजा के एक व्यक्ति को राजा के आदेशों का पालन करना चाहिए और अपने परिवार, समाज और देश के प्रति अपना दायित्व निभाना चाहिए। राजा को समझदार और गुणवान होना चाहिए और सुव्यवस्थित रूप से अपना शासन चलाना चाहिए। समाज में कोई ऊँचा और कोई नीचा तो होता ही है, इसलिए इस सच्चाई से लड़ने का कोई फ़ायदा नहीं, लेकिन यह ज़रूरी है कि सभी अपने धर्म का पालन ठीक से करें। किसी के लिए भी मनमानी करना ठीक नहीं है और मनुष्य को एक सज्जन व्यक्ति (चीनी भाषा में जुनज़ी / 君子) बनाने की कोशिश करनी चाहिए।[3][4]

न्याय-वाद[संपादित करें]

मुख्य लेख: न्यायवाद (चीनी दर्शनशास्त्र)

न्यायवाद (法家, फ़जिया, Legalism) की विचारधारा हान फ़ेईज़ी (मृत्यु २३३ ईपू) और ली सी (मृत्यु २०८ ईपू) ने की विकसित की थी। इनके अनुसार इंसान की मूल प्रकृति स्वार्थी है और इसे कभी बदला नहीं जा सकता। इसलिए समाज को सुव्यवस्थित रखने के लिए कड़े क़ानूनों की आवश्यकता है जिन्हें सख़्ती से लागू किया जाए। न्यायवादियों के लिए राष्ट्र और राज्य का हित नागरिकों के हित से बढ़कर है। इसलिए ज़रूरी है कि राज्य सम्पन्न और शक्तिशाली हो भले नागरिकों को कितना ही मुश्किल जीवन ही क्यों न जीना पड़े। हान राजवंश और उसके बाद आने वाले चीन के राजवंशों ने कन्फ़्यूशियसवाद और न्यायवाद को मिलाकर उनके सिद्धांतों पर राज्य चलाया। यही मिश्रण १९वीं सदी तक चीन की सरकार का मार्गदर्शन करता रहा।[5]

ताओ-वाद[संपादित करें]

मुख्य लेख: ताओ धर्म

ताओवाद (道家, ताओ चिया, अर्थ: उस वाले मार्ग की विचारधारा, Taoism) चीन की दूसरी सब से प्रभावशाली विचारधारा बन गई (कन्फ़्यूशियस-वाद के बाद)। इसके मूल सिद्धांत लाओ-त्सू नाम के संत ने उजागर किये, जो कन्फ़्यूशियस से भी पहले जीवित थे। इसे झुआंगज़ी (३६९-२८६ ईपू) ने भी विकसित किया। जहाँ कन्फ़्यूशियस-वाद में किसी व्यक्ति को उसके समाज में रिश्तों के आधार पर परखा जाता था वहाँ ताओवाद ने कहा की किसी भी व्यक्ति को प्रकृति के साथ मिलजुल कर रहना चाहिए। ताओवाद का कहना है कि पूरा ब्रह्माण्ड एक धारा में प्रवाह कर रहा है और उस धारा का हिस्सा बनाना चाहिए।[6]

मोही-वाद[संपादित करें]

मोहीवाद (墨家, मो चिया, अर्थ: मो की विचारधारा, Mohism) एक मोज़ी (४७०-३९१ ईपू अनुमानित) नामक गुरु के भक्तों की विचारधारा थी। चिन राजवंश में इस विचारधारा को पूरी तरह कुचल दिया गया और चीन में इसका प्रभाव ख़त्म हो गया लेकिन उस से पहले इसे कन्फ़्यूशियस-वाद की टक्कर की विचारधारा माना जाता था। इसके अनुसार व्यक्ति को सबसे प्रेम करना चाहिए और ईश्वर की नज़र में सभी बराबार हैं। इंसान को सादा जीवन जीना चाहिए और, मोहीवाद के अनुसार, कन्फ़्यूशियस-वाद में जो रीति-रिवाज और गाने-बजाने को महत्व दिया जाता है वह बेकार है। जनता को सम्राट की आज्ञा का पालन करना चाहिए और सम्राटों को दिव्य सिद्धांतों का। सरकारी सेवकों को उनकी क्षमता के अनुसार नियुक्त किया जाना चाहिए, न की उनके पारिवारिक संबंधों के बूते पर। युद्ध बहुत बुरी चीज़ है और कभी नहीं करना चाहिए। अधिक-से-अधिक अपने बचाव के लिए सेनाबल रखना बहुत है।[7]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Confucius & Confucianism: the essentials, Lee Dian Rainey, John Wiley and Sons, 2010, ISBN 978-1-4051-8841-8, ... It was during the Han dynasty, about a hundred years or more after the thinkers of the Warring States era, that scholars looked back and began to categorize the thinkers and the texts of the Warring States into schools of thought ...
  2. Chinese commercial law, Kui Hua Wang, Oxford University Press, 2000, ISBN 978-0-19-550858-1, ... the Spring-Autumn Period was characterised by the 'Contention of a Hundred Schools of Thought' (Bai Jia Zheng Ming) ... Confucianism, Moism, Daoism and Legalism ...
  3. Confucius: Chinese Philosopher and Teacher, Michael Burgan, Carol Stepanchuk, Rosemary G Palmer, Compass Point Books, 2008, ISBN 978-0-7565-3832-3
  4. "कन्फ़्यूशियस | भारतकोश". bharatdiscovery.org. अभिगमन तिथि 2022-04-14.
  5. Chinese civilization: a sourcebook Archived 2013-06-07 at the वेबैक मशीन, Patricia Buckley Ebrey, Simon and Schuster, 1993, ISBN 978-0-02-908752-7, ... The Legalists held that the law should be strict and universal in its application. Rather than relying on education and the good will of men ...
  6. Taoism: the parting of the way, Holmes Welch, Beacon Press, 1966, ISBN 978-0-8070-5973-9
  7. China's political system: modernization and tradition, June Teufel Dreyer, Longman, 2009, ISBN 978-0-205-70745-4, ... Another school was Mohism, named for its founder, Mo Zi. The Mohists were more egalitarian in outlook ...