सुप्त ग्रह

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

ज्योतिष के अनुसार जन्म कुण्डली के जिस घर में कोई ग्रह न हो तथा जिस घर पर किसी ग्रह की नज़र नहीं पड़ती हो उसे सुप्त घर या भाव माना जाता है।

लाल किताब के अनुसार सुप्त ग्रह से सम्बंधित फल तब तक प्राप्त नहीं होता है जब तक कि वह घर सक्रिय नहीं होता। लाल किताब में सोये हुए घरों को जगाने के लिए कई उपाय बताए गये हैं। परन्तु वैदिक ज्योतिष में इस प्रकार के विधान नहीं मिलते है। जो भाव खाली है उन भावों के कारको के अनुसार उनका फलादेश समझा जाता है और उन्ही के उपाय करके उन ग्रहों से संबंधित फलों को प्राप्त किया जा सकता है। जैसे कि यदि आपकी जन्म कुण्डली में पंचम भाव खाली है तो पंचम भाव के कारक बृहस्पति के अनुसार पंचम भाव का फलादेश कहा जायेगा।

सन्दर्भ[संपादित करें]

मनुष्यों की विविध अवस्थाएं उसकी आयु के अनुसार तय होती हैं जबकि ग्रहों की अवस्थाएं उनके अंशों के अनुसार। ज्योतिष शास्त्र में प्रत्येक ग्रह को 0 से 30 अंश का माना गया है।

ग्रह कितने अंश तक किस अवस्था में होता है:

1. यदि ग्रह विषम राशि में स्थित होता है तब यह:

0-6 अंश तक बाल अवस्था 6-12 अंश तक कुमार अवस्था 12-18 अंश तक युवा अवस्था 18-24 अंश तक वृद्ध अवस्था 24-30 अंश तक मृतावस्था का माना जाता है।

2. यदि ग्रह सम राशि में स्थित होता है तब यह:

0-6 अंश तक मृतावस्था 6-12 अंश तक वृद्ध अवस्था 12-18 अंश तक युवा अवस्था 18-24 अंश तक कुमार अवस्था 24-30 अंश तक बाल अवस्था का माना जाता है