सम्यक् ज्ञान

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जैन धर्म में सात तत्वों का यथार्थ ज्ञान सम्यक ज्ञान कहलाता है।[1] सम्यक दर्शन की प्राप्ति सम्यक ज्ञान के लिए आवश्यक है।

ज्ञान मीमांसा[संपादित करें]

जैन ज्ञान मीमांसा ज्ञान के पांच भेद करता है:

मतिज्ञान -इन्द्रियों और मन के निमित्त से होने वाले ज्ञान को मतिज्ञान कहते है।

श्रुतज्ञान - मतिज्ञान से जाने गए पदार्थ के विषय में विशेष जानने को श्रुतज्ञान कहते है।

अवधिज्ञान - द्रव्य क्षेत्र कल भाव की मर्यादा लिए हुए रूपी द्रव्य के स्पष्ट प्रत्यक्ष ज्ञान को अवधि ज्ञान कहते है।

मन:पर्यय - दुसरे के मन में स्थित रूपी द्रव्य के स्पष्ट ज्ञान को मन:पर्यय ज्ञान कहते है।

केवलज्ञान - जो लोकालोक के तीनो कालो के समस्त पदार्थो को स्पष्ट प्रत्यक्ष एकसाथ जनता है उसे केवलज्ञान कहते है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. जैन २०११, पृ॰ २.

आधार[संपादित करें]

  • जैन, विजय कुमार (२०११), आचार्य उमास्वामी तत्तवार्थसूत्र, Vikalp Printers, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-903639-2-1, Non-Copyright