जग्गी वासुदेव

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सद्गुरु
जन्म जगदीश वासुदेव
3 सितम्बर 1957 (1957-09-03) (आयु 66)
मैसूर, मैसूर राज्य, भारत
जीवनसाथी विजया कुमारी (वि॰ 1984; नि॰ 1997)[1]
बच्चे 1
उल्लेखनीय कार्य
  • इनर इंजीनियरिंग
  • ध्यानलिंग
  • नदियों के लिए रैली
  • लिंगभैरवी
  • आदियोगी: योग का स्रोत
  • रहस्यवादी चिंतन
  • कावेरी कॉलिंग
वेबसाइट
isha.sadhguru.org


सद्गुरु (जन्म जगदीश वासुदेव, 3 सितंबर 1957) भारत के कोयंबटूर में स्थित ईशा फाउंडेशन के संस्थापक और प्रमुख हैं। 1992 में स्थापित यह फाउंडेशन एक आश्रम और योग केंद्र संचालित करता है जो शैक्षिक और आध्यात्मिक गतिविधियाँ संचालित करता है।[2][3]

प्रारंभिक जीवन[संपादित करें]

यादव परिवार में हुआ था। उनके पिता एक डॉक्टर थे। बालक जग्‍गी को प्रकृति से खूब लगाव था। अक्‍सर ऐसा होता था वे कुछ दिनों के लिये जंगल में गायब हो जाते थे, जहां वे पेड़ की ऊँची डाल पर बैठकर हवाओं का आनंद लेते और अनायास ही गहरे ध्‍यान में चले जाते थे। जब वे घर लौटते तो उनकी झोली सांपों से भरी होती थी जिनको पकड़ने में उन्‍हें महारत हासिल है। ११ वर्ष की उम्र में जग्गी वासुदेव ने योग का अभ्यास करना शुरु किया। इनके योग शिक्षक थे श्री राघवेन्द्र राव, जिन्‍हें मल्‍लाडिहल्‍लि स्वामी के नाम से जाना जाता है। मैसूर विश्‍वविद्यालय से उन्‍होंने अंग्रजी भाषा में स्‍नातक की उपाधि प्राप्‍त की।

ईशा फाउंडेशन[संपादित करें]

ग्रीन हैंड्स परियोजना पौधो की नार्सेरी

सद्गुरु द्वारा स्थापित ईशा फाउंडेशन एक लाभ-रहित मानव सेवा संस्थान है जो लोगों की शारीरिक, मानसिक और आन्तरिक कुशलता के लिए समर्पित है। यह दो लाख पचास हजार से भी अधिक स्वयंसेवियों द्वारा चलाया जाता है। इसका मुख्यालय ईशा योग केंद्र कोयंबटूर में है। ग्रीन हैंड्स परियोजना (अंग्रेजी: Project GreenHands) ईशा फाउंडेशन की पर्यावरण संबंधी प्रस्ताव है। पूरे तमिलनाडु में लगभग १६ करोड़ वृक्ष रोपित करना परियोजना का घोषित लक्ष्य है। अब तक ग्रीन हैंड्स परियोजना के अंतर्गत तमिलनाडु और पुदुच्चेरी में १८०० से अधिक समुदायों में, २० लाख से अधिक लोगों द्वारा ८२ लाख पौधे के रोपण का आयोजन किया है। इस संगठन ने 17 अक्टूबर 2006 को तमिलनाडु के 27 जिलों में एक साथ 8.52 लाख पौधे रोपकर गिनीज विश्व रिकॉर्ड बनाया था। पर्यावरण सुरक्षा के लिए किए गए इसके महत्वपूर्ण कार्यों के लिए इसे वर्ष 2008 का इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार दिया गया। वर्ष 2017 में आध्यत्म के लिए आपको पद्मविभूषण से भी सम्मानित किया गया। अभी वे रैली फ़ॉर रिवर नदियों के संरक्षण के लिए अभियान चला रहे हैं। [4]

ईशा योग केंद्र[संपादित करें]

ईशा योग केंद्र में ध्यानलिंग योग मंदिर प्रवेश द्वार

ईशा योग केंद्र, ईशा-फाउन्डेशन के संरक्षण तले स्थापित है। यह वेलिंगिरि पर्वतों की तराई में 150 एकड़ की हरी-भरी भूमि पर स्थित है। घने वनों से घिरा ईशा योग केंद्र नीलगिरि जीवमंडल का एक हिस्सा है, जहाँ भरपूर वन्य जीवन मौजूद है। आंतरिक विकास के लिए बनाया गया यह शक्तिशाली स्थान योग के चार मुख्य मार्ग - ज्ञान, कर्म, क्रिया और भक्ति को लोगों तक पहुंचाने के प्रति समर्पित है। इसके परिसर में ध्यानलिंग योग मंदिर की प्राण प्रतिष्‍ठा की गई है।

ध्यानलिंग योग मंदिर[संपादित करें]

1999 में सद्गुरु द्वारा प्रतिष्ठित ध्‍यान लिंग अपनी तरह का पहला लिंग है जिसकी प्रतिष्ठता पूरी हुई है। योग विज्ञान का सार ध्यानलिंग, ऊर्जा का एक शाश्वत और अनूठा आकार है। १३ फीट ९ इंच की ऊँचाई वाला यह ध्यानलिंग विश्व का सबसे बड़ा पारा-आधारित जीवित लिंग है। यह किसी खास संप्रदाय या मत से संबंध नहीं रखता, ना ही यहाँ पर किसी विधि-विधान, प्रार्थना या पूजा की जरूरत होती है। जो लोग ध्यान के अनुभव से वंचित रहे हैं, वे भी ध्यानलिंग मंदिर में सिर्फ कुछ मिनट तक मौन बैठकर ध्यान की गहरी अवस्था का अनुभव कर सकते हैं। इसके प्रवेश द्वार पर सर्व-धर्म स्तंभ है, जिसमें हिन्दू, इस्लाम, ईसाई, जैन, बौध, सिक्‍ख, ताओ, पारसी, यहूदी और शिन्तो धर्म के प्रतीक अंकित हैं, यह धार्मिक मतभेदों से ऊपर उठकर पूरी मानवता को आमंत्रित करता है।

आलोचना[संपादित करें]

वासुदेव पर अंधविश्वास को बढ़ावा देने और विज्ञान को गलत तरीके से पेश करने का भी आरोप लगाया गया है।[5][6][7] वह इस दावे को प्रचारित करते है कि विज्ञान द्वारा असमर्थित, कि चंद्र ग्रहण के दौरान पका हुआ भोजन मानव शरीर की प्राणिक ऊर्जा को नष्ट कर देता है। [१०२] वह नैदानिक अवसाद के संबंध में कई मिथकों को समाप्त करते है, और पदार्थ की अत्यधिक विषाक्तता के बावजूद पारंपरिक भारतीय चिकित्सा में पारा के उपयोग पर संभावित निषेध का विरोध करते है।[8][9] हिग्स बोसॉन और विभूति के कथित लाभों पर उनके विचारों को विज्ञान द्वारा अप्रमाणित के रूप में खारिज कर दिया गया है। [१०५] [१०६] इसके अलावा, वह जल स्मृति के सिद्धांतों का प्रचार करते है जो विज्ञान द्वारा समर्थित नहीं हैं। इसके अलावा, वासुदेव पर हिंदुत्व के एक सुनहरे हिंदू अतीत के संशोधनवादी इतिहास को लोकप्रिय बनाने का आरोप लगाया गया है; प्राचीन भारतीय ज्ञान के पश्चिमी विनियोजन के रूप में चार्ल्स डार्विन के काम की गलत व्याख्या करना; हिंदू मृत्यु अनुष्ठानों के लिए वकालत करना; और यह दावा करते हुए कि हिंदू तांत्रिक मृतकों को उठाने में सक्षम हैं।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "Family Matters – Sadhguru Speaks About His Family". Isha Foundation. अभिगमन तिथि 14 February 2018.
  2. "Jaggi Vasudev's father passes away". Star of Mysore (अंग्रेज़ी में). 9 November 2019. अभिगमन तिथि 28 June 2021.
  3. Chopra, Shaili (2014). When I Was 25: The Leaders Look Back. Random House India. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-8400-677-3.
  4. ईशा फाउंडेशन को इंदिरा गाँधी पर्यावरण पुरस्कार
  5. "Jaggi Vasudeva doesn't understand science". Nirmukta. मूल से 30 जून 2021 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 मार्च 2021.
  6. "Should Sadhguru be Hosted by India's Top Colleges?". The Quint (अंग्रेज़ी में). 2018-09-17. अभिगमन तिथि 2019-12-31.
  7. Shahane, Girish (20 June 2019). "Opinion: The disturbing irrationalism of Jaggi Vasudev". Scroll.in (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2019-12-31.
  8. Shaikh, Dr Sumaiya (2018-02-26). "Scientific research ascertains mercury toxicity but Sadhguru continues to endorse it for Indian traditional medicines". Alt News (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2019-12-31.
  9. Shaikh, Dr Sumaiya (2018-08-19). "Depression: The myths & falseness of Sadhguru's quotes". Alt News (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2019-12-31.

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी[संपादित करें]