सदस्य:Banarsimasti

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

बनारस शिव से कभी मुक्त नही, जब से आये कैलाश न गये। बनारसी की मस्ती को लिखा नही जा सकता अनुभव होता है। अद्भूद है ये शहर जिन्दगी जीनेका तरीका कुछ ठहरा हुआ है पर सुख ठहराव में है द्रुतविलंबित में नही. मध्यम में है इसको जीनेवाला है यह नगर। नटराज यहां विश्वेश्वर के रुप में विराजते है इसलिये श्मशान पर भी मस्ती का आलम है। जनजन् शंकरवत् है। इस का अनुभव ही आनन्द है ये जान कर जीना बनारस का जीना है जीवन रस को बना के जीना है इसी क्रम में एक प्रयास है "बनारसी मस्ती के बनारस वाले" जिसे फेसबुक के माध्यम से १५ जुलाई २०११ की की की गयी थे जो बनारस की सस्कृति, सभ्यता, रहन सहन को दर्शाने का , दुनिया का सबसे पुराना जीवान्त शहर काशी जैसा की जानते है की भोले शंकर को समर्पित हैं वाराणसी उत्तरप्रदेश की नगरी वाराणसी का प्राचीन नाम काशी है, जो गंगा नदी के किनारे बसी हई है। कुछ लोग इसे बनारस के नाम से भी पुकारते हैं। वैसे तो बनारस के बारे में जितना लिखा जाये, कई टन कागज कम पड़ जायेगे, इस पवन धरती पर यदि कलाकारों की मर्दुम-शुमारी की जाए तो हर दस व्यक्ति पीछे कोई-न-कोई एक संगीतज्ञ, आलोचक, कवि, सम्पादक, कथाकार, मूर्त्तिकार,उपन्यासकार, नाट्यकार और नृत्यकार अवश्य मिलेगा। पत्रकार तो खचियों भरे पड़े हैं। कहने का मतलब यह कि यहाँ का प्रत्येक व्यक्ति कोई-न-कोई ‘कार’ है, बेकार भी अपनी मस्ती की दुनिया का शासक-सरकार है। काशी ही एक ऐसी नगरी है जहाँ प्रत्येक गली-कूचे में कितने महान और अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त कलाकार बिखरे पड़े हैं। सब एक-से-एक दिग्गज और विद्वान हैं। इनका पूर्ण परिचय समाचार पत्रों, मकानों में लगी ‘नेमप्लेटों’ और लेटरपैड पर छपी उपाधियों से ज्ञात होता है।

बनारसीपन यानी मौज- मस्ती का दूसरा नाम..। शायद ही वर्तमान समय की इस दौड़भाग भरी जिंदगी में कहीं लोगों को मौज मस्ती के लिए भरपूर फुर्सत मिलती हो लेकिन काशीवासी इस मामले में धनी हैं। तमाम काम के बावजूद लोग अपने और दूसरों के लिए समय निकाल ही लेते हैं। वहीं, काम के दौरान माहौल को हल्का फुल्का बनाने की कला बनारसियों का स्वाभाविक गुण है। महादेव की नगरी में बिना भांग खाये भी लोगों के बातचीत का लहजा अल्हड़पन लिए रहता है। एक बात जो बनारसियों के मौजमस्ती का ट्रेडमार्क बन गयी है वह है गंभीर से गंभीर मसले पर भी मुंह में पान घुलाते हुए बात करना, जो भी काशी की धरती पर अवतरित हो कर बनारसी मस्ती को अनुभत कर अपने जीवन यापन के लिए काशी से दूर होते है तब काशी के कमी लोगो को खलती है , क्या नहीं है यहाँ पर , धर्म यहाँ सस्कृति यहाँ मोक्ष यहाँ , ‘काशी खण्ड’ एवं अन्य स्मृति पुराणादि ग्रंथी में भी काशी-अर्थात् स्वतः प्रकाशमान-मुक्ति ज्ञान ध्यान साधना सिद्धि स्वरूपा-काभूरिशः वर्णन प्राप्त होता है। अनेक उक्तियों शास्त्रयुक्तियों एवं सिद्ध साधकमनीषि व्यक्तियों ने काशी के अनन्त माहात्म्य का निरूपण किया है। ‘मरण मंगलं यत्र सा कशी सेव्यते न कैः’, “काशी मुक्ति प्रदायिनी”, “आनन्दकाननं नाम काशी लोकातिशायिनी” “काशीयं साधनभूमिः” “काशी सिद्धिसमेधिनी” “काश्यां ज्ञानं च मुक्तिश्च युगपत् प्रतिपद्यते” इत्यादि काशी के स्वरूप महत्त्व के प्रख्यापक असंख्य प्राक्तन उदाहरण उपलब्ध होते हैं- जिनसे ‘काशी’ नाम के सनातन-संज्ञान की प्रमाणिकता सिद्ध होती है। लोकोक्ति में भी काशी का महत्त्व अपने निराले अन्दाज में दिखाया गया है- ‘चना चबैना गंगजल जो पुरवै करतार। काशी कबहुँ न छोड़िये विश्वनाथ दरबार।।”

माना जाता है कि इस शहर को भगवान शिव ने पृथ्वी पर अपना स्‍थायी निवास बनाया था। यह भी माना जाता है कि वाराणसी का निर्माण सृष्टि रचना के पहले चरण में ही हो गया था। दुनिया का पहला ज्‍योर्तिलिंग भी इसी शहर में स्थित है।पुराणों में वाराणसी को ब्रह्मांड का केंद्र बताया गया है। कहा गया है कि यहां के कण-कण में शिव निवास करते हैं। वाराणसी के लोगों के अनुसार, काशी के कण-कण में शिवशंकर हैं। इनके कहने का अर्थ यह है कि यहां के एक-एक पत्‍थर में शिव का निवास है। कहते हैं कि काशी शंकर भगवान के त्रिशूल पर टिकी हुई है।

वाराणसी कई शताब्दियों से हिन्दू मोक्ष तीर्थस्थल माना जाता है। यहां का बनारसी पान, बनारसी सिल्क साड़ी और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय संपूर्ण भारत में ही नहीं, विदेश में भी अपनी प्रसिद्धि के लिए चर्चित है। पुराण कथाओं के अनुसार वाराणसी शहर की खोज भगवान शंकर जी ने की थी। इसीलिए इसे शिव नगरी भी कहा जाता है। स्कंद पुराण एवं ऋग्वेद के अनुसार महाभारत काल में भी वाराणसी का उल्लेख पढ़ने को मिलता है। गौतम बुद्ध के काल में वाराणसी राजधानी का रूप लिए थी।

ऐसा भी कहते हैं कि वाराणसी विश्व की सबसे प्राचीन और न्यारी नगरी है। यहां पर गंगा नदी में डुबकी लगाने से प्राणी मात्र के सारे पाप धुल जाते हैं। यहां पर किया गया कोई भी पवित्र कार्य जैसे दान-पुण्य, मंत्र-जाप विशेष फल देने वाला होता है, क्योंकि यहां की महिमा अपरंपार है। यहां प्रदोष व्रत रखना पुण्य प्राप्ति का सरल साधन है।

काशी अथवा वाराणसी शहर मुख्यतया मंदिर और घाटों के लिए प्रसिद्ध है। यहां देवाधिदेव शंकरजी को समर्पित अनेकानेक मंदिर हैं। यहां पर अनेक ऐसे भी मंदिर हैं, जहां पर शिवजी की निरंतर पूजा-अर्चना होती रहती है। प्रयागवासी विद्वान् का यह प्रश्न वस्तुतः युक्तिसंगत था और वाराणसी के विद्वानों को तात्कालिक रूप से अनुत्तरित करने के लिये पर्याप्त था। किन्तु कुछ समय बाद काव्यशास्त्र के मर्मज्ञ-वाराणसी वासी एक विद्वान् ने महाकवि श्रीहर्ष के नैषधमहाकाव्य के पद्य को उद्वृत करके उक्त प्रश्न का बड़ा ही उपयुक्त समाधान किया, वह पद्य उल्लेखनीय है-

वाराणसी निविशते न वसुन्धरायां

तत्र स्थितिर्मुखीभुजा भुवने निवासः।

तत्तीर्थमुक्त वपुशामत एव मुक्तिः,

स्वर्गात्परं पदमुदेतु मुदे तु कीदृक्।।

वाराणसी वसुन्धरा में निविष्ट (स्थित) नहीं है, प्रत्युत् वहाँ (वाराणसी में) स्थित होना देवताओं के लोग (स्वर्ग) में निवास करना है। इसलिये ही वाराणसी (स्वर्गपुरी तीर्थ में) शरीर छोड़ने वालों की मुक्ति हो जाती अर्थात् पुनः उनका संसार में आगमन नहीं होता। स्वर्ग से बढ़कर कौन पद (स्थान) आनन्द के लिए हो सकता-स्वर्ग प्राप्ति ही परमानन्द (मुक्ति) है। अन्त में इस नगरी के ‘काशी’ नाम के महत्त्व पर विचार, महार्ह एवं मननीय है। मेरी दृष्टि से इस नगरी की सनातन अस्मिता, मुक्तिदायिनी अर्हता और शंकर की त्रिशूल-स्थितिशीलता तथा मंगल के रूप में मरण (मृत्यु) की मान्यता इत्यादि इसी काशी-नाम के महत्त्व से सन्दर्भित होता है। इस नगरी के अन्य नाम जैसे-आनन्दकानन, मुक्तिपुरी, शिवपुरी, मर्णिकर्णी इत्यादि गुणवत्ता तथा विशेषतामूलक हैं। इन सभी नामों का साक्षात् सम्बन्ध काशी के सन्दर्भ से गतार्थ होता है। वस्तुतः यह नाम श्रुतिकालीन है। “काश्यां मरणान्मुक्तिः” यह श्रुति वचन है। “ऋते ज्ञानान्न मुक्तिः” यह अनुपूरक श्रुतिवचन है। इन दोनों श्रौत वाक्यों पर काशी में एवं काशी के बाहर भी विद्वान्ों के बीच परस्पर बहुधा विचार-विमर्श होता रहा है। काशी में मरणमात्र से मुक्ति होती है या ज्ञान प्राप्ति करके काशी में मरण से मुक्ति होती है- इन दोनों पक्षों पर विद्वानों ने गहनतम शास्त्र-सम्मत विचार किया है। दोनों पक्षों में युक्तियाँ और शास्त्र प्रमाण दिये जाते हैं। उभय पक्ष यथार्थ यथोचित और शास्त्रभिमत है। इस पर विस्तृत विचार करना यहाँ सम्भव नहीं है। काशी नाम का निहितार्थ और गूढ़ाशय-मुक्ति-ज्ञान-ध्यान-साधना तथा सिद्धि इन पाँचों शब्दार्थों से समन्वित है। काशते-प्रकाशते या सा काशी, अर्थात् जो काशित प्रकाशित है वह काशी है-इससे उक्त पाँचों मुक्ति-ज्ञान-ध्यान साधना और सिद्धि का प्राकश अभिप्रेत है।

सर्वा विद्याः कला सर्वा साधनाः सिद्धयस्तथा।

काश्यामेव प्रकाशन्ते वैराग्यज्ञानमुक्तयः।।

‘काशी, वाराणसी और बनारस’ शीर्षकीय इन तीन नामों से यह विचारात्मक लघु लेख इस नगरी की गरिमा के सन्दर्भ में कुछ संदर्भ में कुछ नवीन बिन्दुओं को उन्मीलित करता है जिस पर विचारक विद्वज्जन चिन्तन कर अपने आशय को व्यक्त कर सकते हैं। उपसंहार के रूप में काशी नाम से इस नगरी के ज्ञान भक्ति धर्म दर्शन साधना सिद्धि आदि स्वरूप का तथा वाराणसी नाम से संगीत कलासंस्कृति शिष्टता शालीनता आदि सम्भाव का एवं बनारस से आधुनिकता सहजता विलक्षण स्वभावशील इत्यादि गुण वैशिष्टय का सम्बन्ध प्रस्फुटित होता है। अन्त में यदि कहें तो यही कह सकते हैं कि काशी काशी है, वाराणसी वाराणसी है और बनारस है-एकदम अनन्वय अतुलनीय एवं अनाकलनीय/वस्तुतः काशी मुक्ति, वाराणसी-मुक्ति और बनारस-पुष्टि का निदर्शन है तथा यही इस त्रिलोक न्यारी नगरी का दर्शन है-इत्यलं विस्तरेण।